श्री हरिवंश पुराण कथा

सागर मंथन में देवताओं की मदद

कूमाॅवतार 



वैश्य पन्ना जी ने आगे बताया इसी प्रकार एक बार  सागर मंथन के समय विष्णु ने देवताओं का सहयोग किया था समुद्र में औषधियां डालकर मदने से सोमदत्त जल अमृत के प्राप्त होने की कामना से सागर मंथन का कार्यक्रम बनाया था देवताओं का प्रभाव बढ़ने के लिए अमृत की आवश्यकता थी अमृत प्राप्ति का उपाय सागर मंथन था किंतु यह विकट कार्य अकेले देवताओं के बस का नहीं था अतः बलशाली दानों को भी इस महान कार्य के लिए समझा-बुझाकर शामिल कर दिया गया यद्यपि दाना देवताओं के विरोधी थे हिंदू अमृत रत्न तथा संप्रदाय की प्राप्ति के लोग में हुए तैयार हो गए विष्णु ने ऐसा पहले ही तय कर रखा था कि अमृत प्राप्ति के बाद संविधान को ना मिले अतः देवताओं को विमानों के सहयोग से मंथन करने में कोई आपत्ति नहीं हुई यह निश्चय किया कि सागर मंथन के लिए अति विशाल और सुग्रीव मंत्री की आवश्यकता को मंदराचल पर्वत से पूर्ण किया जाए और मथनी को चलाने के लिए विशाल तथा शुरू प्रसिद्ध की आवश्यकता शेषनाग उसे पूरी किया जाए तब एक ओर से दानों और दूसरी ओर से देवता शेषनाग द्वारा मंदराचल को घुमाकर सागर को मत है और विष्णु कुरमा अवतार लेकर विशाल कछुए के रूप में अपने विशाल बिष के आधार पर मदार पर्वत को धारण करेगा इस प्रकार उन लोगों ने 1000 वर्षों तक सागर मंथन किया तब दाना शेषनाग के फन ओं की ओर होने से उसकी भूखंड तरों से निकलने वाली अग्नि से पीड़ित हुआ अमित होते रहे देवताओं को पूछ की ओर रहने से तथा परमात्मा की कृपा से बादलों की छाया मिल जाने के कारण कोई अधिक कष्ट नहीं हुआ उस मंथन द्वारा सबसे पहले सागर के गर्व से कालकूट नामक एक महा भयंकर विष निकला जिससे पूरा भूमंडल संतृप्त होने लगा तब आशुतोष शिव ने लोक कल्याण हेतु 29 को अपने कंठ में धारण कर लिया और नीलकंठ कहलाए बाद में समुद्र से ऊंचे स्राव लक्ष्मी एरावत कोतुहल बामणी वर्णी धनवंतरी चंद्रमा आदि 18 महा रत्न निकले जिसमें राक्षसों तथा देवताओं ने आपस में बांट लिया अंत में सागर के गर्व से अमृत प्राप्त हुआ भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर दे क्योंकि मोदी को भ्रमित किया और अमृत कलश को अपने अधिकार में ले लिया अमृत वितरण का कार्य करते हुए मोहनी रूप विष्णु देवताओं को अमृत तथा दानों को मदिरा पिला रहे थे विष्णु ने इस स्थल को भापकर देवताओं का सेनापति महा प्रक्रम में राहु गुप्त रूप से देवताओं की लाइन में जाकर बैठ गया और उसे ने अमृत प्राप्त कर लिया तब सूर्य और चंद्रमा द्वारा पहचान लिए जाने पर विष्णु ने सुदर्शन चक्र से राहू का सिर काट दिया किंतु तब तक राहु अमृतपाल कर चुका था अतः वासीर कर जाने पर भी मृत्यु को प्राप्त नहीं हुआ परंतु सुदर्शन चक्र के अमो होने के कारण उसका सिर उसके शरीर से जुड़ भी ना पाया तब उस महाशुर का सीन क्योंकि मुख द्वार ही किसी को पहचाना जाता है राहु कहां गया उधर केतु क्योंकि मुख्य बाद पाठक पहचान कराना बनती है कहा गया आज भी राहु अपना प्रतिशोध लेने के लिए सूर्य और चंद्रमा को अवसर मिलते ही ग्रास लेता है हे राजन इस प्रकार श्री विष्णु ने समुद्र मंथन में भी मोहिनी रूप पर कुरमा अवतार द्वारा देवताओं की सहायता की थी मंथन से निकले महारत्न से कुतुब ग्रामीण तथा लक्ष्मी का विष्णु ने वरण किया था ना उन्होंने मदिरा वाणी तथा उचित राव नामक घोड़े को लिया था देवताओं ने इंद्र शेरावत नामक हाथी को लिया था तथा समस्त देवताओं सहित अमृत यात्रा धनवंतरी मानव के कल्याण के लिए आयुर्वेद के ऊपर तक है कालकूट विष की उस्मा को शांत करने में चंद्रमा की शिथिलता योगिनी थी इसलिए चंद्रमा को शिव ने स्वयं अपने माथे पर धारण कर लिया था इसी प्रकार अन्य महा रत्नों को भी दे दो तथा देवताओं ने आपस में बांट लिया था हे राजन राहु के अमृत सेवन कर लेते ही यदि विष्णु ने सुदर्शन चक्र द्वारा उसका सिर न काटा होता और इस प्रकार उसकी शक्ति को आधार ना कर दिया होता तो राहु देवताओं और मानव के लिए कभी हल ना होने वाले महा विकट समस्या बन गया होता

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Gods help in churning the ocean

kumaavatar

Vaishya Panna ji further explained that once during the churning of the ocean, Vishnu helped the deities by putting medicines in the sea. It was necessary to churn the ocean to get nectar, but this difficult task was not in the hands of the gods alone, so strong donors were also included for this great work, although the donors were opposed to the gods. Vishnu had already decided that the constitution should not be received after getting the nectar, so the gods had no objection to churning the ocean with the help of planes. The need of the minister Sugriva should be fulfilled by the Mandarachal mountain and the need of the huge and famous Sheshnag to run the churning should be fulfilled, then by rotating the Mandarachal from one side and the deity Sheshnag on the other side, the Sagar is considered and Vishnu Kurma Incarnating as a giant tortoise, he will hold the Madar mountain on the basis of his huge poison, in this way they churned the ocean for 1000 years, then Amit suffered from the fire emanating from the stars due to Dana being towards the hoods of Sheshnag. As the deities remained on the left side and by the grace of God they got the shadow of the clouds, they did not suffer any more. Through that churning, first of all, a very dangerous poison named Kalkut came out of the pride of the ocean, due to which the whole earth started getting saturated, then Ashutosh Shiva put 29 in his throat for the welfare of the people and they were called Neelkanth, later 18 great gems emerged from the ocean, Lakshmi, Airavat, Kotuhal, Bamani, Varni, Dhanvantari, Chandrama etc. Received Lord Vishnu took the form of Mohini because he confused Modi and took the Amrit Kalash under his authority. While doing the work of distribution of nectar, Vishnu in the form of Mohini was giving nectar to the gods and wine to the grains. Rahu secretly sat down in the line of the deities in the Maha Prakram and got the nectar, then on being recognized by the Sun and the Moon, Vishnu beheaded Rahu with the Sudarshan Chakra, but by then Rahu had made Amritpal Therefore, he did not die even after having hemorrhoids, but due to the absence of Sudarshan Chakra, his head could not even be attached to his body, then the scene of that Mahashur, because someone is recognized only through the mouth, where did Rahu go and Ketu, because the main body It is necessary to introduce the reader to the fact that even today, Rahu devours the Sun and the Moon as soon as he gets an opportunity to take his revenge. Qutb Gramin from Maharatna and Lakshmi was selected by Vishnu, he took Madira Vani and proper Rao, the horse named Indra Sherawat was taken by the deities and along with all the deities, Amrit Yatra Dhanvantari is above Ayurveda for the welfare of human. Moon's procrastination was Yogini in calming the heat of Kalkut poison, so Shiva himself wore the moon on his forehead. Similarly, give other great gems as well and the gods had distributed among themselves, O king, after consuming Rahu's nectar. If Vishnu had not cut his head with Sudarshan Chakra and thus had not made his power base, then Rahu would have become a huge unsolvable problem for the gods and humans.

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