श्री हरिवंश पुराण कथा

सनातन ब्रह्मा सनातन धर्म तथा कर्म फल विष्णु की महत्ता



हे राजन तुम्हें पहले बता ही चुका है कि सतयुग के अधिकारियों और उसकी समझ आया था कल कितना होता है अब मैं इन लोगों के चार चरणों को कहता हूं सतयुग मैं यूके चरण दास और सत्य कथा दया होते  हाय अतः इसे चार चरणों वाला कहा गया है त्रेता युग में धर्म के तीन ही चरण रह जाते हैं द्वापर में तो हर कली युग में एक ही चरण रह जाता है एक चतुर योग 12000 वर्ष का एक महायुद्ध होता है 71 महा युवाओं का एक मानव अंतर होता है इस प्रकार ब्रह्मा के दिन रात तक तुमसे सृष्टि की उत्पत्ति के प्रसंग में पहले बताए ही थे और सृष्टि प्रलय का क्रम भी कहा था इस पुरवा सुषमा जगत की उत्पत्ति फनकार पंचमहाभूत शादी के बारे में भी पहले बताया जा चुका है उन शृष्टि तथा पर लेके परतावा कारण भगवान नारायण को पूर्णता से जाने वाला अन्य कोई नहीं है वे सनातन और सच्चिदानंद है जो उन्हें जान लेता है वह उसी का अंत हो जाता है जिस प्रकार पानी की बूंदों समुद्र में मिलकर समुद्र हो जाती है भूत भविष्य वर्तमान तीनों काल सत रज तम तीनों को पृथ्वी जल अग्नि वायु और आकाश पंचमहाभूत बुद्धि सहित मान सहित अहंकार समस्त इंद्रिया आदि सब भाव पृथ्वी और अंतरिक्ष सहित सूर्य नक्षत्र सहित समूचे सृष्टि चक्र चराचर जगत समस्त प्राणी और भी सब कुछ इन्हीं नारायण से फायदा पोकर इन्हीं में लीन हो जाते हैं इस सृष्टि में जो कुछ भी है और जो कुछ नहीं भी है वह सब नारायण ही है ब्रह्मा के रूप में रचना विष्णु के रूप में पालन तथा शिव के रूप में संघार किया लाइक करने वाले वह एकमात्र नारायण ही है संसार के सभी कार्य सभी ग्रुप सभी विषय उन्हीं के ही हैं वे सृष्टि कर्ता होते हुए भी स्वयं सृष्टि पालक है सृष्टि के पालक होते हुए भी स्वयं सृष्टि और सृष्टि के संहार होते हुए भी स्वयं सृष्टि है हे राजन् हुए इस प्रकार से अपनी रचना अपने ही पालन और अपना ही लाइक करते रहते हैं हुए भी सृष्टि से पड़े हैं कोई गुण दोष आरोप ग्रुप की शोभा उन्हें तृप्त नहीं करते हुए स्वयं सृष्टि में होते हुए भी सृष्टि से बाहर रहता है नीली पद भाव से मिला करते रहते हैं उन्हें समझना कठिन है वे अध्याय अद्वितीय अपरिमेय आपबीती आह्लादित अजर अमर असीम अविष्कार लक्ष्य जन अभियान अक्षरा अलौकिक अबाउट आगरा अंतर्यामी अविनाशी अद्भुत अत्यंत हरूप प्रथा अदृश्य हुए प्रभु की भूख सर्व भूमि स्वरूप सनातन सत्य सच्चिदानंद सर्वोपरि सरकार सर्वश्रेष्ठ शगुन सर्वशक्तिमान सर्वस्व और सर्वगुण संपन्न है नित्या तथा परमात्मा है इन्हीं के बारे में इसलिए हुए नेति नेति इतना ही नहीं नहीं कहते हैं गुणों के भंडार हैं हुए परम कृपालु दयालु तथा संगत वात्सल्य उनके कार्य पूर्ण विशेषताएं कहीं भी नहीं जा सकती क्योंकि जो कुछ है वह सब उसका है जो नहीं भी है वह भी उसी का ही है वह वाना आहित है आगरा है हे राजन ओम प्रभु नारायण को केवल योग द्वारा ही जाना जा सकता है किंतु कोई-कोई ही उन्हें जान पाता है और जो कोई भी उन्हें जान लेता है वह खुद नारायण हो जाता है वेद उपनिषद शास्त्र पुराण आदि सब योग को और नारायण के समझाने के साधना है अतः ज्ञान में आती थी इन्हीं अवश्य पढ़ना यह सुनना चाहिए जल द्वारा समस्त जगत के घर जाने पर पहला अर्थात लोग के 51 हो जाने पर यही नारायण उस महानता के मध्य शेष शैया पर चयन करते हैं फिर सृष्टि की इच्छा होने पर ही महानुभाव अपनी नाभि कमल से ब्रह्मा को पैदा करके सृष्टि रचना का आदेश देते हैं इस विषय में तुमसे महामुनी मारकंडे का विलक्षण महसूस कहता है प्रभु के वरदान से उसकी आयु हजारों वर्ष से भी अधिक है वह पहले भगवान की कुक्षी में ही झीणो गए थे बाद में भगवान के मुंह से प्रकट हुए तब देव माया के प्रभाव से वे स्वयं को नहीं जान पाए मुख से निकलने की एक वन जलमग्न सृष्टि में पहुंचकर वहां अंधकार से ढके सागरपुर सब और देखकर भयभीत हो उठे तब उन्हें नारायण के दर्शन हुए उन्हें देखकर वह महामुनि सोच में पड़ गए यह कौन है यह अकेला क्या कर रहा है यह सब और अंधेरा से ढका सागर ही क्यों दिखाई दे रहा है आदि प्रश्नों से वह व्यतीत हो गए तब उन्होंने पूछा हे देव आप कौन हैं प्रभु ने तब उन्हें अपने उचित में ले लिया कि वह स्वयं देखें और जान ले वहां उन्हें शत्रु ब्राह्मणों को उनकी पूजा में तकलीफ देखा 100000 वर्ष तक कृष्ण में घूमने के बाद भी उन्हें कोई अंत ना प्राप्त हो सकता जब वह पुनः भगवान के मुख से निकले तो उन्हें वर्ड वृक्ष पर सोता हुआ एक बालक देखा फिर चारो और समुद्र देखकर भयभीत हो गए तब भगवान भोले मार्कंडेय डरो मत मेरे पास आओ तुम बाला होने से थक गए हो और भयभीत हो गए हो तब मार्कंडेय को बहुत आश्चर्य हुआ उनकी हजारों लाखों वर्ष की आयु और तपस्या का निरादर करते हुए पूर्व उन्हें नाम से पुकारा है ऐसा विचार करते हैं उन्हें गुस्सा आया ब्रह्मा तब उन्हें दीर्घायु कह कर बुलाते हैं फिर नाम से बुलाने की दृश्यता फोन कर रहा है तब बालक के रूप में वह पुनः बोले पुत्र माय तुम्हारा पिता गुरु पुराण पुरुष हरिकेश है तुम्हारे पिता ऋषि अंगिरा ने मुझे तपस्या से प्रसन्न कर तुमको प्राप्त किया था या तुम कर मार्कंडेय नमस्कार किया कहा प्रभु मैं बहुत हैरान हूं आपकी माया को तत्वों से जानना चाहता हूं तब भगवान नारायण बोले थे मार्कंडेय तुम मेरे मुंह से निकले और उसी में प्रवेश किया और फिर से पुनः निकालकर जो भी देखा वह सब माय हैं जो कुछ नहीं भी देखा हुआ अभिमान जो कुछ आगे देखोगे वह भी माय हैं जो कुछ नहीं भी इससे पहले जो पूछ तुम देख चुके हो वह मैं ही हूं और जो कुछ नहीं देखा वह भी मैं ही हूं मैं नारायण हूं कि शृष्टि में जो कुछ है वह सब मैं हूं जो कुछ नहीं है वह भी मैं हूं तुम जो हो वह भी वास्तव में ही हो किंतु तुम अहम अज्ञान और माया के कारण स्वयं को मुझसे अलग जान रहे हो जब तुम्हारा हम अभियान और माया का अपहरण हटाए जाए तब प्रभु तुम मुझे स्वत ही जान सकोगे इस प्रकार से राजन परम ज्ञानी मारकंडे जी भी नारायण का आंशिक दर्शन ही कर पाए इससे अधिक उस सनातन ब्रह्मा के विषय में मैं तुमसे और क्या कहूं यह कह कर खुद ही चुप हो गए फिर पुनः गंभीरता से बोले हे राजन् जो कुछ भी जगत में होता है वह सब पूछ सनातन ब्रह्मा द्वारा सुनियोजित ही होता है प्राणी आपने अपने कर्म के अनुसार हल पाते हैं प्रभु समदर्शी होने से सभी उस की पात्रता और योग्यता के अनुसार फल प्रदान करते हैं तब द्वारा अधिकारी बन जाने पर देशवासियों को भी वरदान और उपाधि प्राप्त होती है किंतु जूस कर्मयोग दुरुपयोग करने पर उससे सिम भी ली जाती है मनुष्य की बुद्धि उसी अनुसार कार्य करती है जैसा फल वह पूर्व कर्मों द्वारा निश्चित कर चुका होता है इसमें ईश्वर को दोष देना मूर्खता की बात है समुद्र में अथवा जाल होता है किंतु जिसके पास जितना बड़ा बर्तन होता है वह उतना ही जल ले जा सकता है किसके लिए समुद्र को को दोष नहीं दिया जा सकता अतः मनुष्य को सत्कार में ही करनी चाहिए अथवा कर्मों को उनके फलों शहीद नारायण को समर्पित करते रहना चाहिए या फिर योग अग्नि द्वारा समुचित कर्म फलों को जाल डालना चाहिए यही मोक्ष प्राप्ति का एकमात्र उपाय है यही सनातन धर्म है फिर आ जाना फिर से संपूर्ण करने वाले सच्चे भक्त कथा सब कुछ छोड़कर शरण में आए हुए भक्तों पर नारायण अवश्य ही कृपा करते हैं यह उनके प्रमुख कर्मों में से एक है वहां करुणा सीन तो ऊपरी मन से नाम लेने वाले पर भी कुछ ना कुछ सिर्फ आवश्य करते हैं फिर जो भी उनका अन्य भक्त है उस पर कृपा क्यों नहीं करेंगे संसार के जब प्राणी साल से प्रेरित व्यक्ति के पूर्व कर्मों से प्रेरित होते हैं और बुद्धि कल से प्रेरित होती है यही मायाजल है जिसमें मनुष्य उलझ कर स्वयं को करता मानकर सुखी या दुखी रहता है किंतु वास्तव में यह सब कुछ पूछ सनातन ब्रह्मा अविनाशी ईश्वर नारायण द्वारा ही प्रेरित किए जाते हैं

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Importance of Sanatan Brahma Sanatan Dharma and Karma Fruit Vishnu

Hey Rajan, I have already told you that the officers of Satyug and he understood how much tomorrow is, now I call the four stages of these people. In Treta Yuga, only three stages of Dharma remain; I had already told you about the origin of the universe and also told about the order of holocaust, the origin of this Purva Sushma world, Panchmahabhoot marriage has also been told before, knowing Lord Narayan completely because of those creations and other things. There is no one else but He is eternal and Sachchidananda, one who knows Him becomes the end of him just as the drops of water merge into the ocean and become the ocean. Panchmahabhoot intellect including pride, ego, all senses etc., all feelings including earth and space, including sun constellation, entire world cycle, grazing world, all living beings and everything else get absorbed in this Narayan after taking advantage of this Narayan, whatever is there in this world and everything. He is not even there, he is all Narayan, created in the form of Brahma, nurtured in the form of Vishnu, nurtured in the form of Shiva, he is the only Narayan who likes, all the works of the world, all the groups, all the subjects belong to him only, being the creator Even though he is the protector of the universe, he himself is the creation and the destruction of the creation, he himself is the creation, O king, in this way, he maintains his own creation and likes his own, even though he has inherited any virtues and defects from the creation. Allegations Group's beauty does not satisfy them Being in the creation itself remains outside the creation The blue word keeps mixing with the feeling It is difficult to understand them Indestructible, amazing, extremely harsh practices, God's hunger disappeared, the form of all land, eternal truth, Sachchidananda, the supreme government, the best omen, omnipotent, omnipotent, omnipotent, omnipotent, eternal, and divine, that's why Neti Neti says not only that, he is the storehouse of virtues. Gracious, merciful and company, loving, His work-full characteristics cannot go anywhere, because all that is, all that is, belongs to Him, even that which is not, also belongs to Him. It is possible, but only a few get to know him and whoever knows him becomes Narayan himself. Vedas, Upanishads, Shastras, Puranas, etc. are all means of understanding Yoga and Narayan, so they used to come to knowledge, must read and listen to them. When the whole world goes home by water, that is, when people become 51, this Narayan chooses on the rest of the greatness, then only when the creation is desired, the great man gives birth to Brahma from his navel lotus and orders the creation of the universe. Mahamuni Markande has a unique feeling about this matter, says that due to the boon of the Lord, his age is more than thousands of years. Couldn't know who came out of the mouth A forest of submerged creation Reached there Sagarpur covered with darkness Everyone else got scared then they saw Narayan Seeing him the great sage got thinking who is this alone What is he doing all this And why is the ocean covered with darkness visible? Saw trouble, even after wandering in Krishna for 100000 years, he could not find any end, when he again came out of the mouth of God, he saw a child sleeping on the word tree, then he was scared to see the sea all around, then Lord Bhole Markandeya, don't be afraid. Come to me, you are tired of being a child and you are scared, then Markandeya was very surprised, disrespecting his thousands of years of age and penance, the former called him by name. Saying and calling, then the visibility of calling by name is calling, then in the form of a child, he again said son, my father, your father is Guru Puran Purush Harikesh, your father sage Angira had obtained you by pleasing me with penance, or you do Markandeya Namaskar What did you say Lord, I am very surprised, I want to know your illusion from the elements, then Lord Narayan said, Markandeya, you came out of my mouth and entered into it, and after taking it out again, whatever I saw is illusion, I have not seen anything. Whatsoever you see in the future is also Maya, whatever is nothing, whatever you have seen before is me and whatever you have not seen is also me. That too is me. You are what you are in reality, but you are knowing yourself as separate from me because of egoistic ignorance and illusion. When your hum campaign and the abduction of illusion is removed, then Lord, you will automatically know me in this way. Rajan Param Gnani Markande ji also had a partial darshan of Narayan.Get more than this, what else should I tell you about that Sanatan Brahma, he himself became silent after saying this, then again said seriously, O king, whatever happens in the world, everything is planned by Sanatan Brahma, the creature has done his deeds. The solution is found according to God, being equanimous, everyone gives fruits according to their eligibility and ability, then by becoming an officer, the countrymen also get blessings and titles, but by misusing the juice of Karmayog, the sim of man is also taken from him. Wisdom acts according to the result it has decided by previous deeds. It is foolish to blame God in this. The sea cannot be blamed, so man should do it in hospitality or keep on dedicating the fruits of the deeds to the martyr Narayan or else by the fire of yoga, the fruits of the deeds should be netted, this is the only way to attain salvation, this is Sanatan Dharma. Narayan definitely blesses the devotees who have left everything and come to the shelter, this is one of their main deeds. Only do what is necessary, then why won't you show mercy to whoever is his other devotee, when the creatures of the world are inspired by the past deeds of a person inspired by years and the intellect is inspired by yesterday, this is the illusion in which man gets entangled and believes himself to be doing One remains happy or sad but in reality all these things are inspired by the eternal Brahma the imperishable Ishwar Narayan.

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