श्री हरिवंश पुराण कथा

प्रदुमन द्वारा वज्नाभ का वध प्रभावती से विवाह



राजा जन्मेजय प्ले आपने जो कृष्णा विजय का याद बहुत प्रसंग सुनाया कि आप बहुत ही आनंददायक था यह मुनि श्रेष्ठ मुझे बाजरा नाभा और प्रभावती के विषय में भी बताए किसी प्रकार प्रदुमन ने वज्रनाभ का वध किया और प्रभावती से विवाह किया वज्रनाभ तथा बज्र भूर भविष्य बना जी बोले हे राजन् वज्रनाभ में मेरु पर्वत पर तपस्या कर ब्रह्मा को खुश किया था और उसने और बाजीराव पुर नामक अवैध और वैभव पूर्ण दुर्ग वरदान में प्राप्त किया था जिसमें बिना आज्ञा वायु भी प्रविष्ट नहीं हो सकती थी तथा जिसमें इच्छा मात्र से सारी कामनाएं पूर्ण हो जाती थी बजरंग बान ने करोड़ों पशुओं को अवैध दुर्ग में शरण दिया और उसका महाराजा बनाकर त्रिलोक विजय की सोचने लगा तब वरदान हो सकती है मदद में चूर होकर वह इंद्र के पास गया और उसे स्वर्ग का सिहासन उसे देने के लिए कहा ही नया सुनकर चिंतित हो उठा वज्रनाभ आपको हुआ प्राप्त था अतः उस से युद्ध करना व्यर्थ था तब बृहस्पति के परामर्श पर इंद्र ने कुछ समय की अवधि लेने के लिए उससे का ए भाई तुम्हें सिहासन चौकी ने मुझे आपत्ति नहीं किंतु हमारे पिता महर्षि कश्यप की समय इस यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं उसमें यज्ञ पूर्ण कर लेने तक रुक जाओ फिर जैसा वह कहेंगे वैसा ही किया जाए तब बुरा ना माने इंद्र की बात मान ली किंतु धैर्य ना होने से वह स्वयं कश्यप ऋषि के पास जाकर स्वर्ग पर शासन करने की अनुमति मांगने लगा तब कश्यप ने कहा कि इस समय पर बैठा हूं मेरा यज्ञ पूर्ण संपूर्ण होने तक तुम आनंद पूर्वक वज्रनाभ में रहो फिर मैं विचार करके तुमको इसके बारे में बताऊंगा

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Praduman kills Vajnabha and marries Prabhavati

Raja Janmejaya, the story of Krishna's victory that you narrated was very enjoyable, this sage Shrestha also told me about Bajra Nabha and Prabhavati. Somehow Praduman killed Vajranabha and married Prabhavati. Ji said, O king, by doing penance on Mount Meru in Vajranabh, Brahma was pleased and he and Bajirao Pur had obtained in a boon the illegal and luxurious fort, in which even air could not enter without permission and in which all wishes were fulfilled by mere desire. Bajrang Ban used to give shelter to crores of animals in the illegal fort and started thinking of Trilok Vijay by making him Maharaja, then there could be a boon, he went to Indra being overwhelmed with help and asked him to give him the throne of heaven. Got worried, you had got Vajranabh, so it was useless to fight with him, then on the advice of Brihaspati, Indra asked him to take a period of time. rituals are being performed in it Wait till it is done, then do as he says, then don't mind, agreed to Indra, but due to lack of patience, he himself went to sage Kashyap and asked permission to rule the heaven, then Kashyap said that at this time I am sitting here till my yagya is completed, you stay happily in Vajranabh, then I will think about it and tell you about it.


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