अंधकासुर का वध
अंधकासुर का जन्म राजा जन्मेजय द्वारा अनुरोध किए जाने पर विश्व बनाने का सुर का वध की कथा भी सुनाई वह बोले विष्णु द्वारा अपने पुत्र दैत्य के मारे जाने पर आदित्य ने अपने पति पर शक और तपस्या के द्वारा खुश किया तब उसे देवताओं से अवध पुत्र वरदान मांगा कश्यप बोले हैं दक्षिण यानी तुमको ऐसी महापुरा क्रमिक पुत्र की प्राप्ति होगी किंतु महादेव शिव मेरे प्रभाव से परे हैं अतः की हत्या हो सकती है इसलिए तुम्हारा वह पुत्र शिव का कोई अप्रिय ना करें या सावधानी रखें उस समय के बाद कश्यप जी के वरदान के अनुसार अदिति को अत्यंत पराक्रमी पुत्र प्राप्त हुआ उसके एक हजार हाथ एक हजार पर एक हजार सिर्फ तथ दो हजार नेत्र थे दोनों हजार नेत्रों होते हुए भी वह गौरव में चूर होकर अंधों के समान रहता था अतः उस महावीर का नाम अंधक पड़ गया वह अत्यंत बलशाली असुर था वर्क के प्रभाव से अवध होने से वह स्वयं को हमार मानते हुए विभिन्न दुष्कर्म करने लग पड़ा है राजन शक्ति पद प्रतिष्ठा और सफलता प्रयास संभाले नहीं जाते उन्हें दुष्कर्म करने पागल व्यक्ति मनमानी करने लगता है इस प्रकार अंधकासुर भी लूटपाट अपहरण बलात्कार तथा अत्याचार आदि धर्म विरोधी कार्य करने लगा अन्य असुरों की सहायता से वह त्रिलोक विजय का सपना देखने लगा तब इंद्र द्वारा अपने पिता कश्यप से प्रार्थना किए जाने पर कश्यप ने अंधकासुर को या शब्द करने से रोका किंतु अध्यक्ष ने अपनी मनमानी बन्ना की उसके अत्याचारों से प्रजा रिसीवर देवता बहुत त्रस्त हो गए तब रस्पति ने देवताओं से कहा कि वह केवल रूद्र द्वारा ही मारा जा सकता है आता देवताओं को उन्हीं की शरण में जाना चाहिए तब देवताओं ने यह कार्य देवर्षि नारद को छोड़ दिया नारद द्वारा आधा का शुल्क उकसान हे राजन चतुर नारद मदार पुष्पों की माला धारण कर अंधकासुर के पास चले गए जैसे कि वह चाहते थे अंधक मदार के पुष्पों की दांत से आकर्षित होकर बोला है देवर्षि इन पुष्पों की शुभम तो पराजित के पुष्प से भी श्रेष्ठ है आपने इन फूलों को वहां से प्राप्त किया है मुझसे कहीं माय भी इन पुष्पों को प्राप्त करना जानता हूं तब नारद बोले थे असुर श्रेष्ठ मंदराचल पर्वत पर या ध्यान नामक उपवन में यह दिव्य फूल खिलते हैं यह पुष्पा मांगने पर सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं किंतु वह क्षेत्र भगवान शंकर का है उन्हीं की रचना है उनके घर सदा ही उस उपरांत की रक्षा में लगे रहते हैं बिना शिव की आज्ञा के वहां कुछ नहीं जा सकता इस पुष्प का वृक्ष मदार वृक्ष के प्रश्न के नाम से प्रसिद्ध है वह स्वयं प्रकाशित वृक्ष है भूख प्यास शौक चिंता आदि मदार पुष्पों को धारण करने मात्र से ही दूर हो जाते हैं स्वर्ग का नंदनकानन और पराजित वृक्ष तो इस मदार नामक कल्पवृक्ष के सामने कोई मायने नहीं रखता किंतु यह पुष्पा आपको प्राप्त नहीं हो सकता क्योंकि महा वीर्य महादेव सिंह के गम क्षेत्रों में आपका प्रवेश संभव है ऐसा कह कर नारद ने बातों-बातों में अंधा कोर्स आकर उसे मात्रा चल पर्वत पर जाने के लिए प्रेरित किया अदरक का मंदराचल पर्वत पर आक्रमण महा प्रकरण में महा प्रतापी महा तेजस्वी महाशक्तिशाली महावीर महाबली और महायुद्ध अदरक गर्भ में अंधा हो हो गया था नारद द्वारा प्रेरित होकर वह घमंड और क्रोध में आंकड़ा व दलबल सहित मंदराचल पर्वत पर जा पहुंची वही का इलाज पर शिव का निवास था वह मंदराचल से बोला हाय पर्वत तेरे शिखर पर शिव का गायक कौन है मैं वहां से बांद्रा ब्रिज ओर ले जाने आया हूं यदि सुरक्षित से तू मुझे या ब्रिक्स नहीं देता तो मैं यूज कर तुझसे नाश्ता करके उससे ले लूंगा या सुनकर मंदराचल अंतर्ध्यान हो गया तब कुपित होकर अदरक में उसका कई योजना विस्तृत शिकार उखाड़ फेंका हिंदू शिवकृपा सेवा सीकर पुनः वही स्थापित हो गया तब और भी क्रोधित होकर मंदराचल को चुनाव कर देने के विचार से अदरक उसके समस्त चित्रों को तोड़ कर देखने लगा लेकिन शिव कृपा से हुए टूटे हुए सीकर उसके आंसू साथियों को नष्ट करते हुए पुनः वही स्थापित होते रहे तब चढ़कर अदरक ने कहा अरे इस प्रकार छल पूर्वक जीतकर युद्ध करने का क्या लाभ तो जो तेरा स्वामी और हक है वह सामने आकर मुझसे युद्ध क्यों नहीं करता अंधकासुर का वध हे राजन इस प्रकार ललकारे जाने पर भगवान शिव आप ने तीनों लोग को भयभीत कर देने वाले त्रिशूल के साथ नंदी पर सवार होकर वहां आए उनके क्रोध से भूमंडल कांपने लगा नादिया उल्टी बहने लग पड़ी दिखाएं जलने लगी समुद्र का जल बनने लगा चंद्रमा उस्मान तथा सूर्य शीतल किरण छोड़ने लगा रखा स्तर तराने लग पड़ा तब घबराकर समस्त ऋषि जाट देवता मनुष्य शिव की स्तुति करते हुए उन्हें शांत होने की प्रार्थना करने लगे संसार की अभिक्रियाएं देखकर आशुतोष भगवान शिव ने अपने गुस्से के कारण को तुरंत समाप्त कर देना उचित समझा और अग्नि में अन्नदाता अपना दूर और विकराल त्रिशूल अदरक की छाती पर दे मारा है राजन उस महा शस्त्र के एक ही वार से महाबली अदरक बटे वृक्ष की भांति धराशाई होकर भस्म हो गया तब शिव के कोट के शांत होने पर विश्व में जो विपरीत में पैदा हुई थी पुनः सामान्य हो गई तब राजा जनमेजय ने कहा हे मुनि श्रेष्ठ खंबा के दूसरे शरीर का वध किस प्रकार हुआ मुझे से वह भी कहें मेरे मन में उसे जाने का बहुत कोतुहल हाय
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slaying of Andhakasura
The birth of Andhakasura on the request of King Janmejaya, the creation of the world, also told the story of Sur's slaying. He said that after Vishnu killed his son, the demon, Aditya appeased her husband through doubt and penance, then she was blessed with a son from the gods. Manga Kashyap has said that South means you will get such a Mahapura serial son but Mahadev Shiva is beyond my influence, so he can be killed, so that son of yours should not do anything unpleasant to Shiva or be careful, after that time Kashyap ji's boon According to this, Aditi was blessed with a very mighty son, he had one thousand hands, one thousand and one thousand and only two thousand eyes. Despite having both thousand eyes, he lived like a blind man, so that Mahavir's name became blind, he was very strong. Due to the influence of Asura Tha Vark, he has started committing various misdeeds, considering himself as our Rajan, power, position, prestige and success. Efforts are not handled, a mad person commits arbitrariness by doing misdeeds. religion and With the help of other Asuras, he started dreaming of Trilok Vijay, then on the request of Indra to his father Kashyap, Kashyap stopped Andhakasur from doing any word, but the president became arbitrary because of his atrocities. Troubled, then Raspati told the gods that he could only be killed by Rudra. Wearing a garland, he went to Andhakasura as if he wanted to be attracted by the teeth of Andhak Madar's flowers and said, Devarshi, the auspiciousness of these flowers is better than the flowers of the defeated, you got these flowers from there, my mother I also know how to get these flowers, then Narad said that these divine flowers bloom on the Asura Shrestha Mandarachal mountain or in the garden named Dhyan, these flowers fulfill all wishes on asking, but that area belongs to Lord Shankar, it is his creation, his home is always there. in defense of that Without the permission of Shiva, nothing can go there, this flower tree is famous by the name of Madar tree, it is a self-illuminated tree; Nandankanan and the defeated tree do not matter in front of this Kalpavriksha named Madar, but you cannot get this flower because it is possible for you to enter the gum areas of Mahavirya Mahadev Singh, by saying this, Narad came to him blindly in talks. Ginger's attack on Mount Mandarachal inspired him to go to Matra Chal Parvat. But reached the same place where Shiva resided. Will I take it from him or hear Mandrach When it became infuriated, Ginger uprooted many of his elaborate plans and hunts, Hindus got re-established after seeking Shiva's grace, then getting even more angry, Ginger started breaking all his pictures and looking at the thought of electing Mandarachal, but Shiva's grace The broken Sikar, his tears kept re-establishing while destroying his companions, then Ginger climbed up and said, oh, what is the use of winning the war by deceit, then why doesn't the one who is your master and right come forward and fight with me? Slaughter, Rajan, on being challenged in this way, Lord Shiva came there riding on Nandi with the trishul, who frightened all the three people, due to his anger, the earth started trembling, Nadia started vomiting, the water of the sea started burning, the moon Osman and The sun started emitting cool rays and the level began to rise, then in fear all the sages started praying to Lord Shiva and praying him to calm down. Seeing the reactions of the world, Ashutosh Lord Shiva thought it appropriate to end the cause of his anger immediately and Agni in food giver up Not far away, Rajan has hit Ginger's chest with a terrible trishul, with a single blow of that great weapon, Mahabali Ginger was reduced to ashes like a split tree, then when Shiva's coat calmed down, the world which was born in the opposite became normal again. Then King Janamejaya said, O Muni Shrestha Khamba, tell me how the second body was killed.
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