श्री हरिवंश पुराण कथा

शिव स्त्रोत कृष्णा द्वारा की गई शिव स्रोत



रुद्रो देवास रुद्रम में सरवाना सरवाना से अतिथि भक्तन भक्तन आए वो वाला नाम वाला नाम प्रीतम प्रभाव वितरण ग्राम विनीत स्वर में हुए खतरे देवा पशुपति सर्व कर मानवता परमो देव देव जगत्पते शूरवीर हिंदू महा ऋषि भगवान प्रथम प्रश्न पत्र भी संक्रमण संतोषम सर्वदर्शन पुत्र अहमद और तब उपयुक्त यक्ष राक्षस वध इन भगवत शरण महा प्रताप नाम पूज्य बापू जी से निवेदन है कांची रिसोर्ट विराम शिव भगवान देव देव सतप्रीत सर्वोत्तम मावली भूमि प्रणाम एवं यश्मा प्रतिष्ठान पूर्वज का नाम भावनात्मक रिदम रिदम प्रथम तीन नाम प्रभु प्रेयर विद रेशम स्वर शत्रु नाम सनम प्रेमी सोना मोना सेन नेट सर्वर प्राधिकृत रुद्री शब्द शोक श्रीकार दुर्वेश सरकार एवं नित्यम शुभम प्रथम इस महत्तम ददरे साकरोदा कथे सरवन आशा दद्दा प्रहार को लिसन पूर्व शमशान सुरसा स्टेडियम पेंदफ्तरण तम तम तम तम नीलकंठम कल्पा यद्यपि गंदे लोग भावना सर्वोत्तम स्थान तरण संग्राम शाह रघुवीर तक गुड़िया तत्व विंस ज्ञात अमानुष त्रिवेंद्रम विक्रम शाह की दमोह प्रसूता यात्रा दक्षिणा योगिना चरित्र रूपा अद्भुत अद्भुत भव्य भव्य वास्ते ही ब्रह्मा कपिलो यद्यपि पुत्र ब्राह्मण चरित्र तथा सर्वोदय एवं सराहनीय अर्थात आप रूद्र करने से तथा ग्रहण करने से माया को नष्ट करने से अथवा विश्व का लाइक करने से रुद्र नाम से पुकारे जाते हैं आप भक्तों के भक्त तथा प्रेम रखने वाले के प्रति स्वयं भी प्रेम करने वाले हैं मैं आपकी शरण लेता हूं आप मुझे कृत्य से मुक्ति कीजिए हे भगवान आप भोग में आसक्त विरक्त रहित मनुष्य तथा पशु आदि जिलों के स्वामी होने से पशुपतिनाथ कहलाते हैं आप स्वर्ग कर्मा के करता आप देवाधिदेव महादेव हैं आप जगत के परम स्वामी और देवताओं के शत्रुओं का नाश करने वाले हैं आप ब्रह्मा आदि देवताओं के भी देव हैं और सब के प्राण दाता है समस्त शास्त्रों के तत्वों को जानने वाले महा ज्ञानी विद्यमान श्रुति तथा प्रतीत को देने वाले आप ही हैं इसलिए आपको ईश्वर तथा देव कहा जाता है है विश्वक की बुद्धि से प्रवीण के समस्त जीवो के स्वामी आप ही से यह जगत उत्पन्न तथा प्राप्त होती है है अविनाशी विद्यमान आपको इसलिए भाव कहलाते हैं ब्रह्मा देव महानव पर भी उदारता करने से आपको उधार भी कहते हैं विदर्भ नगर में जो मैं संपूर्ण देवताओं तथा प्राणियों से अभिव्यक्त हुआ था वह वास्तव में आप ही थे अर्थात आप और मैं अभिनय है इसलिए आपको सभी माहेश्वर और विश्वकर्मा कहते हैं हे अनुप्र पराक्रमी आप देवताओं के भी पूजनीय है कल्याण की इच्छा वाले भक्तों आप निरंतर वर देने वाले हैं समस्त प्राणियों की आत्मा में आप ही की भावना रहती है अतः आप भगवान कहलाते हैं भूमि अंतरिक्ष स्वर्गा अथवा भूत भविष्य वर्तमान फतवा सूर्य वायु और अग्नि की उत्पत्ति एवं लाए की स्थान आप ही है अतः आपको त्रयंबक कहते हैं राक्षसों के ना होने से आपको सर्वनाश भी करें कहते हैं आप अप्रिय में हैं आप सब के शासक अंतर्यामी सर्व व्यापक विभव तथा शब्दों के स्वामी अक्षर है हे श्री कर आप सूर्य से भी कहीं अधिक तेजस्वी है सारस्वत भक्तों का कल्याण करने से शुभ करने से आपको शंकर तथा शंभू कर भी कहते हैं धर्म यज्ञ आपको सर्वनाश कहते हैं यही शान हे आदि वीर्य आप आशुतोष और बोले हैं पुरातन काल में इंद्र ने आपके कंठ पर ब्रिज का प्रहार किया था जिससे आपका कंठ नीला पड़ गया था जिस कारण आप नीलकंठ भी कहना है किंतु क्षमा सिल्वर भोले होने से आप इंद्र को दंडित नहीं किया आप सर्व असमर्थ हैं अतः आप मेरी रक्षा कीजिए स्वार्थ इस बात पर तथा जगह चर अचर सभी प्राणियों लिंग व बंगतीन धारण करने वाले आपके व उमा के ही सब रूप हैं इसलिए तत्वज्ञान यों ने आपको * तथा ध्यान करने वाले योग अंबिका को प्राकृतिक कहा है यही प्राकृतिक वेदों ने गाई है और तथ्यों की प्रस्तुति है यज्ञ की दक्षिणा धारण करने वाले के लिए आप यज्ञ स्वरूप तथा योगी के लिए अति रूप है आपके सम्मान अद्भुत ना कोई है तथा ना ही कोई होगा हे देवाधिदेव मैं शेषनारायण ब्रह्मा कपिल सनकादिक अथवादी सब आप ही के अंश से पैदा हुए हैं अतः आप सर्वर है इसमें समस्त कारणों की आत्मा है अतः आप स्तुति किए जाने योग्य है हे राजन इस प्रकार कृष्ण द्वारा इस स्थिति के जाने पर भगवान शंकर प्रकट हुए और अपना दाहिना हाथ उठाकर कृष्ण से कहा है सुर उत्तम आपको उचित प्रयोजन की प्राप्ति होगी आप मानसिक यातना ना कर परिजात ग्रहण करें आप अजय या तथा वर्ष है मुझ से भी अधिक सूर्य हे कृष्णा तुम्हारे द्वारा कहे गए इन स्रोतों से जो कोई भी मेरी सूती करेगा वह धर्म लाभ तथा युद्ध में विजय को प्राप्त होगा तथा यश को प्राप्त करेगा यह स्थान ब्लॉक के स्वर के नाम से भी प्रसिद्ध होगा क्योंकि यह बिल पत्रों से आपने मुझे स्थापित कर अपनी प्रार्थना सिद्ध कर ली है अतः यह स्थान दर्शन नाथ का परम कल्याण करने वाला होगा हे कृष्णा इस पर्वत के नीचे प्रस्तुत नामक देते हो की नगरी है वह ब्रह्मा के वरदान से देवो तथा कई बलशाली देते रहते हैं आप इस समय मनुष्य रूप में उन देवताओं को भी मार कर प्रजा को अभय कीजिए वैसे पहना जी ने आगे बताया हे राजन इस प्रकार शिव जी को प्रसन्न करके श्री कृष्णा रात पर चढ़कर इंद्र से युद्ध करने हेतु चले गए इंद्र भी जयंत के साथ रथ पर चढ़कर युद्ध करने के लिए डर गए दोनों ओर से भीषण युद्ध हुआ तब ब्रह्मा जी की प्रेरणा पर कश्यप ऋषि अपनी पत्नी अदिति के साथ युद्ध स्थल पर पहुंची और बीच बचाव करके युद्ध बंद करवा दिया अदिति ने तब श्रीकृष्ण को अपराजिता का वृक्ष ले जाने की आज्ञा दे दी और कहा कि जब तक उनको कार्य स्थित के लिए परियोजना को आवश्यकता हो तब तक वह उसे द्वारिका में ही रखें बाद में उसे पुनः देवधाम नंदनकानन मेल आखरी स्थापित कर दें इस प्रकार श्री कृष्ण पारिजात का वृक्ष को लाकर सद्भावना को दिया कृष्णा की इच्छा से वाह पारिजात वृक्ष छोटा बड़ा भी हो जाता कृष्ण के विधि पूर्वक पूजा अधिकार के वृक्ष को द्वारिका में स्थापित करा दिया तब सद्भावना मनोकामना पूर्ण हो जाने पर पूर्ण व्रत करने के लिए सोचने लगे समस्त सामग्रियां जुटाने के बाद व्रत के दान के लिए सद्भावना के कहने पर श्री कृष्णा ने नारद जी को ध्यान द्वारा नियंत्रित किया

TRANSLATE IN ENGLISH 

Shiva Strot Shiva Strot performed by Krishna

Rudro devas rudram mein sarvana sarvana se guest bhaktan bhaktan aaye woh wala naam wala naam pritam prabhav vitran village humbly in voice danger deva pashupati sarva kar humanity paramo deva deva jagatpate brave hindu maha rishi bhagwan first question paper bhi transition Santosham sarvadarshan son ahmed and then Apt Yaksha Rakshasa Vadh in Bhagwat Sharan Maha Pratap Naam Pujya Bapu ji request Kanchi Resort Viraam Shiv Bhagwan Dev Dev Satpreet Sarvottam Mavli Bhoomi Pranaam and Yashma Pratishthan Ancestor Name Emotional Rhythm Rhythm First Three Names Prabhu Prayer With Silk Voice Enemy Name Sanam Premi Sona mona sen net server authorized rudri shabd shok shrikar durvesh sarkar and nityam shubham pratham is mahattam dadre sakroda kathe sarvan asha dadda prahar ko lisson purva shamshan sursa stadium pendaftaran tam tam tam tam neelkantham kalpa though dirty people emotion best place taran sangram shah raghuveer tak doll element Vins known inhuman Trivandrum Vikram Shah's Damoh Prasuta Yatra Dakshina Yogina Charitra Rupa wonderful wonderful grand grand grand for Brahma Kapilo though son Brahmin character and O Sarvodaya and commendable means you are called Rudra by doing Rudra and destroying Maya or by liking the world. You free me from my actions O God, you are called Pashupatinath because you are the lord of the districts without attachment to enjoyment, humans and animals etc. You are the God of Brahma etc. Gods and the life giver of all, the great sage who knows the elements of all the scriptures, you are the one who gives the existing Shruti and Pratit, that is why you are called Ishwar and Dev. The world is born and received from you alone, the lord of Brahma, the imperishable being, that is why you are called Bhava, you are also called a loan because of the generosity of Brahma Dev Mahanav. were the same means you and me now You are righteous, therefore you are called Maheshwar and Vishwakarma by all; Past Future Present Fatwa You are the origin and source of the sun, air and fire, therefore you are called Trimbak, because of the absence of demons, destroy you also, they say that you are in unpleasant, you are the ruler of all, the omniscient, all-pervading power and the master of words, Akshar Hai O Shri Kar, You are more brilliant than the Sun, Saraswat, by doing good to the devotees, you are also called Shankar and Shambhu Kar; The bridge had hit your throat, due to which your throat turned blue, due to which you are also called Neelkanth, but for being innocent, you did not punish Indra. All the living beings wear linga and bangteen. Those who dance are all forms of you and Uma, that's why philosophers have called you * and Yog Ambika who meditates as Prakritik; There is no one and there will be no other, O God of Gods, I Sheshnarayan, Brahma, Kapil, Sankadik, Atwadi, all are born from a part of you, therefore you are the server, therefore you are the soul of all causes, therefore you are worthy of praise. O King, Lord Shankar appeared on Krishna's removal of this situation in this way and raised his right hand and said to Krishna, 'Sur Uttam, you will get the right purpose, you will not suffer mental torture and take birth, you are Ajay and the year is more than me. Surya, O Krishna, whosoever worships me from these sources said by you, will gain religion and victory in war and will achieve fame. This place will also be famous as the voice of the block because you established me with this bill letters. I have fulfilled my prayer by doing this, so do not visit this place. Lord Krishna will be the ultimate benefactor of Rath. Under this mountain, you give the name of the city, it is blessed by Brahma, Gods and many powerful ones keep on giving you at this time in human form, by killing those gods also, make the people fearless. Ji further told, O Rajan, in this way, after pleasing Lord Shiva, Shri Krishna went to fight with Indra on the night. But Rishi Kashyap reached the battle site with his wife Aditi and stopped the war by intervening. Aditi then ordered Shri Krishna to take the Aparajita tree and said that as long as the project required for the work situation. He should keep it in Dwarka only, later establish it again in Devdham Nandankanan Mela last. In this way Shri Krishna brought Parijat tree and gave it to Sadbhavana. established in Dwarka Or then when Sadbhavana's wishes are fulfilled, they started thinking of doing a complete fast, after gathering all the materials, Shri Krishna controlled Narad ji through meditation on Sadbhavana's request for the donation of the fast.

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ