श्री हरिवंश पुराण कथा

पारिजात के लिए कृष्णा और इंद्र में युद्ध



वैसे बना ने आगे कहा हे राजन् तकरीर का नारा जिससे परिजात वृक्षा लाने की आज्ञा लेकर अगली सुबह स्वर्गलोक को चलेंगे अत्यधिक और प्रदुमन को उन्होंने अपने साथ लिया अपने शहर थे दारु को रेवत पर्वत पर रात के समय प्रतीक्षा करने का आदेश दिया और स्वयं सत्य वर्ग के प्रोग्राम में चली गई कृष्णा ने परिजात वृक्ष उखाड़कर ग्रुप पर रखती रात तक परिजात मूर्तिमान होकर डर से कांपते लगा कृष्णा ने उसको सांत्वना दिया इधर देव धाम के रक्षकों ने कृष्णा को तो रुकने का साहस न हुआ हिंदू देवराज इंद्र से ठंडी होने के डर से उन्होंने तुरंत देवराज इंद्र को यह सूचना दे दी थी कृष्णा को ध्यान से परिजात का वृक्ष उखाड़ ले जा रहे हैं इंद्र या सूचना मिलते ही मौत से बढ़कर एरावत पर सवार होकर वहां पहुंचे पीछे इंद्र पुत्र जयंत भी वहां आ धमका हे राजन तब अमरावती के पूर्व द्वार पर देवराज इंद्र के साथ युद्ध हुआ जयंत से अस्वीकार्य ब्राह्मण मित्र युद्ध हुआ जो परशुराम का शिष्य था इस युद्ध में कृष्णा ने एक रावत और इंद्र को घायल कर दिया प्रदुमन ने जयंत को पराजित किया था किंतु सत्य विद धनुष पावर से ने काट गिराया था ब्राह्मण होने से 17 विद उस पर शास्त्र नहीं उठाना चाहता था तब पवार ने कहा कि युद्ध क्षेत्रों में ब्राह्मण छात्र कुछ नहीं होता केवल दुश्मन होता है बताएं सत्यजीत युद्ध करो सत्यवीर ने इस भंवर से लोहा लिया किंतु वह बुरी तरह आहत हो गया अतः गरुड़ ने वहां आकर भवर कुआं से शक्तिशाली धमाका अपनी आंखों से मारा की पावर 2 कोस दूर जा गिरा प्रदुमन ने तब कहा ते हुए अपने चाचा सत्यवीर को संभाला और जयंत ने प्रवर को अपने रात में बिठा लिया कृष्णा दे सकते हुई के सिर पर हाथ फेरा तो उसका सारा दर्द नष्ट हो गया हे राजन तब सभी सांस रोककर कृष्ण इंद्र का युद्ध देखने लगे उस युद्ध में गरुड़ भी जमकर एरावत से लोहा लिया ऐसा एरावत बोस वार्ड 10 से नीचे धकेल दिया परंतु इंद्र ने अपने हथी को नहीं छोड़ा और वहां भी उसके पीछे स्वर्ग से पृथ्वी आ गए तब कृष्णा भी पृथ्वी पर आ गए और वहीं युद्ध करने लगे वहां पर यात्र पर्वत अपने भीषण युद्ध के कारण पृथ्वी के रसातल में धड़कने लगा तब श्री कृष्णा ने प्रदुमन को दारू के पास रात लाने हेतु भेजा और स्वयं पर्वत के दाने के कारण इंद्र के साथ आकाश में युद्ध करने लगे उठापटक के मध्य हुए दोनों फिर से परिपाठ पर्वत पर आ पहुंचे तब भयभीत होकर परिपाठ उधर के ढेर चौथाई मांस का रूप धारण कर पृथ्वी के भीतर छिप गया फिर समझा होने हो जाने के कारण रात भर के लिए युद्ध को रोक लिया गया तब श्री कृष्ण ने रात को गंगा को याद किया गंगा के वहां उपस्थित होने पर उसमें स्नान कर गंगाजल तथा बेलपत्र द्वारा भगवान शिव की स्तुति की

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Krishna and Indra fight for Parijat

By the way, Bana further said the slogan of Rajan Takreer, by taking permission to bring the Parijat tree, the next morning, he will go to heaven next morning, he took Akash and Praduman with his city, ordered Daru to wait at night on Revat mountain and Satya Varga himself. Krishna uprooted the Parijat tree and kept it on the group till night Parijat started trembling with fear, Krishna consoled him; He immediately informed Devraj Indra that Krishna was carefully uprooting the Parijat tree. Indra or as soon as he got the information, riding on Airavat, more than death, reached there, behind Indra's son Jayant also came there. At the gate there was a war with Devraj Indra, an unacceptable Brahmin friend war with Jayant who was a disciple of Parashurama. In this war, Krishna injured a Rawat and Indra. Being a Brahmin, 17 Vid on him Pawar did not want to raise the scriptures, then Pawar said that there is nothing in the war fields, Brahmin students are only enemies, tell Satyajit, do war. Praduman hit his eyes and fell two curses away. Then Praduman took care of his uncle Satyaveer and Jayant made Pravar sit in his bed. Then everyone started watching the battle of Indra Krishna with bated breath. They came to the earth and started fighting there, Yatra Parvat started beating in the abyss of the earth due to its fierce battle, then Shri Krishna sent Praduman to bring the night to Daru and due to the grain of the mountain itself, there was a war with Indra in the sky. In the midst of upheaval, both of them reached Paripath mountain again. Being frightened, Paripath hid inside the earth by taking the form of a quarter of the flesh, then due to understanding, the war was stopped for the whole night, then Shri Krishna remembered Ganga at night, when Ganga was present there, he After bathing, Lord Shiva was praised with Ganga water and belpatra.

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