श्री हरिवंश पुराण कथा

सत्यभामा का रूठना



हे राजन स्त्रियों की बुद्धि होती ही ऐसा वाली है वह विशेष रूप से अपनी शॉप से हारना पसंद नहीं करती पता कृष्ण की शेष पत्नियां ने तो रुकमणी के जेष्ठ और श्रेष्ठ होने से उसका यह सम्मान सहन कर लिया किंतु सौंदर्य भी मावनी सद्भावना इससे सहन नहीं कर सकी उसने अपनी पीले वस्त्रों का त्याग कर श्वेत वस्त्र धारण कर ली और कृष्ण से रूठ कर सिंगारवा भूषण को त्याग कर कोप भवन में चली गई तब कृष्णा अपने प्राण प्रिय मनाने के लिए को भवन के पास पहुंचे और पैर के नाखून से भूमि को उड़ते हुए दीर्घा विश्वास तोड़ने वाली रूठी हुई अपनी पत्नी सत्यभामा को मनाने लग पड़े तब सत्यभामा बोली हे नाथ मैं आपकी परम प्रिय हूं आपके विशेष प्रेम के कारण ही सब विश्व मुझे सौभाग्यवती कहता है मैं इसी से अपने सौभाग्य पर गर्वित होती हूं परंतु आज अपने सौदों के बीच में मजाक की पात्र बन गई हूं इसका कारण आपके द्वारा रुकमणी को मना लिया जाना है आपने श्रेष्ठ अपराजिता का फूल उसे दिया है अतः मेरे यहां रहने से क्या लाभ जीवन को समाप्त करना तो अपराध है अतः आत्महत्या के विषय में सोचना तो पाप है किंतु जब आप मुझ पर प्रेम ही नहीं रहा तो मुझे तपस्या पर जाने की अनुमति दीजिए इस प्रकार श्री कृष्ण को उलहाने दिया तब श्री कृष्णा हंसते हुए बोले यह प्राणप्रिया ही सुमुखी तुम रूठी हुई भी कितनी सुंदर लगती हो रुकमणी के केसों में दिव्य पुष्प पराजित के लग जाने के पश्चात वह इतनी सुंदर नहीं लग रही थी इतनी तुम अभी लग रही हो तुम्हारी तुलना रुक्मणी से नहीं हो सकती और एक प्यारी वह फूल मुझे नारद जी ने दिया था उस समय रुकमणी ही मेरे पास में थी और उसके व्रत का उद्यापन भी था अतः मैं वह पुष्पा उसे दे दिया यह मेरा पहला अपराध है जो मुझे अनजाने में हो गया अतः तुम मुझे क्षमा कर दो इस प्रकार सत्यभामा की प्रशासन पर रुक्मणी को निर्देशित करते हो हुए वाक चतुर कृष्ण ने सत्यभामा को मना लिया किंतु अत्यंत रूप हुए सौंदर्य अभिमानी सत्यभामा खुश नहीं हुई और बोली आप सब द्वार ना फैलाएं मैं किसी की योग्य हूं यह तो आपने रुक्मणी को फराह जीता फूल देकर सिद्ध कर दिया है ऐसा अमूल्य उपहार आप उसे ही तो देते जो आपकी परम प्रिय है अतः आप ने रुक्मणी के ही केसों में उसे लगाया है यह स्वामी इस प्रकार आपने शाह जी मुझसे मेरी वास्तु पता बता दी आपने प्रेम अभिलाषा से मेरा दिल रखने का प्रयास रहने दीजिए अथवा मेरे लिए भी पारिजात का पुष्प लेकर है हे राजन तब श्री कृष्ण ने कहा कि वह सत्यभामा के लिए पराजित पोस्ट किया पूरा पराजित हुआ वृक्ष ही ले आए या सुनकर सत्यभामा खुश हो गई और हर्ष अविरल कृष्ण से लिपट ती हुई बोली हे प्राणनाथ यदि आप मेरे लिए वास्तव में पराजित कर ले आए तो मुझे गुस्सा ही क्यों रहेगा मैं रुकमणी से ही नहीं आपकी समस्त रानियों और भू मंडलों की समस्त स्त्रियों से अधिक श्रेष्ठ और सौभाग्यवती सिद्ध हो जाऊंगी साथ ही इससे यह भी सिद्ध हो जाएगा कि आप मुझसे ही सबसे अधिक प्रेम करते हो परंतु आपको अपना वचन पूर्ण करना होगा तब कृष्णा ने तथास्तु कहा

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Satyabhama's anger

O King, the intelligence of women is like this, especially she does not like to lose from her shop, know that the rest of Krishna's wives tolerated Rukmani's honor due to her being the eldest and superior, but beauty also could not tolerate this. Saki she abandoned her yellow clothes and wore white clothes and got angry with Krishna leaving Singarva Bhushan and went to Kop Bhavan, then Krishna reached near the Bhavan to celebrate his dear life and while flying the ground with the nail of his foot When he started persuading his wife Satyabhama, who broke the trust, then Satyabhama said, O Nath, I am your most beloved, because of your special love, the whole world calls me Saubhagyavati. I have become a laughing stock because you have persuaded Rukmini, you have given her the best Aparajita flower, so what is the use of my staying here, ending life is a crime, so thinking about suicide is a sin, but when If you don't love me then let me go on penance Allow me to let Shri Krishna laugh in this way, then Shri Krishna laughingly said, this Pranpriya only Sumukhi, you look so beautiful even when you are angry. Looks like you can't be compared to Rukmani and that lovely flower was given to me by Narad ji, at that time only Rukmani was with me and her fast was also celebrated, so I gave that flower to her, this is my first crime It happened unknowingly, so you forgive me, while directing Rukmani on the administration of Satyabhama, the clever Krishna convinced Satyabhama, but the extremely beautiful beauty proud Satyabhama was not happy and said that you all should not open the doors of anyone. You have proved that I am worthy by giving flowers to Rukmani Farah Jeet. You told me that you have tried to keep my heart with love, let it be Thava is taking Parijat's flower for me too, O king, then Shri Krishna said that he brought the tree that was completely defeated for Satyabhama, Satyabhama became happy after hearing this and hugged Krishna with joy and said, O Prannath, if you If you really defeat me, then why would I be angry, I will prove to be more superior and fortunate than not only Rukmani and all your queens and all the women of the earth, but it will also prove that you are the most superior to me. Love you but you have to fulfill your promise then Krishna said Aastastu

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