श्री हरिवंश पुराण का प्रारंभ हरिवंश पर्व

हरिवंश पर्व

ओम नमो भगवते वासुदेवाय

आदि सृष्टि की उत्पत्ति



महाभारत की कथा को सुनाना पुष्कर तीर्थ में स्नान करने से भी अधिक पूर्णिया देने वाला है हरिवंश पुराण को सुनने का फल तो इससे भी कई गुना अधिक है व्यास तथा श्री बाल्मीकि जी ने ऐसा कहा है ब्रह्मा के भी आधी कहे जाने वाले नारायण भगवान वासुदेव तथा नारायण के ही अंश से उत्पन्न होने सुखदेव वाले वेद के भंडार व्यास जी का भी मैं स्मरण करता हूं ओम नमो नारायणा मैं भी श्याम के कुलपति महामुनी सौकन ने भगवान विष्णु के चरण का स्मरण करके सर्व शास्त्रों में कुशल धर्मात्मा सूजी के पुत्र से पूछा है सूत पुत्र आपने महाभारत के अंतर्गत समस्त भारतवासियों का रोचक इतिहास बताया है देवता दानों सूर्य राक्षस गंधर्व यक्ष तथा सिद्ध आदि की एवं उनके अद्भुत कार्यों व पराक्रम की अद्भुत कथाएं सुनाएं है पुरुषों का भी वर्णन किया है वह सभी अमृत के समान सुख कारी थे किंतु है सूत पुत्र आपने मीणा तथा अधिकांश वंश का वर्णन नहीं किया है अतः कृपया हमें इसके बारे में भी बताएं तब सूत पुत्र ने कहा हे मुनि श्रेष्ठ सोनक आपका प्रश्न बहुत ही सुंदर है महाभारत कथा को पूर्णता देने वाला एक मंगलकारी है राजा जन्मेजय के पूछे जाने पर धर्मास व्यास जी के पुत्र वैसी पणजी ने जिस प्रकार उसे विष्णु वंश तथा अधिक आदिवासियों का वर्णन किया था वही वर्णन मैं आपको बताता हूं आप ध्यान से सुनो अब हम पुरुष मातम पूर्व रतन पुरुषोत्तम श्रीराम ब्रह्मा व्यक्त सत्यापन सदा सदैव व्यक्ति सतनाम याराना मिस्त्री हम पूनम पूनम मंगल व्याकरणम सनम तेरी कसम सनम नेट मराठी ते हरिकेश चतुर्णन हरीश जो सर्वत्र व्यापक मंगल के मूल कारण दिए जाने योग्य निर्विकार निर्दोष एवं सदस्य भगवान विष्णु हाय उन जगत सृष्टि हंसी केस भगवान हरि जो समस्त चराचर सृष्टि के गुरु हैं को नमस्कार करके मैं तुम्हें वह प्रसन्न सुनाने जा रहा हूं जन्म जय द्वारा महाभारत की कथा सुनकर तृप्त ना होने पर तथा ऋण अंदर वंश के महारथियों आदि के चरित्रों के बारे में जिज्ञासा प्रकट करने पर व्यास जी के शिष्य शिवन्या ने इस प्रकार कहा हे राजन आपको मैं जो चरित्र सुनाने जा रहा हूं यह दिव्या अनेक अर्थों से युक्त पापों का नाश करने वाला तथा ज्ञान में वृद्धि करने वाला है इस कथा को भली प्रकार समझ कर आत्महत्या कर लेने वाले व्यक्ति का वंश रीडिंग होता है और उसकी स्वर्ग में भी पूजा होती है हे राजन संसार की सृष्टि का अभिव्यक्त कारण जो प्रधान पुरुष है वही ब्रह्मा उसी ब्रह्मा को आप नारायण का उपासक ब्रह्मा समझो महान से अहंकार अहंकार से क्रमश आकाश वायु अग्नि जल एवं पृथ्वी से सुषमा महाभूत उत्पन्न हुए हैं इन्हीं पांचों महा भूतों से समस्त जीवो तथा सृष्टि की उत्पत्ति होती है सृष्टि का यह क्रम अनादि काल से चला आ रहा है पंचमहाभूत ओं की उत्पत्ति के बाद सृष्टि की रचना तथा बजाओ की सृष्टि की इच्छा में स्वयं स्वयं उत्पन्न होने वाले भगवान ने सर्वप्रथम जल को उत्पन्न करके उसमें प्रतिपादन किया और उसी ही अपना निवास स्थान बनया जल को नार भी कहा जाता है जल में निवास करने के कारण ईश्वर नारायण भी कहे जाते हैं वीर्य सम प्रदीप तथा स्वर्णमयी अंडे में परिवर्तित होकर उसी जल में विश्राम करने लगा उसी अंडे से हिरण गंधर्व ब्रह्मा स्वयं पैदा हुआ ऐसा मैंने सुना है उस अंडे के एक प्रकरण से स्वर वह दूसरे से ब्रह्मा ने भू रचना क तथा उनके मध्य सूर्य चांद आदि ग्रह नक्षत्रों तथा दसों दिशाओं की रचना की इसके पश्चात भूमि पर कॉल मन वाणी काम क्रोध लोभ मोह आदि की रचना की फिर पूर्व की भांति पुनः सृष्टि की इच्छा से राजा पतियों की उत्पत्ति के उपदेश के समर्थित मर्जी अंगिरा पुरुषार्थ तथा महा तेजस्वी वशिष्ठ की रचना की सातों ह ब्रह्मा के मन से पैदा हुए ब्राह्मण सप्त ऋषि का हाय अल्लाह ऐसा ही पुराणों में वर्णित है हे राजन ब्रह्मा ने उसके पश्चात आक्रोश से रूद्र रचना की तक पूर्वजों के भी पूर्वज संतन सनातन आदि शब्द पुरुष की रचना की फिर विद्युत मेघराज इंद्रधनुष तथा औषधियों की रचना की इसके पश्चात यज्ञ की सिद्धि के लिए स्क्रीन युक्त तथा सामवेद की रचना की तत्पश्चात अपने मुंह से देवताओं को तथा हुआ से पितरों को पैदा किया उपस्थित लिंक से मनुष्य तथा जांघों से असुरों का पैदा किया ऐसा हमने सुना है इसके पश्चात अपने ही शरीर से छोटे बड़े अन्य जीवो को पैदा किया इतने से संतुष्ट ना होकर सृष्टि में और वृद्धि की इच्छा से ब्राह्मण में अपने शरीर के दो भाग कर दिए एक को नर तथा दूसरे को नारी का स्वरूप प्रदान किया फिर उन स्त्री पुरुष में अनेक प्रकार के प्रभाव सृष्टि की वैसे प्रणाम जी ने कहा हे राजन इस प्रकार ब्रह्मा ने स्वयं के तेज से पृथ्वी व स्वर्ग में व्याप्त होकर सृष्टि की रचना की बाद में भगवान विष्णु ने ब्रह्मा द्वारा बिराज की सृष्टि की तख्ती राज ने आदि को पैदा किया यह आदि पुरुष मनु कहलाया मनु द्वारा ही की गई सृष्टि संवर्ग को मानव अंतरण कहा जाता है प्रत्येक मानव अंतरण में बदल जाते हैं अतः एक मनोका कल ही मानव अंतर माना गया है ए राजा मनु तक की सभी सृष्टि नारायणी सृष्टि है और यो यो जिन बिना योजन से ही पैदा हो जाने वाले हैं इससे आदि संवर्ग प्रारंभिक सृष्टि कहा जाता है इससे जानकर मानव विद्वान आयुष्मान तथा शास्त्रज्ञ होकर मनचाही बुद्धि को प्राप्त करता है

TRANSLATE IN ENGLISH 

Harivansh Parv

Om Namo Bhagavate Vasudevaya

origin of the universe

Reciting the story of Mahabharata is more fulfilling than taking a bath in Pushkar Tirth. The result of listening to Harivansh Purana is many times more than this. Vyas and Shri Valmiki ji have said that Narayan, who is said to be half of Brahma, Lord Vasudev and I also remember Vyas ji, the storehouse of the Vedas of Sukhdev, born from the part of Narayan. Son, you have told the interesting history of all Indians under Mahabharata, Gods, Danes, Surya, Rakshasa, Gandharva, Yaksha and Siddha etc. Son, you have not described Meena and most of the dynasty, so please tell us about it too. Then Sut's son said, O sage Shrestha Sonak, your question is very beautiful, it is an auspicious one that completes the Mahabharata story. On the side of Vyas ji I tell you the same description as Panaji described him as Vishnu clan and more tribals. kasam sanam net marathi te harikesh chaturnan harish who is the root cause of all-pervading auspiciousness to be given to the innocent innocent and member Lord Vishnu hi un jagat srishti hasni kese Lord Hari who is the master of all the pasture creation I am going to tell you that pleasure When Janma Jai was not satisfied after listening to the story of Mahabharata and expressed curiosity about the characters of Maharathis etc., Vyas ji's disciple Shivanya said in this way, O king, the character I am going to narrate to you, this divya has many meanings. The one who commits suicide by understanding this story properly, has a progeny reading and is also worshiped in heaven, O Rajan, who is the manifest cause of the creation of the world. The prime man is the same Brahma, you consider the same Brahma as Brahma, the worshiper of Narayan. From the great ego, ego, sky, air, fire, water and earth, Sushma Mahabhutas are born respectively. It has been going on since time immemorial, after the creation of the Panchmahabhoots, the creation of the universe and in the will of the creation, the self-born God first created water and made it his abode. Water is also called Nar. Ishwar Narayan is also called because he resides in the water. The semen transformed into a shining and golden egg and started resting in the same water. From the same egg, the deer Gandharva Brahma himself was born. From this, Brahma created the land and created the sun, moon etc. planets, constellations and the ten directions in between them, after this, on the land, created call, mind, speech, work, anger, greed, fascination etc., then again like before, preaching the origin of king husbands with the desire of creation. will be supported by The creation of Angira Purusharth and Maha Tejasvi Vashishtha, the seven Brahmins born from the mind of Brahma, oh Allah, this is how it is described in the Puranas, O Rajan Brahma, after that, Rudra was created out of anger, even the ancestors of the ancestors, Santan Sanatan, etc. Then created lightning, Meghraj, rainbow and medicines, after that, for the accomplishment of Yajna, composed screen and created Samaveda, then created Gods from his mouth and ancestors from Hua, created humans from the present link and created Asuras from thighs. We have heard that after this, he created other small and big creatures from his own body. There are many types of effect in those men and women, in the same way Pranam ji said, O Rajan, in this way, Brahma created the universe by pervading the earth and heaven with his own glory, later Lord Vishnu created the throne of creation by Brahma, etc. created this etc. The creation created by Manu is called Purush Manu, the cadre is called human transfer, every human changes in transfer, so one Manoka Kal is considered as human difference, all creation till King Manu is Narayani creation and yo yo jin without plan are about to be born, this is called the initial creation, knowing this, the human scholar attains the desired intelligence by becoming Ayushman and scientist.

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ