श्रीमद् भागवत कथा पुराण 11 वा स्कंध अध्याय 27

श्रीमद् भागवत कथा पुराण 11 वा स्कंध अध्याय 27 आरंभ

देवताओं द्वारा भगवान श्री कृष्ण चंद्र की स्तुति करना



महात्मा श्री सुखदेव जी बोले हे राजा परीक्षित भगवान श्री कृष्णा चंद्र की आज्ञा मानकर दारु को वापस द्वारिका चले गए तत्पश्चात ब्रह्मासि इंद्रदेव अर्शी महर्षि प्रजापति यक्ष किन्नर आदि अपने दिव्य विमान में बैठकर आकाश मार्ग में स्थित होकर उसकी स्तुति करने लगे देवगांव मंगल दान करते हुए पुष्प पर दृष्टि करने लगे उसी घड़ी संपूर्ण आकाश देवताओं से भर गया है राजन देवताओं को देखकर भगवान श्री कृष्ण ने अपने कर कमलों में तो को बंद कर लिया और अपनी योग शक्ति द्वारा इस तरह अपने दिव्य धाम जा पहुंचे जिस तरह काले मेघों के बीच में बिजली प्रगट होकर अदृश्य हो जाते हैं कोई देख पाता तो कोई नहीं देख पाता ब्रह्मा देवता भी ना देख सके कि त्रिलोकीनाथ कब और किस तरह वहां से चले गए हे राजा ने उसकी सौधाम गमन एवं आदिवासियों का विनाश का समाचार द्वारिकापुरी पहुंचा कर दारु ने सुनाया तो उसी घड़ी उसके और बलराम जी के भी योग में राजा उग्रसेन और वासुदेव जी अति व्याकुल हुए जब रुक्मणी सद्भावना जामवंती आदि पाठ रानियों ने सुना कि श्यामसुंदर स्वरधाम चले गए तो वे फड़फड़ा खाकर भूमि पर गिर पड़ी और हरदम और जीत हो गई कुछ देर बाद जब होश आया तो इस प्रकार आपस में कहने लगे हैं बहने हमारे प्राण धर हम सब को छोड़ कर चले गए आता हमारे जीवित रहने का लक्ष्य समाप्त हो गया है बहाने हमारा पवित्र पतिव्रत धर्म यह कहता है कि हम भी चिंता में जलकर भस्म हो जाएं और हृदय स्वर के निकट पहुंच कर पुनः उसकी सेवा का अवसर प्राप्त करें इस प्रकार विचार कर श्री कृष्ण की पटरानी यो चिंता बनाकर उसमें प्रवेश कर गए रामजी की अर्धांगिनी रेवती भी सती हो गई श्री कृष्ण चंद्र की पुत्रवधू अपने पति के शोक में चिंता में जलकर मृत्यु को प्राप्त हुए इस तरह जब यदुवंशी मर गए थोड़े बहुत ही शेष बचे थे तब इंद्रप्रस्थ से गाड़ी वह धारी अर्जुन जी है हे राजन द्वारिका पुरी का दृश्य देखकर तुम्हारे पितामह अर्जुन व्याकुल होकर रोने लगे किंतु कुछ पल बाद जब उन्हें महाभारत की युद्ध के समय प्रभु श्री कृष्णा जी द्वारा दिए गए गीता ज्ञान के उपदेश का स्मरण हुआ तो उन्हें अपने हृदय में समझा कर शांत किया तत्पश्चात श्री कृष्णा जी के वश में जीवित बचे अनिरुद्ध के पुत्र ब्रह्म नाम और अन्य स्त्री पुरुष को लेकर इंद्रप्रस्थ की ओर चल दिए मार्ग में उन्हें भी लोगों ने घेर लिया और लूटपाट करने लगे उस समय अर्जुन ने क्रोध में भरकर कहा अरे मूर्ख धनुष धारी अर्जुन और गांड वी का नाम तूने नहीं सुना है इस गांड भी ने महाभारत का महायुद्ध जीता है क्या तुम सबवे हुए समय की मौत मरना चाहते हो अर्जुन के वचन को सुनकर भी लोग उपहास करने लगे तब अर्जुन ने अपनी गांड वी से बहुत तीर चलाए परंतु बिलों के सम्मुख उनकी एक न चली हुए सहारा धन लूट ले गए तब अर्जुन ने विचार किया कि मेरे भुजाओं केबल तो मधु सुधन श्री कृष्ण थे जब हुए ही नहीं है तो मैं भी बर्लिन है यह विचार करवा शांत हो गए और ब्रज नाम सहित इंद्रप्रस्थ पहुंचे कुछ दिनों के उपरांत धर्मराज युधिष्ठिर ने तुम्हें राजा परीक्षित राशि आसन पर बिठाया और धर्म पूर्वक राज करने की शिक्षा दी फिर भी श्री कृष्ण के पोते को मथुरा का राज प्रदान कर द्रोपति और अपने भाइयों सहित हिमालय की ओर चले गए हे राजन राजा परीक्षित को संबोधित करते हुए महात्मा श्री सुखदेव जी बोले मैंने भगवान मुरली मनोहर की लीला सुननी उन्हें पृथ्वी पर अवतार लेकर कौन-कौन से कार्य को संपादित किया वह कथा भी सुनामी जो प्राणी प्रभु की कथा का पाठ एवं श्रवण करता है उस प्राणी पर भगवान श्री कृष्ण की कृपा होती है अतः संसारी मनुष्य के लिए ही उत्तम है कि भगवान के श्री चरणों का ध्यान करें जिससे उत्तम गति प्राप्त हो

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Shrimad Bhagwat Katha Purana 11th Canto Chapter 27 Beginning

Praise of Lord Shri Krishna Chandra by the Gods

Mahatma Shri Sukhdev ji said, O King Parikshit, Lord Shri Krishna went back to Dwarka after obeying Lord Krishna Chandra, after that Brahmasi Indradev Arshi Maharshi Prajapati Yaksha Kinnar etc. sat in their divine plane and started praising him by being situated in the sky, Devgaon auspicious flowers But at the same moment the entire sky was filled with deities. Seeing the deities, Lord Shri Krishna closed himself in the lotus and reached his divine abode with his yogic power like lightning in the middle of dark clouds. They appear and become invisible. If someone can see, then no one can see. Even Lord Brahma could not see when and how did Trilokinath leave from there. When the king reached Dwarkapuri and told the news of his departure to Soudham and the destruction of the tribals, Daru told the same thing. King Ugrasen and Vasudev ji were very distraught in the yoga of him and Balram ji, when Rukmani, Sadbhavana, Jamwanti etc. queens heard that Shyamsundar had gone to Swardham, they fluttered and fell on the ground and won forever and after some time when they regained consciousness. Came  So they have started saying to each other that sisters have left all of us after taking our lives, our goal of survival has come to an end, on the pretext that our holy husbandry religion says that we should also be burnt to ashes in worry and with heart's voice Reaching near and getting an opportunity to serve him again, Shri Krishna's consort entered him thinking thus. Ramji's better half Revati also became sati. In this way, when the Yaduvanshi died, only a few were left, then Arjun ji, the vehicle from Indraprastha, O king, seeing the scene of Dwarka Puri, your grandfather Arjun started crying distraught, but after a few moments, when Lord Shri Krishna ji at the time of Mahabharata war When I remembered the teachings of Gita knowledge given by Shri Krishna, he was pacified by explaining in his heart, then under the control of Shri Krishna ji, Aniruddha's son Brahm named Brahma and other men and women went towards Indraprastha on the way. besieged and plundered Arjun got angry and said, O fool, you have not heard the name of Arjun with bow and Gand V. This Gand also won the great war of Mahabharata, do you want to die the death of all those times? Arjun shot many arrows from his ass but in front of the bills, his money was looted, then Arjun thought that only Madhu Sudhan Shri Krishna was in my arms, when he is not there, then I am also Berlin. Karva calmed down and reached Indraprastha with the name of Braj. After a few days, Dharmaraj Yudhishthira made you sit on the seat of King Parikshit and taught you to rule righteously, yet Draupati and the Himalayas along with his brothers gave the rule of Mathura to the grandson of Shri Krishna. Mahatma Shri Sukhdev ji, while addressing King Parikshit, said, I listened to the pastimes of Lord Murli Manohar, what works he did by incarnating on earth, that story also became a tsunami, which read and listened to the story of the living God. does that creature is blessed by Lord Shri Krishna, so Sansa It is better for a human being to meditate on the feet of the Lord, by which one can attain the best speed.

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