श्रीमद् भागवत कथा पुराण 11 वा स्कंध अध्याय 26 आरंभ
यदुवंशियों का विनाश एवं श्री कृष्ण चंद्र जी का गो लोग गमन
श्रीमद् भागवत कथा एम राजा परीक्षित को सुनाते हुए महात्मा सुखदेव जी बोले हे राजन उद्धव जी को ज्ञान का उपदेश देकर भगवान श्याम सुंदर जी के मंदिर 1 भेज दिया तत्पश्चात उन्होंने अपने हृदय में विचार किया कि आप यदुवंशियों का नाश करा कर दुर्वासा ऋषि के श्राप को सत्य करने का समय आ गया है यह विचार कर उन्हें समस्त यदुवंशियों को अपने निकट बुलाकर बोले हैं प्यारे भाइयों यह बहुत ही शुभ घड़ी है इस समय प्रवाह क्षेत्र में चलकर स्नान और दान पूर्ण करने से मनुष्य का सौभाग्य उदय होता है अतः हमें इस शुभ अवसर को नहीं छोड़ना चाहिए श्री कृष्णा जी के वचनों को सुनकर सभी यदुवंशी प्रभास क्षेत्र चलने के लिए तैयार हो गए राजा उग्रसेन और वासुदेव को छोड़कर सभी यदुवंशी रात घोड़े और हाथी पर चढ़कर वहां गए और स्नान आदि करने के उपरांत यात्रियों को दांत अथवा व्रत रखे तब भगवान श्री कृष्ण चंद्र ने विचार किया कि यह सभी बहुत शांत है अतः कुछ कार्य हो जिससे सभी यदुवंशी उत्तेजित हो जाए उस समय उन्होंने अपने योग माया से उन सब के अंदर ऐसी भावना उत्पन्न कर दी कि हम कार में डूबकर सब यदुवंशी मदिरापान करने लगे जब हुए मरम्मत वाले हो गए तो परस्पर वाद-विवाद करने लगे अजीत बात विवाद ने इतनी स्थिति उत्पन्न कर दी कि वे आपस में लड़ने लगे धनुष वाला तलवार आदि से एक दूसरे पर प्रहार करने लगे शास्त्र युद्ध में हाथी घोड़े हाथी मारे गए किसी का घटक टूट गया तो किसी का तरफ से तीर समाप्त हो गया किसी की गदा छोड़कर दूर जा गिरी तब वे शास्त्र हिना हो गए तब वे लोहे के चूरे से उत्पन्न हुए हेरा नामक की जांच को खार कर एक दूसरे का प्रहार करने लगे दुर्वासा ऋषि के श्राप से के कारण ही रखें प्रहार से ध्रुवंशी पृथ्वी पर गिर कर मरने लगे इस तरह जब सभी यदुवंशी आपस में लड़ मरे तब भगवान श्री कृष्णा और शेष अवतार शंकर भगवान बलराम जी बचे हे राजन बलराम जी ने श्री कृष्ण चंद्र की इच्छा जानकर वहां से चलकर थोड़ी दूर रहे और एक ही स्थान में बैठकर आंखें बंद करके ध्यान करने लगे प्रभु की कृपा और योग बल के क्षण मात्र में बलराम जी अंतर्ध्यान हो गए तब भगवान श्री कृष्णा जी एक पीपल वृक्ष की छांव तले जाकर अपनी त्रिभंगी में जाकर खड़े हुए और उनके पैरों का तुला दूर से इस प्रकार चमक रहा था जैसे अमृत की आंखें हो हे राजन भगवान श्री कृष्ण चंद्र के श्यामानंद शरीर पर पितांबर और कमर पर का धनी अत्यधिक सुशोभित हो रही थी उनके होठों पर मन मन मुस्कान थी प्रभु की माया प्रभु ही जाने भक्तों को दे दिए गए वचन को पूर्ण करने के लिए कैसे-कैसे लीला करते हैं लोग जाने की इच्छा से पीपल वृक्ष के नीचे लेट गए और अपना एक पैर दूसरे पर पर रख दया उसी समय उस की प्रेरणा से ज्यादा नामक वाद्य उस और आया और दूर से चमक रहे पैर के तालू को मृत समझकर धनुष पर बाण चढ़ाया या वही बाहर था जो मुसल का टुकड़ा मछली के पेट से निकला था निशाना सात कर विवाद ने बाढ़ दिया तत्पश्चात दौड़ता हुआ शिकार के पास गया किंतु वहां दृश्य देखकर वापस से कांपने लगा के राजा परीक्षित विवाह के हृदय की दशा भगवान श्री कृष्ण जी जान गए पता उसे समझते हुए बोले हैं जरा तुम व्यर्थ की चिंता मत करो संसार में जो कुछ होता है वह मेरी इच्छा से होता है अथवा जो कुछ होगा वह मेरी इच्छा से होगा मुझे दुर्वासा ऋषि का श्राप और तुम्हें पूर्व जन्म में दिए गए वचन को पूर्ण करना था तब वह ज्यादा हाथ जोड़कर कहने लगा हे भगवान मैं अज्ञानी मूड मत पूर्व जन्म की बात क्या जानू मुझसे अपराध हुआ है यह दीनदयाल मेरे अपराध को क्षमा करें उसके वचनों को सुनकर श्री कृष्ण चंद्र जी उससे पूर्व जन्म की बात याद दिलाते हुए बोले यह याद तू पुरवा जान मम्मी वह नाराज सुग्रीव का भाई भली था उस समय पेड़ की ओट में छिप कर मैंने तुम पर बाण चलाया था जब तुम्हें मेरा माल लगा तो उस समय तुम्हारे मुंह से शब्द निकले थे मैं बैरी सुग्रीव प्यारा कारण कवन नाथ मोहि मारा उसके बाद जब मैं तुम्हारे सम्मुख पहुंचा तो तुमने मुझे शराब देते हुए कहा हे राम तूने व्याधा की तरह छिपकर मुझे मारा था आता तुम भी वादा के समान मारे जाओगे मुझे तुम्हारे सर आपको सत्य करना था मेरे हाथों मारे जाने पर तेरे मुक्ति हो चुकी थी किंतु शराब को पूरा करने के लिए तुम्हें भी आधा रूप में जन्म लेना वह अब तुम बैकुंठ लोक को जाओ क्योंकि तुम्हारा कार्य पूरा हो चुका है यह परिचित उसी समय आकाश मार्ग से एक दिव्य विमान उतर कर पृथ्वी पर आया प्रभु श्री कृष्ण चंद्र जी की स्तुति करता हुआ वह व्याधि विमान पर चढ़कर बैकुंठ लोक चल गए उसके चले जाने के पश्चात प्रभु श्री कृष्ण चंद्र को ढूंढता हुआ उनका सारथी प्रारूप उस स्थान पर आया और दंडवत प्रणाम करके बोला है भगवान आपके बिना मैं बिना जल की मछली के समान हो जाता है स्वामी आपके दर्शन के लिए मैं तड़प रहा था जिस समय दारू उसकी स्तुति कर रहा था उसी समय श्री कृष्ण चंद्र जी का रथ को रोहित आकाश में उड़ गए यह दृश्य देखकर दारु को अत्यंत आश्चर्य हुआ तब श्री कृष्ण चंद्र जी बोले हे प्रिय दारू तुम द्वारिकापुरी जाकर मेरे माता-पिता से यदुवंशियों के नष्ट होने का वृतांत बतला देना रिया भी कहना कि आज से साथ म दिन द्वारिका पुरी समुद्र में डूब जाए अतः वे लोग आवश्यक वस्तु लेकर द्वारिकापुरी को छोड़कर अर्जुन के साथ इंद्रप्रस्थ चले गए यह दारू सभी स्त्रियों पुरुषों एवं वृद्ध जनों को या भी समझा देना कि मैंने भागवत धर्म का जो उपदेश दिया था उसका पालन करते हुए मेरे ही चरणों का ध्यान करें उसका कल्याण होगा और जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाएंगे
TRANSLATE IN ENGLISH
Shrimad Bhagwat Katha Purana 11th Canto Chapter 26 Beginning
Destruction of Yaduvanshis and departure of Shri Krishna Chandra ji
While narrating Shrimad Bhagwat Katha to M Raja Parikshit, Mahatma Sukhdev Ji said, O Rajan Uddhav Ji, after preaching knowledge, sent him to the temple of Lord Shyam Sundar Ji. Thinking that the time has come to do the truth, he has called all the Yaduvanshis near him and said, dear brothers, this is a very auspicious time, at this time by walking in the flow area, bathing and completing charity, the good fortune of man rises, so we should celebrate this auspicious occasion. Should not be left out, listening to the words of Shri Krishna, all the Yaduvanshis got ready to go to Prabhas area, except King Ugrasen and Vasudev, all the Yaduvanshis went there at night riding on horses and elephants and after taking bath etc., kept teeth or fast to the passengers. Lord Shri Krishna Chandra thought that all of them were very calm, so there should be some work that would excite all the Yaduvanshis, at that time he created such a feeling in all of them with his Yog Maya that all the Yaduvanshis started drinking alcohol by drowning in the car. If you are a repairman, then Ajit started arguing with each other. The dispute created such a situation that they started fighting with each other with bow and sword etc. The arrow ended, leaving someone's mace and fell away, then those scriptures became Hina, then they started attacking each other by destroying the probe named Hera, born of iron filings, due to the curse of sage Durvasa In this way, when all the Yaduvanshis started fighting with each other, then Lord Shri Krishna and the rest of the incarnation Shankar, Lord Balram ji survived. Rajan Balram ji, knowing the wish of Shri Krishna Chandra, walked a little far from there and sat in the same place. Started meditating with closed eyes, in a moment of God's grace and yoga power, Balram ji disappeared, then Lord Shri Krishna ji went under the shade of a Peepal tree and stood in his tribhangi and his feet were shining like this from a distance. It was like having the eyes of nectar, O king, on the body of Lord Shri Krishna Chandra's Shyamanand, Pitambara and on the waist The rich was getting very beautified, there was a smile on their lips, there was a smile on their lips. He put one foot on the other, at the same time an instrument called more than his inspiration came to him and put an arrow on the bow considering the palm of the foot shining from a distance as dead or it was outside which was the piece of mussel that came out of the stomach of the fish. The tax dispute caused a flood, after that he ran to the hunt, but after seeing the scene there, he started trembling from the back that Lord Shri Krishna came to know about the condition of the heart of King Parikshit's marriage. Whatever happens it happens by my wish or whatever happens it will happen by my wish I had to fulfill the curse of Durvasa Rishi and the promise given to you in previous birth then he started saying with folded hands oh God don't be in ignorant mood previous birth What should I know about this Deendayal, I have committed a crime, forgive my crime, Shri Krishna Chandra after listening to his words Reminding him of his previous birth, he said, "You remember me, dear mother, he was the brother of angry Sugriva, at that time I had shot an arrow at you hiding in the cover of a tree, when you got my goods, words came out of your mouth at that time. I am enemy Sugriva dear reason Kavan Nath Mohi Mara, after that when I reached in front of you, you gave me liquor and said, O Ram, you had killed me by hiding like a disease, you will also kill me as promised, I had to tell you the truth on your head. You were liberated after being killed by hands, but to fulfill the liquor, you also have to be born in half form, that now you go to Vaikunth Lok because your work is completed, this acquaintance, at the same time a divine plane descended from the sky to earth. Praising Lord Shri Krishna Chandra ji came, he went to Vaikunth Lok by climbing on the disease plane. Swami becomes like a fish in the water for your darshan. At the time when Daru was praising him, at the same time, Daru was very surprised to see the chariot of Shri Krishna Chandra ji, Rohit flew in the sky, then Shri Krishna Chandra ji said, O dear Daru, go to Dwarkapuri and meet my parents. Tell the story of the destruction of the Yaduvanshis, Riya also say that from today onwards, Dwarka Puri will drown in the sea, so they left Dwarkapuri with the necessary things and went to Indraprastha with Arjuna. Grant that by following the teachings of Bhagwat Dharma, meditate on my feet, he will be blessed and will be free from the bondage of birth and death.
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