श्रीमद् भागवत कथा पुराण 11 वा स्कंध अध्याय 25

श्रीमद् भागवत कथा पुराण 11 वा स्कंद अध्याय 25 आरंभ

मन की चंचलता का वर्णन



उद्धव से भगवान श्री कृष्ण चंद्र जी बोले हे भक्तों धाव मन बहुत चंचल है संसार में सबसे अधिक गतिमान मन है मन के वे के सामान वेगवान सूर्य चंद्र के रथ भी नहीं है मन के वे को रोकना अत्यंत कठिन कार्य है भगवान के वचनों को सुनकर उद्धवजी गंभीर वाणी में बोले हे कृपा निधान जब आप कह रहे हैं कि मन बड़ा चंचल है इससे सरलता से रोक पाना संभव नहीं है तो फिर आपके चरणों का ध्यान प्राणी किस प्रकार करते हैं तब श्री कृष्ण चंद्र जी हंसकर कहने लगे हे प्यारे मैं यही कहता हूं कि मन को रोक नहीं जा सकता बल्कि मेरे कथन का तपस्या यह है कि मन को रोकने के लिए कठिन प्रयास करना होता है जिस प्राणी का मन वश में हो जाता है उसकी इंद्रियां भी वश में हो जाती है अति तीव्र गति से दौड़ने वाले मन को धीरे-धीरे वश में करने से पूर्ण सफलता प्राप्त होती है जिस तरह बूंद बूंद पानी से सैन्य से घड़ा भर जाता है उसी प्रकार निरंतर प्रयास से असंभव कार्य भी संभव हो जाता है जहां मेरे चरणों के प्रतीत करने वाले भक्त निवास करते हैं प्राणी उसी स्थान पर आकर उसकी संगति और सेवा करें भक्तों की कृपा सांसारिक प्राणियों को प्राप्त होगी जिससे उनके मोक्ष का मार्ग खुल जायेगा या अभिमान करना मूर्खता है कि मैं उच्च वर्ग का हूं मैं धनी हूं फिर साधु सन्यासी की सेवा क्यों करूं मुझे क्या कर क्या पड़ी है यार है और मनुष्य के सत्कर्म को नष्ट करता है प्यासे को पानी पिलाना भूखे को भोजन कराना आदि शुभ कार्य है इन कर्मों का फल अवश्य मिलता है किंतु प्राणी को चाहिए कि वह निष्काम भाव से सेवा करें जो मनुष्य के हृदय में अभिलाषा रखकर सेवा करता है उसे फल मिलता है किंतु कम उद्धव वह प्राणी क्षत्रिय ब्राह्मण हो अथवा शुद्र हो सब के शरीर में मेरा ही तेज विद्यमान है जो मनुष्य 8400000 योनियों के प्राणी को परमेश्वर का स्वरूप जानता है उस मनुष्य को किसी प्रकार का दुख प्राप्त नहीं होता है उद्धव मैंने जो रहस्य तुम्हें बताया सांसारिक प्राणी मेरे इन राशियों को नहीं जानते तुम्हें अपना वक्त जानकर ज्ञान का मार्ग दिख रहा है मेरे बताए हुए मार्ग पर चलकर तुम पुनः मुझे प्राप्त करो अब मेरे गोलोक प्रस्थान करने का समय निकट आ गया है अतः तुम बद्रिका आश्रम को जाओ वहां जाकर मेरे स्वरूप का ध्यान करना उचित समय आने पर मैं तुम्हें बुला लूंगा भगवान श्री कृष्ण चंद्र भूषण को सुनकर उनके वियोग का दुख उद्धव को नहीं सताया उन्हें ज्ञान प्राप्त हो चुका था प्रभु की आज्ञा शिरोधार्य कर उन्हें उन्हें उनके चरणों में मस्तक रख तत्पश्चात आशीर्वाद प्राप्त कर बद्री के लिए चल दिए उस समय उद्धव जी के ह्रदय में श्याम सुंदर की छवि बसी हुई थी

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Shrimad Bhagwat Katha Purana 11th Skanda Chapter 25 Beginning

Description of fickleness of mind

Lord Shri Krishna Chandra ji said to Uddhav, O devotees, the running mind is very fickle, the most moving mind in the world is not even the chariot of the sun and the moon, it is very difficult to stop the movement of the mind, listening to the words of God Uddhav Said in a serious voice, O Kripa Nidhan, when you are saying that the mind is very fickle, it is not possible to stop it easily, then how do animals pay attention to your feet, then Shri Krishna Chandra ji laughed and said, O dear, I say this. That the mind cannot be stopped, but the austerity of my statement is that one has to try hard to stop the mind. By controlling gradually, complete success is achieved, just as a pitcher is filled with water drop by drop, in the same way, by continuous effort, even the impossible task becomes possible, where the devotees who seem to be at my feet reside in the same place. But by coming and serving him, the blessings of the devotees will be received by the worldly beings, due to which their salvation will be achieved. Will the way be opened or is it foolish to be proud that I am of high class, I am rich, then why should I serve a monk, what do I have to do, friend, and destroys the good deeds of a man, giving water to the thirsty, feeding the hungry, etc. auspicious There is work, the fruit of these deeds is definitely received, but the creature should serve selflessly, the one who serves with a desire in the heart of a man, he gets the result, but less Uddhava, whether the creature is a Kshatriya Brahmin or a Shudra, I am in everyone's body. Only the light exists, the man who knows the form of God to the creature of 8400000 births, that man does not get any kind of sorrow. Follow the path told by me, you get me again, now the time has come for my departure to Golok, so you go to Badrika Ashram and meditate on my form, I will call you Lord Shri Krishna Chandra Bhushan when the right time comes. hearing of their separation Sorrow did not bother Uddhav, he had attained knowledge, obeying the command of the Lord, he put his head at his feet, and after receiving his blessings, he left for Badri.

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