श्रीमद् भागवत कथा पुराण 11 वा स्कंध अध्याय 24 आरंभ
संसार से विरक्त प्राणियों के धर्म का वर्णन
भगवान मुरली मनोहर जी बोले हैं उद्धव जी प्राणी में जैसे गुण का प्रकाश होता है उसके स्वभाव में उसी अनुसार परिवर्तन हो जाता है सद्गुण के उत्पन्न होने पर साम दाम श्रद्धा लगा आदि उत्पन्न होते हैं रजोगुण से इच्छा घमंड विषय भोग कामना प्रतीत आदि दूर व्यवहार होता है और तमोगुण से राक्षसी प्रवृत्ति की परिचायक है अतः इसे क्रोध अहंकार हिंसा से अशोक आदि उत्पन्न होती है सच तो यह है कि जो ज्ञानी पुरुष है वह किसी की निंदा नहीं करता और द्वेष अथवा क्रोध का भाव उसके अंदर उत्पन्न नहीं होता क्योंकि उसे यह ज्ञान होता है कि प्राणियों में परमेश्वर का चमत्कार है परमेश्वर ही सर्वश्रेष्ठ है जो हम किसी पर क्रोध करें और किसे निवेश करें अपनी माया से श्री हरि नारायण सृष्टि का सृजन करते हैं स्थिरता भी उन्हीं की कृपा से है और नाश करने वाला भी वही है ज्ञानी पुरुष मुझे सत्य समझता है और सांसारिक व्यवहार कोमिद्या मानसिक शांति और स्वाद धर्म के रक्त रहना ईश्वर भक्ति है जब प्राणी का हिर्दय सांसारिक सुखों से विरक्त हो जाता है तब वह सोता मेरे चरणों की ओर खिंचा चला आता है यह संपूर्ण संसार एक खेल है जैसे मदिरा खेल दिखाने के उपरांत अपना सामान समेट कर ले लेता है उसको ही गति संसार की है कि उद्धव ज्ञान रूपी हथियार सेंद्रिय रूपी कृष्ण को काटने वाले प्राणी ही भवसागर से पार जाता है इंद्र सुख के वशीभूत हो ना भाव चक्र की गहरी खाई में गिर आता है अतः इसे दूर रहकर अपना अधिक समय भागवत भजन में बिताए जो मेरे भक्त हैं उनसे यदि जाने अनजाने में कोई अपराध हो जाता है तो मैं उस पर अपनी कृपा करके अगले जन्म में उद्धार कर देता हूं शरीर का मुख्य तत्व आत्मा है और आत्मा मैं हूं अर्थात आत्मा की ज्योति को जिसने कंठ से लगा लिया उसने परमात्मा को पा लिया
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Shrimad Bhagwat Katha Purana 11th Canto Chapter 24 Beginning
Description of the religion of creatures detached from the world
Bhagwan Murli Manohar ji has said Uddhav ji, as the quality of a living being shines, its nature changes accordingly; when a virtue is generated, a feeling of reverence etc. arises, desire, pride, enjoyment, desire, etc. appear to be distant behavior. It is a sign of demonic tendency from Tamoguna, hence it is generated by anger, arrogance, violence, Ashoka etc. The truth is that the wise man does not condemn anyone and the feeling of malice or anger does not arise in him because he has this knowledge. It happens that there is a miracle of God in the living beings, God is the best, on whom we should be angry and on whom we invest, Shri Hari Narayan creates the world by his illusion, stability is also due to his grace and the one who destroys is also the wise man. I consider me to be true and worldly behavior is comedy, mental peace and taste are the blood of religion, devotion to God. after showing He collects his belongings, it is the speed of the world that Uddhava, the weapon of knowledge, is the one who cuts Krishna in the form of senses, only the creature crosses the Bhavsagar. Spend most of my time in Bhagwat Bhajan, if any crime is committed by my devotees knowingly or unknowingly, then by my grace I will save them in the next birth. The one who embraces has attained the divine.
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