श्रीमद् भागवत कथा पुराण 11 वा स्कंध अध्याय 23 आरंभ
उद्धव को शार्क योग का उपदेश
श्री कृष्णा जी बोले हे उद्धव राजा पुरुष वाणी उर्वशी को त्याग कर अपना ध्यान मेरे चरण में लगा दिया जिससे मेरी कृपा प्राप्त हुई तब उद्धव जी बोले हे प्रभु आप की पूजा का विधान क्या है यह प्राणी को आप की पूजा करने का ज्ञान नहीं है उसे क्या करना चाहिए तब श्याम सुंदर जी बोले हे परम भक्त उद्धव मेरी पूजा का विधान वेदों शास्त्रों और उपनिषदों वादी में वर्णित है फिर भी मैं बतलाता हूं ध्यान देकर सुनो मेरी बन्याई सृष्टि में मनुष्य सर्वश्रेष्ठ प्राणी है पूजा-पाठ ध्यान आदि का ज्ञान मनुष्य में होता था अन्य जीवो में नहीं जो प्राणी मेरे श्री चरणों से प्रतीत करता है वह प्रातः काल उठकर शौच आदि से मृत होने के उपरांत शुद्ध जल से स्नान कर भूमि पर कुशासन बिछाकर आसन लगाए और मेरे स्वरूप का ध्यान करें मेरे सद्गुण रूप का ध्यान करने से प्राणी को इच्छित फल प्राप्त होता है तब उद्धव जी ने कहा हे प्रभु कृपा करके आप ने सद्गुण रूप का विस्तार वर्णन करें उस समय श्री कृष्ण चंद्र जी ने कहा है प्यारे साधक मेरे सद्गुण रूप की मूर्ति स्थापित करें मूर्ति सोने की हो चांदी की हो कास्ट की हो पीतल अथवा तांबे की हो यदि धातुओं की मूर्ति ना मिले तो मिट्टी की मूर्ति स्थापित करके पूजा करें स्नान करने के उपरांत साधक स्वच्छ वस्त्र धारण करके मूर्तियों को स्नान कराएं और नवीन वस्त्र पहनकर चंदन लगाएं और पुष्प माला पहने तदुपरांत धूप दीप अगरबत्ती ने वित्त आदि से आरती करें हे उद्धव इस तरह पूजा करने के बाद आरती का थाली मूर्ति के सामने रखकर साधक प्रशासन पर बैठ जाए और हाथ जोड़कर वेदपुर मंत्रों का उच्चारण करते हुए स्तुति करें और ह्रदय में मेरे स्वरूप का ध्यान करें मेरा पूजा करते समय सुदर्शन चक्र सहारन धनुष पदमुगल जय विजय गणेश दुर्गा इंद्र दी मेरे पार्षदों का स्मरण करके उसके बाद खीर आदि पकवान का भोग लगाएं जो मिट्टी की मूर्ति स्थापित करके पूजा करते हैं उन्हें यह उचित है कि वेद मंत्रों द्वारा वाहन कर मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा करें और विसर्जन करते समय विसर्जन मंत्र का पाठ करें और हवन करते समय आदमी में मेरे स्वरूप को देखें पूजा संपन्न होने पर साष्टांग प्रणाम करें और इस प्रकार उच्चारण करें एक दिन दयाल है कृपा के सागर है पी लो कि महात्मा आपका भक्त आपकी शरण में हूं मैं दास तुम स्वामी हो मैं पापी तुम मोक्ष दाता हो हे भक्तवत्सल मुझे अपने चरणों का सेवक जानकर मुझ पर अपना अमृत दृष्टि से मेरा उद्धार करो कि उद्धव इस प्रकार विनती करने के उपरांत भोग लगावे हुए प्रसाद ग्रहण करें
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Shrimad Bhagwat Katha Purana 11th Canto Chapter 23 Beginning
shark yoga instruction to uddhav
Shri Krishna ji said, O Uddhav, leaving the male voice Urvashi, he focused his attention on my feet, by which he received my blessings, then Uddhav ji said, O Lord, what is the method of worshiping you, this creature does not have the knowledge to worship you. What should be done, then Shyam Sundar ji said, O supreme devotee Uddhav, the law of my worship is described in Vedas, Shastras and Upanishads, yet I tell you, listen carefully, in my created creation, man is the best creature, the knowledge of worship, meditation, etc. is in man. It was not among other living beings that the creature that appears to be at my feet, after getting up early in the morning after being dead from defecation etc., bathe with pure water, spread misrule on the ground and sit on a seat and meditate on my form. By meditating on my virtuous form, gets the desired fruit, then Uddhav ji said, O Lord, please describe in detail the virtuous form, at that time Shri Krishna Chandra ji said, dear seeker, install the idol of my virtuous form, the idol may be of gold, silver or cast Be it of brass or copper, if the idol of metals If not found, install an idol of clay and then worship. After the aarti, the seeker should sit on the administration by placing the plate in front of the idol and chant Vedpur mantras with folded hands and meditate on my form in the heart while worshiping me. Remember and then offer food like Kheer etc. Those who worship by setting up an idol of clay, it is appropriate for them to worship the idol by chanting Veda mantras and recite the immersion mantra while performing Havan and my form in man while performing Havan. On completion of the puja, do prostration and pronounce it like this, one day you are kind, you are the ocean of grace, drink that Mahatma, your devotee is in your shelter, I am a slave, you are my master, I am a sinner, you are the giver of salvation, O Bhaktavatsal, let me fall at your feet. Knowing that you are a servant, save me by looking at me with your nectar so that Uddhava, after making such a request, may receive the prasad
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