श्रीमद् भागवत कथा पुराण 11 स्कंद अध्याय 22

श्रीमद् भागवत कथा पुराण 11 स्कंध अध्याय 22 आरंभ

लोभी ब्राह्मण और राजा पुरुषों की कथा



हे उद्धव मैं तुम्हें एक लोभी ब्राह्मण की कथा सुनाता हूं जो धनिक तो था परंतु इस अभाव से अत्यंत प्रीमेंथा उझानी नगर में रहने वाला एक ब्राह्मण ने व्यापार करते हुए बहुत सा धन एकत्रित कर लिया किंतु कभी अपने कुटुंब यों को खर्च करने के लिए नहीं देता था द्वार पर आए हुए भिक्षु को डांट कर फटकार कर भगा देता था ब्राह्मण को दान देने की बात तो दूर मीठे स्वर में बात नहीं करता था उसके इस भाव से भाई बंधु इस्त्री पुत्र नौकर आदि सभी दुखी थे उस सचित धान खवा स्वयं तो उपयोगकर्ता नहीं था आता है एक समय ऐसा आया कि उसके पास अधिक धान संचित होने की बात चोरों को मालूम हो गई और रात्रि काल में आकर सारा धन चुरा कर अपने साथ ले गए वही ब्राह्मण जब सुबह सो कर उठा तो दृश्य देखकर हाय हाय करके पछताने लगा और अपने मन में विचार करने लगा कि जिस धाम के लिए मैंने रात दिन परिश्रम किया हुआ धन नष्ट हो गया तुम मुझ जैसा ताकि कौन होगा यदि उस धर्म को मैंने धर्म कार्य में विवाह किया होता तो पूर्ण फल प्राप्त होता परंतु किसी अर्थ का ना हुआ यही गति इस धमकी भी होगी जब उसके मन में इस प्रकार का विचार आया तो वह घर बार त्याग कर निकल गया और भिक्षा से जीवन गुजारने लगा सांसारिक वस्तुओं से मुंह मोड़ लिया तथा अवधूति बनकर स्वच्छंद होकर पृथ्वी पर विचरण करने लगा यही गति राजा पुरुष व की हुई राजा पुरुष वाक्य शक्ति इंद्रियों में थी उन्हें गंधर्व लोक की अत्यधिक सुंदर अप्सरा उर्वशी से प्रतीत की और हजारों वर्ष वहां रहकर विषय भोग किए किंतु विषय भोग से उसकी इच्छा तृप्त ना हुई एक दिन एकांत में राजापुर सुबह बैठे हुए थे उसी घड़ी उर्वशी उसके निकट आई थी यह सोचने लगे कि मैंने काम के वशीभूत होकर हजारों वर्षों तक सांसारिक सुख का उपभोग किया किंतु इंद्रियों की वासना पूर्णा हुई इससे यह विदित होता है कि प्राणी जितना अधिक सुख भोगता है काम इच्छा उतनी ही तीव्र और मन चंचल होता है आग में घी डालने से ज्वाला पूर्ण होती है अन्यथा ज्ञानी एवं प्रतापी राजा का पुत्र होकर भी माया चक्र में फंसा पड़ा हूं मूसा अज्ञानी और मन बुद्धि कोई ना होगा एक स्त्री के वश में होकर अपने कुल की शिक्षा एवं मर्यादा का उल्लंघन कर रहा हूं भोग विलास सांसारिक सुख है जो कमी पुरुष होते हैं वह अपना तेज बल आदि को देते हैं मैं सातों दीप के राजाओं का राजा हूं शास्त्रों राजा मेरे अधीन है इंद्र भी मुझसे युद्ध से घबराता है किंतु मेरी बुद्धि धनी उम्मीद हो गई है यह स्त्री की प्रति में पड़कर सब कुछ भूल गया मेरे लिए यही उचित है कि सांसारिक सुखों को त्याग कर श्री नारायण के चरणों का ध्यान करो

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Shrimad Bhagwat Katha Purana 11 Canto Adhyay 22 Beginning

The story of greedy brahmins and king men

Hey Uddhava, let me tell you the story of a greedy Brahmin who was rich but very much because of this lack. He scolded and reprimanded the monk who came to the door and used to drive him away, let alone talking about donating to a Brahmin. There comes a time when the thieves came to know that he had more paddy accumulated and came in the night and stole all the money and took it with them. I started thinking in my mind that the money for which I had worked hard day and night was wasted, you are like me, so that if I had married that religion in religious work, then I would have got the full result, but this did not make any sense. The speed will also be threatening. When this type of thought came in his mind, he left the house and left and started begging. He turned his back on worldly things and started moving freely on the earth as an avadhuti. The same speed that Raja Purush and Raja Purush's sentence power was in the senses, he appeared to Urvashi, the most beautiful Apsara of Gandharva Lok, and stayed there for thousands of years. One day Rajapur was sitting in solitude in the morning, at the same time Urvashi came near him, he started thinking that I enjoyed worldly pleasures for thousands of years by being under the influence of lust, but the lust of the senses Completed, it shows that the more pleasure a creature enjoys, the more intense the desire and the more restless the mind, pouring ghee into the fire, the flame becomes full; And there will be no mind and intellect, being under the control of a woman, I am violating the education and dignity of my clan, indulgence and luxury are worldly pleasures. the king is under me even indra He is afraid of war with me, but my intellect has become rich in hope, he has forgotten everything by falling in love with a woman. It is right for me to leave worldly pleasures and meditate on the feet of Shri Narayan

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