श्रीमद् भागवत कथा पुराण 11 स्कंध अध्याय 21

श्रीमद् भागवत कथा पुराण 11 स्कंध अध्याय 21 आरंभ

आदि पुरुष की प्रकृति एवं गुणों का विस्तार



उद्धव जी बोले हे भगवान तत्व कितने प्रकार के होते हैं तत्वों की पुरुष प्रकृति से क्या संबंध है यह जानने की अभिलाषा है कृपया कर मेरी अभिलाषा पूर्ण करें तब भगवान श्री कृष्ण चंद्र जी बोले हे प्यारे उद्धव राज दाम सत्य तीनों गुण है और तत्वों में सृष्टि माई है यही पुरुष प्राकृतिक कहलाती है कुछ तत्व वेद ऋषि यों ने तत्वों को अलग-अलग शाखा निर्धारित किए हैं जिसका मत है कि तत्वों की शाखा 26 है तो उसके अनुसार 24 तत्वों की संख्या है 25वां तत्व पुरुष आत्मा और 26 माता तो ईश्वर है इसी तरह तत्व वेद दावों के अलग-अलग मत हैं किंतु एक पुरुष प्राकृतिक और एक ईश्वर निश्चित तत्व है भगवान की कृपा से प्राप्त होने वाला ज्ञान भी एक तत्व है इसलिए इसे भक्त तत्व कहते हैं राजस्थान सद्गुणों के मिलान से प्राकृतिक का निर्माण होता है इन्हीं गुणों से सृष्टि की उत्पत्ति स्थिर एवं पहले होता है इसलिए तुम यह जानू की ज्ञान आत्मा का नहीं बल्कि प्राकृतिक का गुण है राजू गुण का नाम कर्म सतोगुण का नाम ज्ञान तथा तमोगुण का अज्ञान जानू यही मूल तत्व है

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Shrimad Bhagwat Katha Puran 11 Canto Adhyay 21 Beginning

Expansion of the nature and qualities of Adi Purush

Uddhav ji said, O God, how many types of elements are there, I have a desire to know what is the relationship of the elements with the male nature, please fulfill my desire, then Lord Shri Krishna Chandra ji said, O dear Uddhav Rajdam, truth is the three qualities and creation in the elements. Mother is this man, it is called natural. Some elements have been determined by the Vedas and Rishis, who believe that there are 26 branches of elements, according to which the number of elements is 24. The 25th element is the male soul and the 26th mother is God. There are different types of elements Vedas claim, but one Purush Prakrit and one God is a definite element. Knowledge obtained by the grace of God is also an element, therefore it is called Bhakta Tattva. The origin of the universe is stable and first, therefore you know that the knowledge of the soul is not the quality of the soul, but of the natural.

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