श्रीमद् भागवत कथा पुराण 11 स्कंध अध्याय 19 आरंभ
कर्मयोग का वर्णन
पुणे भगवान श्री कृष्ण चंद्र जी कहने लगे हे भक्त उद्धव मनुष्य के कल्याण के लिए ज्ञानयोग कर्मयोग और भक्ति योग ए तीनों योग हैं जिसकी आसक्ति बिल्कुल मिल चुकी है उन्हें ज्ञान योग प्राप्त हो गया और जो मनुष्य विरक्त नहीं हुए और कर्म में लगे हैं वह कर्मयोग को पूर्ण कर रहे हैं यह उद्धव कुछ प्राणी ऐसे भी हैं जो पूर्व जन्म के कर्म के अनुसार भक्ति का साधना में लीन है इसी भक्ति योग्य कहते हैं मेरी लीला आदि की कथा का श्रवण कराना ही सच्चे भक्ति साधना है उद्धव जो योग पुरुष है वह सदैव उत्तम कार्य करते हैं तथापि यदि किसी प्रकार का निश्चय नीच कर्म हो जाए तो उसे पाप कर्म अपनी योग विद्या से भरम कर दे यही उत्तम है व्रत उपवास आदि कार्यक्रम कुंडलियों के लिए होते हैं योगी के लिए नहीं योगी जन को मेरा एक ही स्वरूप जानना चाहिए कटु भाषण और असत्य वचनों का प्रयोग करने के साधक की दिव्य शक्ति क्षीण होती है उसी साधना का अंश नष्ट होता है अहंकार से प्राणी के दोनों लोग बिगड़ते हैं अतः साधक को चाहिए कि वह सचेत रहे यही उसके हित का मार्ग है
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Shrimad Bhagwat Katha Purana 11 Canto Chapter 19 Beginning
Description of Karmayoga
Lord Shri Krishna Chandra Ji of Pune said, O devotee Uddhava, for the welfare of human beings, Gyan Yoga, Karmayog and Bhakti Yoga are the three yogas, the one who has got complete attachment, has attained Gyan Yoga and the person who is not disinterested and is engaged in action, is Karmayog. This Uddhava is fulfilling this. There are some beings who are engrossed in the practice of devotion according to the deeds of their previous birth. This is what is called worthy of devotion. Listening to the story of my Leela etc. is the true devotional practice. They do good work, however, if any kind of determination turns into a bad deed, then they should be deluded by their sinful deeds with their knowledge of yoga. By using bitter speech and false words, the divine power of the seeker is diminished, the part of the same practice is destroyed, due to arrogance, both the people of the creature get spoiled, so the seeker should be alert, this is the way for his benefit.
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