श्रीमद् भागवत कथा पुराण 11 वा स्कंध अध्याय 18 आरंभ
नियम पालन करने का उपदेश
भगवान श्याम सुंदर जी बोले हे उद्धव मेरी माया अपरंपार है मेरी माया का पार ब्रह्मा शिव आदि देवता और बड़े-बड़े योगी ऋषि महर्षि ना पा सके तो सांसारिक मनुष्य की बात ही क्या है मेरा भेद पाने के लिए ऋषि जनों को तरह-तरह के मार्ग दिखाई देते हैं जब वह मेरे भेद का थोड़ा हंस प्राप्त कर लेते हैं तब उसका चंचल मन स्थिर हो जाता है फिर तन्मय होकर मेरे स्वरूप का ध्यान करते हैं प्रभु के वचनों को सुनकर उद्धवजी हाथ जोड़कर विनती भाव से बोले हैं स्वामी आप जगत आत्मा है आप ही तीन लोकेश्वर हैं हे भगवान आप की कृपा जिसे प्राप्त हो जाती है वह प्राणी भाव बंधन से मुक्त होकर परम पद को प्राप्त होता है शत्रुओं का भाव रखने वाला प्राणी का भी आप उद्धार करते हैं आप परम पिता परमेश्वर हैं हे जगदीश्वर आप उस स्वरूप का उपदेश करें जिससे प्राप्त करने के लिए शिवाजी श्रेष्ठ देवता तरसते हैं तभी योगियों के योगी महा योगेश्वर भगवान बोले हे प्रिय उद्धव शकल संसार में नव तत्व विद्यमान है जिसे महत्वम् कार पृथ्वी जल वायु अग्नि आकाश और माया कहते हैं माया वह तत्व है जिसे वशीभूत होकर प्राणी कर्म पथ से विचलित हो जाता है जो माया के वश में होता है उसका परलोक लोग दोनों बिगड़ जाता है तत्वों के अलावा 11 इंद्रियां हैं और पांच कर्मेंद्रियां हैं इन सबके स्वामी को आत्मा कहा जाता है तब तत्वों को बनाने वाला तथा संचालित करने वाला अधिकता माय हूं जब सभी तत्व नष्ट हो जाते हैं तब वह विशेष तत्व से बचता है जिसे आत्मा तत्व कहते हैं आत्मा तत्व को ही ब्रह्म आ जाना चाहिए यह उद्धव या मनुष्य मेरी माया से छुटकारा अपने स्वामी को समझने लगता है तब उसका मन भटकता नहीं है वह मुझे पहचान लेता है और आपने मन अपनी आत्मा को मेरे ही चरणों में लगा देते है यही मुक्ति का मार्ग नियम है यह उद्धव मृत्यु काल के समय मनुष्य का मन जीत और रहता है अर्थात जिस और जिस और अपना मन लगता है ऋतु के पश्चात उसी धन को प्राप्त करता है तब उद्धव जी बोले हे स्वामी यम नियम सम दम टिक आदि का विस्तार पूर्वक निरूपण करें तो आपकी अति कृपा होगी और यह भी बताएं कि त्याग किया है उद्धव के प्रश्नों को सुनकर वासुदेव भगवान प्रसन्न होकर अपनी कृपा का रसपान करते हुए बोले यह उद्धव तुमने अति उत्तम प्रसंग को जानने की इच्छा व्यक्त की है सांसारिक मनुष्य में ऐसा विचार कम होते हैं तुमने शाम दम दम टिक आदि के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की है तो सुनो सत्य अहिंसा बुरी संगत से दूर रहना चोरी को पाप समझना अस्तित्व होना मौन रहकर ध्यान करना ब्रह्मचर्य पालन क्षमाशील होना आदि यम है जब तक श्रद्धा भक्ति घर आए अतिथि की विलास भाव से सेवा करना पूजा पाठ करना परोपकार और पवित्र तीर्थों की यात्रा करना आदि नियम है इस विधि पूर्वक पालन करने वाला प्राणी सुखी होता है घबराहट को सहन करना धैर्य कहलाता है साधु जनों में धैर्य होना अति आवश्यक है लोगों का त्याग करता है अपनी इंद्रियों को वश में रखने वाले प्राणी को शूरवीर समझो इच्छाओं का त्याग जिसने किया वह सन्यासी है यह उद्धव प्रतीक्षा उस वस्तु का नाम है जो प्राणी के अंदर नई-नई भावनाओं को जन्म देते हैं अतः तिजना से बचे यही कल्याण का मार्ग है
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Shrimad Bhagwat Katha Purana 11th Canto Chapter 18 Beginning
exhortation to obey the rules
Lord Shyam Sundar ji said O Uddhav, my illusion is limitless, my illusion is beyond Brahma Shiva etc. Gods and great yogis, sages, Maharishi can't find it, then what is the matter of worldly man. Appears when he gets a little goose of my secret, then his fickle mind becomes stable, then meditates on my form with full attention, after listening to the words of the Lord, Uddhavji with folded hands said with a pleading gesture, Swami, you are the soul of the world. There are only three worlds, O God, the one who gets your grace, that creature gets free from the bondage of feelings and attains the supreme position. Preach, to achieve which Shivaji the best deity yearns, only then Yogi Yogi Maha Yogeshwar Bhagwan said, O dear Uddhav Shakal, there is a new element present in the world, which is called earth, water, air, fire, sky and Maya. Karma deviates from the path which is under the control of Maya Apart from the elements, there are 11 senses and five organs of action, the master of all these is called the soul, then the creator and operator of the elements is mostly Maya. What remains is the soul element, the soul element itself should come to Brahma. This Uddhava or man, getting rid of my illusion, starts understanding his master, then his mind does not wander, he recognizes me and you put your mind and soul at my feet. This is the path of salvation, this is the rule, this Uddhav, at the time of death, the mind of a man wins and lives, that is, whoever and what his mind thinks, he gets the same wealth after the season. If you describe Tik etc in detail, then you will be very kind and also tell that you have renounced. Hearing the questions of Uddhav, Lord Vasudev was pleased and showered his grace and said, Uddhav, you have expressed your desire to know the very best worldly matter. Such thoughts are rare in humans I have expressed my desire to know, then listen, truth, non-violence, staying away from bad company, considering theft as a sin, existence, meditation by remaining silent, following celibacy, being forgiving, etc. Yama is Yama till the time devotion comes home, serving the guest with luxury, worshiping, reciting charity And traveling to holy pilgrimages etc. is a rule. One who follows this method is happy. Tolerating anxiety is called patience. The one who renounces the desires is a Sanyasi. This Uddhav Pratiksha is the name of that thing which gives birth to new feelings inside the creature, so this is the way of welfare to avoid Tijna.
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