श्रीमद् भागवत कथा पुराण 11 वा स्कंद अध्याय 14 आरंभ
भक्ति योग साधना और गीता का प्रसाद
उद्धव को ज्ञान का प्रसाद प्रदान करते हुए श्री मुरली मनोहर बोले हैं उन ताऊजी देववाणी महाप्रलय आने पर लुप्त हो जाती है पुनः सब सृष्टि का निर्माण होता है तो उस समय अपने संकल्प से ब्रह्मा की उत्पत्ति कर के उपदेश करता हूं तत्पश्चात ब्रह्मा से स्वयं अनुभव मनु उसे ब्रिज अंगिरा पुलसा अधिष्ठात्री ज्ञान का उपदेश व प्रजापति ने अपनी संतानों को आदेश की किया इस तरह वेद वाणी का विस्तार हुआ युद्ध मेरी माया के वशीभूत होकर सब प्राणियों एवं देवताओं आदि की बुद्धि में रहती है उसी के अनुसार कल्याण के साधन भी है मेरे शरण में आया हुआ भक्त निर्भर होता है क्योंकि वह अपना सर्वोच्च मुझे समर्पित करके बेपरवाह हो जाता है तथा बड़ी-बड़ी सिद्धियों और मोक्ष की कामना भी नहीं करता है उद्धव तुम मेरे परम प्रिय भक्त हो अतः मैं तुम्हें श्रीमद्भागवत गीता के महा ज्ञान का उपदेश करता हूं जिसका उद्देश्य ने महाभारत की युद्ध के समय अर्जुन को उत्पन्न होने के समय दिया था आता ध्यानपूर्वक सुनो जीवो में वाणी बनकर मैं बोलता हूं माही आदि हूं और मैं ही अंत हूं चक्रधारी विष्णु मैं ही हूं देवताओं में ब्रह्मा रूद्र में महादेव शिव मृत्यु का स्वामी यमराज माही मैं सृष्टि की रचना करता हूं और अंत में उन्हें स्वरूप में विलीन कर लेता हूं पंचतत्व में आग निकलने में कामधेनु प्रजापति के मैं दक्ष हूं हे भक्तराज चारों वादियों में ब्राह्मण आश्रमों में सन्यासी ऋषि यों में महर्षि हूं तारा गांव में चंद्रमा वेद में सामवेद नदियों में गंगा और हाथों में एरावत यज्ञ से प्रकट होकर यज्ञ कराने वाला प्राणी को यज्ञ का अभीष्ट फल देने वाला यज्ञ भगवान की जो कामना करते हैं वह यज्ञ भगवान मैं ही उप रोहित में वशिष्ठ राज राज ऋषि यों में स्वयंभू मनु योग में सत्य और स्त्रियों में शतरूपा सेवक में हनुमान वेद ऋषि महाराज वक्ता में वेद व्यास और नवग्रह में बृहस्पति हूं है उद्धव मैदानों में महादानी राजा बलि हूं मैंने ही दान दिया था और लिया भी वृक्षों में पीपल हूं सांसारिक मनुष्य जिसकी पूजा करके जल देते हैं वह मंत्रों में महामंत्र ओम हूं विष्णु में कपिल हूं देवों में भक्त पहलाद और सुर वीरों में मैं परशुराम विद्यमान शुक्राचार्य गंधर्व विश्वामित्र और पांडवों में धनुष धारी अर्जुन का स्वरूप मेरा है वेद शास्त्रों में गायत्री ऋतु में बसंत और पुस्तकों में कमल मेरे ही स्वरूप का सारा जगत है और प्रत्येक शमा यदुवंशियों में वासुदेव कृष्ण के स्वरूप मैंने तुम्हें उपदेश कर रहा हूं कि उद्धव भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को ज्ञान दिया था वह संसार के लिए उत्तम एवं कल्याणकारी है भीष्मा पितामह सरसैया बाणों की शैया पर पड़े थे उस समय धर्मराज युधिष्ठिर ने उनके निकट जाकर प्रणाम किया और बोले हैं पितामह आप मुझे ज्ञान का उपदेश दे जो संसार के लिए हितकारी हो उस समय भीष्मा जी के होठों पर छेड़ मुस्कान आई और बोले हे पुत्र युधिष्ठिर ज्ञान चार प्रकार से प्राप्त होता है प्रथम कथा पुराणों के श्रवण से दूसरा अन्य लोगों की मृत्यु देखकर अपनी मृत्यु का ध्यान करने से तीसरा सत्संग और ऋषि-मुनियों की सेवा करने से और चौथा संसार इक व्यवहार से है धर्मराज युधिष्ठिर तुम सत्यवती और धर्म पालक हो जीवन में सदैव धर्म की रक्षा करना ही मेरी आज्ञा और आशीर्वाद है इतना कह कर पितामह भीष्म चुप हो गए तत्पश्चात युधिष्ठिर ने नतमस्तक होकर उन्हें प्रणाम किया आरोप वापस लौट आए इस तरह उद्धव को समझाते हुए श्री श्याम सुंदर ने कहा हे उद्धव सांसारिक इच्छाओं को त्याग कर जो प्राणी ज्ञान मार्ग अपनाकर मेरे श्री चरणों से प्रतीत करते हैं उन्हें उत्तम गति प्राप्त होने में किस प्रकार का संदेह नहीं है
TRASLATE IN ENGLISH
Shrimad Bhagwat Katha Purana 11th Skanda Chapter 14 Beginning
Bhakti Yoga Sadhana and Offerings of the Gita
While giving Prasad of knowledge to Uddhav, Mr. Murli Manohar has said that Tauji Devvani vanishes when the great holocaust comes, the whole universe is created again, so at that time I create Brahma with my resolution and preach, after that I experience Manu from Brahma myself. Brij Angira Pulsa Adhishthatri preached knowledge to him and Prajapati ordered his children, in this way the Veda Vani expanded, the war is influenced by my illusion and lives in the intellect of all the creatures and gods etc. The devotee who comes to Me is dependent because he surrenders his supreme being to Me and becomes careless and does not even wish for great achievements and salvation. Whose purpose was given to Arjuna at the time of the war of Mahabharata at the time of his birth, come, listen carefully, I speak as a voice among living beings, I am Mahi etc. Lord Yamraj Mahi, I create the universe and finally merge them into form; Appearing in the Samaveda rivers Ganga and Airavat in the hands, the one who performs the yagya, the one who gives the desired fruit of the yagya to the living being, the Yagya God, what the Yagya desires, is the Yagya God, Vashishtha Raj, Raj Rishis, Swayambhu Manu, Truth in Yoga and Among women I am Shatrupa Sevak, Hanuman, Ved Rishi Maharaj, Ved Vyas, among Navagrahas, Jupiter, among Navagrahas, I am Uddhav, great donor, King Bali, I gave and took donations, among trees I am Peepal; I am Kapil in Vishnu, I am Kapil in Devas, Pahlad in Devas, Parshuram in Sur, Shukracharya, Gandharva, Vishvamitra, and Arjuna in Pandavas, I am my form, Gayatri in Vedas, Spring in season, Lotus in books, my form. There is the whole world and in the form of Vasudev Krishna in every Shama Yaduvanshi, I am preaching to you that Uddhav Bhishma Pitamah had given knowledge to Yudhishthira, he is the best and welfare for the world. He went near him and bowed down and said, 'Father, please teach me knowledge which is beneficial for the world. At that time, a smile came on Bhishma ji's lips and said, O son Yudhishthir, knowledge is obtained in four ways, the first story is by listening to the Puranas. Second, seeing the death of other people, meditating on one's own death, third, satsang and serving sages, and fourth, the world is due to one's behavior. Having said this, grandfather Bhishma became silent, after which Yudhishthira bowed down and bowed down to him; they have no doubt in getting the best speed
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