श्रीमद् भागवत कथा पुराण 11 वा स्कंध अध्याय 13

श्रीमद् भागवत कथा पुराण 11 वा स्कंध अध्याय 13 आरंभ

सनकादिक ऋषि यों को दिए गए उपदेश का वर्णन



श्री कृष्णा जी बोले हैं उद्धव इंद्रियों को वश में करने से आष्टा सिद्धियां प्राप्त होती है अष्ट सिद्धियों के आठ अलग-अलग गुण है प्रथम सीधी का गुण है कि मनुष्य दी आकांक्षा करे तो आपने आपको बालक के समान कर ले दूसरी सिद्धि से बड़ा मनाले तीसरे सिद्धि से मनुष्य स्वयं को रुके सामान हल्का करके वायु में उड़ सकता है चौथी सिद्धि के अनुसार भारी ब सकता है पांचवें सिद्धि के प्रभाव से एक स्थान पर बैठकर हजारों को सिंदूर की वस्तु देख सकता है साथ में सिद्धि ऐसी है जिसमें मनचाही वस्तु क्षण मात्र में काम ना करने से उपस्थित हो जाती है और आठवीं सिद्धि का ज्ञान ऐसा है जिससे देवताओं को अपने वश में किया जा सकता है इन सिद्धियों के अलावा 486 है जिसे योग अभ्यास द्वारा प्राप्त किया जाता है और सबका दाता मैं हूं है उद्धव यह जीव अज्ञान के कारण सब कुछ भूल जाता है कि मैं क्या करूं अज्ञान के कारण काम के वशीभूत होकर अनेक कार्य कर है और सुख इच्छा करता है किंतु उसकी विपरीत फल प्राप्त होता है जो अत्यंत कष्ट दाई होता है वह विवेकी मनुष्य सदैव अपने हृदय की चंचलता को वश में रखता है और उत्तम कर्म करता है मुझसे प्रतीत करने वाले साधक को यह उचित है कि मेरे स्वरूप का चिंतन करें और धीरे-धीरे अपने मन को दोहराने से होकर मेल में लगवाए मन इतना चंचल होता है कि एक बार में सफलता नहीं मिली किंतु असफलता से ना घबराए और बार-बार प्रयास करके यदि फिर भी मन स्थिर ना हो तो योगियों के समान भाषण लगाकर एकांत में बैठकर अपनी दोनों आंखें बंद कर ले और अपने लाख दोनों आंखों के मध्य ऊपर भाग को देखने का प्रयास करें इस तरह मन की चंचलता समाप्त होकर एकाग्रता की ओर अग्रसर होगा तत्पश्चात धीरे धीरे मेरे स्वरूप का ध्यान करें जो प्राणी सुधीर दे और सत्य मन से मेरी महिमा का श्रवण करता है उसे प्रथम सिद्धियों की प्राप्ति होती है जो प्राणी अग्नि जल वायु पृथ्वी और आकाश का ध्यान करते हैं उसे दूसरी सिद्धि मिलती है मेरी अंगूठी प्रणाम चतुर्भुज स्वरूप का ध्यान करके उसे छठ में सिद्धि और वासुदेव स्वरूप का ध्यान करने से आंख में सिद्धि प्राप्त होती है जो मनुष्य अपनी शरीर में स्थित परमात्मा का ध्यान करता है उसे हजारों को दूर की आवाज सुनाई देती है योगाभ्यास द्वारा हिर्दय ज्योति का ध्यान करने वाले प्राणी इच्छा अनुसार स्वरूप धारण करने का सामर्थ प्राप्त होता है है उद्धव एक बार ब्रह्माजी के मानस पुत्र मन की इच्छा से उत्पन्न हुए पुत्र सनकादिक ऋषि यों ने पूछा है पिता यह चित सदैव विषयों में फंसा रहता है विषय और चित्त सदा घुले मिले रहते हैं इसे पृथक नहीं किया जा सकता अतः ऐसी परिस्थिति में मनुष्य विषय बोगियों से लिप्त रहता है इन्हें पृथक करने का क्या उपाय है सनकादिक ऋषि यों से वचन सुनकर ब्रह्मा जी विचार करने लगे किंतु निर्णय ना कर सके उस समय आध्यात्मिक स्वरूप में मेरा चिंतन किया कि है स्वामी इनके प्रश्नों का उत्तर देने में सक्षम नहीं कृपा करके आप कर पुरुषों को संतुष्ट करें जब मैं उपस्थित हुआ तो सनकादिक ऋषि यों ने पूछा आप कौन हैं ऋषि यों का प्रश्न सुनकर मैंने कहा है रिसीव यदि तुम यह प्रश्न आत्मा के विषय में कर रहे हो तो आत्मा एक है आत्मा के विषय में यह प्रश्न करना पूर्ण करने से अनुचित है कि तुम कौन हो यदि तुम्हारा प्रश्न शरीर से है तो या शरीर पांच तत्वों से बना है और पंच तत्वों में मेरा हंस विद्यमान है पता तुम कौन हो का प्रश्न निरर्थक है तत्व वाणी मन सृष्टि से जो कुछ भी दिखाई देता है वह मैं हूं सृष्टि में कोई भी वस्तु मुझसे अलग नहीं है

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Shrimad Bhagwat Katha Purana 11th Canto Chapter 13 Beginning

Description of sermon given to Sankadik sages

Shri Krishna ji has said that by controlling the Uddhav senses, Ashta Siddhis are achieved. There are eight different qualities of Ashta Siddhis. With Siddhi, a man can lighten himself and fly in the air, according to the fourth Siddhi, he can become heavy, due to the effect of the fifth Siddhi, he can see thousands of vermilion objects while sitting at one place. It becomes present by not doing work and the knowledge of the eighth siddhi is such that the gods can be controlled. Apart from these siddhis, there are 486 which are obtained by yoga practice and I am the giver of all, Uddhava, this creature of ignorance The reason forgets everything that what should I do, due to ignorance, being influenced by lust, he does many things and desires happiness, but he gets the opposite result, which causes a lot of pain. keeps and does good deeds as it seems to me It is appropriate for a devotee to contemplate my form and slowly by repeating his mind, by repeating it, the mind is so fickle that it does not get success in one go, but do not be afraid of failure and try again and again, if still If the mind is not stable, then after speaking like yogis, sit in solitude, close both your eyes and try to see the upper part between your two eyes, in this way the restlessness of the mind will end and move towards concentration, after that slowly my form. Meditate on the creature who meditates and listens to my glory with a true mind, he gets the first achievements, the creature who meditates on fire, water, air, earth and sky, he gets the second achievement. By meditating on Siddhi and Vasudev Swaroop in Chhath, one attains Siddhi in the eye. One who meditates on the Supreme Soul in his body hears the sound of thousands in the distance. gets the power of And once the son Sankadik, the son of Brahmaji, who was born from the desire of the mind, has asked the father, this chit is always entangled in the subjects, the subjects and the mind are always mixed, it cannot be separated, so in such a situation, man becomes the bogey of subjects. What is the way to separate them? After listening to the words of Sankadik sages, Brahma ji started thinking but could not decide. Satisfy men When I appeared Sankadik sages asked who are you Hearing the question of sages I have said receive If you are asking this question about the soul then the soul is one It is inappropriate to know who you are if your question is with the body or the body is made of five elements and my goose is present in the five elements; the question of who you are is meaningless; I am nothing in the universe apart from me

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