श्रीमद् भागवत कथा पुराण 11 वा स्कंध अध्याय 12 आरंभ
भक्त और भक्ति का भेद तथा सत्संग की महिमा
उद्धव जी के वचनों को सुनकर भगवान श्री कृष्णा चंद्रा ने कहा हे भक्तराज मेरा भक्त वेयर रहित एवं कृपा का सागर होता है यदि कोई उसका हित करे तो वाह भी वहां क्रोधित नहीं होता मेरा भक्त सत्यवती होता है और विकट परिस्थिति उत्पन्न होने पर भी नहीं घबराता है उसे मेरे ऊपर भरोसा होता है कि श्री नारायण मेरे साथ है परोपकार और दूसरों का दुख बांटने में मेरी भक्तों को संतोष मिलता है मेरे भक्तों सदैव शुद्ध और सरल हिर्दय वाले होते हैं किसी भी प्राणी के प्रति उसके हृदय में द्वेष नहीं होता ऐसा लोग आठ सिद्धियां और नौ निधियां प्राप्त करके भी उनकी और नहीं दिखते अहंकार होम केतन में प्रवेश नहीं कर पाता मेरा भक्त प्रेम की मूर्ति होती है उन्हें मेरे चरणों के सिवा कोई वस्तु दिखाई नहीं देती दुष्ट प्रकृति वाले प्राणियों में भी मेरे भक्तों मेरे ही स्वरूप का दर्शन पाते हैं कि उद्धव भक्ति का स्वरूप यह है कि मेरी मूर्ति स्थापित करके प्राणी स्नानादि से शुद्ध होकर आराधना करें और मेरे गुणों की कीर्तन करें और जन्माष्टमी रामनवमी आदि तिथियों पर रथ यात्रा निकाले मेरे मंदिर को बुहारे लीपे पुते तत्पश्चात आरती करें और मेरी कथा का श्रवण करते समय प्रेम भाव में मग्न होकर रोने लगी यही भक्ति है यह उद्धव भक्तों के समान प्रिय मुझे अन्य कोई नहीं है लक्ष्मी शिवजी ब्रह्मा जी आदि भी मुझे भक्तों के समान प्यारे नहीं है यदि मेरा कोई वक्त कभी संसारी माया में फस जाता है उस समय में उसके हृदय में ज्ञान ज्योति जलाकर पथ से विचलित होने से रोक कर पुनः सन्मार्ग प्राप्त करता भक्तों के लिए सत्संग सबसे सरल मार्ग है शासन से सारी और शक्तियों का विनाश हो जाता है तब मनुष्य इंद्रियों के वश में नहीं रहता इंद्रियों उसके वश में हो जाता है फिर वह एकाग्र होकर भजन पूजन करता है या अपराध तीर्थ शादी में वश में नहीं होता मुझे वश में करने का एकमात्र साधना है सत्संग सत्संग से प्रेम होकर भक्तों के पास नंगे पांव भाग आज चलता आता है जैसे विप्र सुदामा के आगमन पर पड़ा था उस समय सुदामा की दशा देखकर मेरी प्राणियों को अत्यंत आश्चर्य हुआ कि इस चरित्र के लिए भगवान नंगे पांव दूर कर गए थे यह उद्धव शासन से पहलाद विश्वकर्मा यादव सुग्रीव हनुमान आदि ने मुझे प्राप्त किया यदि तुम यह विचार करते हो कि ब्रज की गवार गोपियों ने मुझे कैसे प्राप्त किया जब वह दान यज्ञ पूजा आदि नहीं करती थी तो वह अज्ञानी थी ना तो वे वैध जानती थी और ना ही हो पुराण सत्संग का सौभाग्य भी उन्हें नहीं प्राप्त हुआ है उद्धव गोपियों के प्रेम के वश में होकर मैं उनके साथ नाश्ता था तुमने स्वयं वहां जाकर उनके प्रेम की परीक्षा ली और उन्हें धन्य कहा उनके भाव की सराहना की जो गोपियां मेरे वास्तविक स्वरूप को नहीं जानती थी वह मुझे अपना प्रियतम और पति समझती थी अतः तुम्हें यह उचित है कि वेद शास्त्र की विधियों के चक्कर में ना पढकर अपना सर वस्त्र मुझे समर्पित कर दो तुम्हारा कल्याण होगा तब उद्धव जी हाथ जोड़कर कहने लगे हैं स्वामी अभी मेरे मन में संयम है कि मुझे अपने धर्म का पालन करना चाहिए अथवा सब कुछ त्याग कर आप की शरण में होना चाहिए कृपा करके मेरा यह संदेह दूर करें
TRANSLATE IN ENGLISH
Shrimad Bhagwat Katha Purana 11th Canto Chapter 12 Beginning
The difference between devotee and devotion and the glory of satsang
After listening to the words of Uddhav ji, Lord Shri Krishna Chandra said, O Bhaktraj, my devotee is fearless and an ocean of grace, if someone does good to him, he does not get angry even there. He has faith in me that Shri Narayan is with me, my devotees get satisfaction in benevolence and sharing the sorrows of others. Even after attaining siddhis and nine nidhis, their ego is not able to enter Homa Ketan. My devotee is an idol of love, they cannot see anything except my feet. It is said that the form of Uddhava bhakti is that by installing my idol the living beings worship me after getting purified by bathing and chanting my virtues and take out chariot yatras on Janmashtami, Ramnavami etc., sprinkle my temple with plaster and then perform aarti and recite my story. While doing Ravan, she started crying in love. By burning the light of knowledge in his heart, he stops getting distracted from the path and regains the right path. Satsang is the easiest way for the devotees. Rule destroys all other powers, then man does not remain under the control of the senses, the senses become under his control. Is it then he worships bhajans with concentration or crime pilgrimage is not under control in marriage the only way to control me is satsang, being in love with satsang, he walks barefoot to the devotees today as Vipra was lying on the arrival of Sudama. My creatures were very surprised to see the condition of time Sudama that for this character God had removed me barefoot. How did you get it when there is no charity, yagya, worship etc. She was ignorant, neither did she know it to be valid, nor did she have the good fortune of Puran satsang. Called him blessed, appreciated his spirit, the gopis who did not know my real nature, considered me as their beloved and husband, so it is right for you that instead of reading about the methods of Veda Shastra, dedicate your head cloth to me, you will be well. Then Uddhav ji folded his hands and started saying, Swami, I still have restraint in my mind whether I should follow my religion or leave everything and be in your shelter, please remove this doubt of mine.
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