श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 88 आरंभ
भगवान शंकर से भस्मासुर का वरदान प्राप्त करने की कथा
राजा परीक्षित ने कहा है महात्मा किस कारण से श्री हरि नारायण के भक्त निर्धन और शिव जी के भक्त धन संपत्ति और ऐश्वर्य से पूर्ण होते हैं तब श्री सुखदेव जी बोले हे राजन श्री नारायण अपने भक्तों को लक्ष्मी हिना कर लेते हैं क्योंकि दरिद्रता प्राप्त होने पर प्राणी धन कमाने की चेष्टा करता है किंतु बारंबार असफल होने पर श्री नारायण की शरण में आ जाता है तब भगवान उसे अपने भक्ति देकर जीवन मरण के बंधन से मुक्त कर परमधाम भेज देते हैं किंतु भोला दानी की पूजा करने वाले प्राणी अहंकारी होता है क्योंकि जो कोई उसकी तपस्या करता है उस प्राणी पर हुए अति शीघ्र प्रसन्न होकर उन्हें मनचाहा वरदान प्राप्त कर देते हैं वरदान पाकर वह बलराम और ऐश्वर्य शाली हो जाता है हे राजन भगवान शंकर जी तपस्या कर वरदान भागने वाले विरा कसूर की कथा में सुनाता हूं एक बार शंकु नृत्य के पुत्र बकासुर के मन में यह इच्छा उत्पन्न हुई कि 1 में चलकर तपस्या करो जिस समय वह तब करने के लिए वन में जा रहा था मार्ग में देवर्षि नारद मिले उन्हें देखकर वा कसूर ने दंडवत प्रणाम किया और विनीत स्वर में बोला है यह देवर्षि आप सर वस्त्र मुक्त अवस्था में विचरण करते हैं देवलोक ब्रह्म अलोक 7 लोग आदि स्थान पर आप किसी भी समय आ जा सकते हो सभी देवताओं और ब्रह्मा विष्णु महेश के स्वरूप को जानते हैं यह देवर्षी देवताओं में सर्वश्रेष्ठ कौन है मैं किसकी तपस्या करूं जिससे मेरा मनोरथ पूर्ण को बकासुर के वचन को सुनकर देवर्षि नारद भोले देवराज तुम भगवान शंकर की तपस्या करो क्योंकि भगवान शंकर अति शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं रामायण बाणासुर आदि महा वीरों ने शिवजी की उपासना करके वरदान प्राप्त किया था परीक्षित महाराज जी के वचनों को स्वीकार कर वाका सोने शुद्ध मन से हवन कुंड तैयार किया और शिव जी की तपस्या करने लगा और हवन कुंड में अपने शरीर का मांस काट काट कर आहुति देने लगा 7 दिन तक हवन करने के उपरांत भी उसे शिव जी के दर्शन ना हुए तब वह वाक्य अधिक अधीर होने लगा तब उसने स्नान कर शरीर को शुध्द किया और कुल्हाड़ी लेकर हवन कुंड के सम्मुख गया उसके मन ही मन निश्चय किया कि अब मैं भगवान शिव जी के चरणों में अपना मस्तक अर्पित कर लूंगा यह विचार कर उसे यूं ही कुल्हाड़ी अपने मस्तक पर चलाया उसी समय शिवजी प्रकट हुए और बोले हेवा कसूर हम तेरी दृढ़ निश्चय और भक्ति से प्रसन्न है उस समय शिव जी की दिव्य दृष्टि सेवा का शुरू के धन का घाटा हुआ भाग अच्छा हो गया दवा कसूर ने हाथ जोड़कर कहा हे प्रभु आपने कृपा करके मुझे दर्शन दिया मैं धन्य हो गया हूं उस समय शिवजी भोले आदित्य राज मेरा दर्शन निरर्थक नहीं होता मैं तेरी भक्ति का फल देने के लिए प्रगट हुआ हूं अतः वर मांगो भगवान के भजन को सुनकर वा कसूर ने कहा हे प्रभु आप मुझे यह वरदान दें कि मैं जिसके सिर पर हाथ रख दूं वह उसी पल जलकर भस्म हो जाए यह सुनकर शिव जी ने तथास्तु खाकर वर प्रदान किया बर पाकर बकासुर अत्यंत प्रसन्न होकर भोला हे शिव शंकर तुमने मुझे वरदान देकर बहुत अच्छा किया अब मैं तुम्हारे सिर पर हाथ रखकर तुम्हें भस्म करूंगा मैं जानता हूं तुम्हारी स्त्री पार्वती बहुत सुंदर है जब तुम भस्म हो जाओगे तब मैं उसे प्राप्त कर लूंगा और सुख पूर्वक रहूंगा यह करवा कासूर वरदान पाने से उसका नाम भस्मासुर हो गया ने शिवजी को बाहर करने की नियत से उनकी ओर दौड़ा तब शिवजी भयभीत होकर भाग चले सर्वप्रथम हुए भाग कर दो लोग उसके बाद फिर समस्त भूमंडल पर चक्कर काटने लगे परंतु कहे उन्हें शरण ना मिली तब वह चारों ओर से निराश हो गए तब वे भागकर बैकुंठ लो गए उन्हें आता हुआ देख त्रिभुवन पति हंसकर कहने लगे हे भोला शंकरा वैकुंठ लोक में तुम्हारा स्वागत है तब शिवजी विनय भाव से कहने लगे हे जगदीश्वर भस्मासुर को वरदान देकर मैंने स्वयं अपने लिए संकट उत्पन्न किया है मैं आपकी शरण में हूं आप मेरी रक्षा करें शिव जी के वचन को सुनकर श्री नारायण ने हंसकर कहा आपका स्वभाव रानियों जैसा है अति शीघ्र प्रसन्न होकर वरदान देना आपका स्वभाव श्री नारायण श्री कृष्णा ने सन्यासी का वेश धारण किया हाथ में कमंडल और मिल्क छाला लेकर भागते चले आ रहे भस्मासुर के सम्मुख पहुंचकर बोले हैं महावीर महाबली देव विराज इसी घड़ी कहां दौड़ते जा रहे हो तुम्हारे मुख मंडल पर पसीने की बूंदें साफ दिखाई दे रही है जिससे प्रतीत होता है कि तुम बहुत थके हुए हो मुख मंडल भी मालिन हो रहा है अतः थोड़ी देर विश्राम कर लो तब श्री नारायण के वचन को सुनकर वापस तूने उन्हें सिद्ध महात्मा समझकर कहने लगे हैं महात्मा इस घड़ी यदि मैं ने विश्राम किया तो मेरा बना बनाया कार्य बिगड़ जाएगा अतः मैं विश्राम नहीं करूंगा या काकरवा आगे बढ़ने को उदित हुए तब श्री कृष्ण चंद्र ने कहा हे देवराज ऐसी विपत्ति आई है जिससे की एक घड़ी विश्राम नहीं करते हे राजा परीक्षित उनके वचनों को सुनकर बकासुर ने सारा वृतांत बतलाए तब अंतर्यामी भगवान हंसकर कहने लगे हैं देते शिरोमणि तुम भी महामूर्ख हो उस भाग धतूरा खाने वाले शंकर के वचनों पर विश्वास करते फिर रहे हो वह नागनाथ शंकर भूत प्रेत ताल के संगी साथी हैं दक्ष प्रजापति के श्राप के कारण अब उसे वरदान अथवा शराब देने की शक्ति नहीं रही यदि तुम्हारे मेरे वचनों पर विश्वास नहीं है तो स्वयं अपने सिर पर रखकर सत्य रख लो यदि उसकी बात असत्य होती है तो अवश्य जाकर ढूंढ दो उनकी वचनों को सुनकर भागा चोर का हिर्दय चंचल होने लगा उसने विचार किया कि शायद यह सन्यासी सत्य कह रहा है प्रभु की माया के चक्कर में फस कर भस्मासुर में अपना हाथ यूं ही अपने सिर पर रखा उसी समय जलकर भस्म हो गया उस समय जयघोष करते हुए देवताओं ने पुष्प वर्षा की तरफ शिवजी के निकट जाकर त्रिलोकीनाथ कहने लगे हे भोलेनाथ वा कसूर के अशुभ कर्म ही इसकी मृत्यु के कारण बने
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Shrimad Bhagwat Katha Purana Tenth Canto Chapter 88 Beginning
The story of getting Bhasmasur's boon from Lord Shankar
Raja Parikshit has said Mahatma, why the devotees of Shri Hari Narayan are poor and the devotees of Shiva are full of wealth and opulence, then Shri Sukhdev ji said, O king, Shri Narayan makes his devotees look like Lakshmi because on attaining poverty The creature tries to earn money, but fails again and again, comes to the shelter of Shri Narayan, then God gives him devotion and frees him from the bondage of life and death and sends him to the supreme abode, but the creature who worships Bhola Dani is arrogant because Someone does penance for him. The desire arose in the mind of Bakasur, the son of Nritya, to do penance by walking in 1. At the time when he was going to the forest to do that, on the way he met Devarshi Narada, seeing him, Va Kasura bowed down and said in a humble voice, this Devarshi You walk around in a clothes-free state These are Devlok Brahma Alok 7 people etc. You can come at any time. Devarshi Narad Bhole Devraj, do penance to Lord Shankar, because Lord Shankar is very pleased and fulfills the wishes of his devotees. The great heroes of Ramayana, Banasur, etc., obtained a boon by worshiping Lord Shiva. He prepared the Havan Kund and started doing penance for Shiva and cut his flesh and offered it in the Havan Kund. After bathing he purified his body and went in front of the Havan Kund with an axe. He decided in his mind that now I will surrender my head at the feet of Lord Shiva, thinking that he just put the ax on his head, at the same time Shivji appeared. And said heva kasoor, we are your strong determination. Pleased with the power, at that time the divine vision of Shiv ji started the service, the lost part of the money got cured, the medicine, the fault, said with folded hands, O Lord, you have blessed me by your grace, I have become blessed, at that time Shivji Bhole Aditya Raj, my darshan It doesn't become futile, I have appeared to give you the fruit of your devotion, so ask for a boon after listening to God's hymn or the fault said, O Lord, give me this boon that on whose head I put my hand, he burns to ashes at the same moment. Shiv ji gave a boon after eating tahastu Bakasura was very happy after getting boon O Shiv Shankar you have done a great job by giving me a boon now I will burn you by placing my hand on your head I know your wife Parvati is very beautiful when you will be reduced to ashes I will get him and I will live happily. After getting this boon, his name became Bhasmasur. He ran towards Shivji with the intention of driving him out. Then Shivji ran away in fear. Started biting but said that he did not get shelter, then he got disappointed from all sides. They ran away and took him to Vaikunth, seeing him coming, Tribhuvan husband laughed and said, O Bhola Shankara, you are welcome in Vaikunth Lok, then Shivji humbly said, O Jagdishwar, by giving a boon to Bhasmasur, I have created trouble for myself, I am in your shelter. Please protect me, listening to the words of Lord Shiva, Shri Narayan laughed and said, "Your nature is like that of a queen. It is your nature to be pleased very quickly. It is your nature to give boons." After reaching in front, he said, Mahavir Mahabali Dev Viraj, where are you running at this moment, drops of sweat are clearly visible on your face, which seems that you are very tired, the face is also getting dirty, so take rest for a while. Then after listening to Shri Narayan's words, you started saying that considering him as a perfect Mahatma, Mahatma, if I rest at this moment, my work done will be ruined, so I will not rest or Kakarva got up to move forward, then Shri Krishna Chandra said. Devraj such a calamity After listening to his words, King Parikshit, Bakasur told the whole story, then the inner God started laughing and said, O Lord, you are also a great fool, believing the words of Shankar, who eats that part of Dhatura. Nagnath Shankar is a companion of Bhoot Pret Tal because of the curse of Daksh Prajapati, now he does not have the power to give boon or liquor. If you do not believe my words, keep the truth on your head. Go and find him. Hearing his words, the thief's heart started to fickle. He thought that perhaps this ascetic was telling the truth. Trapped in the illusion of the Lord, Bhasmasur just put his hand on his head and was burnt to ashes at the same time. While chanting the time, the deities went near Shivji towards the rain of flowers and said to Trilokinath, O Bholenath or the inauspicious deeds of the guilty became the reason for his death.
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