श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 87

श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 87 आरंभ

श्री हरि नारायण की स्तुति



राजा बहु लक्ष्य एवं श्री त्रिदेव ब्राह्मण की कथा सुनने के उपरांत राजा परीक्षित बोले हैं महात्मा जन भगवान श्री हरि सत रज तम इन तीनों में से परे हैं तब इसकी प्रकार उसकी स्तुति करने से दर्शन प्राप्त होता है हे देव आपने पूर्व समय मुझे बतलाया था मन तथा वाणी से भी उसके स्वरूप को नहीं जान सकता अतः कृपया करके विस्तार पूर्वक वर्णन करें जिससे मुझे ज्ञान प्राप्त हो राजा परीक्षित के इस प्रकार कहने पर महात्मा सुखदेव जी बोले हैं परीक्षित या प्रश्न बहुत ही उत्तम है कि सर्वशक्तिमान भगवान गुणों का भंडार है जिससे बुद्धिमान इंद्रिय अर्थ धर्म काम तथा मोक्ष का रूप धारण किया है उस परमात्मा को सदैव निर्गुण समझना चाहिए किंतु जिस समय सृष्टि की रचना करता है उस समय सद्गुण रूप होता है राजन ब्रह्म ज्ञान करने वाले वेद उपनिषदों को भी यही स्वरूप है इस संबंध में मैं तुमको एक कथा सुनाता हूं एक बार नारायण जी के प्रिय भक्त देवर्षि नारद जी मिश्रण करते हुए ह्रदय में नारायण का स्वरूप का स्मरण करते हुए बद्रिका आश्रम पहुंचे और भगवान नरनारायण को प्रणाम करके उनके निकट बैठ गए उसी समय श्री नरनारायण दृश्यों को ब्रह्म ज्ञान का उपदेश कर रहे थे उसी उसे प्रणाम करने के उपरांत देवर्षि नारद ने कहा हे प्रभु वेद किस प्रकार निर्गुण ब्रह्मा की स्तुति करते हैं कृपा करके मुझे बताएं जिससे मेरी जिज्ञासा शांत हो देवर्षि नारद घोषणा को सुनकर नारदजी बोले हे नारद जी एक बार पितामह ब्रह्मा के पुत्र संरक्षण का धमाका और संत कुमार आदि ब्रह्मचारी की चर्चा कर रहे थे उस समय तुम वहां उपस्थित ना थे आपने भाइयों को ब्रह्मा के स्वरूप का वर्णन करते हुए उनका भी करने लगे हे रिसीव प्रभात होने पर जिस तरह वंदी जन सोए हुए राजाओं को जगाते हैं उसी प्रकार आपने रजि हुए सृष्टि को आपने लिंकर के परमात्मा सहन करते हैं सर्वत्र जल ही जल होता है हड़ताल महाप्रलय के पश्चात एकमात्र श्री नारायण रहते हैं उन्हें जगाने के लिए स्तुति उनका सूर्य स्नान करते हैं वे कहते हैं यह भी स्वामी विधाता आपकी जय हो आप समझते ऐश्वर्या से पूर्ण हैं आप ही ज्ञान साधन क्रिया आधी शक्तियों को उत्पन्न करते और फिर आपने मेलीन कर लेते आप ही सृष्टि की उत्पत्ति करते हैं जिस तरह मिट्टी से उत्पन्न होकर पुनः मिट्टी में लीन हो जाता है उसी तरह यह जगह आप से उत्पन्न होकर आप में ही लीन हो जाता है यह सूती के इस प्रकार उनका व्यास ज्ञान करने पर जब उन्हें सृष्टि उत्पन्न करने की इच्छा होती है उस समय उसके नाक के रास्ते से वेद निकल कर उसकी स्तुति करते हैं श्री सुखदेव जी बोलेंगे राजा परीक्षित जो सुरतिया कर्मपाल को सत्य बतलाती है उन लोगों को भ्रमित भी करते हैं जो कर्मा में लोग रहते हैं श्रुति का अर्थ यह है कि नाशवान कर्म फलों से दूर रहने से है जीत निश्चित कहते हैं परमात्मा के माया रूपी मुंह जाल में फस कर प्राणी जन्म मृत्यु के चक्कर में भटकने लगता है इस तरह संकरी ऋषि ने अपने भाइयों को दश किया जिससे उन्हें अति आनंद प्राप्त हुआ

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Shrimad Bhagwat Katha Purana Tenth Canto Chapter 87 Beginning

Praise of Shri Hari Narayan

After listening to the story of King Bahu Lakshya and Shri Tridev Brahmin, King Parikshit said, Mahatma Jan Bhagwan Shri Hari Sat Raj Tame is beyond these three, then by praising him like this one gets darshan. And I can't know its form even by speech, so please describe it in detail so that I can get knowledge. Mahatma Sukhdev ji said on King Parikshit's saying thus Parikshit or question is very good that Almighty God is the storehouse of virtues by which wise Indriya Artha, Dharma has assumed the form of Kama and Moksha, that God should always be considered as Nirguna, but at the time when He creates the universe, at that time it is in the form of virtue. Let me tell you the story, once the dear devotee of Narayan ji, Devarshi Narad ji reached Badrika Ashram, remembering the form of Narayan in his heart, and after saluting Lord Naranarayan, sat near him. Devarshi Narada, after saluting him, said, O Lord, how the Vedas praise Nirguna Brahma, please tell me so that my curiosity can be satisfied. You were not present there at that time, you were not present there, describing the form of Brahma to the brothers, you also started receiving them in the morning, just as the slaves wake up the sleeping kings in the morning. The God of the linker tolerates the creation that you have agreed upon. There is only water everywhere. You are full of opulence, you generate knowledge, means of action, half the powers and then you mix them, you create the universe, just as it is born from the soil and merges again into the soil, in the same way this place is born from you and enters into you. This cotton gets absorbed After knowing his diameter in this way, when he has the desire to create creation, at that time Vedas come out from his nose and praise him, Mr. Sukhdev ji will say that King Parikshit, who tells the truth to Surtiya Karmapal, also confuses those people. Those who live in Karma, Shruti means that by staying away from the fruits of perishable deeds, victory is sure. Dashed to which he was very happy


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