श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 86 आरंभ
सुभद्रा हरण एवं श्री देव ब्राम्हण की कथा का वर्णन
श्री सुखदेव जी बोले हे राजा परीक्षित एक बार द्रोपति और धर्मराज युधिष्ठिर शयनकक्ष में बैठे हुए थे उसी समय एक निर्बल ब्राम्हण की गांव एक चोर ले जाने लगा उसी समय अनार तक करता हुआ वह ब्राह्मण अर्जुन की शरण में आकर दुहाई देने लगा ब्राह्मण की शरण में आया जान शरणागत की रक्षा अर्जुन उठ खड़े हुए किंतु जब वॉइस मरण हुआ कि धनुष बाण शयनकक्ष में रखे हैं तो सोचने लगे कि यदि इस गाड़ी होती स्टील के भवन जाता हूं तो नियम अनुसार 12 वर्ष तक वनवास में रहना होगा और ब्राह्मण की गांव को छुड़ाकर नहीं लाता तो धर्म नष्ट होगा धर्म की रक्षा करना छतरी का परम कर्तव्य है या विचार का व्वे भवन के भीतर जाकर धनुष बांट ले आए और चोर के हाथ से गांव का पुरवा का तत्पश्चात दूसरे दिन प्रातः काल युधिष्ठिर के सम्मुख जाकर विनम्रता पूर्वक आने लगे हैं भैया मैंने नियम का उल्लंघन किया है इसलिए वनवास कारण करने के लिए जा रहा हूं हे राजा परीक्षित तुम्हारे दादा अर्जुन में वनवासी वेश धारण कर युधिष्ठिर को प्रणाम करने के उपरांत वन में चले गए उधर जब श्री कृष्ण चंद्र की बहन सुभद्रा विवाह योग्य हो गई तो उन्हें बलराम जी से विचार विमर्श कर विवाह की तैयारी आरंभ कर दी उस समय वीर अर्जुन को यह समाचार मिला तो वे विचार करते हुए द्वारिका पहुंचे सन्यासी वेश में वहां थे ही आदित्य राज भवन के निकट जाकर आसन जमाकर बैठ गए हे राजन एक दिन बलराम जी ने अर्जुन को भोजन कराने हेतु राजमहल के भीतर ले आए वहां उन्हें परम सुंदरी को देखकर अपने मन में विचार करने लगे इस अति सुंदरी को अपनी पत्नी बना लूं हे राजन जी समय अर्जुन विचार कर रहे थे उसी समय सुविधा की दृष्टि पर पड़ी और मोहित को वह अपने मन में देवताओं का स्मरण करते हुए प्रार्थना करने लगी कि यही मेरे पति हो उनके हृदय की बात अंतर्यामी भगवान श्री कृष्ण अभी जान गए हे राजन बलराम जी को यही इच्छा थी कि सुभद्रा का विवाह दुर्योधन से हो किंतु श्री कृष्णा चाहते थे कि अर्जुन इसके पति हो एक दिन सुभद्रा अपने साथियों के साथ पूजा के लिए देव मंदिर गए उसी समय अर्जुन उसी स्थान पर पहुंचे उन्हें देखकर सुभद्रा मुस्कुराने लगी है सर शुभ अवसर पाकर अर्जुन ने उसे पकड़ कर अपने रथ पर बैठा लिया और हस्तिनापुर की ओर ले गए जब वह समाचार बलराम जी को मिला कि अर्जुन मेरी बहन सुभद्रा का हरण किए जा रहा है तो उन्हें खुद की सीमा न रही अतः अपना हाल मुसल उठाकर उसे मारने के लिए दौड़े उसी गाड़ी भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें रोककर प्रेम पूर्वक समझाते हुए कहा है दाऊ भैया अर्जुन वीरों में वीर एवं ऐस व्यक्ति से सुभद्रा का विवाह होना सम्मान की बात है हे भैया सुभद्रा का विवाह करना ही था और तू उधर लोग भूलने अर्जुन के संग उसका विवाह हो यह सर्वथा उचित है श्री कृष्णा के गाने पर बलराम जी जान गए कि इनकी भी यही इच्छा थी पता चुप हो गए तत्पश्चात उन्हें दहेज की वस्तु एवं रचना आदि बहुत सारा क्लास दीनापुर भिजवाया हे राजा परीक्षित मिथिला पुरी के राजा बहुला स्वभाव रोहित देव नाम का एक ब्राह्मण भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त थे उनके हृदय में सर्वदा भक्तों कौशल्या के चरणों का ध्यान बना रहता था और गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए भी विचार रखते राजा बहु रीत और सुविधा रामायण की सदैव यही अभिलाषा थी कि एक बार भगवान श्री कृष्ण चंद्र जी के चरण कमलों का दर्शन हो जाए तो मेरा जीवन सफल हो जाए अंतर्यामी भगवान उनके मन की भावना को जान गए हटाओ भक्तवत्सल या अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने के लिए रथ पर सवार होकर मिथिला पुर पहुंचे उसके देवर्षि नारद वृहस्पति गौरव वेदव्यास वशिष्ठ परशुराम महादेव ऋषि गण भी रहे उनके आगमन का समाचार सुनकर मार्ग में पड़ने वाले देशों के राजा अपनी सामर्थ्य अनुसार वेट की सामग्री उसके सम्मुख रखकर चरणों में पूजा करते हैं राजन इस प्रकार आदर सत्कार पाते हुए मिथिलापुरी के निकट पहुंचे उस समय राजा बहू लास्ट हुआ था उस वेद ने आकर दंडवत प्रणाम किया और विनय पूर्वक हाथ जोड़कर करन लगे हे दीनबंधु दीनानाथ आपके चरण कमलों में वंदना सदैव ऋषि मुनि और देवता आदि करते हैं उसके दर्शन पाकर मैं धन्य हुआ फिर कृपा सागर आप हमारे घर चल कर अपने चरणों की रज से पवित्र कीजिए उसी समय त्रिलोकीनाथ ने विचार किया कि यह दोनों प्राणी मेरे अन्य भक्त हैं यदि मैं राजा बहुत स्लो हाथ के घर जाता हूं तो सोए थे दुखी होगा और सूर्यदेव के घर जाता हूं तो राजा के हृदय में दुख होगा ऐसा विचार कर उन्होंने ऋषि-मुनियों संहिता ने 200 रूप धारण किए और दोनों के घर एक साथ गए तथा सुमित देव से कहने लगी है प्रिय भक्त सदैव हमारे साथ आए हुए ऋषि महर्षि तुम पर कृपा करने के लिए पधारे हैं इसके चरण का आज से तुम्हारा घर पवित्र हो जाएगा तीर्थों का भ्रमण करने और स्नान करने से जो फल वर्षों में प्राप्त होता है वह परदेसियो के दर्शन मात्र से प्राप्त हो जाता है प्रभु के वचनों को सुनकर ऋषि मुनि ने कहा हे भगवान आप आदि अनंत और माया से परे हैं आप श्री मूल स्वरूप धारण कर संसारी प्राणियों का कल्याण करते हैं हम सभी ऋषि गण भी आपके चरणों का ही ध्यान करते हैं किंतु ब्राह्मण शुरु त्रिदेव के सम्मुख हम सभी को प्रथम स्थान प्राप्त कर रहे हैं यह आपके विचार हिर्दय की महानता है हे प्रभु ब्राह्मण श्रुति देव ने सदैव आपके चरणों का स्मरण किया है अतः आप अपनी निर्मल भक्ति प्रदान करें इसी प्रकार राजा बहु प्लासवा के घर भगवान श्री कृष्णा चंद्रा और ऋषि महर्षि की पूजा हुई है राजा ने उनके चरणों में अपना मस्तक रख कर रहा है दीनदयाल आपके आगमन से मेरा घर पवित्र हो गया जिस घर में साक्षात् नारायण और ऋषि मुनियों के चरण पड़ जाते हैं वहां साक्षात श्री लक्ष्मी का निवास हो जाता है अतः सांसारिक प्राणियों को यह उचित है कि निष्काम भाव से पीड़ा हर श्री कृष्ण चंद्र के स्वरूप को अपने हृदय में ध्यान करो जिससे उत्तम गति की प्राप्ति हो
Shrimad Bhagwat Katha Purana Tenth Canto Chapter 86 Beginning
Description of the story of Subhadra Haran and Shri Dev Brahmin
Shri Sukhdev ji said, O King Parikshit, once Draupati and Dharmaraj Yudhishthira were sitting in the bedroom, at the same time a thief started taking away a weak Brahmin's village. Arjun stood up to protect the refuge, but when the voice died that the bow and arrows were kept in the bedroom, he started thinking that if he goes to the steel building with this vehicle, he will have to stay in exile for 12 years according to the rule and after rescuing the village of Brahmin If he does not bring it, then the religion will be destroyed. It is the ultimate duty of the umbrella to protect the religion. Brother, I have violated the rules, so I am going to exile, O King Parikshit, disguised as a forest dweller in your grandfather Arjuna, after saluting Yudhishthira, he went to the forest, and when Subhadra, the sister of Shri Krishna Chandra, became eligible for marriage. He got married after consulting Balram ji. At that time brave Arjuna got this news, thinking that he reached Dwarka in the guise of an ascetic, Aditya was there, went near Raj Bhavan and sat down, O King, one day Balram ji went to the palace to feed Arjuna. Brought her inside, seeing her supremely beautiful, he started thinking in his mind, O Rajan ji, Arjuna was thinking at the time of making this very beautiful woman his wife. She started praying that this should be my husband, the heart's inner Lord Shri Krishna has now come to know that Rajan Balram ji had this desire that Subhadra should be married to Duryodhana but Shri Krishna wanted Arjun to be her husband. At the same time, Arjun reached the same place, Subhadra started smiling, seeing him, Arjun caught him on his chariot and took him to Hastinapur. Arjun got the news that Arjun My sister Subhadra is being abducted, so she has no control over herself, so she In the same car Lord Shri Krishna stopped him and ran to kill him with a musal, lovingly explaining that Dau Bhaiya Arjun is brave among heroes and it is a matter of honor for Subhadra to marry such a person, O brother Subhadra had to get married and On the other side people forget that Arjun should get married with Arjuna, it is all right. On Shri Krishna's song, Balram ji came to know that he also had the same desire. A Brahmin named Rohit Dev, the king of Puri, was a great devotee of Lord Krishna, his heart always remained focused on the feet of devotees Kaushalya, and even while living a household life, Raja Bahula Rit and Suvidha Ramayana always had the same desire. That once I see the lotus feet of Lord Shri Krishna Chandra Ji, my life will be successful Narada Brihaspati Gaurav Vedvyas Vash Ishta Parshuram Mahadev Rishi Gana was also there, hearing the news of his arrival, the kings of the countries falling on the way worship him at his feet by keeping the material of weight in front of him. That Veda came and bowed down and humbly started doing it with folded hands. Sanctify At the same time, Trilokinath thought that these two creatures are my other devotees. The code of sages assumed 200 forms and went to the house of both together and started saying to Sumit Dev, dear devotee, the sage Maharishi who is always with us has come to bless you, from today onwards your house will become holy of pilgrimages The fruit that is obtained in years by traveling and bathing He is attained only by the darshan of the foreigners. After listening to the words of the Lord, sage Muni said, O God, you are beyond infinity and illusion, you do the welfare of the worldly beings in the original form of Shri, we all the sages also follow your feet. Let's meditate but Brahmins are getting the first place in front of Tridev, this is the greatness of your heart. Lord Shri Krishna Chandra and Rishi Maharishi have been worshiped at Plaswa's house. The king is keeping his head at their feet. Deendayal. My house has become sacred by your arrival. Lakshmi becomes the abode, so it is appropriate for the worldly beings to meditate on the form of Lord Shri Krishna Chandra in their heart, so that the best speed can be achieved.
0 टिप्पणियाँ