श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 85

श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 85 आरंभ

बासुदेव को ब्रह्म ज्ञान प्राप्त होना तथा भगवान श्री कृष्ण चंद्र द्वारा देवकी के मृतक पुत्र को लौटा कर लाना



एक क्षण का विश्राम करने के पश्चात श्री सुखदेव जी पुनः बोले हैं महाराज परीक्षित 1 दिन भगवान श्रीकृष्ण को प्रातः काल उठकर माता देवकी एवं वासुदेव जी को प्रणाम करने गए उसी समय उन्हें आया देख वासुदेव जी अपना आसान त्याग कर उठ खड़े हुए हैं और भगवान श्री कृष्ण के चरण में जाकर लेट गए तदुपरांत भोले हे भगवान कुरुक्षेत्र में आपने आप की महिमा देखी आप मुझे ज्ञात हो गया कि आप परम ब्रह्म परमेश्वर हो सर्वस्व तुम्हारा ही प्रकाश व्याप्त है तुम्हारी महिमा से विश्व मोहित है सूर्य चंद्रमा ग्रह नक्षत्र आदि सब तुम्हारे आज्ञा अनुसार कार्य करते हैं ब्रह्मा शिवजी ब्रह्मा महात्मा इस सब तुम्हारे ही चरणों का ध्यान करते हैं जड़ चेतन सभी तुम ही हो हे प्रभु तुम्हारी कृपा जीव जीव से प्राप्त हो जाती है उसे लाख चौरासी के चक्कर से मुक्ति मिलती है यह जगदीश्वर तुम्हारी माया के वशीभूत होकर आज तक मैं तुम्हें अपना पुत्र समझ आता रहा किंतु अब मैं जान गया कि तुम आदि अनंत से परम आजन्म हो ना तो तुम्हारा जन्म होता है और ना मृत्यु संसार में अपनी लीला दिखाने के लिए अवतार लेते हो कि स्वामी मुझे अपना दोस्त समझ कर अपने चरणों में स्थान दो वासुदेव जी की इस प्रकार स्तुति करने पर मंद मंद मुस्कुराते हुए भगवान श्री कृष्णा जी बोले यह पिताश्री आपने जो कुछ भी कहा पूर्ण सत्य है संपूर्ण जगत का सिरजनहार पालनहार संघार करने वाला मैं ही हूं मेरे ही चरणों की वंदना करके प्राणी मोक्ष पद को प्राप्त होता है आत्मा एक है किंतु वहां अपने गुणों से अलग-अलग रूप में पहचानी जाती है ठीक उसी प्रकार जैसे विभिन्न रंगों के पात्रों में रखा पानी आता प्राणी समूह मिट्टी के पात्र है और आत्मा पानी है सारा जगत मेरा ही स्वरूप है मैं एक होते हुए भी अनेक रूप में दिखाई देता हूं अर्थात मेरा तपस्या यह है कि जो मुझे शत्रु की दृष्टि से देखता है उसके लिए शत्रु जो मित्र की दृष्टि से देखता है उसका मित्र आपने आज की तिथि तक मुझे अपना पुत्र समझा इसलिए मैं आपका पुत्र बना रहा हूं पिताश्री संसार में अनेक तरह से प्राणी मेरी कृपा प्राप्त करते हैं भगवान श्री कृष्ण किस प्रकार के ज्ञान तत्व युक्त वचनों को सुनकर वासुदेव के युद्ध में माया नष्ट हो गई और उसके प्रेम में मग्न होकर आनंद पाने लगे तब बलराम जी और लीला बिहारी श्री कृष्णा जी अपनी माता देवकी के निकट आए उस समय देवकी कहने लगी है लीलाधारी तुम्हारी लीला देखकर मैं जान गई कि तुम साक्षात् नारायण हो मैं शत-शत प्रणाम करती हूं तब श्री कृष्णा चंद्र बोले हैं माता समस्त जगत में माता के स्थान सर्वत्र होता है हमारी ऊपर तुम्हारा रेट है अतः तुम्हारी यदि कोई अभिलाषा अपने घर आ गई हो तो कहो उसे पूरा करके मैं तुम्हारी सेवा करना चाहता हूं यह सुनकर देवकी बोली हे पुत्र संसार में ऐसी कोई वस्तु तुम्हारे लिए दुर्लभ नहीं है मेरी यही इच्छा है कि जिस तरह अपने गुरु पुत्र को लाकर उनके सम्मुख किया उसी प्रकार मेरे मरे हुए चारों पुत्रों को ला दो निशिकांत ने मार डाला था माता के वचनों को सुनकर भगवान श्री कृष्ण चंद्र और बलराम जी उनकी उसी समय सुतल लोक में गए उन्हें देखकर राजा बलि ने उठकर प्रणाम किया और धूप दीप आदि से उनकी पूजा के तत्पश्चात हाथ जोड़कर कहने लगे हे प्रभु आपने यहां पधार कर मुझे प्रीत किया है यह स्वामी अब आप अपने आगमन का कारण बताएं जिससे मैं आपकी सेवा करने के अपना जीवन धन्य करूं उस समय राजा बलि के प्रति देखकर आनंद सागर श्री कृष्णा जी से तात्पर्य है आनंद डूब गए और बोले हे राजा बलि एक समय हमारी जीत ऋषि की स्त्री के गर्भ से छह पुत्रों की उत्पत्ति हुई वह छायो बालक जब तरुण अवस्था हुए तो एक बार अहंकार वह ब्रह्मा जी का उपहास किया जिससे उन्हें क्रोधित होकर उन बालकों को वसूल होने का श्राप दिया ब्रह्मा जी के श्राप से उन बालकों ने मेरे माता देवकी के गर्भ से जन्म लिए इन्हें कंस ने मार डाला अब वही तुम्हारे यहां जन्मे हैं माता देवकी ने हमें आज्ञा दी है कि हमारे पुत्रों को ले आओ तो हम उसकी आज्ञा का पालन कर बालकों को लेने आए हैं श्री कृष्ण चंद्र के वचन को सुनकर राजा बलि ने स्मरण उदित पलंग पर स्वीट शूद्र अमृत तथा ग्रहण नामक बालकों को लाकर उसके सामने खड़ा कर दिया उन्हें लेकर श्री कृष्णा और बलराम जी द्वारिका लौट आए हे राजा ना अपने पुत्रों को देखकर देवकी के स्तनों से दूध की धारा बहने लगी और श्रीकृष्ण की स्तुति करते हुए बारंबार उसके समर्थक होने लगी

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Shrimad Bhagwat Katha Purana Tenth Canto Chapter 85 Beginning

Basudev receiving Brahma Gyan and Lord Shri Krishna Chandra bringing back Devaki's dead son

After resting for a moment, Shri Sukhdev ji again said that Maharaj Parikshit got up early in the morning to worship Lord Krishna and went to worship Mother Devaki and Vasudev. After going to Krishna's feet and lying down, O Lord, you have seen your glory in Kurukshetra. Brahma Shivji Brahma Mahatma works, all this meditates on your feet, you are all inert and conscious, O Lord, your grace is received by the living being, he gets freedom from the affair of lakhs and eighty-four, this Jagdishwar is under the influence of your illusion today. Till then I used to consider you as my son but now I know that you are the ultimate birth from Aadi Anant, so neither you have birth nor death, you incarnate in the world to show your leela that Swami, considering me as your friend, is at your feet. give place After praising Vasudev ji in this way, Lord Shri Krishna ji said with a slow smile, whatever you have said is complete truth. The soul is one, but there it is recognized in different forms by its qualities, just like the water kept in vessels of different colors, the living beings are clay vessels and the soul is water, the whole world is my form, even though I am one. I appear in many forms, that is, my penance is that the one who sees me as an enemy, for him the enemy who sees me as a friend, you have considered me as your son till today, so I am making you your son, father. In many ways, creatures receive my blessings. By listening to the kind words of Lord Shri Krishna, illusion was destroyed in the battle of Vasudev and started enjoying by being engrossed in his love. At that time Devki came close to Devki and started saying Hey Leeladhari, seeing your leela, I came to know that you are Narayan in person, I bow down to you, then Shri Krishna Chandra has said, Mother, Mother's place is everywhere in the whole world, your rate is on us, so if you have any desire, you have come to your home. If yes, then say that I want to serve you by completing it, Devaki said after hearing this, O son, such a thing is not rare for you in the world. Bring it, Nishikant had killed him. After listening to the words of the mother, Lord Krishna, Chandra and Balram ji went to Sutal Lok at the same time, seeing them, King Bali got up and bowed down and after worshiping them with incense, lamps etc., started saying with folded hands, Lord You have loved me by coming here, this lord, now you tell the reason for your arrival so that I can bless my life to serve you. At that time, looking towards King Bali means Anand Sagar Shri Krishna ji, Anand drowned and said, O King Bali Once upon a time six sons were born from the womb of the wife of our sage Jeet. When the children were born, when they were young, once the ego mocked Brahma ji, because of which he got angry and cursed those children to be recovered. Due to the curse of Brahma ji, those children were born from the womb of my mother Devaki. Now he is born in your place. Mother Devaki has ordered us to bring our sons, so we obeyed her order and have come to take the children. After hearing the words of Shri Krishna Chandra, King Bali remembers the sweet Shudra on the bed. Bringing the children named Amrit and Grahan, made them stand in front of him, Shri Krishna and Balram ji returned to Dwarka, oh king, seeing their sons, milk started flowing from Devaki's breasts and praising Shri Krishna, she started supporting him again and again.

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