श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 83 आरंभ
रुकमणी आदि स्त्रियों से द्रोपति की भेंट
मेरा जान एक बार पांडवों की प्रिया रानी द्रोपति भगवान श्री कृष्ण की पटरानी और सेपरेट कर उनसे प्रति पूरक बातचीत करती हुई पूछने लगी है देवियों भगवान श्याम सुंदर ने किस प्रकार तुम्हें वरण किया तब रुकमणी जी बोलिए पांडव प्रिय प्रथम तुम अपने वरण कब्रिस्तान बतलाओ तब द्रोपति हंसकर कहने लगी मेरे पिता महाराज ने मेरा विवाह हेतु स्वयंवर रचाया और यह शर्त रखी की जगह पर घूमती हुई मछली की परछाई तेल की कढ़ाई में देखकर जो मत्स्यफेद करेगा उसी के साथ अपनी पुत्री का विवाह करूंगा मत्स्यफेद की शर्त को धनुर्धारी पार्थ अर्जुन ने पूरा करके मेरा वरण किय और मुझे लेकर अपनी माता के निकट जाकर बोले हैं माता हम तुम्हारे लिए एक उत्तम वस्तु लाए हैं माता ने खाने की वस्तु समझकर कहा पांचों भाई आपस में बांट लो इस तरह मैं पांचों भाइयों की पत्नी हुई तत्पश्चात रुकमणी कहने लगी है द्रोपति मेरे बड़े भाई भूमि की इच्छा थी कि मेरा विवाह शिशुपाल से हो किंतु संत पुरुषों के मुख से श्री कृष्ण चंद्र की प्रशंसा सुनकर इन्हें अपना पति मान लिया जब मेरा विवाह का दिन निश्चित हो गया तो एक विश्वसनीय ब्राम्हण से संदेश भेजो आकर श्री नाथ नगर को पूर्व आया तब हुए रथ पर सवार होकर पहुंचे और मुझे अपने संग ले आए रुक्मणी के विवाह की कथा सुनने के बाद जामवंती बोली है पांडव प्रिया इस मायक नामक मणि की चोरी करने वालों का कलम जब हमारे स्वामी पर लगा तो वे अपना कलम मिटाने के लिए मणि की खोज में उस गुफा में आगे जहां मैं अपने पिता जामवंत के साथ रहती थी उस समय वह मनी माय अपने कंठ में धारण की हुई थी जिसे देखकर ही यदुनाथ ने छीन ली का प्रयास किया उस समय मैं जोर से चिल्लाई तब पिताश्री आकर से लड़ने लगे और युद्ध 27 दिन तक चला तक पिताजी को ज्ञात हुआ कि यह साधारण पुरुष नहीं है उन्हें श्री कृष्ण चंद्र ने अपने पूर्व अवतार राम जी के स्वरूप का दर्शन दिए तब उन्हें प्रसन्न होकर मणि सहित मेरा कन्यादान कर दिया तब सद्भावना पुनः कहने लगी है पांचाली जामवंती जी से वह मणि लाकर द्वारिकाधीश मेरे पिता सत्रजीत को दे दिए क्योंकि मेरे पिता सूर्य देव की आराधना करके वह मणि प्राप्त की थी प्रसनजीत की मृत्यु का जो मिथ्या कलंक श्री कृष्णा पर लगा था वह मिट गया मेरे पिता अपने वचनों को याद करके पछतने लगे और प्रायश्चित स्वरूप मुझे द्वारिकाधीश के चरणों में अर्पित कर दिया इस प्रकार मित्रविंदा कलिंगा सत्या भद्रा लक्ष्मण आदि रानी ने अपने विवाह का वर्णन किया श्री कृष्ण चंद्र की 16000 रानियों के वर्ण का वृतांत लाते हुए माता रानी जी बोलिए द्रुपद नरेश की पुत्री तिरुपति भोमा सुर नामक एक महाबली राजा था उसने पृथ्वी के बहुत से राजाओं को परास्त करके उसकी कन्याओं को अपने बंदी गृह में डाल दिया था उन्हें श्री कृष्ण चंद्र ने मुक्त कराया हुए सभी श्री कृष्णा जी को अपनी प्रसंता से अपना पति स्वीकार करके द्वारिका चली आई इस तरह द्रोपति और भगवान श्री कृष्ण की पटरानी हो परस्पर वार्तालाप कर आनंदित हो रही थी
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Shrimad Bhagwat Katha Purana Tenth Canto Chapter 83 Beginning
Draupati's meeting with women like Rukmani etc.
Once upon a time my dear queen Draupati, the beloved queen of the Pandavas, separated and asked Lord Shri Krishna while having a supplementary conversation with him, ladies, how did Lord Shyam Sundar select you, then Rukmani ji, tell me, dear Pandav, first you tell your selection cemetery, then Draupati. She laughed and said that my father Maharaj arranged a Swayamvara for my marriage and put a condition that I will marry my daughter to the one who will feed the fish after seeing the reflection of the fish roaming in the oil pan. He took me and went near his mother and said, mother, we have brought a good thing for you. Mother, thinking it as food, said, divide it among the five brothers. In this way, I became the wife of all the five brothers, after that Rukmini started saying that Draupati is mine. Elder brother Bhumi wanted me to marry Shishupala, but after hearing the praise of Shri Krishna Chandra from the mouth of saints, he accepted him as her husband. After hearing the story of Rukmani's marriage, Jamwanti said, Pandav Priya, when the pen of those who stole the gem named Mayak hit our master, he wanted to erase his pen. In search of the gem, further in the cave where I used to live with my father Jamwant, at that time I was holding that money in my neck, seeing which Yadunath tried to snatch it, at that time I shouted loudly, then father came and fought. Started and the war lasted for 27 days till the father came to know that this is not an ordinary man, Shri Krishna Chandra appeared to him in the form of Ram ji in his previous incarnation, then he was pleased and donated my daughter along with the gem, then Sadbhavana again started saying Panchali. Bringing that gem from Jamwanti ji, Dwarkadhish gave it to my father Satrajit, because my father had obtained that gem by worshiping Surya Dev. And offered me at the feet of Dwarkadhish as an atonement. Ravinda Kalinga Satya Bhadra Laxman Adi Rani describes her marriage Shri Krishna Chandra's character of 16000 queens Mata Rani ji say, there was a mighty king named Tirupati Bhoma Sur, the daughter of Drupada king, she defeated many kings of the earth. Her daughters were put in their captive house, they were freed by Shri Krishna Chandra, accepting Shri Krishna ji as her husband with her pleasure, she went to Dwarka.
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