श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 81

श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध आराध्या 81 आरंभ

सुदामा पर भगवान श्री कृष्ण चंद्र की कृपा



श्री सुखदेव जी का राजा परीक्षित को श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता की कथा सुनाते हुए बोले हे राजन् द्वारिकापुरी भगवान श्री कृष्णा के साथ कई माह तक सुदामा जी हम पूर्वक रहे तब एक दिन अंतर्यामी भगवान उसे प्रेम मगन होकर कहा है मित्र घर से आते समय भागे ने मेरे लिए क्या दिया था जो कुछ भी भाभी ने मेरे लिए भेजा है इसी समय मुझे दे दो क्योंकि जिस वस्तु में प्रेम रस मिश्रित होता है वह सर्वोत्तम पकवानों से भी उत्तम होता है श्री कृष्णा जी के वचनों को सुनकर सुदामा जी ने विचार किया कि उत्तम भगवान और पूरी मिठाई खाने वाले कृष्णा जी के सम्मुख घुटने भर चावल रखना अत्यंत लज्जा की बात है सो गए सुशीला के दिए हुए चावल की पोटली में दबाकर छुपाने लगे उन्हें इस प्रकार को छिपाते मुरली मनोहर आगे-आगे देखते रहे तुम चाबी हमें नहीं पश्चिमी आज ताजी तुम चोरी की मानी में हो जो प्रवीण हे मित्र गुरु पत्नी ने हम दोनों को खाने के लिए चना दिया था जिसे तुम अकेले जब आ गए उसी प्रकार आज भाभी की दी हुई वस्तुओं को छिपाने जा रहे हो आज भी चोरी करने की आदत नहीं छूटी लगाकर उन्होंने सुदामा की कांच की पोटली खिंच लिया और गांठ खुलने के उपरांत चावल देखकर पसंद होते भाभी ने मेरे लिए चावल भेजा है यहां आकर उन्होंने दो मुट्ठी चावल निकाल कर खा ली तीसरी बार देखी जाए तो उसका हाथ पकड़ लिया आने लगे स्वामी सांसारिक प्राणी आप की महिमा को नहीं जानते कि तुम इतना जानती हूं कि आपने दो मुट्ठी चावल खा कर दो लोग का स्वामी बना दिया और तीसरा मोती भी देख कर स्वयं करने का विचार है रुकमणी के वचन सुनकर भक्त वाले भक्तों भक्तों के लोग मौजूद थे इस तरह बात करते हुए बहुत रात्रि व्यतीत हो गए तब सुदामा जी को मुलायम बिछड़ने पर 16 का लक्ष्मीपति में सोने के लिए चले गए दूसरे दिन सूर्य उदय होने पर श्री कृष्ण चंद्र से आज्ञा लेकर की रानी स्वयं भगवान श्री कृष्ण जी ने द्वारिका की सीमा तक पहुंचाने गए उसके बाद दोनों मित्र गले मिले और प्रणाम करने के उपरांत बिछड़ गाय राम सुदामा अपने मन में विचार करते चले जा रहे थे कि ना तो मैं श्री कृष्ण चंद्र से कोई याचना की भावना उन्हें कुछ दिया चलो यह भी अच्छा हुआ कम से कम मुझे लालची तो नहीं कहेंगे हां घर चल कर सुशीला उसको अवश्य कहूंगा उन्होंने क्या मालूम कि घाट घाट में निवास करने वाले जगदीश्वर ने रातों-रात उन्हें स्वर्ग साली बना दिया जब रात्रि में सुदामा जी सो गए थे तो उसी समय लछमी पति ने देव शिल्पी विश्वकर्मा जी को बुलाकर या आज्ञा दिया कि तुम सुदामा जी के नगर में जाकर द्वारिका के समान सुख समृद्धि और ऐश्वर्या से पूर्ण भवन की रचना करो और समस्त रिद्धि सिद्धि से उस भवन को परिपूर्ण कर दो सुदामा नगरी में किसी प्रकार की कमी ना हो आज्ञा पाकर विश्वकर्मा जी ने सारा कार्य संपन्न किया उधर द्वारिका से चलकर सुदामा जी आपने नगर पहुंचे थे द्वारिकापुरी के समान उचे उचे भवन अठावले देखकर सोचने लगे कि शायद मैं मार्ग भूलकर पुणे द्वारिका चला आया हूं उसी समय उन्हें अपने नगर का एक व्यक्ति जाता हुआ दिखाई दिया उसने देखकर वह जान गए कि यह भूल हुई है जो अपने स्त्री बच्चों को छोड़कर चला गया मेरी टूटी झोपड़ी को किस राजा ने उजाड़ कर अपना महल बनवा लिया इस प्रकार मेरे वॉच नो और मेरी धर्मपत्नी कहा कि इस अवस्था में होंगी उसी समय सुशीला बाहर आया और उनका हाथ पकड़ कर बाहर से भीतर ले जाने लगी तब सुदामा ने उसका हाथ झटक कर उसे स्वर्ग कहा अरे पराई स्त्री तुझे पराए पुरुष का हाथ पकड़ते हुए लज्जा नहीं आती सुदामा के वचनों को सुनकर अपने मुख मंडल में घूंघट हटा सुशीला बोली स्वामी मैं आपके चरणों की दासी सुशीला हूं तब आश्चर्यचकित होकर सुदामा जी खाने लगे यह माल किसका है और मेरे मछली कहां है हे राजा परिचय सुदामा के वचनों को सुनकर वहां स्वामी यह सब द्वारिका नाथ की कृपा है उस समय दखी होकर करने लगे हैं प्रिया धनेश्वरी कि मैंने नहीं व्यक्त किया फिर भी उन्होंने सब कुछ प्रदान किया किंतु यह सांसारिक ऐश्वर्या मनुष्य को धर्म रहा से विमुख कर देती है मुझे इन सब वस्तुओं का मुंह नहीं है मुझे तो बस भगवान श्री कृष्णा चंद्र के चरणों की निर्मल प्रतीत चाहिए उस दिन से हुए और अधिक समय तक भगवान के चरणों का ध्यान करने लगे

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Shrimad Bhagwat Katha Puran Tenth Canto Aaradhya 81 Beginning

Lord Shri Krishna Chandra's grace on Sudama

While narrating the story of the friendship of Shri Krishna and Sudama to King Parikshit, Shri Sukhdev Ji said, O king of Dwarikapuri, Sudama ji stayed with Lord Shri Krishna for many months, then one day the inner God said to him in love while coming from home. What did the bhaga give for me, whatever the sister-in-law has sent for me, give it to me at this time, because the thing in which love juice is mixed is better than the best of dishes. Sudama ji thought after listening to the words of Shri Krishna That it is a matter of great shame to keep knee-deep rice in front of Krishna ji, the Supreme Lord and the one who eats all the sweets. Western today fresh you are in the sense of stealing Praveen O friend Guru wife had given gram to both of us to eat which when you came alone today you are going to hide the things given by sister in law today also you are in the habit of stealing Without sparing a second, he pulled Sudama's glass bottle and after opening the knot Seeing the rice, the sister-in-law has sent rice for me. After coming here, he took out two handfuls of rice and ate it. When he saw it for the third time, he held her hand and started coming. By eating a handful of rice, he made himself the owner of two people and after seeing the third pearl, he thought of doing it himself. Hearing the words of Rukmani, devotees and devotees were present, many nights were spent talking like this, then Sudama ji got separated. Lakshmipati went to sleep on the 16th, on the second day when the sun rose, Lord Shri Krishna himself took the queen to the border of Dwarka after taking orders from the moon, after which the two friends hugged and after saluting the separated cow, Ram Sudama. I kept thinking in my mind that neither I have any feeling of begging Shri Krishna Chandra, I have given him something, it is also good, at least I will not be called greedy. Jagdishwar, who resides in the ghat, made her a heavenly sister-in-law overnight. When Sudama ji fell asleep in the night, at the same time husband Laxmi called or ordered the master craftsman Vishwakarma ji to go to Sudama ji's city and build a building full of happiness, prosperity and opulence like Dwarka, and with all Riddhi Siddhi. Complete that building so that there should not be any shortage in Sudama city. Vishwakarma ji completed all the work after getting permission. On the other side, Sudama ji had reached your city after walking from Dwarkapuri. Seeing the tall buildings similar to Dwarkapuri, Athawale started thinking that maybe I forgot my way to Pune. I have gone to Dwarka, at the same time he saw a person from his city leaving, when he saw that he knew that it was a mistake, who left his wife and children and went away, which king destroyed my broken hut and made it his palace. Watch no and my wife said that she will be in this condition, at the same time Sushila came out and holding her hand started taking her inside from outside, then Sudama shook her hand and said to heaven, O stranger woman, you are not ashamed to hold the hand of a stranger man. Hearing the words of Sudama Ta Sushila said Swami, I am Sushila, the maid of your feet, then surprised Sudama ji started eating whose goods and where is my fish. Hai Priya Dhaneshwari that I didn't express yet she provided everything but this worldly opulence distracts man from Dharma Raha. started meditating on the feet of the Lord for longer periods than during the day

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