श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 80 आरंभ
सुदामा का द्वारिकापुरी जाना
श्री सुखदेव जी बोले हे राजन् ऋषि एवं ब्राह्मणों के दुखों को दूर करने वाले परम तेजस्वी श्री कृष्ण चंद्र के सुदामा नामक के एक सहपाठी मित्र थे उसकी दरिद्रता ऐसी थी कि भरपेट भोजन और तन ढकने के लिए वक्त रख लेना थे किंतु उस दरिद्र ब्राह्मण के मन में कभी लाल आज कहां से उत्पन्न नहीं होता था क्योंकि सुदामा अति ज्ञानी एवं ब्रह्मा को जाने वाले ब्राह्मण थे अतः भिक्षा मांगने से जो थोड़ा बहुत मिल जाता उसी में अपने परिवार का भरण पोषण करते एक बार उन्होंने बात बात में अपनी स्त्री से कहा कि द्वारी कादरी श्री कृष्ण चंद्र हमारे परम मित्र हैं हमने एक साथ ग्रुप में रहकर शिक्षा प्राप्त किया है उस दिन पश्चात ऐसा सहयोग हुआ कि दो-तीन दिन उन्हें अपेक्षा में कुछ भी न मिला आता उसके परिवार को बिना आहार किए हुए दिन बिताने पड़े जब उनके दोनों बालक भूख से निकलते हुए अपनी माता से भोजन मांगते तो उस समय सुदामा की पत्नी सुशीला अपने बच्चों को गोद में लिटा कर सुलाने का प्रयास करने लगती किंतु अत्यधिक भूखे होने के कारण बालकों को निद्रा नहीं आती थी यह करुणामई दृश्य देखकर सुशीला का ह्रदय डबल हो जाता किंतु विश्वास था ऐसी थी कि वह बच्चों का पेट भर नहीं पाती है राजन जब दरिद्रता उनके हिर्दय को झकझोर डालता तब वह बालकों को भूमि पर लिटा कर सुदामा के निकट आई हुई और उसके चरण पकड़ कर रोते हुए कहने लगी है स्वामी बच्चों को भूख से बिलखते देखकर मेरा ह्रदय फट जा रहा है है पतिदेव आपने एक बार मुझसे कहा था कि द्वारिकाधीश भगवान श्री कृष्ण चंद्र आपके परम मित्र हैं आप उनके पास जाइए हुए दयासागर हैं दया करेंगे जिससे हमारी धरित्री दूर हो जाएगी स्त्री के वचन को सुनकर सुदामा जी कहने लगे हैं प्रिय माय जाति का ब्राह्मण और ब्राह्मण का यह शोभा नहीं देता कि लालच करें प्रबंधक वंश जो कुछ मिल जाए उसी में संतुष्ट रहें यदि शिक्षा देने वाला अशिक्षित के समान व्यवहार करें तो यह शिक्षा क्या देगा ए प्रिया हमारे तुम्हारे मन की व्यथा को समझता हूं किंतु जब इतना समय दरिद्रता में व्यतीत हो गया तो आप थोड़े समय के लिए शुभ प्राप्त करने हेतु क्यों याचना करो यदि मैं याचक बनकर मित्र के द्वार पर जाऊंगा तो मैं स्वाति का हाल आऊंगा अतः मुझे द्वारिका ना भेजो यह परीक्षित सुदामा के वचनों को सुनकर रोती हुई सुशीला कहने लगी है स्वामी भूख से बिलखते अपने बालकों पर जरा दृष्टि डालो यह इन्हें शिशु भूख से तड़प रहे हैं मैं यह नहीं कहती कि आप उनसे जाकर ऐश्वर्या की जांच ना करें वहां जाने से आप उनका दर्शन भी पा जाएंगे तब सुदामा जी ने विचार किया कि यह ठीक कह रही है किंतु यह सोच करूंगा मन लगने लगा कि जब मैं उनके सम्मुख जाऊंगा तो कौन सी वस्तु वेट करूंगा उनके मन की बात का हनुमान करके सुशीला ने एक फटे पुराने पिछड़े की पोटली उनके हाथ में दे कर कहने लगी हे स्वामी राजा महाराजाओं की सामने खाली हाथ जाना उचित नहीं है इसलिए मैं पड़ोसियों से थोड़ा सा चावल मांग लाई हूं उस थोड़े से चावल की पोटली लेकर अपने मन में श्री कृष्णा का ध्यान करते हुए सुदामा जी द्वारिका की ओर चल दिए हाथ में लोक की लाठी लिए चावल की पोटली पीटकर लटका है हुए अपने मन में विचार करते हुए चले जा रहे थे कि स्वर्ग के सिहासन पर बैठने वाली श्री कृष्णा के चरणों की सेवा हजारों दादासिया करती है उनके भवन के द्वार पर द्वारपाल लूंगा मेरे फटे पुराने वस्त्रों को देखकर वह मुझे द्वारिकाधीश के पास नहीं जाने देगा इसी तरह सोच विचार करते हुए हुए द्वारिका पहुंच गए वहां के 529 की शोभा सुदामा जी चकित होकर देखने लगे तब उन्होंने एक व्यक्ति के पास जाकर डरते डरते हैं पूछा है भाई मुझे द्वारिकाधीश श्री कृष्ण के घर जाना है वह मेरे मित्र सुदामा के वचन को सुनकर वह व्यक्ति हंसता हुआ चला गया तत्पश्चात वे लोगों से पूछते हुए द्वारिकाधीश के भवन के द्वार पर पहुंचा और द्वारपाल से बिना पूर्वक आने लगा है भाई द्वारपाल मैं बहुत दूर से चलकर आया हूं मेरा नाम सुदामा है और जाति का ब्राह्मणों भगवान श्री कृष्ण मेरे बचपन के मित्र हैं उसके दर्शनों की अभिलाषा लेकर द्वारिकापुरी आया हूं हे राजन सुदामा की दशा देखकर द्वारपाल ने सोचा कि भला ऐसे दरिद्र व्यक्ति हमारे प्रभु का मित्र हो सकता है किंतु यह जानकर कि यह आदमी जाति का प्रमाण है द्वारपाल कहां है यह ब्राह्मण देवता तुम यही पधारो मां तुम्हारी सूचना लेकर प्रभु के पास जाता हूं भगवान श्री कृष्ण ने अपने सेवकों कोई आज्ञा दे रखी थी कि ब्राह्मण एवं विषयों के चरणों की मैं पूजा करता हूं अतः ऋषि गांव ब्राह्मण अगर हमारे द्वार से निराश ना लगने पाए हे राजन सुदामा के आगमन का समाचार लेकर द्वारपाल तीन चौपाटी पर करके जब छोटी चौपाटी पर गया तो देखा कि श्री मुरली मनोहर अपने प्रिय रुक्मणी के साथ चौपट खेलने में मालूम है अतः वह बहुत देर तक दोस्ती के निकट चुका है खड़ा रहा जब प्रभु की दृष्टि उस पर पड़ी तो कहने लगे इस तरह क्यों खड़े हो तब द्वार पर बोला हे प्रभु भवन के द्वार पर एक अत्यंत दुर्बल ब्राह्मण आया है उसके सिर पर पगड़ी नहीं है वस्त्र फटे हैं और पर नहीं है वह अपना नाम सुदामा बताया है और कहता है कि श्री कृष्ण चंद्र हमारे मित्र हमें आप पर खेल रहे हैं इसलिए मैंने विद्यमान नहीं डाला सुदामा का नाम सुनकर त्रिलोकीनाथ चौपट छोड़ कर उठ खड़े हुए और नंगे पांव जोड़ते हुए द्वार की द्वारपाल को गए हुए बहुत समय व्यतीत हो गया तो सुदामा ने अपने हृदय में विचार किया कि श्री कृष्ण मुझे भूल गए नाहक ही स्त्री के कहने पर मैं इतनी दूर भागा चला आया इस प्रकार सोचते हुए हुए वापस जाने लगे द्वारिकाधीश के भवन से थोड़ी दूर सुदामा जी पहुंचेगी मित्र सुदामा मित्र सुदामा का घर पुकारते हुए श्री कृष्ण जी दौड़ते हुए उनके निकट आए उस समय कृष्णा जी का पाठ महार गिर गई पैरों में छाले पड़ गए किंतु उनकी चिंता नहीं आती भारतीयों से प्रेम करने वाले त्रिलोकीनाथ भगवान श्री कृष्ण चंद्र को सदैव प्रेम करती है सुदामा का रात पकड़कर प्रेम पूर्वक कांड से लिपटा ते हुए दीदी स्वर में कहने लगी है मित्र द्वारपाल ने मुझे बहुत देर बाद तुम्हारे आगमन पर समाचार सुना है जिस कारण आने में विलंब हुआ है प्रिय मित्र मेरे इस अपराध को जमा कर इस प्रकार उन्होंने भी नहीं करते हुए त्रिलोकीनाथ अपने वस्त्रों से सुदामा के मुख मंडल पर चमक रहे पसीने की बूंदों को पूछते हुए तपस्या स्वर्ण जड़ित रात भर बिठाकर भवन में आए और अपने पलंग पर बिठाकर सोने की भारत में पानी भरकर लाई रे राजन विप्र सुदामा का चरण स्वयं त्रिलोकीनाथ अपने हाथों से तोड़ने लगे उसी समय बहुत अधिक प्रेम मगन हो रहे थे जब हम सुदामा की तालुके मांग करने लगे तो छुपे हुए कांटों के जाल को देखकर होते हुए आने लगे हैं मित्र तुम इतना अधिक दुख पाए फिर भी कभी मेरे पास नहीं आए मैं भी इतना भागा हूं इस प्रकार कह कर श्री कृष्णा जी रोने लगे तत्पश्चात उन्होंने सुगंधित जल से स्नान कराया और नए वस्त्र पहना कर 16 प्रकार के व्यंजन का भोजन कराया उस समय रुकमणी जी उन्हें पंखा चलने लगी हनिया रानी अभी उसकी सेवा करने लगी उसी समय सुदामा का आदर सत्कार देखकर द्वारिका की यदुवंशी आपस में कहने लगे कि अवश्य इस ब्राह्मण पूर्व जन्म में शुभ कार्य किए थे जिसका फल इसी जन्म प्राप्त हो रहा है हे राजन उस समय सद्भावना अपने दोस्तों से कहने लगी श्री कृष्णा जी हमारे सामने ऐसी बातें करते जैसे मैं कालिंदी नाग जीत सत्या 15 दिन और हनिया कुछ भी नहीं है किंतु इसके मित्र होते हो दरिद्रता से जीवन गुजर रहा था फिर भी उसे ऐसे मिल रहे हैं जैसे तीनों लोकों का स्वामी है सद्भावना शिव शंकर शंकर सुदामा की गीता मैया भावना उत्पन्न हुआ कि त्रिलोकीनाथ मुझे कोई दूसरा व्यक्ति समझ कर मेरा सम्मान कर रहे हैं तब वे अपना मुंह खोलकर बदला ने ही जा रहे थे कि अंतर्यामी भगवान ने सुदामा की झांकी बात को जानकर कहा मित्र हमारा गुरुकुल जीवन भी बहुत उत्तम था जब गुरु जी की पत्नी हमें लकड़िया लाने के लिए वन में भेजा था तुमने सारी लकड़ियां स्वयं थोड़ी थी उस समय बड़े जोर की आंधी चलने लगी जिससे हमारे दोनों रात भर वहीं रह गए प्रातः काल संदीपनी गुरुजी भाई आए हैं मित्र जैसे अनेक घटनाएं घटित हुई थी अच्छा हम भाभी और बच्चों की कुशलता का समाचार सुनाओ वे सब ठीक तो है श्री कृष्णा द्वारा इस प्रकार पूछे जाने पर सुदामा के युद्ध में उत्पन्न हुए शंका नष्ट हो गई
TRANSLATE IN ENGLISH
Shrimad Bhagwat Katha Purana Tenth Canto Chapter 80 Beginning
Sudama's visit to Dwarkapuri
Mr. Sukhdev ji said, O Rajan Rishi and the one who removed the sorrows of Brahmins, the most brilliant Shri Krishna Chandra had a classmate friend named Sudama, his poverty was such that he had to keep enough food and time to cover his body, but the heart of that poor I used to never get red from where today, because Sudama was very knowledgeable and a Brahmin who knew Brahma, so he used to feed his family with the little he got by begging. Kadri Shri Krishna Chandra is our best friend, we have studied together in a group, after that day there was such cooperation that for two-three days they did not get anything, their family had to spend days without food, when both their When the children asked their mother for food due to hunger, at that time Sudama's wife Sushila started trying to put her children to sleep, but due to excessive hunger, the children could not sleep. Seeing this compassionate scene, Sushila's heart doubled. goes but believed that he Rajan is unable to feed the children, when the poverty shakes their heart, then she lays the children on the ground, comes near Sudama and holding his feet starts crying saying, 'Swami, my heart is bursting to see the children crying out of hunger'. Hai Hai Husband, you once told me that Dwarkadhish Lord Shri Krishna Chandra is your best friend, you have gone to him, you are an ocean of mercy, he will do mercy, so that our earth will go away. It does not suit a Brahmin that the manager dynasty should be greedy and be satisfied with whatever they get, if the teacher behaves like an uneducated person, then what education will he give? If it is done, then why should you beg for auspiciousness for a short time, if I go to the door of a friend as a beggar, then I will be in the condition of Swati, so do not send me to Dwarka, after hearing the words of Parikshit Sudama, Sushila started crying and said, Swami's hunger. take a look at your children crying Stop these children are suffering from hunger, I do not say that you should not go and check Aishwarya with them, by going there you will also get her darshan. Felt that when I go in front of him, what item will I wait for his mind, after doing Hanuman of his mind, Sushila handed over a torn old backward bag in his hand and said, 'It is not proper to go empty-handed in front of Swami Raja Maharajas, so I will go to the neighbors. Sudama ji walked towards Dwarka, meditating on Shri Krishna in his mind. Was going that thousands of grandfathers serve the feet of Shri Krishna, who sits on the throne of heaven, I will take the gatekeeper at the door of his building, seeing my torn old clothes, he will not let me go to Dwarkadhish, thinking in the same way, reach Dwarka When Sudama ji started seeing the beauty of 529 there, then he saw a He is afraid to go near the person and asked, brother, I want to go to the house of Dwarkadhish Shri Krishna. That person went away laughing after listening to the words of my friend Sudama. Brother Dwarpal has started coming, I have come from a long distance, my name is Sudama and caste Brahmins, Lord Shri Krishna is my childhood friend, I have come to Dwarkapuri with the desire to see him. He can be a friend of our Lord, but knowing that this man is the proof of caste, where is the gatekeeper, where is this Brahmin deity, you come here mother, I will go to the Lord after taking your information. I worship the feet of Rishi, so if the Brahmins of the Rishi village do not feel disappointed at our door, Rajan, after taking the news of Sudama's arrival, went to the small chowpatty after taking the doorkeeper to three chowpatties, he saw that Mr. Murli Manohar was playing with his beloved Rukmani. I m It is known, so he has been close to friendship for a long time. When the Lord's eyes fell on him, he said, "Why are you standing like this?" His clothes are torn and he is not there. Sudama thought in his heart that Shri Krishna had forgotten me. Unnecessarily, at the behest of the woman, I had run so far. Sudama ji will reach far away Friend Sudama Friend Sudama's house Calling Shri Krishna ji came running near him At that time Krishna ji's lesson Mahar fell Blisters on his feet but he doesn't worry Trilokinath who loves IndiansGawan Shri Krishna always loves Chandra, holding Sudama's night and hugging her with love, she started saying in a voice, friend, the doorkeeper has heard the news of your arrival after a long time, due to which there has been a delay in coming, my dear friend. Accumulating the crime in this way, Trilokinath came to the Bhavan after spending the whole night sitting in penance gold-studded, asking the drops of sweat shining on Sudama's forehead from his clothes and sitting on his bed, brought gold from India full of water. Trilokinath himself started breaking the feet of Rajan Vipra Sudama with his own hands, at the same time he was very much in love, when we started asking for Sudama's taluka, seeing the net of hidden thorns, he started coming, friend, you suffered so much, still Shri Krishna ji started crying after saying this, he bathed with scented water and dressed in new clothes and fed 16 types of dishes, at that time Rukmani ji started fanning him. At the same time Sudama started serving Seeing this, the Yaduvanshis of Dwarka started saying to each other that this Brahmin must have done auspicious work in his previous birth, the result of which is being reaped in this birth, O King. Jeet satya 15 days and haniya is nothing but being his friend, he was living in poverty, yet he is getting it as if he is the lord of all the three worlds. Considering me to be a person, then he opened his mouth and was going to take revenge that after knowing Sudama's tableau, Lord said, friend, our Gurukul life was also very good when Guru ji's wife went to the forest to bring us wood. You had sent all the wood, there was little at that time, there was a strong storm, due to which both of us stayed there for the whole night. In the morning, Sandipani Guruji's brother has come, friend. Many incidents had happened. It's okay by Shri Krishna in this way The doubts that arose in Sudama's war were destroyed when he was removed.
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