श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 79

श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 79 आरंभ

बलराम जी द्वारा एबल का वध



हे राजन ऋषि यों के हृदय की वेदना का अनुमान करके उन्हें धीरज बांधने के उपरांत बलराम जी बलिया के आगमन की प्रतीक्षा करने लगी पूर्णिमा तिथि के आने पर ऋषि जैन हवन पूजा करने लगे तभी बल आपनी राक्षसी माया उत्पन्न कर तेज आंधी तूफान लेकर आया और पूर्व की भांति मल मूत्र रक्त गौ मांस हड्डी आदि की वर्षा करने लगी या दृश्य देखकर बलराम जी की बूटी तन गई उन्होंने विशाल रूप धारण कर आते हुए पल को देखकर क्रोध पूर्ण वाणी में कहा अरे नहीं चुराना तू अपनी माया से ऋषि यों को दुखी करता है हवन कार्य में विद्वान डा कर अपनी निजता का प्रदर्शन करता है बलराम जी के मुख से हुए उच्चारण को सुन करीब बल क्रोधित होकर अपनी लाल-लाल आंखें से डराता हुआ उन्हें मारने के लिए जाता उसी समय बलराम जी ने अपने हल्का आकार इतना अधिक बड़वा आया कि उसकी नौकरी पल गीत के समान लटक गया तत्पश्चात उन्हें पृथ्वी पर पटक कर मुसल से उसकी मस्तक का भीषण प्रहार किया जिसकी उसका मस्तक फट गया और रक्त की धारा बहने लगी हे राजा परीक्षित बल्दाना ओं की मृत्यु के उपरांत ऋषि यों से आज्ञा लेकर बलरम जी तीर्थ का भ्रमण करने चले गए शरीर गंगा काशी गोमती गंडकी सोनभद्र आदि पवित्र नदियों में स्नान कर गढ़मुक्तेश्वर प्रयाग काशी हरिद्वार आदि तीर्थ स्थान पर गए तत्पश्चात महातीर्थ गया में जाकर पितरों का पिंडदान किया उसके बाद गंगासागर विंध्याचल आदि तीर्थों का भ्रमण करते हुए परशुराम जी का दर्शन करने की अभिलाषा से महेंद्र गिरी पर गए और उसके चरणों में अपना मस्तक रखकर प्रणाम किया परशुराम जी से आज्ञा लेकर बालाजी शिवाकाश विष्णु दर्शन आदि पवित्र स्थानों का भ्रमण करते हुए रामेश्वरम पहुंचे वहां स्नान कर देवताओं का पूजा अर्चन किए इस तरह तीर्थ का भ्रमण करते हुए उन्होंने 1 वर्ष बीत गए जब वे वापस लौट कर द्वारिकापुरी आए तो उन्हें समाचार मिला कि कौरव पांडव में महायुद्ध हो रहा है युद्ध का समाचार सुनकर उनका हिर्दय अधीर हो गया और वे उन्हें समझा-बुझाकर शांत करने के विचार से कुरुक्षेत्र गए हे राजन महाभारत के युद्ध का वह 18 दिन था जब बलराम जी के चरण कुरुक्षेत्र की भूमि पर पड़ी युद्ध के अंतिम चरण में भीमसेन और दुर्योधन का गदा युद्ध हो रहा था उन्हें युधिष्ठिर अर्जुन नकुल सहदेव ने दंडवत प्रणाम किया उसी समय दुर्योधन और भी इस मशीन को दो मतवाले गजराज की भांति लड़ते देख कर आती दुखी होकर बोले हे भाइयों श्री कृष्ण चंद्र की उपस्थिति रहते हुए महाभारत का संग्राम हुआ और इसी घड़ी 20 मशीन तथा दुर्योधन एक-दूसरे को मार डालने का प्रयास कर रहे हैं उत्तम तो यही होगा कि युद्ध स्थगित कर दो उनके वचनों को सुनकर लीला बिहारी श्री कृष्ण चंद्र जी हंसकर बोले हैं दाऊ भैया जी हां जब भूखा हो उसके सामने आहार डालकर छीनने का प्रयास नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने पर उसका क्रोध बढ़ जाता था अतः इसी घड़ी चुप रहना ही सर्वोत्तम है श्रीकृष्ण के इस प्रकार कहने पर बलराम जी जान गए कि कन्हैया की यही इच्छा है कि युद्ध हो अतः वह चुप हो गए उधर दोनों महावीर लड़ते-लड़ते थक गए भीमसेन जब अपनी गदा से दुर्योधन के शरीर पर प्रहार करते तो ऐसे आवाज उत्पन्न होती जैसे किसी गदा किसी लो हे की वस्तु से टकराई हो दुर्योधन को मार डालने की संपूर्ण कोशिश कर रहे थे परंतु उनका प्रयास विफल हो जाता यह दृश्य देखकर श्री कृष्ण जी ने अपने मन में विचार किया कि गदाधारी ने जिस समय इनसे कहा कि हे पुत्र दुर्योधन तुम मेरे सम्मुख नग्न होकर आओ यह नग्न होकर जा रहा था यदि मैं इससे यह ना कहता कि अब तुम युवा हो गए हो माता के सम्मुख नग्न होकर जाना उचित नहीं है तब इसने कमरे के नीचे वाले हिस्से पर केले का पत्ता लपेट लिया उस समय गदाधारी ने अपनी आंखों की पट्टी खोल कर दुर्योधन को देखा उसकी दृष्टि पढ़ते ही दुर्योधन का शरीर वज्र के समान ठोस हो गया जब गदाधारी का ध्यान कमरे के नीचे वाले हिस्से पर गया तो वह परेशान होकर बोले यह पुत्र यह तुमने क्या किया तूने आपने कमर के नीचे केले का पत्ता क्यों लपेट लिया उस समय दुर्योधन ने अपनी माता को कृष्णा की कही हुई बात बताई तब वह बोली है पुत्र पता लपेटने के कारण तेरे शरीर का वह स्थान फोर्स होने से वंचित रह गया बाकी के हिस्से पर किसी अस्त्र-शस्त्र के प्रहार का प्रभाव ना होगा यह सुनकर दुर्योधन ने अभिमान में भर कर रहा हे माता चिंता मत करो गदा युद्ध में कमर से नीचे प्रहार करना नियम के विरुद्ध है और जब मैं युद्ध क्षेत्र में जाऊंगा तो भीमसेन से युद्ध कर के उसे मार डालूंगा क्योंकि उसके अन्य भाई गदा युद्ध करना नहीं जानते इस तरह अपनी माता को धीरज देकर वह युद्ध क्षेत्र में जाकर भीमसेन को लाल करने लगा तब श्री कृष्ण चंद्र की आज्ञा पाकर हुए दुर्योधन से जाकर युद्ध करने लगे किंतु बहुत समय व्यतीत होने के उपरांत भी उसे नहीं मार सके और जब भीमसेन कुछ निराश होने लगे उस समय श्रीकृष्ण उन्हें वह आते हुए जोर से चिल्ला कर कहा आहा भीम भैया कहां उसके स्वर को सुनकर भीम ने दृष्टि घुमाकर श्रीकृष्ण की ओर देखा उस समय हुए श्री कृष्ण लाल ताल ठोक रहे थे यह देखकर भीम को द्रोपती के चीर हरण का दृश्य स्मरण हो आया जब दुर्योधन ने अपने भाई दुशासन को कहा कि तिरुपति का वस्त्रहीन कर दो इस राशि को मैं अपनी जांघों पर बैठा लूंगा तब भीमसेन ने मन ही मन से किया था कि दुर्योधन की जंघा को मैं अपनी गदा से तो लूंगा हे राजा परीक्षित श्री कृष्ण चंद्र का संकेत पाकर भीमसेन ने दुर्योधन की जंघा पर भीषण प्रहार किया उसकी जांघों टूट गई और चिल्लाता हुआ वह पृथ्वी पर गिर पड़ा बलराम जी से दुआएं देख कर देख कर कहने लगा हे गुरुदेव आप की उपस्थिति में भीमसेन ने गदा युद्ध के नियमों का उल्लंघन कर मेरे ऊपर प्रहार किया है तब बलराम जी ने भीमसेन को मारने के लिए अपना हाल मुसल उठा लिया और कहा अरे मूर्ख भीमसेन या तूने गदा युद्ध के नियम का ज्ञान नहीं है क्या तू नहीं जानता की गदा युद्ध में कमर के नीचे प्रहार करना वर्जित है 30 पर भी पुणे गिरे हुए दुर्योधन के मस्तक पर लात मारी उस समय श्री कृष्ण चंद्र उसके सम्मुख आकर मुस्कुराते हुए बोले हैं दाऊ भैया दुर्योधन ने उस समय भारी सभा में पांचाली द्रोपति का अपमान किया था उसी क्षण भैया भीम ने संकल्प किया था कि मैं इसकी जांग तोड़ दूंगा और गिरे हुए दुर्योधन के मस्तक पर लात मारने का कारण यही है कि अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु का वध 7 महारथियों ने मिलकर अन्याय पूर्ण ढंग से किया जबकि युद्ध प्रारंभ होने से पूर्व दोनों पक्षों ने निर्णय किया था कि एक महारथी से एक ही महारथी युद्ध करेंगे किंतु सातों महारथी ने मिलकर जब अभिमन्यु को मार डाला तो पृथ्वी पर गिरे हुए अभिमन्यु के मस्तक पर दुशासन ने अपना पैर रखा था आता है दाऊ भैया आधार में पूर्ण युद्ध का श्रीगणेश का उरांव ने किया था बलराम जी का क्रोध शांत हुआ है राजन उस समय आगे बढ़कर भीमसेन ने बलराम जी के पैर छुए उन्होंने प्रसन्न होकर भीमसेन को अपने करंट से लगा लिया और आशीर्वाद दिया हे राजन महा युद्ध समाप्त होने के पश्चात जब युधिष्ठिर युद्ध में मारे गए सुबह सज्जनों को श्रद्धांजलि देने लगे उस समय भगवान श्री कृष्ण की प्रेरणा से कुंती के ह्रदय में अपने प्रथम पुत्र कर्ण के प्रति अत्यंत प्रेम बड़ा आया वह आंखों से निभाते हुए युधिष्ठिर के निकट आई उसे और होता देख उन्हें पूछा है महत्ता अब तुम्हें प्रसन्न होना चाहिए क्योंकि उसमें हम पांचों भाई विजय हुए तब वह बोली है पुत्र तुम दुर्योधन आदेश हुआ सज्जनों को श्रद्धांजलि दे रहे हो युधिष्ठिर ने कहा हे माता युद्ध एक आवश्यकता थी किंतु यह हमारे अपने थे उनका रक्त और हमारा रक्त एक है मृतक आत्मा की शांति के लिए पूर्वजों के क्रमानुसार हमें भी गर्व करना चाहिए तब कुंती बोलेगा को भी श्रद्धांजलि तो यह सुनकर युधिष्ठिर ने कहा है माता कारण सूत पुत्र था वह हमारा वाटिका ना था तब कुंती अत्यंत अधीर होकर कहने लगी हे पुत्र कर्ण तुम्हारे बड़े भाई थे यह रहस्य मैंने लोक लाज के भय से किसी के सामने प्रगट ना किया था माता के वचनों को सुनकर युधिष्ठिर को चक्कर आ गया है अर्ध मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर गए तब उन्हें होश आया तो रो रो कर कहने लगे हैं माता तूने यह रहस्य छिपा कर बहुत बड़ा अन्याय किया कारण जैसे महावीर पराक्रमी भाई को पाकर मैं धन्य हो जाता उसके चरणों से सारा राज शुभ वैभव रखकर अपना मस्तक रख देता हे माता तुम्हारे कारण भाई से भाई नाम मिल सका अतः मैं समस्त भूमंडल की स्त्रियों को या श्राप देता हूं कि आज की तिथि से कोई भी स्त्री अपने हृदय में कोई रहस्य नहीं छुपा सकती श्री सुखदेव जी बोले हे राजा परीक्षित युधिष्ठिर के श्राप से स्त्रियों के पेट में कोई बात नहीं रहती हुए अवश्य किसी ना किसी से कह देती हैं युधिष्ठिर द्वारा श्रद्धांजलि का कार्य पूरा करने के उपरांत श्री कृष्णा और बलराम जी रथ पर सवार होकर द्वारिकापुरी की ओर चल दिए

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Shrimad Bhagwat Katha Purana Tenth Canto Chapter 79 Beginning

Killing of Abel by Balarama

O Rajan, after giving them patience by anticipating the heartache of the sages, Balram ji started waiting for the arrival of Ballia. Like faeces, urine, blood, meat, bones, etc., it started raining, or seeing the scene, Balram ji's booty got stretched. Seeing the moment coming in huge form, he said in a voice full of anger, oh don't steal, you make the sages sad with your illusion. In the Havan ceremony, the scholar shows his privacy after hearing the pronunciation from Balram ji, almost got angry and went to kill him, scaring him with his red-red eyes, at the same time Balram ji increased his light size to such an extent. That his job was hanging like a song, then after throwing him on the earth, he hit his head with a pestle, which caused his head to burst and blood started flowing. Ganga, Kashi, Gomti, Gandaki, Sonbhadra, etc. went on pilgrimage. After bathing in holy rivers, Garhmukteshwar went to pilgrimage places like Prayag, Kashi, Haridwar etc., then went to Mahatirtha Gaya and performed pinddaan of ancestors, after visiting Gangasagar, Vindhyachal etc. pilgrimages, went to Mahendra Giri with the desire to have darshan of Parshuram ji and put his feet at his feet. Bowing his head, after taking orders from Parshuram, Balaji reached Rameswaram while visiting holy places like Shivakasha Vishnu Darshan, took bath there and worshiped the deities. He got the news that a great war was going on between the Kaurava Pandavas, his heart became impatient after hearing the news of the war and he went to Kurukshetra with the idea of ​​pacifying them. In the last phase of the war lying on the ground, Bhimsen and Duryodhana were having a mace fight, Yudhishthira Arjuna and Nakul Sahdev bowed down to him. Hey brothers, Mahabharata war took place in the presence of Shri Krishna Chandra and at this very moment 20 machines and Duryodhana are trying to kill each other, it would be better to postpone the war after listening to his words Leela Bihari Shri Krishna Chandra Dau Bhaiya has said with a smile, yes, when he is hungry, he should not try to snatch food by putting it in front of him, because doing so would increase his anger, so it is best to remain silent at this moment. Balram ji knew that Kanhaiya This is the desire of the war, so he became silent, on the other hand, both Mahavirs were tired of fighting. When Bhimsen used his mace to strike Duryodhana's body, such a sound was generated as if a mace had hit an iron object, killing Duryodhana. Seeing this scene, Shri Krishna ji thought in his mind that when Gadadhari said to him, O son Duryodhan, you come naked in front of me, he was going naked if I Do not say to this that now you have become young and go naked in front of the mother. If there is no mind, then he wrapped a banana leaf on the lower part of the room. At that time, Gadadhari opened his blindfold and saw Duryodhana. Duryodhana's body became solid like a thunderbolt as soon as he read his eyes. When Duryodhana went to the part, he got upset and said, son, what have you done? That place was deprived of force, the rest of the area would not be affected by the attack of any weapon, Duryodhana was filled with pride. If I go to the battlefield, I will fight with Bhimsen and kill him because his other brothers do not know how to fight with mace. In this way, by giving patience to his mother, he went to the battlefield and started making Bhimsen red. went and started fighting, but even after spending a lot of time, he Could not kill Bhimsen and when Bhimsen started feeling a bit disappointed, at that time Shri Krishna came and shouted loudly to him, "Aha Bhim Bhaiya, where are you?" Bhim remembered the scene of Draupati's rip-off, when Duryodhana told his brother Dushasan to make Tirupati undressed, I will sit this amount on my thighs. King Parikshit will take me with his mace, after receiving the signal of Shri Krishna Chandra, Bhimsen hit Duryodhana's thigh fiercely, his thighs broke and he fell on the earth crying, seeing blessings from Balram ji and said, O Gurudev in your presence Bhimsen has violated the rules of mace war and attacked me, then Balram ji took his condition to kill Bhimsen and said, O foolish Bhimsen, or you have no knowledge of the rules of mace war, don't you know that mace war InHitting below the waist is prohibited, but Pune also kicked on the head of the fallen Duryodhana. At that time Shri Krishna Chandra came in front of him and said smilingly, brother Duryodhana had insulted Panchali Draupati in a huge gathering at that time, brother Bhima. had resolved that I would break his leg and the reason for kicking on the head of the fallen Duryodhana is that Abhimanyu, the son of Arjuna, was killed by 7 Maharathis in a completely unjust manner, whereas before the start of the war, both sides decided It was believed that only one Maharathi would fight with one Maharathi, but when the seven Maharathi together killed Abhimanyu, Dushasan had put his foot on the head of Abhimanyu who had fallen on the earth. Balram's anger has calmed down Rajan, at that time Bhimsen touched Balram's feet, he was pleased and hugged Bhimsen with his current and blessed him. At that time God started giving With the inspiration of Shri Krishna, Kunti's heart grew a lot of love for her first son Karna. She said, Son, Duryodhana was ordered to pay homage to the gentlemen. Hearing this, Yudhishthira said, "Mata Karna Suta was the son, he was not our Vatika." Hearing the words of the mother, Yudhishthira felt giddy and fell down on the earth in a half-faint, then when he regained consciousness, he started crying and said, "Mother, you have done a great injustice by hiding this secret, because I would have been blessed to have Mahavir, a mighty brother." All the kingdom auspicious glory at his feet O mother, because of you, I could get the name of brother from brother, so I curse the women of the whole world that from today, no woman can hide any secret in her heart. Due to the curse of the women, there is no problem in the stomach, they definitely say to someone or the other.

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