श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 78

श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 78 आरंभ

दत्त वकरा और बिदुरथ के वध का वृतांत



हे परीक्षित दत्त वाकरा और विदुर रात नामक दो भाई सालवन के परम मित्र और हितेष थे जब उन्हें समाचार प्राप्त हुआ कि श्री कृष्णा ने सलमान का वध कर दिया तब वह अति क्रोधित हुए और अपनी विशाल सेना लेकर द्वारिका पूरी पर आक्रमण कर दिया उस समय सालवन की मृत्यु की प्रशंसा में यदुवंशी मग्न थे कि अचानक दत्त वक्र द्वारा आक्रमण किए जाने पर घबरा गए महाकाल के सामान हाथ में भारी गदा लेकर वहां श्री कृष्ण के सम्मुख जाकर ललकार ते हुए कहने लगे हे कृष्णा तूने मेरे मित्र सालवान का वध किया है इसलिए मैं तेरा वध करने आया हूं यह जानते हुए कि तू मेरे मामा का पुत्र है किंतु यह संबंधित होने का महत्व नहीं है तुझे मार कर मैं मित्र से उऋण होऊंगा अतः मुझसे युद्ध कर ऐसे वचनों का उच्चारण कर दत्त वक्र ने अपनी गदा का भीषण प्रहार श्रीकृष्ण के वक्त पर किया किंतु उस समय त्रिलोकीनाथ ने अपनी कौम बुंदित गधा से उनके प्रहार को निष्फल कर दिया तत्पश्चात भी कृष्ण जी ने हंसकर कहा हे दत्त वक्र तूने अपनी गदा से मेरे ऊपर प्रहार किया अब मेरा वार संभालना क्योंकि मैं शत्रु पर तभी प्रहार करता हूं जब वह प्रथम बार करें यह कह कर उन्होंने अपनी वेगवान गधा घुमाकर ऐसा वार किया कि दत्त वक्र की गदा टूट कर गिर गई और दूसरे प्रहार में दर्द हुआ ट्रक का वक्षस्थल क्षत-विक्षत हो गया उसके मुख नाक कान आदि से रक्त निकलने लगा और वृक्ष से 20 शखा के समान पृथ्वी पर गिर कर तड़पते हुए प्राण त्याग दिए उसी क्षण में ढाल तलवार के लिए दत्त वक्र का भाई विदुर रथ आया जब उसकी दृष्टि मरे हुए दां वक्र पर पड़ी तो क्रोध से उसकी आंखें लाल हो गई भाई की मृत्यु ने उसको घायल सर्प के समान बना दिया है राजन भगवान वासुदेव ने उसका शीश चक्र सुदर्शन से काट लिया और उसके बाद उन्होंने संकल्प किया कि आज के बाद मैं कभी अस्त्र धारण नहीं करूंगा यही कारण था कि उन्होंने महाभारत के महायुद्ध में वस्त्र धारण नहीं किया जबकि बलराम जी को ज्ञात हुआ कि कन्हैया के मन में महाभारत कराने की इच्छा उत्पन्न हुई है तो उन्होंने ही दया में विचार किया कि यदि युद्ध के समय में उपस्थित रहा तो मुझे अत्यधिक कष्ट होगा मेरे लिए यही उचित होगा की तीर्थ यात्रा करने चला जाऊं उन्हें या पुनर अनुमान हुआ कि जब युद्ध की तैयारी होगी तो दोनों पक्ष सहायता मांगने अवश्य आएंगे और दोनों पक्ष के लोग अपने ही है मैं किसकी सहायता करूंगा फिर कन्हैया की इच्छा के विपरीत कार्य करना उचित भी नहीं है अतः बलराम जी अपने को टट्टी स्थित रखने के लिए उद्देश्य से तीर्थ यात्रा पर निकल गए और प्रभास क्षेत्र बिंदुसार गंगा जीत को आदि अनेक तीर्थ का भ्रमण करते हुए ने भीषण क्षेत्र में पहुंचे वहां पर बड़े-बड़े ऋषि महर्षि यज्ञ कर रहे हैं और उस स्थान पर सत्संग हो रहा है एक अन्य स्थान पर वेदव्यास भगवान के आसन पर रोमा हरण सूट जी सभी ऋषि मुनियों की पौराणिक कथा सुना रहे हैं इस समय बलराम जी वहां पहुंचे सभी ऋषि यों ने उठाकर उनका स्वागत किया किंतु और रोमा हरण सूत अपने स्थान पर पूर्व की भांति व्यास के आसन पर बैठे रहे उसके इस अनुचित व्यवहार को देखकर बलराम को अत्यधिक क्रोध आया तत्पश्चात समस्त विषयों को शोभित करते हुए बोले एरियों मेरे आगमन पर तुम सब ने प्रसन्नता व्यक्त की और मेरा आदर सत्कार किया जैसे कि वेद शास्त्रों में कहा गया है कि ऋषि मुनि और सन्यासी महात्मा के हृदय में अहंकार का स्थान नहीं होना चाहिए अहंकार से उनकी समस्त जब तक के पुण्य नष्ट हो जाते हैं यह छतरी के द्वारा ब्राह्मणी के गर्भ से उत्पन्न सूट ने ना तो मुझे प्रणाम किया और बैठने के लिए आसन भी नहीं दिया इनसे मिलो कुल में जन्म लिया था तथापि व्यास जी के आसन पर बैठा है इसने अभिमान वस मेरा तिरस्कार किया और वेद पुराणों का ज्ञाता होते हुए कलयुग ब्राह्मणों के समान दूसरों को उपदेश तो दे रहा है किंतु स्वयं मर्यादा का पालन नहीं कर रहा है ऐसे व्यक्ति दंड के भागी होते हैं यह कह कर बलराम जी ने वहां पड़ी उषा को उठाकर सूची पर प्रहार किया जिससे तक्षण उसकी मृत्यु हो गई सूत जी की मृत्यु देखकर वहां आए हुए ऋषि मुनि कहने लगे हे अनंत भगवान हम सभी जानते हैं कि आप अवतारी पुरुष है किंतु इस समय आपने अनुचित कार्य किया है क्योंकि भगवान वेदव्यास के आसन पर बैठकर यह हम सभी विषयों का हरि कथा सुनाते थे आपने बिना विचारे शुद्ध जी का वध कर डाला जिससे आपको ब्रह्मा हत्या का घोर पाप लगेगा ऋषि यों के वचन सुनकर बलराम जी उदास हो गए और विनम्र होकर पूछने लगे हे महापुरुष तुम्हारे हो वचनों से मुझे ज्ञात हुआ कि सचमुच मुझे अपराध हुआ है अतः ऐसा कोई उपाय बतलाए जिससे मैं ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त हो जाऊं तब ऋषि यों ने कहा यह संकरण जी आपने धर्म रक्षा के लिए मानव तन धारण किया है अतः इस समय मनुष्यों के समान आचरण करते हुए धर्म का पालन करना चाहिए तब बलराम जी बोले यह साधु जनों आप सभी के हृदय में यह दुख हो रहा है कि अब हरि कथा का रसपान कुंभ कराएगा यदि रोमा हरण जी को जीवित चाहते हो तो मैं उन्हें अभी जीवित की किए देता हूं किंतु ऐसा करने से मृत्यु लोग का नियम भांग होगा तब ऋषि यों ने कहा हे भगवान हम सभी ऋषि यों ने सूत जी की दीर्घाय लंबी आयु का वरदान दिया था जो इसकी मृत्यु के कारण मिथ्या हो रहा है उस समय विचार करके बलराम जी कहने लगे हैं रिसीव आप सभी ज्ञानी पुरुष है और यह जानते भी हैं कि पुत्र रूप में पिता की आत्मा प्रकट होती है सो मैं शुद्ध जी के पुत्र को बिहार जी के आसन पर बैठे देता हूं यह कह कर उन्होंने उग्रवाद को बुलाकर व्यास जी के आसन पर बिठाया तत्पश्चात उन्होंने आशीर्वाद दिया जिससे उसकी झाडू क्रश राव को झाइयों शास्त्रों और 18 पुराण बिना पढ़े ही कंठस्थ हो गए समय बलराम जी बोलेंगे ऋषि मेरे द्वारा सूजी का वध होने से हरि कथा अपूर्ण रह गई थी अब उसे उग्रवाद पूर्ण करेगा तत्पश्चात ऋषि यों ने बलराम जी से प्रार्थना की हे भगवान इस क्षेत्र में ही बल नामक का एक दाना रहता है जो सदैव हम ऋषि यों के यज्ञ हवन आदि शुभ कार्यों में विद्यमान उत्पन्न करता है जिस समय हम यज्ञ करते हैं वहां दानव मल मूत्र गौ मांस हड्डी आदि लेकर हवन कुंड में डाल देता है उसके अत्याचार से ऋषि यों का शुभ कार्य नष्ट हो जाता है यह स्वामी दया करके उस दानव का वध करके हमारा हित कीजिए

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Shrimad Bhagwat Katha Purana Tenth Canto Chapter 78 Beginning

The account of the killing of Datta Vakra and Biduratha

Hey Parikshit Dutt Vakra and Vidur Rat were the best friends and well-wishers of Salvan. When he got the news that Shri Krishna had killed Salman, he became very angry and attacked Dwarka Puri with his huge army. The Yaduvanshis were engrossed in the praise of the death of Vishnu that suddenly being attacked by Dutt Vakra, like Mahakal, with a heavy mace in his hand, he went there in front of Shri Krishna and started shouting, O Krishna, you have killed my friend Salwan, so I I have come to kill you knowing that you are my maternal uncle's son but it is not important to be related. He did it on time, but at that time Trilokinath made his attack ineffective with his donkey's ass, even after that Krishna ji laughed and said, O Dutt Vakra, you hit me with your mace, now handle my attack because I attack the enemy only when Saying that he should do it for the first time, he By twisting the donkey, he attacked in such a way that Dutt Vakar's mace broke and fell down and in the second blow there was pain. At the same moment Dat Vakar's brother Vidur Rath came for shield and sword, when his eyes fell on the dead Da Vakar, his eyes turned red with anger. Brother's death has made him like a wounded snake. His head was cut off by Sudarshan and after that he resolved that after today I would never wear a weapon, this was the reason why he did not wear clothes in the great war of Mahabharata, while Balram ji came to know that Kanhaiya had the intention of getting Mahabharata done. If the desire has arisen, then he thought in mercy that if he was present in the time of war, then I would suffer a lot, it would be appropriate for me to go on a pilgrimage to him, or again it was estimated that when the preparations for the war would be done, both sides would help. Will definitely come to ask and people from both sides are their own whose help I am I will do it, then it is not right to act against Kanhaiya's wish, so Balram ji went on a pilgrimage with the aim of keeping himself in the pot and after visiting many pilgrimages like Prabhas Kshetra Bindusar Ganga Jeet, he reached the gruesome area. But great sages are performing Yagya and satsang is being held at that place. At another place, Roma Haran Suit ji is narrating the mythology of all the sages and sages on the seat of Ved Vyas. Welcomed them by lifting them up, but Balaram got very angry seeing this inappropriate behavior of Roma Haran Sut and sitting on the seat of Vyas in his place, then beautifying all the subjects, you all expressed happiness on my arrival Arians. And honored me as it is said in Veda Shastras that there should be no place of ego in the heart of Rishi Muni and Sanyasi Mahatma. All their virtues are destroyed by ego. neither bowed down to me nor offered to sit Meet him, he was born in the family, but he is sitting on the seat of Vyas ji, he has despised me with pride and being a knower of Vedas and Puranas, he is preaching to others like Kalyug Brahmins, but he himself does not follow the dignity. Saying that such a person is liable to be punished, Balram ji picked up Usha lying there and hit the list, due to which she died instantly. That you are an incarnate man, but at this time you have done an unseemly act because sitting on the seat of Lord Ved Vyas, he used to narrate the Hari Katha of all subjects to us. Balram ji became sad after hearing this and started humbly asking, O great man, from your words, I came to know that I have really committed a crime, so please tell me some way by which I can be free from the sin of killing Brahma, then the sages said, this is Sankaran ji. He has assumed a human body for the protection of religion, so at this time he should behave like a human being. One should follow the religion while chanting, then Balram ji said, this sadhus, all of you are feeling sad that now Kumbh will organize the raspan of Hari Katha. By doing this, the rule of death will be broken, then the sages said, O God, we all the sages had given the boon of long life to Sut ji, which is becoming false due to his death, at that time Balaram ji started saying receive All of you are knowledgeable men and you also know that the soul of the father appears in the form of a son, so I give Shuddha ji's son a seat on the seat of Bihar ji. Blessed by which his broom Crush Rao got freckles, scriptures and 18 Puranas were memorized without reading. At that time Balram ji will say that the Hari Katha remained incomplete due to the killing of semolina by me. that oh godIn this area only there is a grain called Bal, which always generates current in the auspicious works of Yagya, Havan etc. of us sages. When we perform Yagya, the demon takes faeces, urine, cow meat, bone etc. and puts it in the Havan Kund. Harassment destroys the auspicious work of the sages, this lord have mercy and kill that demon and do good to us.

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