श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 58

श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 58 आरंभ

सत्या एवं भद्रावती से श्री कृष्ण चंद्र का विवाह होना



श्री सुखदेव जी के कहा हे राजा परीक्षित श्रद्धा का वध करने के पश्चात श्री कृष्ण जी ने पूर्णा हस्तिनापुर जाने का विचार किया क्योंकि जब उन्हें यह समाचार प्राप्त हुआ कि पांडव पुत्र और कुंती दूध प्रधान द्वारा बनाए गए लागरी में जलकर भस्म हो गए किंतु जब वह हस्तिनापुर पहुंचे थे पीछे से रोती थी सत्यजीत की मृत्यु का समाचार लेकर सद्भावना पहुंची अतः हुए बलराम सहित वापस लौट आए बाद में ज्ञात हुआ कि विदुर जी ने लागरी हमें एक सुरंग बना रखी थी उसी सुरंग के माध्यम से पांचों भाइयों घूमती बाहर निकली गए उनके जीवित पर जाने का समाचार सुनकर मुरली मनोहर अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें पेट करने के लिए पुनः रथ पर सवार होकर चले दिए हे राजन उन्हें तीनों धूप रक नरेश ने अपनी पुत्री द्रोपति का स्वयंवर राजा आया हु स्वयंवर में दुर्योधन आदि बहुत से राजा गण हाय धनुर्धारी कांड भी थे हे राजन धूम ऋषि की पांच आज्ञा मानकर पांचो पांडव अपने माता कुंती को वहीं रहने के लिए कहा सियासी का वेश धारण कर स्वयंवर में गए जब वरमाला हाथ में लेकर द्रोपति राज सभा में उपस्थित हुई तब उसके भाई दृष्ट ध्रुव खड़े होकर स्वयंवर की शर्त बतलाते हुए कहने लगे हे देश देश से आए हुए राजाओं आप सब स्वयंवर का निमंत्रण पाकर इसी स्थान पर एकत्रित हुए हो अतः धैर्य पूर्वक सुनो जो धनुषधारी मंच पर रखे हुए धनुष पर सर संधारण चलाएगा उसके चक्र के ऊपर घूमती हुई मछली की परछाई नीचे रखी तेल की कढ़ाई में देखकर उसकी आंख का भेदन करेगा उसी के साथ द्रोपदी का विवाह होगा इस कठिन तम सर्च को सुनकर राजा गण आपस में विचार विमर्श करने लगे उसको यह शर्त बहुत ही सरल लगी और हुए अपने साथ उठाकर मंच पर रखे धनुष तक पहुंचे और उसे उठाने का प्रयास किया किंतु उससे वह धनुष ना उठा और सभा में लज्जित होकर अपने स्थान पर जा बैठे जब सभी राजा गण निराश हो गए तब महाबली कर्ण अपने स्थान से उठकर आगे बढ़ा उस समय द्रोपति कर कर बोली अरे सूत पुत्र कर्ण मैं राजकन्या हूं अतः मेरा विवाह सूत पुत्र के साथ कदापि नहीं हो सकता हे राजा परीक्षित द्रोपति के उठ वचनों को सुनकर कांड को बहुत हाथ मन लगीन हुआ राजाओं के बीच द्रोपति द्वारा अपमानित होकर चुपचाप अपने स्थान पर जा बैठा तत्पश्चात धर्मराज युधिष्ठिर की आज्ञा प्राप्त कर प्रशासन गिरधारी अर्जुन अपने स्थान से उठे और युधिष्ठिर को प्रणाम कर धनुष उठा लिया और तेल में मत्स्य की परछाई देखकर उसकी आंखों का निशाना लगा दिया दीपेश धारी अर्जुन ने लक्ष्य भेद कर डाला आगे बढ़कर द्रुपद सुता ने पहनाई वरमाला हे राजन उस समय अन्य राजगढ़ अर्जुन से युद्ध करने के लिए तैयार हो गए थे क्योंकि उनके मन में अर्जुन को भी झुक समझकर वेश की भावना उत्पन्न हो गई थी तब अर्जुन ने अपना परिचय दिया उसका परिचय प्राप्त कर द्रुपद आदि बहुत प्रसन्न हुए यह परिचित द्रोपति को लेकर पांचों भाई उस कुटिया में वापस लौट आए जहां अपनी माता को छोड़ कर गए थे तब वहां पहुंचे तो उसी घड़ी कुंती को कोई कार्य कर रही थी जिस कारण उसकी दृष्टि पृथ्वी की ओर थी अर्जुन सहित पांचों ने प्रणाम करके कहा है माता आपने धनुष विद्या के बल पर एक अनमोल वस्तु जीत कर लाए हैं अर्जुन के वजन को सुनकर कुंती बोली है पुत्रों वह वस्तु तुम पांचों भाइयों आपस में बांट लो हे राजा माता के कथन अनुसार इस तरह द्रुपद पांच पतियों की पत्नी हुई उधर पांडवों को जीवित देख दुर्योधन के मन में उनके प्रति और अधिक एशिया होने लग जाता है उसने कपट पूर्ण चाल चलते हुए पांडव को सम्मान पूर्वक हस्तिनापुर बुलवाकर राज्य का कुछ भाग उन्हें दे दिया तब पांडवों ने उस छोटे से राज्य का नया इंद्रप्रस्थ रखकर सुख पूर्वक रहने लगे तत्पश्चात श्री कृष्णा जी कुछ यदुवंशियों सहित अपने बुआ कुंती से भेंट करने के लिए इंद्रप्रस्थ जाए जब पांडवों ने उन्हें देखा तो उनके आनंद की सीमा ना रहे श्री कृष्ण जी उस से प्रेम पूर्वक मिले और समाचार पूछने लगे हे परीक्षित भगवान श्री कृष्ण जिस समय पांडवों से बातचीत कर रहे थे उसी समय कुंती वहां आई उसे देखकर नंदनंदन के मानव स्वभाव प्रगट कर कुंती के चरणों में अपना मस्तक रखकर प्रणाम किया उन्हें आशीष देकर कुंती द्वारिका वासियों का समाचार पूछने लगी तब श्री कृष्णा जी द्वारा मुस्कुरा कर बोले यह बुआ द्वारिकापुरी में सब प्रकार से कुशल है किंतु मुझे यह प्रतीत हो रहा है कि तुम सब कुशल पूर्वक नहीं हो तब बिहार होकर सुनती कहने लगी है प्रभु आप सब कुछ जान कर भी अंजान बन रहे हैं सृष्टि में ऐसा कौन सी वस्तु है जिस पर आपकी दृष्टि ना पड़ी रही हो मेरे पुत्रों पर सदैव दुर्योधन को कुदृष्टि रहती है वह हर समय मारने के लिए षड्यंत्र रचता रहता है ना जाने पूर्व जन्म में मैंने कौन सा पुण्य कर्म किया था कि अब तक जीवित बचे हुए हैं और आपका दुर्लभ दर्शन हमें प्राप्त हुआ हे प्रभु जिस तरह आपने कृपा करके हमें दर्शन दिया उसी तरह कुछ दिनों यही पर रह कर हमें सुख प्रदान कीजिए कुंती के वचनों को सुनकर श्री कृष्णा दीप 4 मांह तक उसके साथ आनंद पूर्वक इंद्रप्रस्थ में रहे हे राजन एक समय श्री कृष्णा जी को अपने संग लेकर अर्जुन वन में आखेट के लिए गए वहां उन्होंने शेर भालू हिरण आदि बहुत से पशुओं का शिकार किया है राजन प्यास से अति व्याकुल होकर अर्जुन बोले हे श्यामसुंदर जंगली जीव उनके पीछे घोड़ा दौड़ते दौड़ते मैं बहुत थक गया हूं और प्यास भी लग रही है आप ब्रिज की छाया में विश्राम कीजिए तब तक मैं पानी लेकर आता हूं यह कह कर उन्होंने घोड़े को एक वृक्ष की छाया में बांध दिया और जल पीने के लिए यमुना तट पर चले गए जल्दी कर उसकी आत्मा तृप्त हुई तो उसकी दृष्टि यमुना जल के बीच बने वर्णित मंदिर पर गई अर्जुन ने देखा कि यह अति रूपवती कन्या बैठी हुई तपस्या कर रही है तब वे उसके निकट जाकर पूछने लगे हैं सुंदरी तुम कौन हो किसकी पुत्री हो आपकी सिद्धि हेतु तपस्या कर रही हो अर्जुन की वाणी सुनकर परम सुंदरी अपने नेत्रों को खोलती हुई बोली है पुरुष में सूर्य पुत्री कालीन दिल्ली यमुना जल ही मेरा निवास स्थान है और श्री कृष्ण चंद्र को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए मैं तपस्या कर रही हूं कालीन देना युवजन को सुनकर अर्जुन लौट आया और श्री कृष्णा के निकट जाकर गाने लगाइए यदुनंदन आपके भाग्य प्रबल है तुम्हें पति रूप में प्राप्त करने की अभिलाषा से सूर्यपुत्री कालिंदी ने यमुना जल में तपस्या कर रही है आप उस पर अपना अनुग्रह करें तब हुए अर्जुन की बात मानकर उसी स्थान पर गए यहां का नंदिनी तब कर रही थी और उससे इस प्रकार कहने लगे हैं सूर्यपुत्री में श्री कृष्णा यह सुनते ही वह अपने स्थान से उठी और श्री कृष्ण के चरणों में अपना मस्तक देखकर प्रेम रस युक्त भोजन करने लगी ना लीला कर रही यदुनंदन से उसी समय से विवाह कर अपने साथ इंद्रप्रस्थ ले आए उन्हीं दिनों एक दिन मनुष्य का स्वरूप धारण का राजनीति अवतार भगवान श्री कृष्ण के निकट आए और हाथ जोड़कर विनती करते हुए कहने लगी हे भगवान बहुत दिनों से मैं भूखा हूं यदि आप आज्ञा दें तो मैं खंडवा उनको जाकर अपनी भूख शांत कर लो श्रीकृष्ण ने अग्नि देव को आज्ञा प्रदान की तब लगने से पुनः बोले भगवान आपने मुझे आ गया देख कर मुझ पर कृपा की है किंतु मुझे इंद्रदेव से भाई है जब मैं खंडवा 1 को जलाने लगूंगा तो हुए जल बरस कर आग को बुझा दे इस तरह मैं भूखा रह जाऊंगा तब श्री कृष्णा जी ने अग्नि देव की रक्षा के लिए अर्जुन की भेजा हे राजन जब प्रचंड अग्नि सेकंड वन जलने लगे तो देवराज इंद्र अत्यधिक कुपित हुए और वहां पर जल वर्षा करने के लिए अपनी अधीर में ओशो को आज्ञा दी तब अर्जुन ने वायु मार्ग चलाकर मेघों को दूर भगा दिय हे राजन उसी वन में दानव रहता था जो कुशल शिल्पी था उसे आकर अर्जुन से प्रार्थना की हे पार्थ माही जीवन में रहता हूं पूरा 1 आदमी से जल रहा है मैं आपकी शरण में आया हूं आप मेरी रक्षा करते तब अर्जुन ने अग्नि देव से कहा यह हे देव आप माय दानव का स्थान सुरक्षित छोड़ दें अग्नि देव ने वैसा ही किया तत्पश्चात माय दानव ने अर्जुन से मित्रता कर ली और आपने कुशल सिर्फ विद्या से एक ऐसा भवन का निर्माण किया जिसमें जाल के स्थान पर ताल ऑर्थल के स्थान पर जल का भरमा होता था एक बार जब युधिष्ठिर के अद्भुत वचन की प्रशंसा सुनकर देखने के लिए दुर्योधन आया तो उसे दृष्टि भ्रम हुआ और धोखे में जल को स्थल समझकर जल के कुंड में गिर गया पर उस समय कट कालिका पर आपने सरस के साथ बैठे द्रोपति यह कह कर हंसने लगी थी कि अंधों के पुत्र अंधे ही होते हैं हे राजन द्रोपदी को उप संघार करना दुर्योधन के दिल को चीर गया और मन ही मन जलकर उसने निश्चय किया कि एक दिन तुझे अपनी जांघों पर बैठा लूंगा तब मेरे हृदय को शांति प्राप्त होगी और उसी गाड़ी वहां लौट आया हे राजा अर्जुन की सहायता से अग्निदेव ने खंडवा वन को भरम कर नेतृत्व किया और प्रसन्न होकर एक अक्षय उत्तराखंड में अनुसार श्वेत रंग के चार घोड़े प्रदान किए इंद्रप्रस्थ में वर्षा काल के चारों मां जीतकर श्री कृष्णा जी द्वारिकापुरी लौट गए और वहां जाकर कॉलोनी से शास्त्रानुसार विधि पूर्वक विवाह कर आनंद से रहने लगे उन्हीं दिनों उज्जैन देश के राजा मित्र सेन ने अपनी कन्या मित्र बिंदा का स्वयंवर रचाया और देश देश के राजाओं को आमंत्रित किया राजा दुर्योधन भी आमंत्रित पाकर अपने भाइयों सहित स्वयंवर में आया जिस समय श्री कृष्णा जी वहां पहुंचे हाथ में वरमाला डाल दी तब श्री कृष्णा जी उसे अपने रथ पर बैठा कर द्वारिकापुरी ले आए तत्पश्चात कौशल देश अयोध्या के राजा ने अपनी पुत्री सत्य का विवाह हेतु देश के कोने-कोने से ढिंढोरा पिटवा है कि जो व्यक्ति मेरे साथ बहनों को एक साथ साथ देगा थ साथ में अपनी कन्या सत्या का विवाह दूंगा राजा नग्न जीत के प्राण का समाचार पाकर अर्जुन को अपने संग लेकर मुरली मनोहर अयोध्या गए उन्हें देख कर आजा नवजीत न्यू उनका आदर सत्कार किया तत्पश्चात श्री कृष्ण चंद्र जी मन मन मुस्कुराते हुए बोले हे राजा छतरी धर्म के अनुसार याचना करना अनुचित है फिर भी मैं करता हूं कि अपनी कमियां सत्या का विवाह मुझसे कर दो जिस समय श्री कृष्णा जी राजा ना गीत से इस प्रकार का रहे थे उसी समय के अनुरूप सौंदर्य और मधुर वाणी पर न्योछावर होकर सत्या मानने लगी कि हे भगवान मेरे पिछले जन्मों का पुण्य का फल है मुरली मनोहर को मेरे पति के रूप में प्रदान कर करें श्री कृष्णा जी उसके मन की बात जान गए इसलिए राजा नाम अजीत से उसकी कमियों को मांगा तब राजा नंद गीत बिना पूर्वक हाथ जोड़कर बोले हे प्रभु आप सर्वगुण संपन्न में संसार में एक मात्रा अंजाम वह आपके सामान सृष्टि में दूसरा कोई नहीं किंतु यदि मैं आपकी कमियां आपक समर्पित कर देता हूं तो मेरी प्रतिज्ञा भंग हो जाएगी और आप तो जानते ही हैं कि क्षत्रियों का आभूषण उसके वचन होते हैं मेरी प्रतिज्ञा यह है कि जो मेरे साथ बहनों को एक साथ नाथ देगा उसी के साथ मेरी कन्या का विवाह होगा हे परीक्षित राजा इंद्रजीत के वचनों को सुनकर श्री कृष्णा जी मुस्कुरा कर अपना एटा कसने लगे तत्पश्चात उन्होंने 7 अप्रैल को एक रस्सी से लाद दिया सत्य में प्रसन्न होकर वरमाला उसके गले में पहना दी तब राजा रंजीत से बहुत सारा दहेज स्वर्ण मुद्रा 10000 गांव में देकर प्रसंता हुआ उसे विदा किया जब भारत रावल देश के राजा ने अपनी पुत्री भद्रा का स्वयंवर रचाया तो अर्जुन को साथ लेकर श्री कृष्णा जी वहां गए उन्होंने देखा कर उनके मोहनी स्वरूप पर मोहित होकर भादरा में वरमाला डाल कर उन्हें अपना पति बनवाया हे राजन इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण की बुक मणि सद्भावना या मोहंती सत्या भद्रकाली ंदा लक्ष्मणा मित्रविंदा आदि पटरानी हुई

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Shrimad Bhagwat Katha Purana Tenth Skandha Chapter 58 Beginning

Shri Krishna Chandra's marriage to Satya and Bhadravati

Shri Sukhdev ji said that after killing King Parikshit Shraddha, Shri Krishna ji thought of going to Poorna Hastinapur because when he got the news that Pandava's son and Kunti were burnt to ashes in the milk prepared by the headman, but when he Had reached Hastinapur, cried from behind. Sadbhavna reached with the news of Satyajit's death, so he returned with Balram, later it came to know that Vidur ji had made a tunnel for us, through the same tunnel the five brothers roamed outside their lives. On hearing the news of his departure, Murli Manohar was very pleased and went on a chariot to feed him again, O king, the three incense kings gave him the swayamvara king of his daughter Drapati, Duryodhana etc. O Rajan Dhoom, following the five orders of Rishi, the five Pandavas asked their mother Kunti to stay there, disguised as a political leader and went to the swayamvara, when Drapati appeared in the royal assembly with a garland in his hand, then his brother Drisht Dhruva stood up as the condition of the swayamvar. to tell O kings who have come from country and country, after receiving the invitation of Swayamvar, all of you have gathered at this place, so listen patiently, the person holding the bow kept on the bow placed on the platform with the bow, the shadow of the fish moving over its wheel in the oil pan kept below. Draupadi would be married to her after seeing this difficult search, the kings started discussing with each other, he found this condition very easy and took it with him and reached the bow placed on the stage and tried to lift it. But he did not lift the bow from it and went to his place ashamed in the assembly, when all the kings were disappointed, then Mahabali Karna got up from his place and went ahead, at that time Draupati said, hey son, Karna, I am a princess, so my marriage is a thread. It can never happen with the son, O King Parikshit, listening to the words of Draupati, he was very much interested in the scandal, being humiliated by Draupati among the kings, he sat quietly in his place, then after receiving the orders of Dharmaraja Yudhishthira, the administration Girdhari Arjun got up from his place. And bowing down to Yudhishthira, he lifted the bow and dipped it in oil. Seeing the shadow of Matsya, he targeted his eyes, Dipesh Dhari Arjun broke the target and went ahead Drupada Suta wore a garland, O Rajan, at that time the other Rajgad was ready to fight with Arjuna, because in his mind Arjun was also bowed down. Understanding the feeling of disguise had arisen, then Arjun introduced himself, Drupada etc. were very pleased after getting his introduction, taking this acquaintance Drapati, the five brothers returned to the hut where they had left their mother, then they reached there at the same time. Kunti was doing some work, because of which her eyes were towards the earth Brothers, according to the statement of Mother King, Drupada became the wife of five husbands, on the other hand, seeing Pandavas alive, Duryodhana started having more Asia towards them. When the Pandavas gave him some part of the Keeping a new Indraprastha of a small kingdom, he started living happily, after that Shri Krishna ji along with some Yaduvanshis went to Indraprastha to meet his aunt Kunti. When Lord Shri Krishna was talking to the Pandavas, Parikshit started asking for the news, at the same time, Kunti came there, seeing the human nature of Nandanandan, worshiped her by placing her head at the feet of Kunti. Krishna ji said with a smile that this aunt is skilled in every way in Dwarkapuri, but it seems to me that you are not all skilled, then after going to Bihar, she has started saying that Lord, even after knowing everything, you are becoming ignorant in the world. What is the thing on which you have not been able to see my sons? And we get your rare sight It happened, Lord, as you kindly appeared to us, in the same way, stay here for a few days and give us happiness, listening to the words of Kunti, Shri Krishna Deep stayed happily with her for 4 months in Indraprastha, O Rajan, once upon a time to Shri Krishna ji. Taking Arjun with him, he went for hunting in the forest, where he has hunted many animals like lion, bear, deer etc. You rest in the shade of the bridge, till then I bring water, he tied the horse to the shade of a tree and went to the banks of Yamuna to drink water, his soul was satisfied, then his eyes were filled with Yamuna water. Arjun, who went to the described temple in the middle, saw that this very beautiful girl was sitting and doing penance, then he went near her and started asking, who are you beautiful daughter, whose daughter is doing penance for your accomplishment.Hearing the voice, the supreme beauty has opened her eyes and said that in the man, the daughter of the Sun, Delhi Yamuna water is my abode and I am doing penance to get Shri Krishna Chandra as a husband, Arjun returned after listening to the young man And go near Shri Krishna and sing songs Yadunandan Your fate is strong, with the desire to have you as a husband, Suryaputri Kalindi is doing penance in the Yamuna water, you should do your grace on her, then obeying Arjuna, went to the same place here. Nandini was doing then and has started telling her in this way that Shri Krishna in Suryaputri, on hearing this, she got up from her place and after seeing her head at the feet of Shri Krishna, she started eating with love and did not marry Yadunandan, who was doing Leela. Brought Indraprastha with him, one day the political incarnation of human form came near Lord Shri Krishna and pleaded with folded hands and said, oh God, I am hungry for a long time, if you allow me, I will go to Khandwa to quench my hunger. Do it, Lord Krishna ordered the fire god Granted, then God said again after seeing me have come, but I have a brother from Indradev, when I start burning Khandwa 1, extinguish the fire by raining water, in this way I will remain hungry then Shri Krishna ji sent Arjuna to protect the fire god, O Rajan, when the fierce fire started burning in the second forest, Devraj Indra became very angry and in his impatient order to rain water there, then Arjuna drove the clouds away by running the air path. Banished, O Rajan, a demon lived in the same forest, who was a skilled craftsman, came and prayed to Arjuna, O Partha Mahi, I live in life, I am burning with one man, I have come under your shelter, you would protect me, then Arjuna asked Agni Dev Said it, O God, you leave my demon's place safe, Agni Dev did the same, after that my demon befriended Arjuna and you skillfully built such a building with only knowledge in which water was replaced by pool orthal instead of trap. Once when Duryodhana came to see Yudhishthira's wonderful words, he was confused. And in deception, mistaking the water as a place, he fell into the pool of water, but at that time Draupathi, sitting with her head on the cut Kalika, started laughing saying that the sons of the blind are only blind, O king; Ripped off and burning in his heart he decided that one day I will make you sit on my thighs, then my heart will get peace and the same car returned there, O Agnidev, with the help of King Arjuna, led the Khandwa forest to the delusion and was pleased. According to one Akshay in Uttarakhand, after winning four white horses in Indraprastha during the rainy season, Shri Krishna returned to Dwarkapuri and went there and married the colony according to scripture and started living happily. Made a swayamvar of girl friend Binda and invited the kings of the country, King Duryodhana also got invited and came along with his brothers to the swayamvar, when Shri Krishna ji reached there and put a garland in his hand, then Shri Krishna ji brought him to Dwarkapuri by sitting on his chariot. After that Kaushal was in the country of Ayodhya. The king has thrashed his daughter Satya from every corner of the country for the marriage that the person who will accompany the sisters together with me, along with will give the marriage of his daughter Satya, the king, after receiving the news of the life of naked victory, took Arjun with him. Murli Manohar went to Ayodhya after seeing him, Navjeet New respected him, after that Shri Krishna Chandra ji said with a smile to his heart, it is inappropriate to pray according to the Raja Chhatri religion, yet I do that my shortcomings, let Satya marry me at that time. Shri Krishna ji had lived like this with Raja Na Geet, according to the same time, after sacrificing beauty and sweet voice, Satya started believing that Lord Krishna is the fruit of the merit of my past births by providing Murli Manohar as my husband. ji came to know about his mind, so asked Raja Naam Ajit for his shortcomings, then King Nand Geet said without folded hands, O Lord, you are in all the virtues in the world, that one quantity in the world, like you, no one else in the world, but if I tell you your shortcomings. If I surrender, then my promise will be broken and You already know that the ornaments of Kshatriyas are his words, my promise is that my daughter will be married to the one who will bless my sisters together, O Parikshit, listening to the words of King Indrajit, Shri Krishna ji smiles and takes his eta. After that, on 7th April, he loaded it with a rope, pleased with the truth and put a garland around his neck, then King Ranjit was pleased by giving him a lot of dowry gold currency in 10000 villages, when the king of India Rawal gave his daughter Bhadra. When he took Arjuna along with him, Shri Krishna ji went there, he was fascinated by his Mohini form, he made him his husband by putting a garland in Bhadra, O Rajan, thus Lord Shri Krishna's book Mani Sadbhavna or Mohanty Satya Bhadrakali da Lakshmana Mitravinda etc. got over

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