श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 56

श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 56 आरंभ

श्री कृष्णा जी से जामवंती और सत्यभामा का विवाह होने की कथा का वर्णन



महात्मा श्री सुखदेव जी बोले हैं परीक्षित भगवान सूर्यदेव की उपासना कर द्वारिकापुरी में निवास करने वाले सहस्त्र अजीत यादव ने उसे श्यामक मणि दो प्राप्त की वह मणि भगवान सूर्य देव के समान जगमग आ करती थी सत्राजित को वह प्रदान करके सूर्यदेव से कहा हे सत्रजीत इससे सामान्य मणि कदापि ना समझा ना इससे इस महान तक मणि कहते हैं तुम प्रतिदिन इस मणि की विधिवत पूजा करना नियम पूर्वक पूजा करो तो यह मणि तुम्हें बहुत सा सुवाण प्रदान करेगी यह कह कर भगवान शुकदेव अनेक लोग को चले गए तब 17 जीत वहां से अपने घर आया और एक स्थान पर वह हार कर मरी को रखा और धूप दीप आदि से पूजा किया उसी क्षण उस से एक मन सोना प्राप्त हुआ यह दृश्य देखकर सत्रजीत अत्यंत प्रसन्न होकर भगवान सूर्य देव को प्रणाम करके दान पुण्य करने लगा सूर्य देव द्वारा प्रदान की गई उस्मानी की रक्षा व प्राणों से अधिक करने लगा हूं हे राजन एक बार स्वयं शिफ्ट मणि को कंठ में धारण कर 17 दिन भगवान श्रीकृष्ण से भेंट करने हेतु सभा में गए सूर्य के समान प्रकाशमान उस मणि को धारण करते आते हुए सत्रजीत को देखकर वहां उपस्थित समस्त यदुवंशी कहने लगे हे श्यामसुंदर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि आपके दर्शनों की अभिलाषा से भगवान सूर्यदेव स्वयं साले आ रहे हैं तब एक दूसरे यदुवंशी ने कहा तुम सत्य का रहे हो वहां इतना अधिक प्रकाश फैला हुआ है कि उस पर दृष्टि नहीं ठहरा रही है उसी समय सत्रजीत उसके निकट आकर यशो तीर्थ स्थान पर बैठ गया उसके कंठ में पहनना रखी इस माणिक मणि जगमग जगमग आ कर रही थी भगवान श्रीकृष्ण सब कुछ जान कर भी चुप रहे जब सत्राजित को उठ कर चला गया तो ही यादों के भगवान वासुदेव से कहना आरंभ किया हे भगवान मणि जैसे बहुमूल्य वस्तु राजाओं को शोभा देती है 17 दीजिए से साधारण प्राणी को नहीं आता है आप उस मणि को लेकर महाराज उग्रसेन को दे दे दूसरे दिन जब शतरंज राज्यसभा में आया तो उसी घड़ी श्री कृष्ण जी को यादव के कथन का स्मरण हो गया यह विचार करने लगे यह सत्रजीत यह तेरे पास जो दिव्य अलौकिक मणि है इसे तू महाराज उग्रसेन को देखें क्योंकि मनुष्य मैं राजा ही श्रेष्ठ होता है इससे तेरा यश भूमंडल में बढ़ेगा किंतु सत्राजित ने कन्हैया की बात अनसुनी कर दी और सभागार से उठ कर अपने घर को चला गया और अपने भाई प्रसनजीत से कहने लगा है भाई प्रसनजीत मेरे अकाउंट में शोभायमान हो रही स्नातक मणि को देखकर श्री कृष्णा के मन में लालच उत्पन्न हो गया है वह मुझसे कहने लगे कि हमारे राजा को दे दो भाई के वचन सुनकर प्रसनजीत उससे मणि लेकर अपने कंठ में पहन लिया और बोला अब देखता हूं वह किस तरह मुझसे मानी लेता है हे परीक्षित प्रभु की लीला न्यारी है उस मणि को धारण कर प्रसनजीत एक दिन शिकार खेलने हेतु वन में गया और अपने साथियों से अलग होकर घनघोर जंगल में मार्ग भूल गया और इधर उधर भटकने लगा उसी समय वनराज शेर की दृष्टि उस पर आप पढ़े प्रसनजीत को देखकर शेर जोर से धारा उसकी भयंकर आवाज सुनकर प्रसनजीत का ह्रदय कांप गया अस्त्र उसके हाथ से छूटकर गिर गया उसी समय शेर ने उस पर छलांग लगा दी और अपने बयान पर प्रहार से उसे मार डाला तत्पश्चात उसका आहार करने के लिए निकट ही गुफा में खींच ले गया उसी समय रिक्शा राज जामवंत की दृष्टि शेर पर पड़ी और उन्होंने उससे मार डाला तथा वह मणि ले ली उसका अद्भुत मणि से गुफा का अंधेरा ज्ञान समाप्त हो गया उस मणि से गुफा में सर्वप्रथम प्रकाश फैल गया हे राजन जब प्रसनजीत वापस ना आया तब उसके भाई साथ अजीत को अत्यधिक चिंता सताने लगी दिन बीत गए जब रात्रि हुई तो वह आपने तुम भी हमसे कहने लगा कि मुझसे श्री कृष्णस्वामी मांगा रहे थे और मैंने नादिया संभव है कि मणि प्राप्त करने के लिए उसने मेरे भाइयों को मारकर मणि चुरा लिया है जब 2 दिन बीत गए व्यतीत हो गए तब शास्त्र अजीत ने अपनी स्त्री से वह बात बताई तत्पश्चात उसकी स्त्री जब पानी भरने के लिए कुएं पर गई तो वहां बात आनी स्त्रियों से कहने लगी इस तरह मणि चुरा लेने की बात धीरे-धीरे पूरे नगर में फैल गई श्री कृष्ण ने मणि प्राप्त करने के लिए प्रसनजीत को भगवान ने मार डाला हे राजन जब यह बात रुकमणी हो गया तो हुई तो वह रात्रि विश्राम के समय श्री कृष्णा के चरण दबाते हुए कहने लगी है स्वामी सत्रजीत के भाई प्रसनजीत की हत्या का कलंक तुम्हें लग रहा है उर्वशी स्त्रियों मां कहती है की मणि प्राप्त करने के लिए कन्हैया जी ने प्रसनजीत को मार डाला रुक्मणी के वचन को सुनकर श्री कृष्ण जी विचार करने लगे कि मुझ पर झूठ मुट का लालन लगाया जा रहा है अतः इस से मुक्त होने का साधना करना चाहिए इस तरह विचार कर प्रातः काल उन्होंने यादों को एकत्रित कर कहा मुझे चोरी का झूठा कलंक लगाया जा रहा है मैंने मणि नहीं ली है किंतु मुझे मालूम है कि जब तक वह मिलाकर सत्रजीत को नहीं देते तब तक इस कलंक से मुक्त नहीं होगा अतः आप लोग मेरे संग मणि ढूंढने के लिए चले क्या कह कर विवाद वासियों को अपने संग लेकर वन में गए और घोड़ों की खून के निशान को देखते हुए गुफा के निकट पहुंचे वहां पर एक और प्रशांत हमारा पढ़ा था और दूसरी ओर एक शेर मारा था यह दृश्य देखकर वे सभी आश्चर्य करते हुए आपस में कहने लगी कि ऐसा कौन सा शक्तिशाली जीव प्राणी है जो सिंह राज को मार डाला और मणि लेकर गुफा में घुस गया तत्पश्चात श्री कृष्णा जी के संग आए हुए यदुवंशी कहने लगे हैं कन्हैया जी आप यह सिद्ध हो गया कि प्रसनजीत को शेर ने मारा है आप हमें वापस लौट चलना चाहिए तब श्री कृष्ण चंद्र जी बोले है भाइयों तुम सब का विचार उत्तम है किंतु इस त्रिया सहज ही हमारी बात का विश्वास नहीं करेंगे अतः मैं भीतर गुफा में जाता हूं तुम लोग यहां रह कर 12 दिन तक मेरी प्रतीक्षा करना यह कह कर गुफा में प्रविष्ट हो गए वहां जाकर उन्होंने देखा कि एक अत्यंत सुंदर कन्या इस मार्ग मणि को अपने कंठ में धारण करें कि झूला झूला रही है उस मणि के पास पूरी गुफा प्रकाशमान हो रही है श्री कृष्णा जी तक्षण उस कन्या के निकट पहुंचे और मणि छीन ली पारे पुरुष को मांझीनते देख जामवंती जोर से पुकार कर कहने लगी पिताजी बचाओ यह मनुष्य मेरी मणि छीन रहा है जामवंती का स्वाद सुंदर गुफा में सो रहे बलशाली रिक्शा जामवाल उठ खड़े हुए और एक ही छलांग में श्रीकृष्ण के निकट पहुंच से युद्ध करने लग हे परीक्षित जामवंत और श्री कृष्णा का बड़ा भयंकर युद्ध हुआ अभी श्री कृष्ण उन्हें भूमि पर पटक कर लातों से मारने लगते तो कभी जामवंत इस तरह उस का युद्ध 27 दिन तक हुआ तब 27 में दिन में श्री कृष्णा जी के प्रहार से अति व्याकुल होकर जामवंत जी पी 4 करने लगे कि युद्ध में मुंह से श्री रामचंद्र जी व शेष अवतार लक्ष्मण ही परास्त कर सकते हैं मुझे प्राप्त करने वाला यह तीसरा अवतार किसका है जिस समय जामुन विचार कर रहे थे श्री नंद नंदन उसके मन की बात जान कर उसके सम्मुख चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए उनके कर कमलों में गधा सा ग्रह और पद में सुशोभित हो रहे थे उनके स्वरूप को देखकर उनके चरणों में दंडवत कर जामुन जी गाने लगे हे भगवान मैं 100 वर्ष से आपका दर्शन पाने का अभिलाषा था हे स्वामी आपने दर्शन देकर मुझे प्रीत किया हे भगवान अपराध क्षमा हो मेरे मन में आपके पूर्व जन्म का स्वरूप देखने की इच्छा जाग उठी है जब आप माता जानकी के वियोग में जंगल में भटक रहे थे जामुन की इच्छा जानकर त्रिभुवन पति आपने पूर्वा अवतार वाला स्वरूप धारण कर प्रगट हुए परीक्षित श्री राम चंद्र जी का रूप देखकर जामवंत के प्रसंता की सीमा न रही तत्पश्चात हुए बिना पूर्वक कहने लगे हे प्रभु यदि आप मुझे इस ग्रुप में आकर कह देते तो मां बाप के चरणो में रख देता युद्ध करने की क्या आवश्यकता थी तब श्री कृष्ण जी मुस्कुरा कर बोले हे जामवंत लंका विजय के पश्चात तुमने एक बार मुझसे यहां कहा था कि मेरा पूरा बंद नहीं हुआ है उस समय तुम्हारे कथा का तात्पर्य समझ कर मैंने कहा था कि अगले जन्म में मैं स्वयं तुमसे युद्ध करके पूरा बोल कर आऊंगा यह वचन मेरे फोन किए प्रभु के वचन को सुनकर नतमस्तक होकर स्तुति करते हुए जामवंत बोले आप धन्य है भगवान आप की लीला धन्य है तत्पश्चात श्री कृष्णा जी बोले ही रिक्शा राज तुम्हारी पत्नी के कंठ में जो मणि है उसकी चोरी का कलम मुझ पर लगा है अतः वह मणि मुझे दे दो उसके वचनों को सुनकर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए जामवंत ने इस मुल्क उसके चरणों में रखकर विनय पूर्वक बोले हे भगवान इस मणि के साथ एक अनमोल मणि मैं आपको देना चाहता हूं वहां मोरे मेरी पुत्री जामवंती है उसी के लिए मैं अब तक इस गुफा में निवास कर रहा था आप आपकी कृपा से पुत्री के बाहर से मुक्त होकर मैं आपके चरणों का ध्यान करूंगा यह भगवान कृपा करके मेरी पुत्री स्वीकार करें जामवंत की विनय पूर्वक वाणी से प्रसन्न होकर श्री कृष्ण जी ने जामवंती से विवाह किया और प्रसन्नता पूर्वक उसे लेकर द्वारिका होता है यानी महात्माओं का मत है कि जामवंत से 27 दिन युद्ध करने 27 नक्षत्र बनी उसका हाल से 1 वर्ष में 27 नक्षत्र माने जाने लगे जब वह जमानती को लेकर द्वारिकापुरी पहुंचे तो उन आदिवासियों की प्रसन्नता का ठिकाना ना रहा जो गुफा के बाहर खड़े होकर 12 दिन तक उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे और बन जाता है 13 दिन श्री कृष्णा जी को मारा समझ कर वापस लौट आए उस दिन दर्शन से आदिवासियों के प्राण लौट आए तत्पश्चात श्री कृष्ण चंद्र ने इस गाड़ी लेकर आ कर शास्त्र गीत को दी और उसके भाई प्रसनजीत की मृत्यु का वृतांत बतलाया हाल वर्णन सुनकर सत्रजीत अपने मन में पछताने लगा कि अन्याय ही मैंने श्यामसुंदर पर इसने किया और मिथ्या कलंक लगाया है राजन बहुत सोच विचार करने के उपरांत सत्रजीत ने निश्चय किया कि मैंने जो अपराध किया है उस से मुक्त होने के लिए अपनी पुत्री सद्भावना का विवाह श्री कृष्णा से कर दो सो उसने पुरोहित को बुलाकर शुभ मुहूर्त में सद्भावना के विवाह का टीका श्री कृष्ण जी के पास भेजा और वह हमारे देश में दे दी किंतु सद्भावना से विवाह करने के पश्चात इस माणक मणि सत्रजीत के हाथ में वापस देते हुए बोली तुम इस मणि को अपने पास रखो तुम्हारी आराधना से प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने तुम्हें प्रदान की है आता है इसकी अधिकारी तुम हो

TRANSLATE IN ENGLISH

Shrimad Bhagwat Katha Purana Tenth Skandha Chapter 56 Beginning

Description of the story of the marriage of Jamwanti and Satyabhama to Shri Krishna ji

Mahatma Shri Sukhdev ji has said that Sahastra Ajit Yadav, who resides in Dwarkapuri after worshiping Lord Suryadev Parikshit, got him the Shiamak gem, that gem used to shine like Lord Surya Dev, giving it to Satrajit and said to Suryadev, O Satrajit, this is normal. Never understood the gem or even this great gem, it is said that you worship this gem every day, worship it as a rule, then this gem will give you a lot of happiness. Came and at one place he defeated and kept the dead and worshiped with incense lamp etc. At that very moment he got a mind of gold. Seeing this scene, Satrajit was very pleased and started doing charity by bowing to Lord Surya Dev. I have started protecting Usmani and doing more than my life, O Rajan, once himself wearing the shift gem in the throat, went to the meeting to meet Lord Shri Krishna for 17 days, wearing that gem shining like the sun, seeing Satrajit, everyone present there. Yaduvanshi started saying, O Shyamsundar, it looks like this. It has been that Lord Suryadev himself brother-in-law is coming with the desire of your darshan, then another Yaduvanshi said that you have been of the truth, there is so much light spread that there is no sight on him, at the same time Satrajit came near him to Yasho shrine. But sat down to wear this ruby ​​gem in his throat. Lord Krishna kept silent even after knowing everything. 17. Give to the common creature does not come, you should give that gem to Maharaj Ugrasen, on the second day when chess came in the Rajya Sabha, at the same moment Shri Krishna remembered Yadav's statement and started thinking that this session was won. This divine supernatural gem which you have, you should see it Maharaj Ugrasen because the king is the best in man, this will increase your fame in the world, but Satrajit ignored Kanhaiya's words and got up from the auditorium and went to his house and asked his brother I have started telling Prasanjeet, brother Prasanjeet, give to Mani, who is shining in my account. After all, greed has arisen in the mind of Shri Krishna, he started telling me that after hearing the words of our brother, give it to our king, Prasanjeet took the gem from him and wore it in his throat and said, now I see how he accepts me, O Parikshit. Leela is unique, wearing that gem, Prasanjeet went to the forest for hunting one day and separated from his companions and forgot the way in the thick forest and started wandering here and there, at the same time you read the sight of Vanraj lion on him. Dhara Prasanjeet's heart trembled after hearing his fierce voice, the weapon fell from his hand, at the same time the lion jumped on him and killed him with a blow on his statement, then dragged him to a nearby cave to eat at the same time. Rickshaw Raj Jamwant's eyes fell on the lion and he killed him and took that gem, his wonderful gem ended the darkness of the cave, the first light spread in the cave from that gem, O Rajan, when Prasanjit did not return, Ajit was with his brother. The days passed, when the night came, he himself started telling us that Shri Krishnaswamy was asking me and I nadia, it is possible that he stole the gem by killing my brothers to get the gem. When 2 days have passed, then scripture Ajit told that thing to his wife, after that his woman was ready to fill water. When she went to the well, she started talking to the women, in this way the talk of stealing the gem gradually spread in the whole city, Shri Krishna killed Prasanjeet to get the gem, O Rajan, when this thing became Rukmani When it happened, she started pressing the feet of Shri Krishna while resting, saying that you are feeling the stigma of killing Prasanjeet, brother of Swami Satrajit. After listening to the word, Shri Krishna ji started thinking that I was being brought up by falsehood, so one should do spiritual practice to get rid of this. Thinking in this way, in the morning he collected the memories and said that I am being falsely stigmatized of theft. I have not taken the gem but I know that unless it is mixed and given to Satrajit Till then you will not be free from this stigma, so what did you guys go with me to find the gem, after saying that, taking the dispute residents with you, went to the forest and after seeing the blood mark of the horses, reached near the cave, there another Pacific is ours. Seeing this scene and on the other hand a lion was killed, they all wondered and said among themselves that what is such a powerful creature that killed Singh Raj and entered the cave with the gem, then came with Shri Krishna ji. Yaduvanshi has started saying Kanhaiya ji, it has been proved that Prasanjeet has been killed by a lion, you should go back to us, then Shri Krishna Chandra ji has said, brothers, all of you have a good idea, but this triya will not easily believe us, so I go inside the cave, you guys entered the cave after staying here and saying that waiting for me for 12 days, there they went and saw that a very beautiful girl should hold this path gem in her throat that the swing was swinging.It is near that gem that the whole cave is getting illuminated. Shri Krishna ji immediately reached near that girl and snatched the gem. Seeing the mercury man swaying, Jamvanti started calling out loudly and saying, save my father, this man is snatching my gem, the taste of Jamvanti is beautiful. Jamwal, the mighty rickshaw sleeping in the cave, stood up and started fighting with the approach of Shri Krishna in a single jump, Parikshit Jamwant and Shri Krishna had a fierce battle, now Shri Krishna used to kick them to the ground and sometimes Jamwant used this. Like his war lasted for 27 days, then in 27 days, Jamwant ji, being very distraught by the attack of Shri Krishna ji, started doing P4 that only Shri Ramchandra ji and rest incarnation Lakshmana can defeat me in the war. Who is the third incarnation, when Jamun was contemplating, Shri Nanda Nandan, after knowing his mind, appeared in front of him in the form of a quadrilateral, his tax was like a donkey planet in his lotus and was being adorned in his position, seeing his form, worshiped at his feet. Jamun ji started singing oh my god I have been wanting to have your darshan since 100 years. O lord, you have loved me by giving darshan, O Lord, forgive my guilt, the desire to see the form of your previous birth has arisen in my mind, when you were wandering in the forest in the separation of mother Janaki, knowing the desire of Jamun, Tribhuvan husband, you have the form of Purva Avatar. Seeing the form of Parikshit Shri Ram Chandra ji, who appeared after wearing it, there was no limit to Jamwant's delight, after that, without saying beforehand, Lord, if you had told me to come to this group, I would have placed it at the feet of the parents. What was the need to fight? Then Shri Krishna ji smiled and said, O Jamwant, after the victory of Lanka, you once told me here that I have not been completely closed. I will come, listening to the word of the Lord who called me this word, bowing down and praising, Jamwant said, Blessed are you, God is your Leela, after that Shri Krishna ji said that Rickshaw Raj felt the pen of stealing the gem in your wife's throat. So give me that gem. I am happy to hear his words. While doing this, Jamwant kept this country at his feet and said humbly, Oh God, with this gem I want to give you a priceless gem, there is more my daughter Jamwanti, for the same reason I was living in this cave till now, you have your grace. I will meditate on your feet after being freed from the outside of the daughter, please accept my daughter, Lord Krishna, pleased with the humility of Jamwant, married Jamvanti and happily took her to Dwarka, that is, the opinion of the Mahatmas. That 27 Nakshatras were formed to fight with Jamwant for 27 days, in a year since he reached Dwarkapuri, there was no bound to the happiness of the tribals who stood outside the cave and were waiting for him for 12 days. And it becomes 13 days after considering Shri Krishna ji to be killed, he returned. Hearing the description, Satrajit started repenting in his mind that the other Yes, I have done this on Shyamsundar and have put a false stigma Rajan, after much deliberation, Satrajit decided that to get rid of the crime I had committed, get his daughter Sadbhavna married to Shri Krishna, so he called the priest. In the auspicious time, sent the commentary for the marriage of Sadbhavna to Shri Krishna ji and he gave it in our country, but after marrying Sadbhavna, giving back this ruby ​​gem in the hands of Satrajit, said, keep this gem with you, happy with your worship. Suryadev has given you by means, you are entitled to it

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ