श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 55

श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 55 आरंभ

कामदेव का आरंभ होना प्रदुमन जन्म की कथा का वर्णन तथा समरा सुर वध



श्री सुखदेव जी बोले हे राजन् एक बार भगवान शिव कैलाश पर्वत पर समाधि लगाए हुए श्री नारायण के चरणों का ध्यान कर रहे थे उसी समय अपनी स्त्री रतीपुर संग लेकर बिहार करते हुए कामदेव वहां आया और अपनी माया से वहां के वन उपवन को पुष्पों से आवंटित कर दिया वृक्ष फलों से लद गए इस पक्षी ग्रहण तलवारे करने लगे वायु सुगंधित हो गई तत्पश्चात कामदेव एवं प्रति प्रेम मधुकर नृत्य गान करने लगे और भगवान शिव शंकर को समाधि लाने हुए देखकर कामदेव ने काम बांट चला कर उसकी समाधि भंग करने का प्रयत्न करने लगा हूं हे राजन जब कामदेव उन्हें सताना आरंभ किया तो उसका ध्यान भागना हो गया और क्रोधित होकर उन्हें अपना पहले तारीख तीसरा नेत्र खोल दिया उसने तीसरी नेत्र ज्योति पुंज निकलकर कामदेव के तन पर जा पड़ी और वह पल भर में जलकर भस्म हो गया हे राजा रामदेव की भस्म हो जाने पर पति वियोग में अत्यंत व्याकुल होकर रति भगवान शंकर के चरणों पर गिरकर आपने स्वामी को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना करने लगी उसी की दीन दशा देखकर भोला शंकर प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करते हुए भोले रति इस घड़ी हम तेरे पति को जीवित नहीं कर सकते क्योंकि उसका दम जलकर भस्म हो गए हैं किंतु वह आत्मा उससे करते हैं वह कभी नष्ट नहीं होता है इसलिए तू चिंता ना कर तेरा पति यदुवंशी शिरोमणि श्री कृष्ण चंद्र का पुत्र बंद कर द्वापर युग में उसकी प्रिय रुकमणी के गर्भ से उत्पन्न होगा उसी के द्वारा महाबली देते साहब रसूल का नाश होगा हे राजन भगवान शिव के कहने पर रत्ती को संतोष प्राप्त हुआ तत्पश्चात बना हुआ कहने लगे हैं रति जिस समरा सुर का नाश करने हेतु कामदेव का जन्म होगा उसी साबरा सूखी हमें तेरे पति का लालन-पालन भी होगा प्रभु के वचनों को सुनकर अति प्रसन्न होकर शिव जी को प्रणाम करके वहां से चली गई और रामदेव के जन्म लेने की प्रतीक्षा करने लगी उचित समय श्री कृष्ण चंद्र की कृपा प्राप्त कर उसके पुत्र के रूप में रुक्मणी के घर में पहुंचा पूर्ण होने के उपरांत से माह में उसका जन्म कब हुआ हे राजा कथा पूर्ण करने से पूर्व अप्सरा की कथा सुना देता है उचित समझता हूं कि हाथों साबरा सूर केंद्रीय में कामदेव का पालन हुआ पूर्व समय में भावना मति देवलोक की एक अत्यंत रूपवती अप्सरा थी उसने औषधि का ज्ञान प्राप्त करने के लिए विष्णु भगवान का खिताब किया उसके तप से प्रसन्न होकर विष्णु भगवान उसके सम्मुख प्रकट होकर बोले हैं अप्सरा तूने कठिन तप किया है तेरे तब से हम अति प्रसन्न रहें अतः तू मनवांछित वर मांग लो तब वह हाथ जोड़कर कहने लगी हे भगवान मैं मायावती विद्या और आयुर्वेद का ज्ञान चाहती हूं कृपया कर मुझे प्रदान करें उसके वजन खूबसूरती फौजी विचार करने के पश्चात उसकी इच्छा पूर्ण करते हुए बोले तुझे यह विद्या में प्रदान करता हूं किंतु इन विद्याओं का प्रयोग सदैव लोक कल्याण के लिए करना जिस दिन तू ने इसका अनुचित उपयोग करेंगे उसी दिन तुझे दंड मिलेगा अफसरों ने भगवान विष्णु की आज्ञा शिरोधार्य की और स्तुति करने लगी हे राजन उससे वर प्रदान कर विष्णु जी अंतर्ध्यान हो गए तब वह विचार करने लगी की परीक्षा करके देखो कि मुझे मायावती विद्या ज्ञात हुआ कि नहीं सोच में निरंतर मायावती विद्या का मंत्र पढ़कर हंसी स्वरूप का ध्यान किया तक्षण उसकी बदल गई और वह कुरूप भयंकर राक्षसी बनकर ऋषि मुनि और अन्य प्राणियों को डराने लगे उसकी इस कार्य को देखकर भगवान पुणे उपस्थित हुए और उसे कहने लगे तूने मेरी आज्ञा का उड़ना किया था पूरा स्कूल की स्त्री हो यह सुनते ही वह भयभीत हो थरथर कांपने लगे भगवान विष्णु जी से प्रार्थना करने लगे तभी बोलिए अप्सरा तू मृत्यु लोक में जाकर सब रसूल की दासी बनेगी और देवताओं का कार्य सिद्ध करे कि मैं स्पीपा अवतार में द्वारिकाधीश मना लूंगा और भगवान शंकर के 4 से भरम होने के उपरांत कामदेव मेरा पुत्र बनकर जन्म देगा उसका नाम प्रदुमन होगा और उसका पालन तू करेगा उसी के द्वारा अत्याचारी समरा सुर का वध होगा प्रभु के वचनों को सुनकर वह प्रसन्न हो गई और मृत्यु लोक चली गई वहां उसका नाम भावना मति हुआ और समरा सुर की रसोई बनाने लगे उधर प्रदुमन का जन्म होने के पश्चात जब साम्रासुर कोई अज्ञात हुआ कि यह दुख भूल में श्री कृष्णा के पुत्र के रूप में मेरा काल जन्म ले चुका है तो वह वेश बदलकर रुकमणी की प्रस्तुति ग्रीन में जा पहुंचा और प्रदुमन उठा लाया तब रुकमणी होती चिल्लाते अपने पुत्र की रक्षा के लिए बदाम की गुहार लगाई तब हाल मुसल्ले कर्बला रामजी दौड़ पड़े किंतु उस घड़ी उसके पास खड़े श्री कृष्ण कर रहे हो भैया वह राक्षस हमारी पकड़ में नहीं आएगा हे राजन प्रदुमन को लेकर शाहदरा क्षेत्र में समुद्र में फेंक दिया जिससे एक विशाल आकार वाली मछली निकल गई उसी दिन एक मछुआरे ने उसे अपने जाल में फंसा कर उस मछली को पकड़ लिया तत्पश्चात सोचने लगा कि यदि अभी साल का कार वाली मछली रे तेरा घाघरा सूट को भेज दूं तो प्रसन्न होकर मुझे प्रकार देंगे लालच की वशीभूत होकर मछुआरे साम्रासुर के पास जा पहुंचा और उसके सम्मुख विशाल पाया मछली को रखकर प्रार्थना करने लगे ज महाराज की ओर से यह तुच्छ भेंट स्वीकार कीजिए मछली को देखकर साम्रासुर प्रसन्न हुआ और रसोई को बुलाकर उसे उठा ले जाने का आदेश देकर मछुआरे को अपने गले में पहले मोतियों की माला निकाल दिया उधर रसोइयों में ले जाकर जब वे दोनों पति-पत्नी मछली को गिरने लगे उसके पेट से बालक निकला उससे बात कराओ ना मोती के हार हो गई किंतु उसका पति उसकी बात ना माना हुआ उसी समय वह बात बताने के लिए साम्रासुर पहुंचा तो भगवान श्री कृष्णा की माया में वह गूंगा हो गया तब वह मसला उठाया और गुस्से से तलवार उठा कर बालक मारने के लिए सट्टा किंग उसी समय बहुत आश्चर्यजनक बात हुई उसने जिस हाथ से तलवार उठा रखा था उस हाथ को लकवा मार गय इस तरह भगवान की प्रेरणा से प्रदुमन की रक्षा हुई था की भावना मति ने विचार किया कि यदि यहां पर मैं और मेरा पुत्र सुरक्षित नहीं है अतः वह चुपके से वहां से जाने का विचार करने लगी उसी समय देते गुरु शुक्राचार्य थी आप पहुंच गए हुए महान ज्ञानी थे सब राष्ट्र के माहौल में प्रविष्ट होते समय उन्होंने अपने दीदी के यहां से निजाम लिया की भावना मती की गोद में खेल रहा शिशु सादा सूट का काल है पहले ही छात्र-छात्राओं को समझाते हुए बोले दे तेरा जिया बालक बहुत ही शुभ है तो इसी समय से मृत्यु शैया पर सुला दूं उसके वजन को छोड़कर वह आश्चर्यचकित होकर करने लगा यह आप क्या कह रहे हैं गुरुदेव यह मेरी दासी भावना मती का पुत्र है फिर मैंने इसके मस्तक पर अपना हाथ रख कर प्रदान किया है माही से नहीं मार सकता तब शुक्राचार्य जी बोले हैं देते राज यदि तू मेरे होश ना को नहीं मानता तो बाद में तुम पछताओगे यह कह कर वह उसी समय वहां से चल गए उसी दिन अपने पुत्र को लेकर भावना मति चली गई तब देवर्षि नारद जी ने आकर उसे कहा रे तेरा घाघरा सूट तुमने जिस बालक को अभय दिया वास्तविक में वह तुम्हारा काल है क्योंकि वह अन्य कोई नहीं बल्कि जिस बालक को ले जाकर गोधरा में फेंक दिया था या वही बालक है नारद के वचनों को सुनकर साफ रखने देते सेना को बुलाकर भावना मक्खी को ढूंढने का आदेश दिया तब भावना मति को या ज्ञात हुआ कि देखकर आज उसके पुत्र सहित पापड़ खिलाने के लिए अपने सैनिकों को भेजा है उसी समय वह आपने मायावती विद्या का उपयोग कर प्रदुमन संहिता दृश्य हो गई और पर्वत की एक दम धरा में जाकर भगवान श्री नारायण के चरणों का ध्यान करते हुए कहने लगी हे अंतर्यामी प्रभु घट घट के वासी हैं जिस घड़ी मेरे पुत्र के ऊपर विपत्ति आई है उसी समय भगवान श्री नारायण आपने तेजोमय रूप में प्रकट होकर करने लगे यह भावना मति तू प्रदुमन पर अपनी आयुर्वेद की हत्या का प्रयोग कर शीघ्र युवावस्था प्रदान कर यार लोक कल्याण का कार्य होगा और अपने मायावी विद्या का ज्ञान प्रदान कर रहा हूं और सर मैंने पोस्ट कर दिए थे इस बालक की माता होने के साथ गुरु का भी कर्तव्य पथ पर तब उसने प्रसन्न होकर प्रदुमन को शीघ्र विवाह करने हेतु सभी पवित्र नदियों और देवताओं का आवाहन करावी वेद विद्या से उसे उसी पल युवावस्था प्रदान कर दी देवताओं में अमृत्तुल्य आशीर्वाद प्रदान किया और स्वामी कुमारों के सुंदरता सोमदेव ने ज्योतिष चंद्र देव ने ब्रज के समान धनुष प्रदान किया तत्पश्चात भावना मोती मोर उसे संपूर्ण मायावी विद्या से खाकर करने लगी है पुत्र शाहपुरा सूट ने तेरे माता को बहुत दुखी किया है तूने मारने के लिए उसे बहुत सारा कोशिश की किंतु मैं उसकी हर चेस्ट हम उसको भी फल करते हुए हैं अब तू जा कर उसका वध करके लोक कल्याण कर हे राजन माता के वैष्णो का सिर उधार कर प्रदुमन आपने दाम और बहनों को उठाया वह बोला है माता तुम मेरी माता भी हो और गुरु भी तुम्हारे वचन का पालन करना मेरा धर्म है यह कह कर साम्रासुर के भवन में दया और ललकार कर आने लगा है साबरा सूत्रों ने जिस बालक को अपना शत्रु मानकर समुद्र में फेंक दिया था देखो ही बालक तेरे सम्मुख तेरा काल बनकर खड़ा है प्रदुमन के फोटो वचनों को सुनकर गोद में उठाते हुए साबरा फिर से हर शाम छोड़ कर उठ खड़ा हुआ और धनुष बाण लेकर युद्ध करने लगा हूं तब उसे प्रदुमन पराग ने बाण चलाया तो प्रदुमन ने वरुण शस्त्र छोड़कर जाएंगे बुझा दिया उसने अनेक मार जलाई किंतु प्रदुमन लेती थी वह से उनकी हर प्रहार होगी फल कर दिया तब वह राक्षसी माया का प्रयोग कर माया युद्ध करने लगा तभी वह अदृश्य होकर वार करता तो कभी प्रगट हो जाता तब भावना मति ने उसके संकेत करके समझाया कि तू भी माया युद्ध कर इस तरह दोनों लड़ने लगे हैं राजा शाहपुरा के पास पैसा शास्त्र था जिसके चलाने पर कोई भी रोक ना पाता वह था देवी पार्वती का दिया हुआ मुगदर मुगदर के विषय में प्रदुमन को ज्ञान हुआ तो वह भावना मती से कहने लगा यह माता दी उसने मुकदर का प्रयोग किया तो निश्चित स्वरूप अनिष्ट होगा यह विचार कर भावना मति और प्रदुमन कुछ काल के लिए देवी पार्वती की आराधना के लिए चले उसकी पूजा से पार्वती जी ने दर्शन देकर कहा है पुत्र तुम चिंता मत करो मेरा मुकद्दर तुम्हें मात्र मुर्शीद कर देगा मेरे प्रताप से तुम्हारी मृत्यु ना होगी हे राजन तत्पश्चात देना जब युद्ध होने लगा तो अंतिम सत्र के रूप में साबरा सुनने उधर चला है इसे प्रदुमन मूर्छित होकर गिर पड़े उसी समय भावना मति उसे रात सहित अदृश्य करके दूध पी ले आए और औषधियों का लेप किया जिसे प्रदुमन स्वस्थ हो गए और करण क्षेत्र में आकर युद्ध करने लगे साहब अशोक अपने समस्त मायावी विद्याओं का प्रयोग उस पर कर रहा था किंतु प्रदुमन जी उसी की हर माया को नष्ट कर रहे थे बहुत समय तक युद्ध करने के पश्चात जब उन्होंने देखा कि देवता गाना व्याकुल हो रहे हैं तब आपने तीक्ष्ण बाणों से साबर आशु को लहूलुहान कर दिया और तलवार उठा कर ऐसा भयंकर प्रहार किया किताब रसूल का सिर काटकर पृथ्वी पर जा गिरा आकाश से देवगढ़ पुष्पों की वर्षा करने लगे उसी रहती वहां प्रगति और मायावती को प्रणाम करके कहने लगी है माता मैं रखत हूं भगवान की माया से बहुत दिनों तक अपने स्वामी से दूर रहे तब भावना वती बोली हे देवी रति मैं भी भगवान की माया को स्वीकार कर पृथ्वी पर आई है देवताओं के कार्य सिद्धि के लिए इतने पृथ्वी पर रहना था आप मेरा कार्य पूरा हो गया है वह अपने लोग को जा रही हूं और तुम भगवान श्री कृष्ण जी के पुत्र प्रदुमन को द्वारिका पुरी पहुंचा दो ना कि उनकी जन्म दात्री मां बहुत काल से पुत्र वियोग से तड़प रही है या काकर सुंदर स्वरूप धारण कर भावना मोती देवलोक चली गई तब प्रदुमन को अपने साथ लेकर घाट मार्ग से होकर देवी रति द्वारिकापुरी पहुंची उसके स्वरूप सौंदर्य और कोमलता को देखकर रुकमणी विचार करने लगे की हो ना हो गया वही बालक है जिसे वह आदित्य मेरी गोद सूनी कर उठा ले गया था उसी समय अंतर्यामी श्री कृष्णा जी आप पहुंचे उन्हें क्या था कि यह बालक मेरा प्रदुमन की है किंतु उन्होंने रुकमणी से नहीं कहा तब देवर्षि नारद जी वहां आए और कहने लगे हे देवी रुक्मणी असमंजस करना अच्छी बात नहीं है यह बालक तुम्हारा पुत्र प्रदुमन है महाराज जी के वचन को सुनते रुकमणी के हृदय से ममता का सागर उमड़ने लगा और प्रेम विहार होकर प्रदुमन को अपने कंठ से लगाकर उसके कपालु को चुनने लगे

TRANSLATE IN ENGLISH 

Shrimad Bhagwat Katha Purana Tenth Skandha Chapter 55 Beginning

Description of the story of Praduman's birth and Samara sur slaughter

Shri Sukhdev ji said, O Rajan, once Lord Shiva was meditating on the feet of Shri Narayan while meditating on Mount Kailash, at the same time, taking his wife Ratipur to Bihar, Kamadeva came there and with his Maya allotted the forest garden there with flowers. The trees were laden with fruits, the birds began to take swords, the air became fragrant, after that Kamadeva and love towards Madhukar started singing dances and seeing Lord Shiva bringing Shankar to his samadhi, Kamadeva started trying to break his samadhi by sharing his work. I am O king, when Cupid started torturing him, his attention ran away and being angry, he opened his third eye on the first date. After being consumed by her husband, she fell at the feet of Lord Shankar and prayed to revive the lord. Seeing his poor condition, Bhola Shankar was pleased and blessed her. can because it burns have been consumed but that soul does to him, it is never destroyed, so don't worry, your husband Yaduvanshi Shiromani will be born from the womb of his beloved Rukmani in Dwapar Yuga by shutting down the son of Shri Krishna Chandra. It will be destroyed, O Rajan, at the behest of Lord Shiva, Ratti has got satisfaction, after that it has started saying that Rati, which will destroy the soul of Kamadeva, will be born in the same sabra dry, we will also take care of your husband by listening to the words of the Lord. After being very pleased, she went from there after bowing to Shiva and started waiting for the birth of Ramdev at the right time, after receiving the blessings of Shri Krishna Chandra, reached Rukmani's house as his son. Before completing the story, the king narrates the story of Apsara, I consider it appropriate that in the hands of Sabra Sur Central, Kamadeva was followed. Lord Vishnu pleased with his tenacity I have appeared in front of you and said Apsara, you have done hard penance since then we should be very happy, so you ask for the desired boon, then she started saying with folded hands, oh God, I want Mayawati's knowledge and knowledge of Ayurveda, please do give me her weight and beauty. After considering the soldier, fulfilling his wish, he said, I provide this to you in education, but always use these knowledge for public welfare, on the day you use it improperly, you will be punished, the officers ordered Lord Vishnu. And started praising, O Rajan, Vishnu ji became intrigued by giving her a boon, then she started thinking that after examining, see whether I came to know Mayawati Vidya or not; Seeing this act of her, Lord Pune appeared and started telling her that you were a woman of the whole school, she became frightened as soon as she heard this, Lord Vishnu started trembling. request from If you do not start, then say Apsara, you will go to the world of death and become the maid of all the messengers and prove the work of the gods that I will convince Dwarkadhish in the incarnation of Spipa and after being pleased by Lord Shankar, Kamadeva will give birth as my son, his name will be Praduman. And you will follow her, by that the tyrant Samra Sur will be killed, she was pleased to hear the words of the Lord and went to the world of death, there her name was Bhavna Mati and Samra started making Sur's kitchen, there after the birth of Praduman, when Samrasur Somebody unknown that this misery had taken birth by mistake as the son of Shri Krishna, so he disguised as Rukmani's presentation went to Green and brought Praduman, then Rukmani was crying and pleaded for Badam to protect her son. Then recently Ramji ran to Karbala, but at that moment Shri Krishna is standing near him, brother, that monster will not come in our catch, O Rajan, he threw Praduman into the sea in Shahdara area, due to which a huge fish came out the same day a fisherman trapped him in his net and killed that fish. He caught it and then started thinking that if I send your Ghaghra Suit, the fisherman of this year's car, he will be pleased and give me a kind of greed; Accept this frivolous gift on behalf of Samrasur was pleased to see the fish and ordered the kitchen to take it away, the fisherman removed the first garland of pearls from his neck and then took it to the kitchens when both the husband and wife found the fish falling. When the child came out of her stomach, talk to her, she was defeated by the pearl, but her husband did not listen to her, at the same time she reached Samrasur to tell the matter, then she became dumb in the illusion of Lord Krishna, then she raised the issue and got angry. The satta king to kill the child by lifting the sword was very surprising at the same time, the hand with which he was holding the sword was paralyzed, thus Praduman was protected by the inspiration of God.The spirit of Mati thought that if my son and I are not safe here, so she secretly started thinking of leaving from there. Nizam took the feeling from his sister's place that the baby playing in the lap of Mati is the time of a plain suit, already explaining to the students, saying that your child is very auspicious, then from this time I should sleep on the death bed. Leaving he wondered what are you saying, Gurudev, this is the son of my maid, Bhavna Mati, then I have given it by placing my hand on his head, I cannot kill it, then Shukracharya ji has said that if you do not have my senses If you do not believe, then later you will regret saying that he left from there at the same time. On the same day, the feeling about his son went away, then Devarshi Narad ji came and said to him that your Ghaghra suit, the child whom you gave abhay, in reality he is yours. Kaal is because he is none other than the child who was taken and thrown in Godhra or he is the child. After listening to the words of the ward and keeping it clean, ordered the army to find the fly, then Bhavna Mati came to know that today she has sent her soldiers along with her son to feed papad, at the same time he Praduman using Mayawati Vidya. The Samhita became visible and while meditating on the feet of Lord Shree Narayan, he started saying, O Antaryami Lord, is a resident of Ghat Ghat, at the same time when the calamity has come upon my son, at the same time Lord Shree Narayan appeared in a splendid form. You started doing this feeling by killing your ayurveda on Praduman, by providing youthful youth soon, and giving the knowledge of my elusive knowledge and sir, I had posted along with being the mother of this child. On the duty of the guru, then he was pleased and invoked all the holy rivers and deities to marry Praduman soon. Sagittarius like Braj After that, the spirit pearl peacock has started eating it with all the elusive knowledge, son Shahpura suit has made your mother very sad, you tried a lot to kill her, but I am doing her every chest, we are doing her fruit now. Go and kill him and do public welfare, O Rajan, by borrowing the head of Mata's Vaishno, you raised the price and sisters, he has said that mother, you are also my mother and guru is my religion to follow your words. I have started coming with pity and challenge, the child whom Sabra sources had thrown into the sea as their enemy, look, the child is standing in front of you as your time. I stood up and started fighting with a bow and arrow, then Praduman Parag shot him, then Praduman would leave Varun's weapon and extinguished it, he burnt many blows, but Praduman used to take her every blow from him, then he used demonic Maya. Maya started fighting, only then he would attack by becoming invisible, then it would have been revealed then the emotion By indicating to him, he explained that you too have started fighting like this by fighting Maya, King Shahpura had money scripture, on which no one could stop it, that was given by Goddess Parvati to Praduman if Praduman had knowledge about Mugdar. Bhavna Mati started saying to her that if she used Muqadar, then considering that the form would be inauspicious, Bhavna Mati and Praduman went to worship Goddess Parvati for some time. Do my fate will only make you a dead man, you will not die because of my majesty, O Rajan, after that when the war started, Sabra has gone there to listen as the last session, Praduman fell unconscious, at the same time the spirit of the soul made him invisible along with the night and milk Brought drinks and applied medicines, which Praduman became healthy and started fighting in Karan's area, Sahib Ashok was using all his illusory knowledge on him, but Praduman ji was destroying every illusion of him, fighting for a long time. After doing this, when he saw that the deity was distraught singing It is happening then you bled Sabar Ashu with sharp arrows and took such a terrible attack by lifting the sword, Kitab fell on the earth after cutting off the head of Rasool, Devgarh started showering flowers from the sky, continued there Pragati and started saying obeisance to Mayawati. Mother, I keep away from my lord for a long time from the illusion of God, then Bhavna Vati said, O Goddess Rati, I have also come to earth after accepting God's illusion, you had to stay on this earth for the accomplishment of the work of the gods. It is complete, I am going to my people and you bring Praduman, the son of Lord Shri Krishna ji, to Dwarka Puri, not his birth mother is suffering from the separation of the son for a long time or the spirit of Kakar has gone to Devlok by taking a beautiful form. Then Goddess Rati reached Dwarkapuri, taking Praduman with her through Ghat Marg. Seeing her beauty and tenderness, Rukmani started thinking that she is the same child whom Aditya had taken away from my lap and at the same time Antaryami Shri Krishna Yes, you reached them, what was it that this child is of my Praduman?You did not tell Rukmani, then Devarshi Narad ji came there and started saying, O Goddess Rukmani, it is not a good thing to confuse, this child is your son Praduman, listening to the words of Maharaj ji, the ocean of love started rising from Rukmani's heart and Praduman became Prem Vihar. He began to choose his skull by applying it to his throat.

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ