श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 54 आरंभ
शिशुपाल आदि राजाओं का श्री कृष्णा और बलराम से युद्ध करना
हे राजा परीक्षित शिशुपाल को जपिया ज्ञात हुआ कि कृष्ण ने रुक्मणी का हरण कर लिया है तब उसने अपना हाथ उठाकर अन्य राजाओं से बोला है देश देश से आए हुए हजारों वह ना राधाकृष्ण हम सब को अपमानित कर रुक्मणी का हरण कर अपने साथ लिए जा रहा है यह हमारे लिए चुल्लू भर पानी मैं डूब मरने जैसे बात है क्योंकि हमारे होते हुए यदि वहां अपनी नीति में सफल हो गया तो हम किसी के संग अपना मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे शिशुपाल की वाणी सुनकर आपने और राजगढ़ क्रोधित होकर उठ खड़े हुए और शिशुपाल से कहने लगे हम उसे अभी लाकर मार डालते हैं उसी दंडवत की इसकी सजा उसे अवश्य मिलेगी यह कहा कर दत्त वक्रासन भाभी अपने चना लेकर श्री कृष्ण को मारने के लिए चल पढ़े और दूर से ही ललकार कर कहने लगी अरे नादान यदि तू शूरवीर है तो ठहर और मुझ से युद्ध कर इस तरह पीठ दिखाकर युद्ध भूमि के कायर भागते हैं तेरी वीरता से चर्चा हम लोग ने बहुत सुनी है अभी तुझे तेरी करनी का फल मिलता है वह विशाल सेना को आते देख रुक्मणी भयभीत होने लगी तब त्रिलोकीनाथ में घुसे धीरज बनते हुए कहा है रुकमणी तू चिंता ना कर क्योंकि मेरे लिए शिशुपाल आदि की यह विशाल सेना तनिक के समान है जो एक फूंक मारने से उड़ जाएगी और उधर देख उस जरा शाम को वह 17 बार मौसी युद्ध में पराजित हुआ है फिर भी इस अज्ञानी राजा के साथ मुझ से युद्ध करने के लिए आया है हे राजन जी समय शिशुपाल आदि की सेना श्री कृष्ण चंद्र को मारने के लिए अपने शस्त्र से उन पर वार करने लगी उसी समय से भी बलराम जी अपने यदुवंशियों बीच सहित वहां पहुंचे और शत्रु दल का संघार करने लगे उन्होंने अपने हाल मुसल की गज राज्यों के मस्तक डालें उनकी सारी सेनाओं का छिन्न-भिन्न कर दिया उसे भयंकर प्रहार से शिशुपाल की सेना भागने लगे यह दृश्य देखकर शिशुपाल के हृदय में बहुत शौक हुआ आपने भागती हुई सेना को देखकर उसका उत्साह नष्ट हो गया जब जरासंध उसके निकट आकर उसे समझाते हुए कहने लगी है शिशुपाल युद्ध में जाए अथवा पराजय ही होती है विजय होने पर अधिक प्रसन्न नहीं होना चाहिए और हार जाने पर शोक संतप्त होकर वीर को शोभा नहीं देता क्योंकि हार जीत तो भाग्य के अनुसार होती है शौर्य का प्रदर्शन हीरो का गाना होता है जिसमें तुम किसी से पूछना थे मुझे देखो माय 17 बार श्री कृष्णा से हार चुका हूं 18 बार विजय प्राप्त हुई जरा संघ के समझाने पर शिशुपाल अपने देश को वापस चला गया है जरा सा भी चला गया रुकमणी के हरण का हाल जब उसके जस्ट भाई रुक्मणी को मालूम हुआ तो गोद में दर-दर हद हुए श्री कृष्ण को मारने के लिए गया और उसके सम्मुख पहुंचकर आंखों को अग्नि के समान लाल करके गरज कर बोला अरे अजीत तुमने रुकमणी का हरण करते हुए जरा भी भय ना हुआ क्या तुमने यह ज्ञान नहीं था कि यह कोई असाधारण स्त्री नहीं बल्कि राजा कन्या है इसके हरण करने के पीछे तुमने मुझे युद्ध करना होगा ले मेरा वहां संभाल लिया करो मणि में श्रीकृष्ण ऊपर वार्ड वर्षा आरंभ कर दी उससे वार्ड वर्षा करते ही श्याम सुंदर ने अपने सारण धनुष पर बाण का संघार करके उसके गानों को निष्फल करने लगे इस तरह पूछने खड़ी रुकमणी के साथ खिलवाड़ करने के पश्चात उन्होंने अपने तीक्ष्ण वालों से उनके चारों घरों को मार डाला एक ब्राम्हण से उसके रथ की ध्वज काट दी दूसरे ब्राह्मण ने उसे साथी को मोहित कर दिया जब रुक्मणी के रथ पर रखे हुए दूसरे धनुष उठाया तो एक बार चलाकर उसे भी काट दिया रुकमणी अस्त्र ही होगा तब आपने रात से उतरकर श्री कृष्ण उसके पास गए और उसका वध करने हेतु जिओ की तलवार ऊपर उठाई उसी समय रुकमणी कसुता था उसके पास जा पहुंचे और उनके चरणों में अपना शीश काटकर कहने लगे हैं स्वामी मेरे भाई दावत ना करो यह दिन दयाल जिस तरह श्री बलराम जी आपके प्रिय है उसी तरह मेरा भाई प्रिय है भगवान आप तो कृपा सागर हैं यह मूर्ख आपके स्वरूप को पहचान ना सके इस कारण से अपराध हुआ है यदि आप इस का वध कर दोगे तो मेरे माता-पिता अत्यंत दुखी होंगे जिस समय रुकमणी के भाई के प्राण की भीख मांग रहे थे उसी घड़ी में रुक्मणी के मन में श्री कृष्णा के प्रति कपाट की भावना थी जिसे जानकर नंद नंदन ने उसकी दाढ़ी मूछें और सिर की केस को तलवार से उधर कर रात के पीछे बांधकर घर सीखने लगे उसी समय शत्रु दल का संहर कर आकर्षण भगवान श्री बलराम की वहां पहुंचा और उर्मी की दुर्दशा देखकर श्री कृष्णा को संबोधित करते हुए कहने लगे हैं कन्हैया मैं जानता हूं कि यह दुष्ट प्रकृति का प्राणी है किंतु तब भी तुम्हारा साला ही है अतः इसके साथ इस तरह का व्यवहार करना सर्वथा अनुचित है आता है तुम शीघ्र के बंधन मुक्त कर दो तत्पश्चात रुक्मणी को संबोधित करके बोले हे रुक्मणी कर्मानुसार के प्राणी को दंड मिलता है इसमें कन्हैया दोष रहित है क्योंकि इसके स्थान पर यदि दूसरा भी कोई होता तो वह भी यही करता जो इन्होंने किया है जबकि युद्ध हेतु आए शत्रु का वध करना धर्म के अनुकूल है फिर भी कन्हैया में इसका वरना किया केवल पूर्व बंद कर छोड़ दिया श्री सुखदेव जी बोले के राजा परीक्षित बलराम जी के समझाने पर रुक्मणी को संतोष हुआ और जाकर श्री कृष्ण के रथ पर बैठ गई उधर श्री कृष्ण द्वारा मुक्त किए जाने के पश्चात भी रूप में अपने देश कुंडली पूर्व नहीं गए क्योंकि उसके लिए जाते समय उसने नगर वासियों के सम्मुख श्री कृष्ण बलराम को पकड़कर खिलाने के उपरांत किया था तब यह भी कहा था कि यदि उन्हें पकड़ कर ना ला सका तो नगर में मुंह नहीं दिखाऊंगा यह विचार कर उसे उंगली पुर के निकट एक नया नगर बसाया जिसका नाम भेज कट हुआ भेज कट में रहकर वह राज करने लगा हे परीक्षित रुक्मणी को संग लेकर श्री कृष्ण जी अपने भाई पर राम सहित जब द्वारिकापुरी वापस लौटे तब उसे सकुशल देख उसकी माता देवकी पिता वासुदेव और नाना उग्रसेन अति प्रसन्न हुए तत्पश्चात कुलगुरू को आचार्य को बुलाकर विवाह का मुहूर्त निकलवा कर शुभ घड़ी में रुकमणी कथा श्री कृष्ण का विवाह धूमधाम से संपन्न किया तथा ब्राह्मणों को स्वर्ण मुद्रा अन्य वस्त्र दान दिए
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Shrimad Bhagwat Katha Purana Tenth Skandha Chapter 54 Beginning
Shishupala and other kings to fight with Shri Krishna and Balarama
O King Parikshit Shishupala came to know that Krishna had abducted Rukmani, then he raised his hand and said to other kings that thousands of people who came from the country, Radhakrishna humiliated all of us and kidnapped Rukmani and is being taken with him. It is a matter of drowning in water for us, because if we succeed in our policy there, then we will not be able to show our face with anyone, listening to the voice of Shishupal, you and Rajgarh stood up in anger and Shishupal We bring him now and kill him, saying that he will surely get the punishment for the same punishment, saying that Datta Vakrasana sister-in-law took her gram and started to kill Shri Krishna and started shouting from afar and saying, oh naive, if you are brave then Staying and fighting with me, showing their back in this way, cowards of the battlefield run away from your valor, we have heard a lot of talk about your bravery, now you get the fruits of your actions, she started getting scared seeing the huge army coming, then entered Trilokinath, becoming patient. It is said that Rukmani, do not worry because for me this huge army of Shishupal etc. It is like that which will fly away with one blow and looking there, in that very evening, he has been defeated 17 times in the aunt's war, yet he has come to fight with me with this ignorant king, O Rajan, the army of Shishupal etc. Shri Krishna. To kill Chandra, he started attacking him with his weapon, from that time also Balram ji reached there with his Yaduvanshis and started fighting the enemy party, he put the heads of the kingdoms of his mussels, dismembering all his armies. Seeing this scene, Shishupala's army started running away from him with a fierce blow. Seeing this scene, his enthusiasm was destroyed when Jarasandha came near him and started explaining to him, saying that Shishupala should go to war or he would have been defeated. One should not be overjoyed on victory and mourning for defeat does not suit the hero because defeat wins according to fate I have lost to Krishna, won 18 times, after the persuasion of the Sangh, Shishupal lost his life. He has gone back to the country, even a little bit gone. When his just brother Rukmani came to know about the abduction of Rukmani, he went to kill Shri Krishna, who broke down in his lap, and reaching in front of him, his eyes were red like fire. He roared and said, Oh Ajit, you did not have any fear while kidnapping Rukmani, did you not have the knowledge that this is not an extraordinary woman but a king girl, after abducting it, you will have to fight me, take care of me there, Mani In this, Shri Krishna started raining the ward above him, as soon as Shyam Sundar started throwing arrows on his saran bow, his songs were futile. Killed a brahmin, cut off the flag of his chariot. Another brahmin captivated his companion. When he picked up the second bow kept on Rukmani's chariot, he also cut it by driving once. Went near and raised the sword of Jio to kill him, at the same time Rukmani Kasuta was with him. Arrived and cut his head at his feet and started saying, Swami my brother, don't feast on this day, the way Shri Balram ji is dear to you, in the same way my brother is dear, God you are the ocean of grace, this fool cannot recognize your form. The reason has been a crime, if you kill this, then my parents will be very sad, at the time when Rukmani was begging for the life of her brother, at the same time Rukmani had a feeling of a door towards Shri Krishna, knowing that Nand Nandan shaved his beard and tied his head case with his sword and tied it behind the night and started learning at the same time the attraction of Lord Shri Balaram reached there after killing the enemy and seeing Urmi's plight, addressing Shri Krishna, Kanhaiya started saying I know that it is a creature of evil nature, but even then it is your brother-in-law, so it is completely inappropriate to behave like this, come, you should free the bondage soon, after that, addressing Rukmani, he said, O Rukmani, punish the creature according to karma. It is found that Kanhaiya is blameless in this because if someone else would have been in his place. So he too would have done what he has done, while killing the enemy who came for war is in accordance with religion, yet Kanhaiya did it otherwise only after closing the former and left, Shri Sukhdev ji said that Rukmani was satisfied on the persuasion of King Parikshit Balram ji. And went and sat on the chariot of Shri Krishna, even after being freed by Shri Krishna, she did not go to her country in the form of horoscope, because while going for her, she did it after holding Shri Krishna Balarama in front of the townspeople and then this too It was said that if I could not catch him and bring him, I would not show my face in the city, thinking that he built a new town near Fingerpur, whose name was sent, he started ruling by staying in the cut, he started ruling by taking Parikshit Rukmani with him. When he returned to Dwarkapuri along with Ram on his brother, seeing him safely, his mother Devaki's father Vasudev and Nana Ugrasen were very pleased, after that after calling the Vice-Chancellor to Acharya, he got the marriage ceremony done in auspicious time.Rukmani Katha performed the marriage of Shri Krishna with pomp and donated gold currency and other clothes to Brahmins.
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