श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 53 आरंभ
रुकमणी हरण की कथा
रुक्मणी की कथा ब्राम्हण के मुख से सुनकर और रुक्मणी की चिट्ठी को पढ़ने के उपरांत श्री कृष्णा जी सदैव की भांति मंद मंद मुस्कुराते हुए ब्राह्मण से करने लगे हे ब्राह्मण देव माय आपका अति आभारी हूं जो आपने मेरी प्रिय रुक्मणी का संदेश मुझ तक पहुंचाया मैं आपका ऋणी हो गया जिस दिन देवर्षि नारद ने मेरे पास आकर रुकमणी के रूप में और मधुर्य की प्रशंसा मुझसे कि उसी दिन से मैं उस से प्रेम करने लगा हूं मैं सत्य कहता हूं कि मुझे भी रुकमण से भूतनी ही प्रतीत है जितना प्रेम वह मुझसे करती है है ब्राम्हण देवता इस समय संध्या हो रही है अतः आज रात्रि हमारे भवन में आप विश्राम करें प्रातः काल मैं आपके साथ चलूंगा उसका पानी ग्रहण संस्कार पर ओशो है अतः कल हमारा चलना सब प्रकार से उत्तम होगा यह कह कर श्री कृष्ण चंद्र अपने सेवक को बुलाकर ब्राह्मण देवता को सम्मान पूर्वक एक सुसज्जित कक्षा में विश्राम करने के लिए भेजा जहां पर मखमली बिछड़ने बिस्तर लगे थे भगवान श्री कृष्ण द्वारा सम्मान कए जाने पर ब्राम्हण अपने मन में विचार करने लगा कि जिन्हें सब द्वारिकाधीश कहते हैं इसका स्वभाव कितना निर्माण और स्वस्थ है इसका तंग इतना सुखमल है कि उस पर भी इसकी कोमलता के सम्मुख टीका लगता है इसके पास के तुल्य अत्यंत ही सुकोमल है और इनका मुख चंद्र कोटी सूर्य के समान दमकता है रुकमणी के कारण भगवान श्री कृष्ण का दर्शन पाकर मैं धन्य हो गया इस तरह विचार करते हुए वह कब सो गए स्वयं उसे ही ज्ञान ना था प्रातः काल उठा और सेवकों से पूछ कर नित्य क्रिया से निर्मित होने चले गया तत्पश्चात इस नाम करके शुद्ध हुआ तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सारथी दारु को रक्त सजा कर लाने की आज्ञा दिया आज्ञा पाकर शीघ्रता से ना रूप में जब भी मैं पुष्पा शुगृत एवं बाहर लिख नामक चार घोड़ों को रात में जो कर सुंदर छत वाले रात को सजा लाय रात तैयार देखकर मुरली मनोहर उस पर आक्रमण हुए और अपने सन ब्राह्मण को भी बिठाया और सारथी को औरत आदमी का आदेश दिया सारथी प्रभु का आदेश पाकर घोड़ों को हादसा हुआ विनय पूर्वक स्वर में पूछा यह स्वामी इस घड़ी हम कहां के लिए चल रहे हैं इनके पूछने का तात्पर्य समझकर कृष्ण मुरारी के कोमल होठों पर मुस्कान उभर आई तो तदुपरांत बोले हे साथी वीरम देश के राजा भी शक की कमियां रुकमणी मुझसे प्रेम करती है किंतु उसके भाई ने उसका विवाह कैदी राजा शिशुपाल से करने का निश्चय हुआ आने वाले कल की तिथि निश्चित कर दी है आज मैं आज वहां नहीं पहुंच पाता तो शायद रुकमणी अपने प्राण त्याग के इस कारण हम विदर देश चल रहे हैं उचित स्थान जाकर दारू के तेज गति से जुड़े को हाथ में आरंभ किए उनकी गति देखकर वायु की चंचलता भी फीकी लगने लगी उंगली पर पहुंचकर उन्होंने देखा कि कन्या रुक्मणी के विवाह की तैयारी धूमधाम से हो रही है नगर गली कूचे चौराहे आदि पुष्पों से सजाए जा रहे हैं ताजा भी शक अति प्रसन्न होकर ब्राह्मण को चौहान एवं गौ दान कर रहे हैं नगर में चारों ओर कोलाहल मचा है ठीक उसी तरह की तैयारी चेदि राजा दम घोष के यहां हो रही थी दम घोष के पुत्र शिशुपाल को बटन चंदन केसर आदि का लेप कर सुगंधित जल से स्नान कराया जा रहा था ए राजा परीक्षित कुंडलपुर पहुंचकर श्री श्याम सुंदर ने मधुर वचन का उच्चारण करते हुए ब्राह्मण से कहा कि ब्राह्मण देवता आपने जिस तरह रुकमणी का संदेश मुझ तक पहुंचा कर महा पुण्य का कार्य किया है उसी तरह थोड़ा सा पूर्णा और कर दो मेरे प्रिय रुक्मणी से जाकर मेरी आगमन का समाचार का हो जिससे उसकी अधीर ही देश शांति प्राप्त हो उससे कहना कि मैं राज वाटिका में ठहरा हो श्री कृष्ण जी की आज्ञा शिरोधार्य कर ब्राह्मण वहां से विदा हुए और राजमहल की ओर चल दिए जिस घड़ी व कृष्ण के आगमन का समाचार लेकर राजभवन की ओर जा रहा था उस समय वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए रोहित ने रुक्मणी के हाथ में हल्दी चावल आदि का बना हुआ कंगन बांध दिया तब वह अत्यंत व्याकुल होकर गिराने लगा कि क्या करें जो अभी तक हमारे प्राणप्रिया नहीं आए है कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारे भाइयों को ब्राह्मण के द्वारिका जाने की जानकारी हो गई और उन्होंने उस मार्ग से रोक लिया है यदि ऐसा हुआ होगा तो मेरे श्यामसुंदर को मेरा संदेश नहीं प्राप्त हुआ होगा फिर वह किस तरह आएंगे उसी समय ब्राह्मण ने आकर नंद दुलारे के आगमन का समाचार सुनाया यह जानकर श्री कृष्ण मुरारी कुंडली पूर्व में आ चुके हैं और बाघ में ठहरे हैं वही अति प्रसन्न हुए उनकी समस्त चिंताहरण मात्रा में दूर हो गई उपयुक्त कथा सुनने के पश्चात श्री सुखदेव जी बोले हे राजा श्री कृष्णा के अकेले कुंडली पुर जाने का हाल जब राम जी कुमावत उन्होंने अपनी एजेंसी सेनाओं को तैयार होने का आदेश देते हुए उन्हें यादव वीरो रुकमणी का हरण करने के लिए कन्हैया खेले कुंडली पुर चले गए हैं वहां देश देश के राजा महाराजा और स्वयं शिशुपाल अपने विशाल सेना सहित आएंगे क्योंकि रुक्मणी का विवाह हो ना उसी से निश्चित है और जब कन्हैया रुक्मणी को अपने रथ पर बैठा लिया उसी घड़ी शिशुपाल चुप नहीं रहेगा यह सुनिश्चित है कि वह भयंकर युद्ध होगा अतः तुम सब शीघ्र प्रस्थान करो अपनी चतुराई की सेना तैयार कर बलभद्र जी पूरा चल पड़े हे राजन रुक्मणी और श्री कृष्ण के आगमन का समाचार सुनकर वह ब्राह्मण जाने के लिए माफी गाड़ी रुकमणी अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए बोली है विप्र देव आपने मुझे अभागिन पर बहुत बड़ा उपकार किया है जिसके बदले में यदि तीनों लोकों का वैभव भी तुम्हें प्रदान करूं तो भी कुछ होगा यह कहा करो मणि ने अपने कृपा दृष्टि उस पर डाली जिससे तत्क्षण ही गरीब ब्राह्मण का घर श्री लक्ष्मी सेफ परिपूर्ण हो गया उसके बाद उसने राजा कृषक के पास जाकर श्री कृष्ण के आने का समाचार का राजा भी सकथी प्रश्न को आराधना भूषण आदि भेंट स्वरूप लेकर श्री कृष्ण जी के समीप गए और नम्र निवेदन करते हुए बोले मेरे अहोभाग्य जो आपके दुर्लभ दर्शन मुझे प्राप्त हुए हे भगवान मैं आपका सत्कार करने योग्य प्राणी नहीं हूं फिर भी मुझसे जो मन पड़ता है वह करूंगा इस तरह बिना करते हुए राजा भी शक में उनकी भावनाओं की और भेंट में लाई हुई सामग्री उनके चरणों में रखना जय श्री कृष्णा के आगमन का समाचार सब नगर निवासियों को प्राप्त हुआ तो वे सभी नगर निवासी उसके मुख चंद्र का दर्शन करने के लिए बाग आ पहुंचे और अपने नेत्रों से उनके मुख्य बिंदु का रसपान करने लगेगी स्त्रियां वर्ष में इस प्रकार करने लगे थे वहां रुकमणी के योग्य व श्री मुरली मनोहर जी हैं देखो तो सही के नेतृत्व में गले में माला का नंबर और फोटो पर चंचल मुस्कान कितनी सुंदर लग रही है हमारी रुकमणी के लिए यह योग्य है भगवान करे इन्हीं के साथ रुक्मणी का विवाह हो तब दूसरी स्त्री आने लगी हिंदी भाषा में रखकर बनाया है महाराजा विश्व के श्रेष्ठ पुत्र रुक्मणी को जगिया ज्ञात हुआ कि विवाह उत्सव देखने के लिए कृष्णा और बलराम आए हैं तब वह अपने पिता के सम्मुख जाकर पूछ स्वर्णकार ने लगाए पिता श्री सत्य सत्य मतला है कि यह दोनों भाई किस के बुलावे पर आए हैं क्या आपने इन्हें निमंत्रण भेजा था आज अभिषेक ने कहा हे पुत्र मैंने निमंत्रण नहीं भेजा था किंतु वह विवाह उत्सव देखने के लिए आए हैं तो क्या हुआ रोहित स्कूल के श्रेष्ठ एवं आदरणीय पिता के वचनों को सुनकर पर भटकता हुआ रुक्मणी वहां से चला गया था और जाकर शिशुपाल तथा देना संघ आदि से कहानी लगा है भाई कृष्ण और बलराम यहां आए हुए हैं जिससे मुझे इसी प्रकार के उपद्रव की आशंका हो रही है आते हो तुम अपनी सेना के ऊपर वाले से कह दो कि सैनिकों को सावधान रहें हे राजा परीक्षित कृष्णा एवं कल शाम के आगमन का समाचार सुनकर जरा संघ अत्यंत भाई अतुल पोखर करने लगा के रुकमणी वे दोनों यहां किस लिए आए हैं जरा संघ को भाई देख देख कर रुक मैं बोली आपने क्यों भयभीत हो रहे हैं यदि किसी तरह का उपद्रव उसे किया तो उसका परिणाम भुगतना होगा तब जरा सा नहीं कहा तुम नहीं जानते कि मैं उनसे क्यों भेजी हो रहा हूं वह दोनों भाई अपन पराक्रमी तुम बलशाली नहीं के मित्र और मैं क्या कहूं इन दोनों भाई नेपाली कंस को मार डाला जिससे मार पारा असाधारण बात नहीं है इतना ही नहीं मैंने 23 अंखियों से माल लेकर 17 बाहर मथुरा पर आक्रमण किया किंतु हर बार मुझे पराजय मिली आठवीं बार जब मैंने आक्रमण किया तो यह दोनों जान बचाकर भागे और पर्वत पर चल गया मैंने पर्वत में आग लगा दी किंतु ना जाने इसी तरह से जीवित बच गई इसमें सावधान रहना ही उत्तम है श्री कृष्णा जी बोले हे राजा परीक्षित जरासंध की चिंता युक्त वचनों को सुनकर रुक्मणी ने कहा मित्र तुम कदापि चिंता ना करो यह दोनों मेरे सम्मुख एक पल के लिए भी ठहर नहीं सकते तुम निर्भय होकर रहो इस तरह समझा बुझाकर उसे संबोधन के कारण कराया और गौरी पूजन के लिए मंदिर जा रहे रुक्मणी के संग 50000 शूरवीर को भेजा उसकी दृष्टि में कुल की रीति के अनुसार अपनी गौरी पूजा हेतु जा रही थी किंतु वास्तविक रूप में वह प्रभु श्री श्याम सुंदर के चरण स्पर्श कर रही थी उनके चारों तरफ उसे गिरे हुए सहेलियों चल रही थी आगे आगे ढोल मृदा तुरंत आदि मांगलिक बजाए जाते हुए लोग चल रहे शिशुपाल की विशाल सेना उसके आगे पीछे इस प्रकार चल रही थी जैसे कहीं क्यूट के लिए जा रहे हैं मंदिर में प्रवेश का रुक्मणी में धूप दीप जलाकर स्वच्छता के फलों का हार देवी पार्वती के गले में डाल कर अपने मित्रों को बंद कर मन ही मन करने लगी है भैया मैं अभी स्मरण में आई हूं मैंने सदैव सच्चे मन से तुम्हारे चरणों की पूजा की है हे माता मेरी पूजा स्वीकार कर आशीर्वाद दो जिससे तुम्हारी यह बेटी अपने प्रियतम को प्राप्त करें विधि पूर्वक पूजा करने के उपरांत शीशा झुका है वह मंदिर से बाहर आए उससे श्यामा श्री कृष्ण जी रथ पर सवार होकर वहां है उन्हें देखकर रुकमणी के संग हाई हुए साथियों प्रसन्न होकर कहने लगी है सखी तनी से झुक शीश उठाकर सामने देख हमारे हृदय में बसने वाले श्याम सुंदर आए हैं उसकी बात सुनकर रुकमणी समोसउसने से आलोकित हो उठा और उसने अपनी पड़ी पड़ी रतनारी आंखों की झुकी हुई पलकों को उठाकर सामने की ओर दृष्टिपात किया हे राजन रुक्मणी का सौंदर्य वह घड़ी आंखें अधिक निखार आई थी मुख मंडल पर चंद्रमा के समान तेज विमल के दृश्य लाल कोट अत्यधिक आकर्षण थे उसके कमर में करधनी पैरों में पायजेब और कानों में स्वर्ण कुंडल बहुत सुंदर लग रहे थे वह तरुण अवस्था में ही थी जिस कारण उसका सुंदरता निछावर हो रही थी रुक्मणी का कटी भाग सिंह के कटी भाग को लाने वाला था उनके ऊपर हुए वक्षस्थल पर घुंघराले केश वायु के झोंकों के साथ अट्ठारह लिख कर रहे थे वह हम मंद गति से छोटे-छोटे पार्क रखती हुई श्याम बिहारी के रथ के निकट पहुंची और लाश जाते हुए अपना हाथ उनकी और बढ़ाया अंतर्यामी प्रभु ने उसे उसे अपने रथ में बैठा लिया और अपना जीवन संघ उठाकर उससे दूर की फूंक मारी जिसकी भयंकर ध्वनि सुनकर शिशुपाल के सैनिक आर द मूर्छित हो गए उसी समय उन्होंने अपना रात आगे बढ़ा दिया हे राजन संघ की ध्वनि सुनकर जरासंध और शिशुपाल आदि घबरा गए और अपना अपना हथियार लेकर उठ खड़े हुए उसी समय कई सैनिक भागते हुए आए और श्री कृष्ण द्वारा रुक्मणी के हरण का समाचार कहने लगे
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Shrimad Bhagwat Katha Purana Tenth Skandha Chapter 53 Beginning
Story of Rukmani Haran
After listening to the story of Rukmani from the mouth of the Brahmin and after reading Rukmani's letter, Shri Krishna started smiling as usual to the Brahmin, O Brahmin God, I am very grateful to you for conveying the message of my dear Rukmini to me. Became indebted the day Devarshi Narada came to me in the form of Rukmani and praised Madhurya to me that from that day I started loving her. It is evening, Brahman deity, so you should rest in our building tonight, I will walk with you in the morning, his water is on the eclipse ceremony, so tomorrow our walk will be best in every way, saying that Shri Krishna Chandra calling his servant The brahmin deity was sent to rest in a well-furnished classroom where there were velvet bedding beds. On being respected by Lord Shri Krishna, the brahmin began to think in his mind that the nature of all who are called Dwarkadhish, how constructed and healthy his nature is. tight so pleasant It is said that it is also commented on in front of its softness, it is very soft like its near and its face shines like the moon Koti Sun, due to Rukmani, I was blessed to have the darshan of Lord Shri Krishna. Thinking like this, when He himself did not have the knowledge to fall asleep, got up in the morning and asked the servants and went to be created by daily action, after that he was purified by this name, then Lord Krishna ordered his charioteer Daru to bring blood decorated with blood Whenever I saw four horses named Pushpa Shugrat and outside Likh, which were decorated in the night with a beautiful roof, Murli Manohar attacked him and made his son Brahmin sit and ordered the charioteer to be a woman charioteer Prabhu After receiving the order, the horses had an accident and asked humbly, this lord, understanding the meaning of asking where are we going at this moment, a smile emerged on the soft lips of Krishna Murari, then he said, O fellow Veeram, the king of the country also doubted the shortcomings. Rukmani loves me but her brother married her to the prisoner King Shishupal. It was decided to run, have fixed the date of tomorrow, today I could not reach there today, so perhaps because of Rukmani sacrificing her life, we are going to Vidar country by going to the right place and starting the fast pace of alcohol in her hands. Seeing the speed, the fickleness of the air also started to fade, reaching the finger, he saw that the preparations for the marriage of the girl Rukmani are being done with pomp, the city streets, crossroads etc. are being decorated with flowers. There has been an uproar all around the city, the same kind of preparations were being done at the place of Chedi King Dum Ghosh. Dum Ghosh's son Shishupal was being bathed with scented water after applying button sandalwood saffron etc. King Parikshit reached Kundalpur and Mr. Shyam Sundar, uttering a sweet word, said to the Brahmin that Brahmin God, just as you have done great work by conveying Rukmani's message to me, in the same way, do a little bit more work and go to my dear Rukmani and let me know about my arrival. So that his impatient country gets peace, tell him that I have stayed in the royal garden. On the orders of Shri Krishna ji, the Brahmins left from there and went towards the palace, while reciting the Veda mantras, Rohit put turmeric rice etc. in Rukmani's hand. Tie the bracelet made of it, then he started falling very distraught that what to do, which has not yet come to our soul, is it so that our brothers came to know about the brahmin's going to Dwarka and stopped them from that path if so. If it had happened, my Shyamsundar would not have received my message, then how would he come, at the same time the Brahmin came and narrated the news of the arrival of Nanda Dulare, knowing that Shri Krishna Murari Kundli has come in the east and is staying in the tiger, he was very pleased with him. After listening to the appropriate story, Shri Sukhdev Ji said, O King Shri Krishna, the condition of going to Kundlipur alone, when Ram Ji Kumawat ordered his agency armies to be ready, to kidnap the Yadav hero Rukmani. Kanhaiya has gone to Kundlipur to play There, the king of the country, Maharaja and Shishupala himself will come with his huge army because Rukmini's marriage is not certain with him and when Kanhaiya made Rukmani sit on his chariot, Shishupala will not remain silent at the same time, it is sure that it will be a fierce battle. All of you should leave soon, preparing your army of cleverness, Balabhadra ji has gone full, O Rajan, Rukmani, and after hearing the news of the arrival of Shri Krishna, she apologized for going to the Brahmin car, Rukmani, expressing her happiness, said, Vipra Dev, you are very big on my unfortunate. Have done a favor in return for which if I give you the glory of the three worlds, then something will happen, say this, Mani cast his grace on him, so that immediately the poor Brahmin's house became full of Shri Lakshmi safe, after that he went to the king farmer. Going to the news of the arrival of Shri Krishna, the king also went near Shri Krishna ji, taking the sacred question as a gift of worship, Bhushan etc., and with a humble request, said, it is my good fortune that I have received your rare darshan.Oh Lord, I am not a creature worthy of your hospitality, yet I will do whatever I want, in this way, even the king without doubting his feelings and keeping the things brought at his feet, the news of the arrival of Jai Shri Krishna to all When the residents of the city got it, then all the residents of the city came to the garden to see the moon, and they would start drinking their main point with their eyes. Look, the number of the garland around the neck under the right leadership and the playful smile on the photo is looking so beautiful for our Rukmani, it is worthy that God bless Rukmani with her, then another woman started coming in the Hindi language. Maharaja World Rukmani, the best son of Jagiya came to know that Krishna and Balarama had come to see the marriage ceremony, then he went in front of his father and asked Swarnakar to ask the father Shri Satya Satya Matla, on whose call these two brothers have come, have you invited them? Was sent today Abhishek said hey son, I have invited But he has come to see the marriage festival, so what happened after hearing the words of the best and respected father of Rohit school, but wandering Rukmani went from there and went to Shishupal and Dena Sangh etc. The story is told brother Krishna and Balram You have come here, due to which I am apprehensive of similar disturbances, you should tell the person above your army to be careful, O King Parikshit Krishna, and after hearing the news of the arrival of last evening, please feel free to ask your very brother Atul Pokhar. I felt that Rukmani, what have they both come here for, just after seeing the Sangh brother, I stopped saying why are you getting scared, if you do any kind of nuisance, then you will have to face the consequences, then did not say a bit, you do not know why I asked them I am sending those two brothers, your mighty friends, you are not strong and what can I say, these two brothers killed Nepali Kansa, which killed Para is not an extraordinary thing, not only that, I attacked Mathura 17 outside by taking goods from 23 eyes, but every The time I was defeated, the eighth time when I attacked, both of them ran for their lives and ended I went on the boat, I set fire to the mountain but did not know how to survive in this way it is best to be careful, Shri Krishna ji said, listening to the words of concern of King Parikshit Jarasandh, Rukmani said, friend, you should never worry, these two You cannot stay in front of me even for a moment, you should be fearless, in this way, extinguished it because of the address and sent 50000 knights along with Rukmani going to the temple for Gauri worship, according to the custom of the clan in his eyes for his Gauri worship. But in reality she was touching the feet of Lord Shyam Sundar, her fallen friends were walking around her, the drums, soil immediately ahead, etc. Manglik is being played. It was going on as if going for a cute way to enter the temple, lighting an incense lamp in Rukmani, putting the necklace of the fruits of cleanliness around the neck of Goddess Parvati, closing my friends, I have started thinking about it, brother, I have just come to remembrance. I have always worshiped your feet with a sincere heart, O mother, accept my worship. And give blessings so that this daughter of yours can get her beloved, after worshiping her, the mirror is bowed, she comes out of the temple, Shyama Shri Krishna ji is there riding on her chariot, seeing her, the friends raised with Rukmani have started saying happy. Shyam Sundar, who resides in our heart, has come to see him bowing down from the sakhi trunk, Rukmani Samos was illuminated by him and he raised the slanted eyelids of his lying Ratnari eyes and looked in front, O Rajan, she is the beauty of Rukmani. The watch eyes had become brighter like the moon on the face, the red coat was very attractive, the girdle in her waist, the anklets in her feet and the golden coils in her ears were looking very beautiful, she was in a young state, due to which her beauty should be lost. Rukmini's cut part was about to bring the lion's cut part, curly hair on her chest was writing eighteen with gusts of wind, she kept small park at a slow pace and reached near Shyam Bihari's chariot and While going to the corpse, extended his hand to him. The Lord made him sit in his chariot and lifted his life Sangh and blew it away from him, hearing the terrible sound of which Shishupala's soldiers became unconscious, at the same time they extended their night, O Rajan, Jarasandha and Shishupala etc., hearing the sound of the Sangha. Frightened and stood up with their weapons, at the same time many soldiers came running and started telling the news of the abduction of Rukmani by Shri Krishna.
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