श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 27

श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंद अध्याय 27 आरंभ



इंद्र का भगवान श्री कृष्णा से क्षमा याचना श्री सुखदेव जी बोले हे राजन् मेघा द्वारा ब्रज का हाल वर्णन सुनकर देवराज इंद्र बिछाने लगे कि गोवर्धन पर्वत को एक उंगली पर उठाकर ब्रज की रक्षा करना किसी साधारण मनुष्य के बस की बात नहीं है मुझे विश्वास हो गया है कि श्री कृष्णा जी के रूप में साक्षात श्री नारायण ने अवतार लिया है अतः मुझे चलकर भगवान त्रिलोकीनाथ से अपना अपराध क्षमा करना चाहिए या विचार कर इंद्रदेव अपने साथी ऋषि मुनि एवं देवताओं को लेकर वृंदावन पधारे और भगवान श्री कृष्ण के निकट पहुंचकर उनके चरणों में गिरकर याचना करने लगे हे प्रभु मैं अपने आकार में अंधा होकर आप की परीक्षा लेने का भीषण अपराध किया है या मेरा अज्ञान था स्वामी किंतु आप दीनबंधु जगत हितकारी हैं आपने हम सारी जीवों को सन्मार्ग प्रदान करने के लिए अवतार लिया है यह स्वामी मैं ऐश्वर्य के मन में चूर होकर अपना अपराध किया है मेरा प्रार्थना करें मैं आपकी शरण में हूं एक कृपा निधान जब ब्रह्मा शिव आदि आपके भेद को ना जान सके तो मैं कैसे जान पाता देवराज इंद्र द्वारा स्तुति के जाने पर तीन लोग को अपनी माया के वश में करने वाले भगवान नंद नंदन मन मन मुस्कुराते हुए गंभीर स्वर का उच्चारण करते हुए बोले हे देवराज इंद्र तुम्हें अपने धन योगेश्वर यादी का गर्भ हो गया था उसे नष्ट करने के लिए मैंने ग्रुप वालों को तुम्हारी पूजा ना करन दिया और गोवर्धन हो पाया जिस पर हमारी कृपा होती है हम सर्वप्रथम उसके घमंड का नाश करते हैं हे इंद्र अब तुम्हारा घमंड नष्ट हो चुका है और मेरी असीम कृपा भी तुम्हारे प्राप्त हो गई है अब तुम निर्भय होकर जाओ और अमरावती इंद्रलोक पर राज करो और मर्यादा का पालन करते हुए मेरा स्मरण करने रहो तब बहुत प्रकार से भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति का इंद्रदेव आपने लोग के लिए प्रस्थान कर गए

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Shrimad Bhagwat Katha Purana Tenth Skanda Chapter 27 Beginning

Indra's apology to Lord Shri Krishna, Shri Sukhdev ji said, O King, after listening to the description of Braj by Megha, Devraj Indra began to lay down that it is not a matter of any ordinary man to protect Braj by lifting the Govardhan mountain on one finger. It is said that Shri Narayan has incarnated in the form of Shri Krishna ji, so I should go and forgive my crime to Lord Trilokinath or considering that Indradev came to Vrindavan with his fellow sages and gods and reached near Lord Shri Krishna at his feet. I fell down and started praying, O Lord, I have committed the horrific crime of testing you by being blind in my size or I was ignorant lord, but you are the benefactor of the world. Having broken my heart, I have committed my crime, I am in your shelter, I am in your shelter, when Brahma Shiva etc. could not know your secret, then how could I know that after being praised by Devraj Indra, to control three people under his illusion. Lord Nand Nandan Mana While uttering a serious voice with a smiling mind, he said, O Devraj Indra, you were pregnant with your wealth Yogeshwar Yadi, in order to destroy it, I did not allow the people of the group to worship you and got Govardhan, on whom we are pleased first of all. Destroy pride, O Indra, now your pride has been destroyed and my infinite grace has also been received by you, now you go fearless and rule Amaravati Indralok and keep remembering me by following the dignity, then God in many ways Indradev left for you people of praise of Shri Krishna

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