श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 25 आरंभ
श्री कृष्ण का गोवर्धन पर्वत धारण करना श्री सुखदेव जी बोले हे राजन राज वासियों पर कुपित होकर इंद्र ने महिलाओं को बुलाकर ब्रजमंडल पर वहां पर लय भारी वर्षा करने का आदेश दिया आदेश पाकर मेघराज ने तूफानी वक्त के साथ ब्रजमंडल पर जाकर वर्ष में आरंभ किया तीव्र आंधी चलने लगी चारों तरफ काले बादल छा जाने से ऐसा लगने लगा जैसे सूर्य देव का कोई अस्तित्व ही नहीं है बादल ने उनको ढक दिया चारों ओर अंधकार छा गई जब भगवान श्री कृष्ण मलमल मुस्कुराते हुए बलरामजी से बोले दाऊ भैया पूजा ना पाने से इंद्र ईर्ष्या गया है और अपने क्रोध को मूसलाधार जल वर्षा कर प्रगट कर रहा है उनके अभिमान का खंड खंड करने का यही उचित अवसर है उधर हाथी वद्धि अत्याधिक वर्षा से व्याकुल होकर ग्वाल वाला गो गोपियां इधर उधर भाग कर अपने प्राण बचाने लगे और मन में पछतावा भी रहे थे कि नाहक में हमें कन्हैया की बात मानकर गोवर्धन की पूजा की उसी का फल हमें मिल रहा है हे परीक्षित घड़ी भर से सारा वृंदावन जाल मांगना हो गया तब सभी लोग वाला अत्यधिक दुखी होकर श्री कृष्णा जी के पास पहुंचे आपका में लगे हे कन्हैया आप के कहने पर हमने इंद्र देव की पूजा त्यागकर गिरिराज गोवर्धन की पूजा आप इंद्र का महाप्रलय बंद कर हम पर टूट रहा है आप हमारे प्राणों की रक्षा कर नंद यशोदा भी बालक कृष्ण की बात मानकर बहुत पछता रहे थे तभी श्रीकृष्ण मुस्कुरा कर आने लगे आप लोग तील बराबर भी चिंता ना करें आप लोग ने जिसकी पूजा की है वही गोवर्धन तुम्हारे रक्षा करेंगे सब लोग अपनी गए तथा आवश्यक वस्तु लेकर गिरिराज के निकट चलो श्री कृष्ण की बात मानकर समस्त वृंदावन वासी गाय बसों और अन्य व्यवस्था छठ गांव में लादकर बाल बच्चों सहित गोवर्धन के निकट जा पहुंचे तब भगवान श्रीकृष्ण ने बाद बाद में गोवर्धन पर्वत को अपनी अगली उंगली पर उठा लिया और अपने माता-पिता और बाल बालों से बोले तुम सब पर्वत के विशाल गड्ढे में बैठ जाओ इंद्र तुम्हारा कुछ भी ना कर पाएगा मिलने वाले के साथ वर्षा करना आरंभ किया किंतु श्री कृष्णा जी की माया से गोवर्धन पर एक बूंद भी पानी ना गिरता था इस तरह इंद्र के भेजे हुए मेघा ने लगातार 7 दिनों तक वर्षा की किंतु सभी ग्रुप वालों सुख पूर्वक गोवर्धन के गड्ढे में पड़े रहे उधर पुत्र प्रेम में वशीभूत होकर यशोदा बार-बार भगवान श्री नारायण की प्रार्थना करती है भगवान मेरे कन्हैया की रक्षा करना अपनी माता को इस तरह व्याकुल देकर श्री कृष्णा जी वालों से बोले हैं वालों तुम सब भी पर्वत में अपनी लाठी लगाकर मेरी सहायता करो उनकी इस तरह वचनों को सुनकर सभी भारत ने अपनी लाठी लगा दी और कृष्णा इस फोटो को देखकर बारां जी हंसने लगे हे राजा परीक्षित भगवान नटराज अपनी लीला दिखाकर ब्रज वासियों की रक्षा की उधर इंद्र के में पानी बरसते बरसते थक गए तब वह भागकर इंद्रदेव के पास जा पहुंचे करने लगे हे देवराज हम हमारे पास जितना पानी था सब बरस दिया किंतु आश्चर्य की बात ब्रज पर एक बूंद भी पानी नहीं है मैं गांव को यह नहीं मालूम था कि गोवर्धन धारण करने वाले लीला बिहारी श्री कृष्ण जी का सुदर्शन चक्र मूसलाधार पानी ऊपर वाद के चारों ओर घूम घूम कर अपनी ज्वाला से शौक रहा था यह परीक्षित इंद्र के भेजे हुए मेक जब वापस लौट गए तब सूर्य देव का दर्शन हुआ धूप निकल आई तब भगवान श्री कृष्णा ने पर्वत को नीचे रख दिया उस समय माता यशोदा पुत्र प्रेम में भी हॉल होकर बार-बार उनका मुख चूमने लगी और ग्रुप वालों भगवान श्री कृष्ण की जय जयकार करने लगे
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Shrimad Bhagwat Katha Purana Tenth Skandha Chapter 25 Beginning
Wearing the Govardhan mountain of Shri Krishna, Shri Sukhdev ji said, being angry with the residents of Rajan Raj, Indra called the women and ordered them to make heavy rain there on Brajmandal. The storm started blowing, due to the dark clouds all around, it seemed as if the sun god did not exist, the cloud covered him, there was darkness all around when lord shri krishna muslin smiled and said to balramji, Indra was jealous of not getting worship. Has gone and is expressing his anger by raining torrential water, this is the right opportunity to break his pride, while the elephant's growth, being disturbed by the excessive rain, the cowherd cows started running here and there to save their lives and remorse in their mind too. We were unnecessarily listening to Kanhaiya and worshiping Govardhan, we are getting the result of that, O tried to ask for the whole Vrindavan net from a moment's time, then all the people got very sad and reached Shri Krishna ji, hey Kanhaiya. At the behest of you, we gave up the worship of Indra Dev. Worship of Ririraj Govardhan, you are breaking down on us by stopping the great deluge of Indra, you saved our lives and Nanda Yashoda was also very sorry to listen to the child Krishna, when Shri Krishna started smiling, you people don't worry even as much as you have. The one whom you have worshiped, the same Govardhan will protect you, everyone went to Giriraj with the necessary things, obeying Shri Krishna, all the people of Vrindavan, after loading cow buses and other arrangements in Chhath village, reached near Govardhan along with children, then Lord Shri Krishna Later, he lifted the Govardhan mountain on his fore finger and said to his parents and children, all of you sit in the huge pit of the mountain, Indra will not be able to do anything for you. Not even a drop of water used to fall on Govardhan from Maya, in this way Megha, sent by Indra, rained continuously for 7 days, but all the people of the group were happily lying in the pit of Govardhan, while Yashoda, being subdued in the love of the son, Lord Shri again and again. Lord Narayan prays for my Kanhaiya's Rak By making your mother distraught like this, Shri Krishna ji has said to the people, all of you also help me by putting your sticks in the mountain, listening to his words like this, all India put their sticks and Krishna laughed seeing this photo. O King Parikshit, Lord Nataraja by showing his Leela protected the residents of Braj, on the other hand Indra got tired of raining water, then he started running to Indradev, O Devraj, we showered all the water we had, but surprisingly on Braj. There is not even a drop of water, I the village did not know that the Sudarshan Chakra of Leela Bihari Shri Krishna ji, who was wearing Govardhan, was fond of his flame by revolving around the top of the water, when this test was sent by Indra. When he returned, the sun came out, then Lord Shri Krishna put the mountain down, at that time mother Yashoda, son of love, started kissing his face again and again in the hall and the group members started cheering Lord Shri Krishna.
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