श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 24

श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 24 आरंभ

देवराज इंद्र का गुस्सा करना



श्री सुखदेव जी ने कहा हे राजन भगवान श्री कृष्णा जी जिस तरह गिरिराज गोवर्धन को अपने कनिष्ठ कहानी उंगली पर उठाकर ब्रज वासियों की रक्षा की वह कथा आपको सुनाता हूं ध्यान पूर्वक सुने हे राजन कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि को सभी ब्रजवासी प्रतिवर्ष इंद्र देव का पूजा अर्चना करते थे जिससे इंद्र देव प्रसन्न होकर वर्षा करते थे हर साल की भांति कार्तिक मास की चतुर्दशी को ब्रजवासी पूरी मिठाई आदि विधिवत प्रकार के व्यंजन बनाकर इंद्र देव की पूजन की तैयारी में मग्न थे सभी के घर में इस प्रकार की तैयारी देखकर कृष्ण भगवान ने अपने मन में विचार किया कि इंद्र देव का पूजा करने से उत्तम गिरिराज पर्वत गोवर्धन का पूजन वाना अच्छा होगा यह विचार करके उन्होंने माता यशोदा से जाकर पूछा यह मैया आज कौन सा पर्व त्यौहार है जो समस्त ब्रजवासी के घरों में पूरी पकवान बन रहे हैं यशोदा जी उस समय व्यंजन तैयार करने में व्यस्त थी अतः बोली के लल्ला मेरे पास बात करने की छुट्टी नहीं है तू किसी और से जाकर पूछ ले तब हुए नंद राज जी के पास जाकर कहने लगे यह बाबा आज किस देवता की पूजा की जा रही है और क्यों कृपा करके मुझे बताएं राजा परीक्षित कन्हैया के वचनों को सुनकर नंदलाल जी बोले हे पुत्र आज इंद्र देव की पूजन की तिथि है मैं गांव के राजा इंद्र हमारी पूजा से प्रसन्न होकर पानी बरसाते हैं जिससे हमारे खेत हरे भरे रहते हैं घास हरी भरी होती है जिससे हमारे गांव में चिराग पसंद होती है हमारे यहां इंद्र जी की पूजा बहुत दिनों से होती है नंद बाबा के वचनों को सुनकर श्री कृष्णा जी कहने लगे हे बाबा आज तक आप लोगों ने जाने अनजाने में इंद्र की पूजा की वह ठीक है परंतु अभी इंद्र की पूजा ना करके क्योंकि इंद्र यहां आता नहीं वह किसी को भक्ति मुक्ति अथवा सिद्धि भी नहीं दे सकता वह सॉन्ग यज्ञ करके राशन प्राप्त करता है अतः वह किसी प्राणी को क्या दे सकता है हे बाबा जब देवताओं से युद्ध में हार जाता है तब श्री नारायण आकर उनकी सहायता करते हैं जो अपनी रक्षा स्वयं नहीं कर सकता वह तुम्हारी क्या रक्षा करेगा संसार में तीन तरह के धर्म बताए गए हैं वेद शास्त्र के अनुसार दूसरा लोक व्यवहार तीसरा अपने मन से उसमें वेद शास्त्र के अनुसार किए गए कर्म फलीभूत होती है बाकी निष्फल जाते हैं जो भात विधाता ने कर्मयोग में लिख दिया है उसमें तीन भर की भी गड़बड़ नहीं सकती जो आप कहते हैं कि वर्षा इंद्रदेव करते हैं तो यह समझो कि 8 महीने सूर्य देव अपनी धूप से पृथ्वी का जल सकते हैं वही जल बरसात के 4 महीने में बरसता है उसी से हंगामा आदि उपस्थित थे हैं नंद जी को संबोधित करके श्री कृष्णा जी पुनः बोले हे बाबा जो आपने धर्म का त्याग कर दूसरों का धर्म ग्रहण करते हैं वह पाप के भागी होते हैं यदि आप मेरा कहां माने तो अब इंद्र की पूजा ना करके गिरिराज गोवर्धन की पूजा हराम कर दें क्योंकि जल वर्षा कराने का कार्य इंद्रदेव नहीं करते बल्कि गिरिराज गोवर्धन करते हैं यह परिचित कृष्णा के वचनों को सुनकर नाम राय एवं वहां उपस्थित द्वारा आश्चर्य में पड़ गए तब कृष्ण जी समझते हुए बोले आप लोग आश्चर्य ना करें मैं जब मरते हैं तब गर्जना गोवर्धन के शिखर से टकराती है और अपनी बरसाना आरंभ हो जाता है बादलों को रोकना और पानी को बरसाने का शुभ कार्य गोवर्धन ही समस्त पूर्ण करते हैं अतः आप सब वालों से गोवर्धन की पूजा कराएं इनकी कृपा से हर साल से अधिक वर्षा होगी कृष्णा जी के वचनों को सुनकर सब ब्रजवासी अत्यंत प्रसन्न हुए और इस बार गोवर्धन की पूजा करने के लिए घरों घरों में जाकर करने लगे तब समस्त गोपालपुरी मीठा पकवान आदि लेकर गोवर्धन पर्वत के निकट जा पहुंचे और दही चंदन फूल माला आदि चढ़ाकर उनका सिंगार किया उन्हीं के दीपक जलाए गए और धूप चंदन आदि से उनकी आरती की गई और शंख मृदंग आदि मजाक कर मंगलवार करने लगे उस समय लीला बिहारी श्री कृष्णा अपनी लीला दिखाते हुए दो स्थानों पर विराजमान हुए एक तो स्वयं वालों के बीच रहे और दूसरे ग्रुप में गिरिराज गोवर्धन से प्रगट होकर आहोर लगाई वस्तुओं को उठा उठा कर ने लगे तब श्री कृष्ण जी बोले देखो देखो गोवर्धन भगवान प्रकट होकर वह की समाधि का रहे हैं आज से यह हमारे नाराज देवता है श्री सुखदेव जी बोले राजा परीक्षित हुआ दृश्य देखकर वालों के प्रसंता की सीमा नारे गोवर्धन भगवान की जय जय कार करने लगे उधर इंद्रलोक में इंद्रजीत देवताओं से पूछने लगे इस बार ब्रज से अभी तक हमारी पूजा क्यों नहीं आए तब देवताओं ने बतलाया कि नंद राज के पुत्र कृष्ण के कहने पर समस्त ब्रजवासी आपका त्यागकर गोवर्धन पर्वत की पूजा कर रहे हैं यह सुनते ही इंद्रदेव अत्यंत क्रोधित हुए और मेघराज को आदेश दिया कि जाओ अति वृद्धि वर्षा करके समस्त ब्रजमंडल को सागर में बहा दो

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Shrimad Bhagwat Katha Purana Tenth Skandha Chapter 24 Beginning

To anger Devraj Indra

Shri Sukhdev ji said, O king, Lord Shri Krishna ji, I tell you the story of protecting the residents of Braj by lifting Giriraj Govardhan on his junior story finger, listen carefully, O Rajan, on the Chaturthi date of Kartik month, all Brajwasis worship Indra Dev every year. Lord Indra used to worship with pleasure, like every year, on the Chaturdashi of Kartik month, Brajwasi were engrossed in the preparation of worship of Indra by making complete sweets etc. He thought in his mind that it would be good to worship the best Giriraj mountain Govardhan by worshiping Indra Dev, thinking that he went to Mother Yashoda and asked, which festival is this Maiya, which is being cooked in the homes of all Brajwasi Yashoda. Ji was busy preparing the dishes at that time, so Lalla said, I do not have any time to talk, you go and ask someone else, then he went to Nanda Raj ji and said, which god is this Baba being worshiped today and Why please tell me Raja Parikshit Kan Hearing the words of Haiya, Nandlal ji said, oh son, today is the date of worship of Indra Dev, I am pleased with our worship, the king of the village Indra showers water, so that our fields are green, the grass is green, due to which we like the lamp in our village. We have worshiped Indra ji for a long time, after listening to the words of Nanda Baba, Shri Krishna ji started saying, oh Baba, till today you people knowingly and unknowingly worshiped Indra, that is fine, but by not worshiping Indra now, because Indra is here. He does not know that he cannot give devotion, liberation or accomplishment to anyone, he receives ration by performing Song Yagya, so what can he give to any creature, O Baba, when he is defeated in a battle with the gods, then Shri Narayan comes and helps those who do their best. He cannot protect himself, what will he protect you, three types of religions have been told in the world, according to the Vedas, the second world's behavior, the third one with his own mind, the deeds done according to the Vedas, the rest become fruitless, which the creator of the rice has done Karma Yoga. I have written in it, there can not be even a single mess of what you say. They say that rain is showered by Indra Dev, so understand that for 8 months Sun God can burn the earth with his sunshine, the same water rains in 4 months of rain, there were ruckus etc. Baba, those who renounce their religion and accept the religion of others, they are guilty of sin, if you believe in me, then by not worshiping Indra, now stop worshiping Giriraj Govardhan, because Indradev does not do the work of raining water, but Giriraj Govardhan Let's do this, listening to the words of the familiar Krishna, Naam Rai and being present there were astonished, then Krishna ji understood that you people should not be surprised when I die, then the roar hits the summit of Govardhan and starts raining its clouds. Govardhan only completes the auspicious task of stopping and raining water, so make all of you worship Govardhan. By their grace, there will be more rain every year, all the Brajwasis were very happy after hearing the words of Krishna ji and this time worship of Govardhan. All Gopalpuri Me He reached near the Govardhan mountain by taking the dishes etc. and garlanded him by offering curd, sandalwood, flowers etc. His lamps were lit and his aarti was done with incense, sandalwood etc. and conch mridang etc. jokingly started doing it on Tuesday. Showing Leela, sitting at two places, one stayed among his own people and in the other group, Giriraj appeared from Govardhan and started lifting the things, then Shri Krishna ji said, look, God Govardhan has appeared and is in his samadhi. From today this is our angry deity, Shri Sukhdev ji said that seeing the scene of King Parikshit, the limit of the people's happiness started shouting slogans like Govardhan God's jai jai car, whereas In Indrajit started asking the deities in Indralok, why this time our worship has not come from Braj yet. The gods told that at the behest of Krishna, the son of Nanda Raj, all the people of Braj were renouncing you and worshiping Govardhan mountain.

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