श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 17

श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 17 आरंभ

काली नाम के पूर्व समय का वृतांत

कालिया मोरधन की कथा श्री सुखदेव जी के मुख से सुनने के पश्चात राजा परीक्षित पूछने लगे हे महात्मा रमणीक दीप जैसे सुंदर मनोहारी स्थान को छोड़कर काली नाग यमुना जी में आकर क्यों और आता था तब श्री सुखदेव जी का आने लगे हे पर गीत आपने अति उत्तम प्रश्न किया है नाता है आपको मैं खाली नाम के यमुना जी में आकर रहने की कथा सुनाता हूं ऋषि कश्यप जी की दो स्त्रियां थी विनता एवं क्रोध बिनता के गर्व से अरुण एवं गरुण भी जी उत्पन्न हुए तथा खुद के घरों से 24 धर सांपों की उत्पत्ति हुई अरुण जी भगवान सूर्य देव के सारथी बने और गरुड़ जी भगवान श्री नारायण के वाहन हे राजन का कथा अत्यंत ही रोचक यात्रा राम ध्यान पूर्वक सुने क्रोध तथा विनता अपने पुत्रों सहित एक सहा रहा करती थी 1 दिन बिनता से कूदने कहा है विनीता सूर्य देव के रात में किस रंग के घोड़े जूते हैं विनीता ने उन्हें श्वेत रंग का बताया किंतु क्रोध के बिना सोचे विचारे काले रंग का कह दिया इस बात को लेकर दोनों में वार्ता खिल गई दोनों अपने कथन को सत्य सिद्ध करने पर तुली हुई थी तब खुद ने कहा यदि मेरी बात सत्य हुई तो तू मेरी दासी बनकर रहना और यदि तुम्हारी बात सत्य हुई तो मैं तुम्हारा दासी बन जाऊंगा दोनों ने शर्त स्वीकार किया यह बात जब सड़कों को मालूम हुआ तो वह आकर अपनी माता क्रोध से कहने लगे हैं माता सूर्य देव के रात में जूते हुए घोड़े श्वेत रंग के हैं अतः तुम शर्त हार गई तब वह बोली है पुत्रों तुम सब कोई उपाय करो जिससे मेरा कथन सत्य सिद्ध माता के वचनों के सुनकर सरसों में जाकर सूर्य देव के रात में जूते घोड़े को ढक लिया जिससे वे काले रंग के दिखाई देने लगे बिनता शर्त हार गई और उसकी दासी बन गई बहुत दिन बाद गरुड़ जी ने सड़कों से जाकर कहा तुम मेरी माता को दास वक्त से मुक्त कर दो बदले में मैं तुझे कुछ भी मांग लो गरुड़ की बात सुनकर सड़कों ने आपस में विचार-विमर्श किया और बोले यदि तुम मुझे अमृत कलश लाकर दो तो हम तुम्हारे माता को दावत से मुक्त कर देंगे गरुड़ जी उसी समय तीव्र वेग से स्वर्ग लोग के तरफ उड़ गए उनके पंख के वेग से भयंकर शोर उत्पन्न होने लगा उस शब्द को सुनकर इंद्र घबरा गए और घरों को रोकने के लिए देवताओं को भेज जा किंतु देवता गण उनके वे को सहन ना कर सके और धारा सही हो गए तब इंद्र ने क्रोधित होकर उस पर अपना बजरा चला दिया गरुड़ जी ने बाजरा का सामना करते हुए अपना एक पंक्ति याद दिया तत्पश्चात आपने विशाल पंजे में अमृत कलश दबाकर उड़ चले मार्ग में श्री विष्णु जिससे उसकी भेंट हुई तब वह बोले हे गरुड़ जी तुम सड़कों के नियमित हो अमृत कलश ले जा रहे हो यह उचित नहीं है अमृत मान कर के सभी सर्प अमरत्व तोहफा लेंगे और प्राणियों को बहुत दुख पहुंचेंगे इसके बदले तुम मुझे अन्य कोई वस्तु मांग लो श्री हरि विष्णु का कथन सुनकर गरुड़ जी बोले हे भगवान मेरी माता इस समय सड़कों की दासी है 10 वर्ष से मुक्त कराने के लिए उन्होंने अमृत कलश की मांग की है इसलिए मैं अमृत ले जा रहा हूं तब विष्णु जी कहने लगे हैं गौरव शर्मा ने तुम्हारे साथ छल किया है इसलिए तुम भी उसके साथ छल करो भगवान विष्णु की बात स्वीकार कर करूं जी ने अमृत कलश ले जाकर गुस्सा में रख दिया सभी सर्प अमृत पीने के लिए झटपट गरुड़ जी कहने लगे यह सिर्फ अमृत बहुत पवित्र वस्तु है अतः तुम लोग स्नान करके शुद्ध हो जाओ तब इसका पान करना गरुड़ जी सकथन स्वीकार कर सभी सर्विस नान हेतु जाने लगे उसे समझ अरुण जी ने कहा अब हमारी माता दासी उन से मुक्त हो गई सभी सपा ने एक साथ हां कहा और स्नान करने चले गए तक्षण विष्णु भगवान प्रकट हुए और अमृत कलश उठाकर अपने साथ ले गए स्नान करने के उपरांत जब सभी सर्प वापस आए तो अमृत कलश ना पाकर उषा को चाटने लगे यह सोच कर कि अमृत की कुछ बूंदें हैं अवश्य गिरी होगी उषा चाटने से उनकी जी हां फट कर दो भागों में हो गई श्री सुखदेव जी बोले हे राजन् गरुड़ जी के अच्छे कर्म से प्रसन्न होकर श्री हरि ने उसे वरदान देना चाहा तब गरुड़ जी बिना केवल बोले जिन्होंने मेरी माता को दुख पहुंचा है उसको मेरा भोजन बने भगवान ने एवं अस्तु कहा और गरुड़ जी से निवेदन किया कि तुम मेरे वाहन बन जाओ गरुड़ जी ने भगवान का वाहन बनना स्वीकार किया तत्पश्चात वे सड़कों का मार मार कर खाने लगे जरूर का अत्याचार देख सब्जी सरकर ब्रह्मा जी के पास जाकर कहने लगे यह पितामह वरदान पाकर गरुड़ अत्यंत शक्तिशाली हो गए हैं और हम सर पर को मार मार कर आए जा रहे हैं इस तरह एक दिन आप के बनाए हुए सभी सर्व समाप्त हो जाएंगे तब ब्रह्माजी ने पक्षीराज गरुड़ को बुलाकर कहा तुम प्रत्येक मां अपने खाने के लिए एक शर्त ले लिया करो तब से हर महीने में पूर्णमासी के दिन 1:00 पर उनके पास जाने लगा जिसे खाकर गरुड़ जी अपनी छुआ शांत करते जब काली नाक की बारी आई तब वहां अपने 20 और बल के घमंड में भर कर बोला माय और गरुड़ दोनों कश्यप जी के पुत्र हैं फिर क्यों माय गरुड़ के सामने दिनों से युद्ध करके उसे मार डालूंगा और सांप कुल की रक्षा करूंगा और आते हुए घरों को मार्ग में रोककर युद्ध करने लगा किंतु उसके तीक्ष्ण सूद और पंजों की मार से त्रस्त होकर भाग चला और यमुना में जा छिपा उसी स्थान पर 100 भारी ऋषि के श्राप के कारण गरुड़ जी नहीं जा सकते थे जिस स्थान पर काली नाक छिपा था उसी स्थान का नाम कालीदह पड़ गया इतनी कथा सुनकर सुखदेव जी चुप हो गए तब परीक्षित ने पूछा है महात्मा यमुना जी में जिस स्थान पर काली नाथ छिपा था हुआ पक्षीराज गरुड़ जी क्यों नहीं जा सत्य थे तब सुखदेव जी कहां के राजा ने एक समय यमुना तट उस सरोवर पर 100 भारी कृषि बैठे हुए संध्या वंदना कर रहे थे उसी समय सोच में मछलियों को लिए हुए गरुड़ जी वहां पहुंचे और एक वृक्ष की शाखा पर बैठकर खाने लगे उनके इस कृत्य को देखकर सौभारी कृषि क्रोधित होकर कहने लगे हे जरूर हम यहां बैठकर संध्या पूजा कर रहे हैं फिर तुम्हें इस स्थान को अपवित्र नहीं करना चाहिए था आज मैं तुम्हें क्षमा कर रहा हूं किंतु भविष्य के लिए शराब देता हूं कि यदि तुम फिर कभी इसी स्थान पर आए तो तुम्हारा सिर टुकड़ा में विभक्त हो जाएगा हे राजन उस शराब के भय से गरुड़ जी वहां नहीं जाते काली नाग को सांप वाली कथा का ज्ञान था इसलिए वह रमणीक दीप पढ़ना रहकर वहां रहता था जब श्री कृष्ण कालीदह से बाहर निकले तो माता यशोदा को देखने के लिए भाई से थरथरा कहां पर है थे और दौड़ कर माता यशोदा की गोद में जा छिपे उन्हें सकुशल देख नंद उपनंद सुदामा ग्वाल बाल यशोदा रोहिणी आदि बहुत प्रसन्न हुए और आपस में कहने लगे भगवान की कृपा से हमारे कन्हैया काल से बच गए तब नंद जी ने अपने पुत्र की खुशी में बहुत सा दान  पूर्ण किया

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Shrimad Bhagwat Katha Purana Tenth Skandha Chapter 17 Beginning

prehistory

After hearing the story of Kaliya Mordhan from the mouth of Shri Sukhdev ji, King Parikshit started asking why and why did Kali Nag come to Yamuna ji leaving a beautiful place like Mahatma Ramnik Deep, then Shri Sukhdev ji started coming but your song is very good. Question has been asked, I tell you the story of living in empty name Yamuna ji, Rishi Kashyap ji had two women, Arun and Garun were also born out of pride and anger and 24 Dhar snakes originated from their own homes. Hui Arun ji became the charioteer of Lord Surya Dev and Garuda ji, the vehicle of Lord Shree Narayan, the story of Rajan, was a very interesting journey. Ram carefully listened to anger and Vinta, along with his sons, used to be a companion for 1 day, said Vinita Surya Dev What color horses are shoes in the night, Vinita told them to be white in color but without thinking of anger, they said that they were black in color, both of them were bent on proving their statement true. Said if my words are true then you remain my slave and if your words are true E then I will become your maidservant, both of them accepted the condition, when the streets came to know about this, they came and started saying to their mother with anger. Hey sons, all of you should do some remedy by which my statement is true, listening to the words of the perfect mother, after going in mustard, the sun god's shoes covered the horse in the night, due to which he started appearing black, he lost unconditionally and became his maid after many days. Garuda ji went to the streets and said that you free my mother from slave time, I ask you anything in return, after listening to Garuda, the streets discussed among themselves and said if you bring me the nectar urn, then we will be your mother. Garuda ji will free him from the feast. At the same time, at the same time, at the same time, the speed of his wings started producing a terrible noise. Hearing that word, Indra got frightened and sent the deities to stop the houses, but the deities were theirs. He could not bear it and the stream became right, then Indra got angry and drove his barge on it, Garuda ji faced the millet. While remembering a line of mine, after that you flew away by pressing the nectar urn in the huge paw, on the way Shri Vishnu met him, then he said, O Garuda ji, you are the regular of the roads, you are carrying the nectar urn, it is not proper to take nectar as nectar. All the snakes will take immortality gift and the creatures will be very sad, instead you ask me for something else, listening to the statement of Shri Hari Vishnu, Garuda ji said, O Lord, my mother is a maid of the roads at this time, to free her from 10 years, she made a nectar urn. I have demanded that I am taking nectar, then Vishnu ji has started saying that Gaurav Sharma has cheated with you, so you should also deceive him by accepting the words of Lord Vishnu, ji took the nectar urn and kept all the snakes in anger. To drink the nectar, Garuda ji immediately started saying that nectar is a very holy thing, so you guys get purified after taking a bath, then after drinking it, Garuda ji accepted the request and started going for all the services, understanding that Arun ji said that now our mother maid is those. All the SPs said yes together and went to take a bath. When all the snakes came back after taking a bath, after not getting the nectar urn, they started licking Usha thinking that some drops of nectar must have fallen by licking Usha. Shri Sukhdev ji said, O Rajan, pleased with the good deeds of Garuda ji, Shri Hari wanted to grant him a boon, then without saying only Garuda, who has hurt my mother, God made him my food and said Astu and to Garuda ji Requested that you become my vehicle, Garuda ji accepted to be the vehicle of God, after that he started hitting the roads and eating, after seeing the atrocities of the vegetables, he went to Brahma ji and said that after getting this grandfather's boon, Garuda has become very powerful and We are coming after beating on the head, in this way all the services made by you will be finished, then Brahmaji called the bird king Garuda and said that every mother should take a condition for her food. On the day of 1:00, he started going to him, eating which Garuda ji would calm his touch when it was the turn of the black nose. B there, filled with pride in his 20 and strength, said that both my and Garuda are the sons of Kashyap ji, then why will I kill Garuda after fighting for days and protect the snake clan and stop the coming houses in the way to fight. But due to the bite of his sharp suds and claws, he ran away and hid in the Yamuna, at the same place, due to the curse of 100 heavy sages, Garuda could not go to the place where the black nose was hidden, the same place got its name as Kalidah. Sukhdev ji became silent after hearing the story, then Parikshit has asked why the bird king Garud ji did not go to the place where Kali Nath was hidden in Mahatma Yamuna ji, then Sukhdev ji, the king of where was once 100 heavy agriculture sitting on that lake on the banks of Yamuna. While doing Sandhya Vandana, Garuda ji, carrying fishes in thought, reached there and started eating while sitting on a branch of a tree. to this placeShould not have polluted you, today I am forgiving you but for future I give wine that if you ever come to this place again, your head will be divided into pieces, O Rajan, Garuda ji does not go there for fear of that liquor. He had the knowledge of the snake story, so he stayed there by reading the delightful lamp, when Shri Krishna came out of Kalidah, where was he trembling with his brother to see Mother Yashoda and running and hiding in Mother Yashoda's lap, seeing her safely Nand Upanand Sudama Gwal Bal Yashoda Rohini etc. were very pleased and started saying among themselves that by the grace of God, our Kanhaiya survived the period, then Nand ji completed many donations in the happiness of his son.

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