श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 15

श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 15 आरंभ

बलदाऊ द्वारा धेनु का सुर का वध

पूछड़ विश्राम करने के पश्चात श्री सुखदेव जी बोले हे राजन् एक दिन यशोदा मैया एवं नंद बाबा से आज्ञा लेकर श्री कृष्ण जी के साथ जाऊंगी चढ़ाने के लिए बलराम जी जय श्री कृष्णा जी के परम मित्र श्री सुदामा भी थे सुदामा एवं उनके तथा उनसे कहने लगे हे कन्हैया एवं बलराम भैया यहां से कुछ दूर के परीक्षाओं का 1 है वह ताड़ के वृक्ष सदैव मीठे फल से लदे रहते हैं किंतु धेनु कसूर के भय से कोई मनुष्य वहां नहीं जाता वह गधे के रूप में वृक्षों की रखवाली करता है शाखाओं के मुख से इस प्रकार का उच्चारण सुनकर बलराम जी कहने लगे यदि तुम सब ताड़ के मीठे फलों को खाना चाहते हो तो इसी समय मेरे साथ चलो बलराम जी के वचनों को सुनकर समस्त ग्वाल वाला और प्रसन्न हो गए और निर्भय होकर उस्मान की ओर चल दिए वन में पहुंचकर बलराम जी ने अपने बलवान भुजाओं से ताड़ के वृक्षों को पकड़ कर जोर से हिला वृक्ष हिलने से फल टूट टूट कर गिरने लगे फलों के गिरने से उत्पन्न हुए शब्दों को सुनकर धेनु कसूर कि घटता हुआ वहां पहुंचा उसे आता देख मेघवाल वाला डर के दूध जा खड़े हुए वह गधे के रूप में था ही नाता पहुंचते ही बलराम जी को तू लगती मारी उसी समय राम जी ने उसके पीछे टांग पकड़ ली और उठाकर पृथ्वी पर पटक दिया वह तुरंत उठकर खड़ा हो गया और बड़े जोर से उछलकर पहना दुलारी चलाया इस बार-बार राम जी की कुपित होकर धनु कसूर उनकी टांगों को पकड़ लिया और 4 की की भांति घुमाने एवं ताड़ के वृक्ष पर दे मार उनकी चोट से वह वृक्ष ताड़ ताड़ आकर टूट गए और धनु पशुओं के प्राण पखेरू उड़ गए हे परीक्षित ताल वृक्ष के टूटने से भयंकर रोग उत्पन्न हुआ शोर सुनकर उस असुर के और भी साथी असुर आए और वह राम जी को मारने दौड़ने तब श्री कृष्णा और बलराम ने मिलकर सब असुरों को मार गिराया उनकी मारते ही 1 विरुद्ध आए हो गया तब सभी वालों वालों ने खूब फल खाया और पोटली में बांधकर अपने घरों को ले गए और धनु का राक्षस के मारे जाने का समाचार कह सुनाया उसने सुनकर ब्रजवासी अत्यंत आश्चर्यचकित हुए

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Shrimad Bhagwat Katha Purana Tenth Skandha Chapter 15 Beginning

Dhenu killed by Baldau

After taking rest, Shri Sukhdev ji said, O king, one day after taking orders from Yashoda Maiya and Nand Baba, I will go with Shri Krishna ji to offer Balaram ji Jai Shri Krishna ji's best friend Shri Sudama was also Sudama and started telling him and him. O Kanhaiya and Balaram Bhaiya, there is a test of some distance from here, that palm trees are always laden with sweet fruits, but due to fear of Dhenu, no man goes there, he guards the trees in the form of a donkey, from the mouth of the branches On hearing such an utterance, Balram ji started saying if you all want to eat the sweet fruits of palm, then come with me at the same time, listening to the words of Balaram ji, all the cowherds became happy and fearlessly went towards Osman, reaching the forest. Balram ji, holding the palm trees with his mighty arms, shook vigorously, the tree started to break and fall, hearing the words arising from the fall of the fruits, Dhenu reached there, seeing that the cloud was coming, seeing him coming, the cloud went to the milk of fear. He was standing in the form of a donkey, as soon as the relation reached Balram ji, you seemed to have killed Ram ji at the same time. took hold of the leg behind him and lifted it to the earth. Due to his injury on the tree of the tree, that tree fell from palm to palm and the life of the animals was blown away. When Shri Krishna and Balaram together killed all the demons, they came together against them, then all the people ate a lot of fruits and tied them in bundles and took them to their homes and told the news of the death of the demon Dhanu. Brajwasis were very surprised to hear

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