श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 13

श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 13 आरंभ

ब्रह्माजी द्वारा ग्वाल बालों एवं गाय बच्चों का अपहरण

आप गुस्सा शुरू व्रत की कथा सुनने के पश्चात श्री सुखदेव जी बोले हे राजा परीक्षित आशापुर को मारने के पश्चात भगवान श्री कृष्ण चंद्र जी आपने शाखाओं सहित गाय बछड़ों सहित यमुना में जाकर स्नान किया और 1 में एक सुंदर और स्वास्थ्य स्थान देखकर बोले थे सकता हूं दिन बहुत चल गया है और भूख भी लगने लगी है सा अब हमें कलवा कर लेना चाहिए यह कह कर वे अपने साथ लाई हुई पोटली खोल कर बैठ गए वासी को उन्होंने आपने वेट में खौफ रखा था उन्हें देखकर आने वाला बाल लोगों ने ढाक के पत्तों की पत्तल बनाकर अपने साथ लाए हुए गले की पोटली खोलकर श्री कृष्ण जी के चारों और बैठ गए और सभी ग्वाल बालों के बीच बैठे हुए हुए ऐसे शुभ शुभ अमान हो रहे थे जैसे तारों के बीच चंद्रमा खाते हुए सभी ग्वाल वाला अपने भोजन को दम बताने लगे तब श्रीकृष्ण कभी उस वाल्बाला के पत्तल से गौर उठा कर खा लेते कभी इस ग्वाल बाला के कभी अपने हाथ के कोर उन्हें खिलाफ में लगते इस प्रकार वालों का जूठन भोजन करते देख ब्रह्मा जी के मन में शंका उत्पन्न हुआ कि या यहीं परम ब्रह्म परमेश्वर है जो परमेश्वर बड़े बड़े यज्ञ हवन आदि की पवित्रता से तैयार की हुई सामग्री का भोग ग्रहण नहीं करते हुए बालों के बालकों का जूठन कैसे ग्रहण करेंगे यह विचार पर उन्होंने कृष्ण की परीक्षा करने हेतु चढ़ते चढ़ते दूर निकल गए समस्त गाय बछड़ा को आकार पर्वत की एक कंदरा में ले जाकर बंद कर दिया तब वालों वालों ने देखा कि मारे गए कहां भी दिखाई नहीं दे रही है तब हुए श्री कृष्णा जी से कहने लगे तब ना उन्हें वहीं बैठा कर स्वयं अकेले गाय भैंसों को ढूंढने के लिए चल पड़े जगत के दृष्ट्वा भगवान एवं स्वयं अपने बनाए हुए जगत को ढूंढने लगे जब वह वालों वालों से कुछ दूर निकल गए तब उन्होंने ब्रह्मा जी की चाल समझ कर अपनी माया से ठीक उसी तरह से गाय बछड़ा का निर्माण पर उन्हें आते हुए वापस लौट गए इधर ग्वाल वालों को श्री कृष्णा जी अलग पाकर ब्रह्मा जी ने ग्वाल बालों का भी हरण कर लिया और सब को देख कर पर्वत की ऊंची पंधरा में छुपा है जहां गाय भैंसों को छुपाए थे और स्वयं अपने लोग चले गए जिस स्थान पर मदन मुरली श्री कृष्णा ग्वाल बालों को बिठा कर गए थे वह उन्हें ना पाकर अपने मन में विचार ने लगे कि जब ग्वाल वालों अपने घरों को नहीं पहुंचे तो उनके माता-पिता को बहुत दुख होगा तब वह अपनी माया से ठीक उसी तरह से बाल बालम उत्पन्न कर दिया और संध्या के समय लोगों को हंसते हुए ग्वाल वालों से हंसते बिताते हुए वृंदावन पहुंचे उन सब की माताएं उन बालकों को अपना समझ कर उन्हें प्रेम पूर्वक दही मक्खन मिश्री खिलाने लगी हे परीक्षित उन बच्चों और ग्वाल बालों के प्रति ब्रजवासी प्रति दिन पर दिन बढ़ता ही गया तब बलराम जी सोचने लगे कि ब्रजवासी जैसा प्रेम मुझसे और कृष्णा जी से करते थे वैसे ही प्रेम बांटने वालों को और गांव वालो से करने लगे हैं इस क्या कारण है सारा वृंदावन कृष्णा में हो रहा है जब इसका रहस्य उन्होंने श्रीकृष्ण से पूछा तब उन्होंने मंद मंद मुस्कुराते हुए काहे दाऊ भैया यह सब मेरी माया है यह कह कर उन्होंने सारा वृत्तांत बतला दिया उधर ब्रह्मा जी को जब वालों बालाओं के हरण का स्मरण हुआ तब उन्होंने विचार किया कि मेरा एक पल मनुष्यों के 1 वर्ष के बराबर होता है अतः मुझे ब्रज में चलकर देखना चाहिए और कोई अपने लोग से चलकर ब्रजभूमि हाय वहां उन्होंने देखा कि जिन गाय बछड़ों हरदौल वाला वो पर्वत की खंडहरों में छुपाया था ओए जा रहे हैं और वाल्बाला श्री कृष्ण जी के साथ मांगना है तत्पश्चात हुए गधार में गए वहां गाय बछड़ों को जिस अवस्था में छोड़ कर गए थे उसी अवस्था में पड़े थे या देख उन्हें अत्यंत आश्चर्य हुआ वह विचार करने लगे कि असली बाल वाला कौन है वहां जितने भी बालक थे हुए सभी मोर मुकुट धारण किए पितांबर धारण किए हैं उनकी चार भुजाएं महाराष्ट्र स्थितियां एवं नव निधियों उनके सम्मुख हाथ जो खड़े हैं और समस्त देवता यक्ष किन्नर उनकी आराधना कर रहे हैं यहां अलौकिक दृश्य देखकर ब्रह्माजी स्तंभ रह गए और मन ही मन लज्जित हुए और ब्रह्मा जी मन की बात जानकर अंतर्यामी भगवान ने अपनी माया खींच ली तब वह अकेले रह गए और दृष्टि उठाकर इधर उधर जाए बदलो एवं ग्वाल बालों को ढूंढने लगे ब्रह्मा जी का सहारा अभियान नष्ट हो गया तत्क्षण हुए अपने आंसुओं से नीचे कूद पड़े और प्रभु के चरणों में लेट कर साष्टांग प्रणाम करते हुए करने लगे थे मायावती हे जगत स्वामी आपकी माया अपरंपार है मैं आपको ना पहचान सकने के कारण ऐसा दृष्टांत किया मुझे क्षमा करें भगवान तत्पश्चात् भगवान श्री कृष्ण के कहने पर ब्रह्मा जी ने समस्त गुहाल भलावत एवं घायलों को लाकर उनके सम्मुख उपस्थित कर दिया

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Shrimad Bhagwat Katha Purana Tenth Skandha Chapter 13 Beginning

Abduction of cowherd hair and cow children by Brahmaji

You started getting angry after listening to the story of the fast, Shri Sukhdev ji said after killing King Parikshit Ashapur, Lord Shri Krishna Chandra ji, you took a bath in the Yamuna with cow calves along with branches and said seeing a beautiful and healthy place in 1 I can The day is long gone and hunger is also starting, now we should get it done After making a leaf and opening the neck bag that he had brought with him, he sat around Shri Krishna ji and all the cowherds sitting in the middle of the hair were getting such auspicious wishes as if all the cowherds were eating the moon among the stars, telling their food to be breathless. At that time, Shri Krishna would eat after taking care from the leaf of that Valbala, sometimes seeing this Gwal Bala's core of his hand against him, a doubt arose in the mind of Brahma ji whether or not the Supreme Brahman Supreme God is here. It is God who enjoys the material prepared from the purity of the great sacrifice, Havan etc. On the idea of ​​how he would accept the child's leftovers while not staying, he went away climbing up to test Krishna, taking all the cow calf in a cave in the shape of the mountain and then the people saw where they were killed. Even when he was not visible, he started telling Shri Krishna ji, then sitting there alone, he himself went to find the cows and buffaloes, the vision of the world started looking for God and the world he had created when he was some distance away from the people. When he left, understanding the trick of Brahma ji, he built a cow calf in the same way from his illusion, but came back after coming to them, here after finding Shri Krishna ji separated from the cowherds, Brahma ji also abducted the cowherd hair and everyone Seeing it is hidden in the high mountain of the mountain, where the cows hid the buffaloes and their own people went to the place where Madan Murali Shri Krishna had gone with the cowherd's hair, he did not find them and thought in his mind that when the cowherds took their If they do not reach their homes, then their parents will be very sad, then they will be childless in the same way with their illusion. I was born and reached Vrindavan in the evening, laughing at the people of the cowherds, the mothers of all of them, considering those children as their own, started feeding them with love and curd, butter and sugar candy. But as the day progressed, Balram ji started thinking that as Brajwasi used to love me and Krishna ji, in the same way they have started doing love to those who share their love and to the villagers, what is the reason why the whole Vrindavan is happening in Krishna when he told the secret of it to Shri Krishna. When asked him, smiling dimly, why Dau Bhaiya, saying that all this is my illusion, he told the whole story, on the other hand, when Brahma ji remembered the abduction of the people, he thought that my one moment is equal to 1 year of human beings. Therefore, I should walk in Braj and see someone walking from his people to Brajbhoomi hi there they saw that the cow calves who had been hiding in the ruins of the mountain are going to Oye and have to ask for Valbala with Shri Krishna ji. When the cows went there to the calves They were left lying in the same condition or they were very surprised to see that they started thinking that who is the real hair, all the children were there, all the children were wearing peacock crowns, their four arms, Maharashtra conditions and new funds. The hands which are standing in front of him and all the deities are worshiping the Yaksha Kinnar, seeing the supernatural scene here, Brahma ji remained a pillar and was ashamed of himself and knowing the matter of Brahma ji's mind, the inner God pulled his illusion, then he remained alone and Taking the sight, go here and there, change and the cowherd started looking for the hair, the support campaign of Brahma ji was destroyed, immediately he jumped down from his tears and while lying at the feet of the Lord, started doing prostitution, Mayawati, O Jagat Swami, your Maya is incomparable. I did such an illustration because I could not recognize you, forgive me Lord, then on the behest of Lord Shri Krishna, Brahma ji brought all the good and injured and presented them in front of him.

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