श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 11

श्रीमद् भागवत कथा पुराण दसवां स्कंध अध्याय 11 आरंभ

नंदी जी को गोकुल से वृंदावन जाकर बसाना वात्सल्य सूर्य एवं मां का शुरुआत का वृतांत

श्री सुखदेव जी बोले हे राजन् वृक्षों के गिरने से बारिश शब्द उत्पन्न हुआ जिसे सुनकर समस्त ब्रजवासी नांदिया सुधार होने आदि भागकर उसी स्थान पर आए देखा तो श्री कृष्ण चंद्र जी भोपाल में बंधे हुए यमला अर्जुन वृक्ष के बीच भयभीत अवस्था में पड़े थे नंद राज जी ने उसे वह कल से खोलकर गोद में उठा लिया और यशोदा पर क्रोध करके बोले तूने कन्हैया को कल से क्यों बांधा आज भगवान ने मेरे लाला बचा लिया नहीं तो ना जाने क्या होता फिर आने वालों से कहने लगे जो वृक्ष किसी आंधी बाहर से नहीं गिरी अचानक कैसे गिराए हमें अचंभा होता है नंद राज जी की गोद से यशोदा मैया को ले लिया और दुलार ने लगी यह परीक्षित परीक्षित के गिरने से सभी आश्चर्यचकित हो रहे थे तब एक ग्वाला ने जो कृष्ण जी द्वारा झटका मारकर मंत्रियों को काटते हुए देखा था बताने लगा और यह भी कहा कि मैंने इन वृक्षों से दो दिव्य वस्त्र धारी पुरुषों को निकलकर कन्हैया का पैर छूते हुए थे का उस समय श्री कृष्ण जी यशोदा के गोद में मचलने लगे मैया मैया मुझे भूख लगी है क्योंकि आज सुबह से कुछ नहीं खाया हूं उनकी बात सुनकर यशोदा मुस्कुराने लगी और उन्हें खाने के लिए माखन मिश्री लगा कर दी इस प्रकार लीला बिहारी नित्य नई नई लीला करके गोप गोपियों को आनंदित करते थे एक दिन नंद राज जी ने समस्त वालों को बुलाकर आपस में विचार-विमर्श किया कि यहां नित नए उपद्रव होते रहते हैं कंस के भेजे हुए राक्षस हमारे कन्हैया कुमार ने का कई बार प्रयास कर चुके हैं अतः यह स्थान हम सबके रहने योग्य नहीं है यदि आप सब विचार हो तो इसी स्थान को त्याग कर किसी दूसरे स्थान पर चले जाएं गायों को कहां से और पीने के लिए पानी मिले तब उपनंद ने बताया कि ऐसा उत्तम स्थान एकमात्र वृंदावन है समस्त वालों जब सहमत हो गए तब संध्या के समय ब्रज वासियों ने अपना अपना सामान घाटकोपर लादकर गाय बच्चों सहित चल पड़े संध्या होते होते हुए सभी वृंदावन पहुंच गए वहीं पर गोवर्धन नामक अत्यंत सुंदर प्रवक्त पास में यमुना जी वह रही थी उस सुंदर मनोरम स्थान ने सबका मन मोह लिया वहीं पर सभी ग्वाला सुंदर सुंदर घर बनाकर रहने लगे अपरिचित श्री कृष्णा जी कुछ और बड़े हुए तब एक दिन यशोदा से हट जीतकर के कहने लगे हे मैया मैं तेनू गांव चराने शाखा के साथ जाएगा कान्हा की बात सुनकर यशोदा कहने लगी हे पुत्र तुझे गांव चराने हेतु वन में जाने की क्या आवश्यकता है तब श्री कृष्ण जी रूठ गए उनका रूठना देखकर उन्होंने ग्वालो बाल लोगों को समझा कर उसके साथ कन्हैया को गांव चराने भेज दिया बलराम जी भी उसके साथ जाने लगे एक दिन कंस के बादशाह सुर राक्षस को श्री कृष्ण को मारने के लिए भेजा वह बछड़े स्वरूप धारण कर वालों के बच्चों में जा मिल श्री कृष्णा जी उसमें मायावी राक्षस को पहचान कर बलराम को अपने साथ लेकर निकट जा पहुंचे वहां से निशुल्क उत्तम अवसर जानकर उन्हें मारने के लिए दौड़ा किंतु त्रिलोकीनाथ भगवान श्री कृष्णा जी के सामने उसकी एक ना चली उन्होंने बछड़े का रूप धारण किए हुए वात्सल्य सुर को दोनों पीछे टांग को पकड़ लिया और एक पत्थर की शिला पर दे मारा जिससे वासियों से उसकी मृत्यु हो गई जब यह समाचार कंस को मालूम हुआ तब उसने कृष्ण जी को मारने के लिए बकासुर को भेजें बकासुर ने एक 20 साल का या बगुले का रूप धारण किया और यमुना तट बैठकर ग्वाल वाला में सहित कृष्ण के आने की प्रतीक्षा करने लगा जिस समय वह अपने गोप शाखाओं के साथ लोगों को पानी पिलाने गए वहां उस विशाल बगुले को देखकर ग्वाल वालों ने कहा हे कन्हैया हमने अपने जीवन में इतना बड़ा बगुला कभी नहीं देखा तब श्री कृष्ण जी बोले हैं मित्रों यह बगुला नहीं असुर है किंतु तुम लोग इसका तनिक भी तुम्हें ना करो यह कह कर वह बगुले के निकट जाने लगे यह देख ग्वाल वालों ने उन्हें बहुत मना किया किंतु हुए ना माने बकासुर ने उन्हें अपने निकट देखकर अपनी सोच को बड़ा और भगवान श्री कृष्ण को निगल गया किंतु वह ना जानता था कि तेल लौकी नाथ को हजम कर पाना असंभव है उधर श्री कृष्ण को वालों द्वारा निकल लिए जाने पर उनके बालसखा बहुत पछताने लगे बलराम जी होकर पृथ्वी पर गिर पड़े उन्हें इस प्रकार व्याकुल देखकर त्रिभुवन पति ने अपनी माया से ऐसा द्वारा उत्पन्न किया कि बकासुर का उधर पेट भीतर ही भीतर जलने लगा और त्रस्त होकर उसने कन्हैया को उगल दिया शो से बाहर आते ही श्री कृष्णा में चौथ के निचले भाग को पैर से दबाकर ऊपरी भाग को हाथ से पकड़ कर चीर दिया और बकासुर की मृत्यु हो गई भगवान ने इसको तू को देखकर देवताओं ने पूछो वर्षा किया उन्हें सकुशल देखकर ग्वाल बालासाहित्य बलराम यदि प्रसन्न हुए

TRANSLATE IN ENGLISH

Shrimad Bhagwat Katha Purana Tenth Skandha Chapter 11 Beginning

Settling Nandi from Gokul to Vrindavan, Vatsalya Surya and mother's story of beginning

Shri Sukhdev ji said, O Rajan, the word rain arose due to the falling of trees, hearing that all the Brajwasis came to the same place after hearing that Nandiya improved, then Shri Krishna Chandra ji was lying in a frightened state among the Yamla Arjun tree tied in Bhopal. Opened it from yesterday, lifted him in his lap and said angry at Yashoda why did you tie Kanhaiya from yesterday, today God saved my Lala, otherwise I don't know what would have happened, then started telling those who came, the tree that a storm did not fall from outside We are surprised how suddenly he fell, took Yashoda Maiya from the lap of Nanda Raj ji and caressed it. It was felt and also said that I was touching the feet of Kanhaiya after taking out two divinely dressed men from these trees, at that time Shri Krishna ji started moving in Yashoda's lap, Maiya Maiya, I am hungry because I have not eaten anything since this morning. Hearing this, Yashoda smiled and took Makhan Mishri to eat them. Singed in this way, Leela Bihari used to make the gopis happy by doing new leela regularly. One day Nanda Raj ji called all the people and discussed among themselves that new disturbances keep happening here, the demons sent by Kansa are our Kanhaiya Kumar. We have tried many times, so this place is not suitable for all of us, if you all have an idea, then leave this place and go to some other place, where do the cows get water to drink and then Upanand told that such The only best place is Vrindavan. That beautiful picturesque place captivated everyone's mind, while all the cowherds started living by making beautiful beautiful houses, the unfamiliar Shri Krishna ji grew up some more, then one day after winning away from Yashoda, he started saying, O Maiya, I will go with Tenu village grazing branch to talk about Kanha. Hearing this, Yashoda started saying, O son, what is the need of going to the forest for grazing your village? It is possible then that Shri Krishna ji got angry, seeing his anger, he persuaded the cowherd people and sent Kanhaiya with him to graze the village. Balram ji also started going with him. Going to the children of those who assumed the form, Shri Krishna ji, recognizing the elusive demon in him, took Balram with him and came near, knowing the best opportunity for free, ran to kill him, but Trilokinath did not walk in front of Lord Shri Krishna ji. Taking the form of a calf, Vatsalya Sura caught hold of both the legs behind and hit a stone rock, which killed him from the residents. When Kansa came to know about this news, he sent Bakasura to kill Krishna. A 20-year-old or took the form of a heron and sat on the banks of the Yamuna and waited for the arrival of Krishna along with the cowherd. We have never seen such a big heron in our life. Shri Krishna ji has said, friends, this heron is not an Asur, but you people should not do it to you, saying that he started going near the heron, seeing this, the cowherds refused him a lot, but he did not agree, Bakasura saw his thinking near him. Big and swallowed Lord Shri Krishna, but he did not know that it is impossible to digest the oil gourd Nath, on the other hand, when Shri Krishna was taken out by the people, his children started repenting very much. Seeing this, Tribhuvan's husband created it through his illusion that Bakasura's stomach started burning inside and being stricken, he spewed Kanhaiya, as soon as he came out of the show, Shri Krishna pressed the lower part of Chauth with his feet and touched the upper part with his hand. He was caught and ripped off and Bakasura died, God asked the gods to see him when it rained.

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ