श्रीमद् भागवत कथा पुराण नवा स्कंध अध्याय 8 आरंभ
राजा सागर और उनके पुत्र का वर्णन श्री सुखदेव जी बोले हैं राजा परीक्षित राजा त्रिशूल की स्त्री के गर्भ से हरिश्चंद्र हुए और उन्हीं से रोहित दास की उत्पत्ति हुई रोहिताश के पुत्र हरित एवं हरित के पुत्र चमक हुए जब जब राजा हुए तब उन्होंने चंपापुरी बसाई राजा चंपके वंश में बाहुक नाम के प्रतापी राजा हुए किंतु संतान उत्पत्ति ना होने से हुए अत्यंत दुखी रहने लगे एक दिन नारद जी का आगमन हुआ देवर्षि को प्रणाम करके राजा ने यथोचित सत्कार किया तत्पश्चात बोले हेतु देवर्षि मैंने अनेक विवाह किए किंतु अभी तक पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हुई है तब नारद जी बोले हे राजन् तुम उदास ना हो तेरे घर पुत्र का जन्म होगा यह कह कर नारद जी चले गए उस समय पश्चात रानी ने गर्भधारण किया उसी समय में राजा बाबू के राज्य पर शत्रुओ ने आक्रमण कर दिया और राज्य छीन लिया उसमें राजा बहू का अपनी रानियों सहित वन में चले गए और देव योगी से उसकी मृत्यु हो गई बड़ी रानी उसके बाद शरीर के साथ सती होना चाहती थी किंतु महर्षि वर्ष ने अन्य ऋषि सहित वहां जाकर रानी को क्षति होने से रोका और बतया कि इस के गर्भ में शिशु पल रहा है उसके पश्चात रानी की चोटों ने 1 दिन रानी को भोजन में गर्दिश मिलाकर खिला दिया या ज्ञात होने पर ऋषि कांड एवं रानी भयभीत हुए तब फोर्स ऋषि ने कहा आप लोग चिंता ना करें यह बालक 20 के प्रभाव से और अधिक तेजस्वी होगा समय पूर्ण होने पर बालक ने जन्म लिया गर्व 20 सहित उत्पन्न होने के कारण ऋषि यों ने उनका नाम सागर रखा वही सागर आगे चलकर चक्रवती राजा हुए एवं और श्री शिव को गुरु बना कर धर्मपुर वर्कर राज किया उनकी बड़ी रानी केसर इनके घरों से असमंजस और दूसरी रानी सुमति के घरों से आठ हजार पुत्रों की उत्पत्ति हुई असमंजस के पुत्र अंशुमान हुए लोग बहुत बड़े धर्मात्मा थे उस समय पश्चात राजा सगरा नेसव अश्वमेध यज्ञ कराने का निश्चय किया जब सहायक यज्ञ समाप्त होने लगा तब इंद्रासन चले जाने के भय से यज्ञ में के घोड़ों को इंद्र चुरा ले गए जिससे यज्ञ संपन्न ना हो और वह घोड़ों को लेकर ले जाकर कपिल मुनि के आश्रम के पास बांधी हो और स्वयं इंद्रलोक चले गए यज्ञ का घोड़ा राजा सगर के पुत्र को यज्ञशाला में ना दिखाई दिया तब हुए खोजने लगे किंतु घोड़ा ना मिला तब उन्होंने पृथ्वी को खोदना आरंभ किया और खुद के होते पाताल लोक में जा पहुंचे वहां सगरा के पुत्रों ने देखा कि अपनों ने अपने नेत्रों को बंद किए हुए तब कर रहे हैं और आश्रम में गुड़ाबांधा खड़ा है यह देख सागर ने क्रोधित होकर कहा अरे दुष्ट पाखंडी तू यज्ञ का घोड़ा चुरा लाया और हमें आया हुआ देख नेतृत्व करने का ढोंग करने लगा शब्द सुनकर कपिल मुनि की शादी हो गई और नेत्र खोल कर यूं ही अगर पुत्र की तरफ से का रास्तहजार वहीं जलकर भस्म हो गए मुनि का अपमान करने का फल उन्हें प्राप्त हो गया जब पुत्रों का बहुत दिनों तक कोई समाचार था राजा सगर को प्राप्त हुआ तब उन्होंने असमंजस पुत्र आयुष्मान से कहा कि तुम जाकर अपने चर्चा चारों एवं यज्ञ के घोड़े का पता लगाओ पिता मां की आज्ञा मानकर आशु महान यज्ञ के घोड़ा एवं चाचा ओं की खोज करता हुआ कपिल मुनि के आश्रम जा पहुंचा मुनि को प्रणाम करके विधिवत प्रकार की स्तुति करने लगा उसकी स्तुति से प्रसन्न होकर कपिल देव जी ने घोड़ा दे दिया और बोला यह सागर पोतरा तेरे साथ हजार चाचा मेरे क्रोध अग्नि में जलकर भस्म हो गए जब गंगा जी का पृथ्वी पर आगमन होगा तभी उनको मुक्ति मिलेगी तत्पश्चात आयुष्मान ने कपिल देव जी को दंडवत प्रणाम किया और लेकर वापस लौट आए पुत्रों के हराम हो जाने का समाचार जान का राजा सागर अत्यंत दुखी फिर उसे ईश्वर शिक्षा समझदारी धारण किया और सोमवार यज्ञ पूर्ण किया तत्पश्चात अपने पुत्र आयुष्मान को राजभर सौंपकर श्री नारायण के चरणों में शीश योगिता नहीं हेतु वन में जाकर तब करने लगे
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Shrimad Bhagwat Katha Purana Nava Skandha Chapter 8 Beginning
The description of King Sagar and his son Shri Sukhdev ji has said that King Parikshit was born Harishchandra from the womb of King Trishul's woman and from them Rohit Das was born. There was a majestic king named Bahuk in the Champak dynasty, but due to lack of progeny, he started being very sad. When the realization is not achieved, then Narad ji said, O king, don't be sad, saying that a son will be born in your house, Narad ji left, after that time the queen conceived, at the same time the enemies attacked the kingdom of King Babu and snatched the kingdom. In this, the king's daughter-in-law went to the forest with her queens and she died from Dev Yogi, the elder queen wanted to do sati with her body after that, but Maharishi Varsha, along with other sages, stopped the queen from being harmed and told that this The baby is growing in the womb, after that the queen's injury They fed the queen for 1 day by mixing it with food or when the sage got to know and the queen was frightened, then the force sage said, do not worry, this child will be more stunning due to the effect of 20, the child was born when the time is over Due to being born with pride 20, the sage named him Sagar, the same Sagar later became the king of Chakravati and made Lord Shiva as a guru and ruled the Dharmapur worker, his elder queen Saffron confused with their homes and eight thousand from the other queen Sumati's houses. Sons were born Anshuman, the sons of confusion, were very religious people, after that time King Sagra Nesav decided to conduct the Ashwamedha Yagya, when the auxiliary sacrifice started coming to an end, then Indra stole the horses in the yajna due to the fear of going to Indrasan, which led to the sacrifice. He was not rich and he took the horses and tied them near the ashram of Kapil Muni and himself went to Indraloka. Sagra's sons went there and went to Hades on their own. When I saw that the loved ones were doing this with their eyes closed and seeing the Gudbandha standing in the ashram, Sagar got angry and said, oh wicked hypocrite, you stole the horse of the yajna and started pretending to lead when we saw the words. Hearing this, Kapil Muni got married and opened his eyes like this, if only thousands of people were burnt to ashes from the son's side, they got the result of insulting the Muni, when the sons had any news for a long time, then King Sagar received it. He told the confused son Ayushmann that you should go and find out the horse of the Yagya, following the orders of the father and mother, Ashu, searching for the horse and uncles of the great sacrifice, reached Kapil Muni's ashram and worshiped the sage duly. Pleased with his praise, Kapil Dev ji gave him a horse and said that this ocean grandson with you, thousand uncles were burnt to ashes in the fire, when Ganga ji would come on earth, only then he would get salvation, after that Ayushman gave Kapil Dev ji Worshiped and the problem of sons becoming haraam Sagar, the king of moral life, was very sad, then assumed him to understand God's education and completed the yagya on Monday, then after handing over the kingdom to his son Ayushmann, he went to the forest for not doing Shish Yogita at the feet of Shri Narayan.
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