श्रीमद् भागवत कथा पुराण नवा स्कंध अध्याय 7

श्रीमद् भागवत कथा पुराण नवा स्कंध अध्याय 7 आरंभ

राजा तेरी सुख की कथा श्री सुखदेव जी बोले राजा परीक्षित मानता की मृत्यु के उपरांत उनके आश्रित जेष्ठ पुत्र अमरीसा राजा हुए बाद में उनके वंश में हरित नामक राजा हुए उन्होंने नागों की सहायता से गंधर्व को परास्त किया तथा नागकन्या नर्मदा से विवाह किया उसी वंश में त्रिशूल राजा हुए उनके मन में संदेह शरीर सहित स्वर्ग जाने की इच्छा उत्पन्न हुई और उन्होंने अपने मन की बात जानकर गुरु वशिष्ठ से कहा तक वशिष्ठ जी बोले हे राजन् यह कार्य मुझसे ना होगा वहां से निराश होकर दिलसुख महाराज वशिष्ठ के पुत्रों से वही बात करने लगे कि हमें स्वर्ग भेजो यह सुनकर वशिष्ठ जी के पुत्रों ने राजा कृष्ण को श्राप दे दिया अरे दुष्ट राजा तू गुरु के वचनों पर विचार ना करके मुझसे छूने आया है अतः तू चांडाल हो जा गुरु पुत्र के मुख से शराब निकलते ही वह चांडाल के समान काला को लौटा माननीय वस्त्र हो गया अपनी का शरीर देख कर आजा त्रिशूल विश्वामित्र जी के पास आए और अपनी यात्रा करने लगे उनकी वचनों को सुनकर विश्वामित्र जी बोले हे राजन् 13 स्वरूप मैं नहीं बदल सकता लेकिन तुम्हें संदेश स्वर्ग भेज दूंगा इतना कह कर उन्होंने वह मंडल के समस्त ऋषि मुनि ब्राह्मण वासियों को आमंत्रित कर रहा जातरी सुख से एक महायज्ञ कराया और अपने तपोबल से राजा त्रिशूल को स्वर्ग भेजने लगे जब इंद्र ने देखा कि एक चांडाल स्वर्ग आ गया है तो उन्हें लात मारकर उसे नीचे गिरा दिया स्वर्ग से नीचे आते समय उसने विश्वामित्र जी को पुकार कर का हे महाराज इंद्र ने मुझे लात मारकर स्वर्ग से नीचे गिरा दिया मेरी रक्षा करो ऋषि राज यह सुनकर विश्वामित्र जी ने अपने तपोबल से उसे वहीं पर रोक लिया और इंद्र पर क्रोधित होकर दूसरे स्वर्ग एवं देवताओं की रचना करने लगे तब देवताओं ने आकर विनती की यह रिसीवर आप दूसरे देवताओं का निर्माण कर देंगे तो सांसारिक प्राणी हमारा अनादर करेंगे कृपा करके आप ऐसा ना करें तब विश्वामित्र जी बोले हैं देवताओं मैंने त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने का वचन दिया है इसलिए यह नवीन स्वर्ग रहेगा लेकिन आप लोग के बहाने से नवीन देवताओं का निर्माण नहीं करूंगा अपनी कथा गाकर श्री सुखदेव जी बोले हे राजा परीक्षित श्री सुमुख आज भी विश्वामित्र जी द्वारा बनाए हुए स्वर्ग में उल्टा लटका रहा है जिसकी मुख से टपकने वाले लार से कर्मनाशा नदी निकली उसे स्नान करने वाले प्राणी संपूर्ण पुण्य नष्ट हो जाता है इसलिए कर्मनाशा मैं स्नान  नहीं करना चाहिए

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Shrimad Bhagwat Katha Purana Nava Skandha Chapter 7 Beginning

King of your happiness Shri Sukhdev ji said, after the death of King Parikshit Manta, his dependent eldest son Amrisa became the king, later in his lineage there was a king named Harit, he defeated Gandharva with the help of serpents and married Nagkanya Narmada in the same dynasty. After becoming Trishul king, the desire to go to heaven with doubts body arose in his mind and after knowing his mind, he told Guru Vashisht till Vashisht ji said, O king, this work will not be done by me. It seemed that after hearing this send us to heaven, the sons of Vashishth ji cursed King Krishna, Oh evil king, you have come to touch me without considering the words of the guru, so you become a chandala, as soon as the liquor comes out of the mouth of the guru's son, he is like a chandal. Black returned to the honorable clothes, after seeing his body, the trident came to Vishwamitra ji and after listening to his words, Vishwamitra ji said, O king, I cannot change the form of 13, but I will send you a message to heaven. All the sages of the circle The sage, inviting the brahmins, made a great sacrifice with pleasure and started sending King Trishul to heaven with his tenacity, when Indra saw that a Chandala had come to heaven, he kicked him and threw him down, while coming down from heaven, he Vishwamitra ji On hearing this, O Maharaj Indra kicked me down from heaven, protect me Rishi Raj, hearing this, Vishwamitra ji stopped him there with his tenacity and became angry with Indra and started creating other heavens and gods, then the gods Come and beg this receiver if you create other gods, then the worldly beings will disrespect us, please do not do this, then Vishwamitra ji has said, Gods, I have promised to send Trishanku to heaven, so it will be a new heaven, but on the pretext of you people I will not create new deities, Shri Sukhdev ji said by singing his story, O King Parikshit, Shri Sumukh is still hanging upside down in the heaven created by Vishwamitra ji, whose saliva dripping from his mouth came out of the river Karmanasha, the creatures who bathe him have complete virtue. gets destroyed so I should not take a bath in Karmanasha

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