श्रीमद् भागवत कथा पुराण नवा स्कंध अध्याय 21 आरंभ
राजा रंतिदेव की कथा श्री सुखदेव जी बोले हे राजा परीक्षित राजा भरत के सिंहासन के उत्तराधिकारी भारद्वाज हुए भारद्वाज से मनु हुए उसी वंश में कई पीढ़ी के बाद रति देव उत्पन्न हुए उनके पास जो कुछ भी होता था उसे गरीबों ब्राह्मणों एवं दुखी यारों को दे देते थे एक बार अपनी स्त्री पुत्र सहित राजा रंतिदेव वन में जाकर तब कर रहे थे और 1 में कंदमूल खाकर सुआ शांत करते श्री नारायण की माया से एक बार 48 दिन तक कुछ खाने के लिए ना मिला 49 वा दिन थोड़ा सा मिला जब भोजन तैयार कर खाने के लिए बैठे उसी समय राजा रति देव के पास एक अतिथि ब्राह्मण आया और बोला हे महाराज मैं कई दिनों का भूखा एवं प्यासा हूं कुछ भोजन मिले तो छुआ शांत हो रति देव ने अपना भाग ब्राह्मण को दे दिया किंतु ब्राम्हण की भूख समाप्त ना हुई तब उनकी स्त्री एवं पुत्र ने भी अपना भाग दे दिया भोजन ग्रहण करने के उपरांत ब्राम्हण उन्हें आशीर्वाद देकर चला गया दूसरे दिन कहीं से थोड़ा सा आज फिर मिला भोजन तैयार कर जब वह भोजन करने बैठे उसी समय एक भूखा प्यासा शुद्र आ गया उस दिन शूद्र को उन्होंने पूरा भोजन खिला दिया उसके जाने के उपरांत पात्र में बचे हुए आनंद में पानी डालकर राजा ने अपनी रानी एवं पुत्रों से कहा तुम दोनों इसे पीकर अपनी छुआ शांत कर लो उसी समय कुत्तों को लेकर एक रूम आ गया और रोते हुए बोला हे राजन भूख से मेरे प्राण निकल जा रहे हैं यदि पीने के लिए कुछ हो अन्यथा मैं मर जाऊंगा रानी और राजकुमार ने पात्र को धोकर पीने के लिए बनाया गया जल से उसे दे दिया उसी समय सांग चक्र गदा एवं पदमा धारण किए हुए श्री नारायण जी प्रगट हुए प्रभु को देखकर तीनों प्राणी उनके चरणों में लोटपोट हो गए भगवान श्री हरि नारायण ने उनकी भक्ति की प्रशंसा की और भोले के भक्त रति देव तुम इच्छित वर मांग लो हम तुम्हारी इच्छा पूर्ण करेंगे तब रति देव प्रभु की स्तुति करते हुए कहने लगे हे स्वामी आप जगत पालक हैं आप प्रसन्न होकर या और प्रदान करें कि मेरी प्रजा सुखी रहे भगवान श्री नारायण ने वरदान देकर उसकी इच्छा उनकी और उसी शरीर में तीनों प्राणियों को बैकुंठ भेज दिया
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Shrimad Bhagwat Katha Purana Nava Skandha Chapter 21 Beginning
Story of King Rantidev Shri Sukhdev ji said, O King Parikshit, Bhardwaj became the heir to the throne of King Bharata, Manu from Bharadwaj, Rati Dev was born after many generations in the same lineage, whatever he had, he would give it to poor Brahmins and unhappy friends. Once, King Rantidev along with his wife and son was doing it in the forest and in the 1st day after eating the tuber and pacifying the swah, once from the Maya of Shri Narayan, he did not get anything to eat for 48 days, on the 49th day he got a little bit when preparing food. At the same time, a guest Brahmin came to King Rati Dev and said, "O Maharaj, I am hungry and thirsty for many days, if I get some food, I am touched, Rati Dev gave her portion to the Brahmin, but the Brahmin's hunger did not end." Then his wife and son also gave their share, after taking the food, the brahmin left after blessing him. After he had given the whole meal to him, he was left in the pot in the joy. Pouring water, the king said to his queen and sons, drink it and calm your touch, at the same time a room came with dogs and said crying, O king, my life is going out of hunger if there is something to drink otherwise I I will die, the queen and the prince washed the vessel and gave it to him with water made for drinking, at the same time, seeing the Lord Narayan ji, holding the song wheel, mace and padma, all the three beings rolled at his feet Lord Shri Hari Narayan Praised his devotion and gullible devotee Rati Dev, you ask for the desired boon, we will fulfill your wish, then Rati Dev started praising the Lord and said, "O Lord, you are the guardian of the world, please be happy or provide that my people should be happy. Shree Narayan gave his wish and sent the three beings in the same body to Baikuntha.
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