श्रीमद् भागवत कथा पुराण नवा स्कंध अध्याय 18

श्रीमद् भागवत कथा पुराण नवा स्कंध  अध्याय 18 आरंभ 



राजा नहुष का  वंश वर्णन

श्री सुखदेव जी बोले हे राजा परीक्षित राजा ना हो उसकी स्त्री से व्यतीत आदि छह पुत्रों की उत्पत्ति हुई ऋषि यों के श्राप से सर्प योनि को प्राप्त होकर हर्षित कर के रूप में नारू उरुवन में अपना समय व्यतीत करने लगे उसके बाद सिहासन पर उसके पुत्र या अतीत आसीन हुए तत्पश्चात बृज पर्वत दैत्य की कन्या सर्मिष्ठा से विवाह किया और दैत्य गुरु शुक्राचार्य की कन्या देवयानी को अपनी स्त्री बनाया इतनी कथा सुनकर राजा परीक्षित बोले यह महा ज्ञानी महात्मा किस प्रकार शुक्राचार्य की कमियां देवयानी राजा अतीत को प्राप्त हुई तब श्री शुक्र जी बोले हे राजन् पूर्व काल की बात है दैत्य राज 20 वर्ष की बेटी अपने साथियों सहित सरोवर में स्नान हेतु गई उसके साथ उसकी प्यारे रशीद देवयानी भी थी वह सभी अपने वस्तुओं को उतारकर सरोवर में स्नान करने लगी उसी समय शिव पार्वती विचरण करते हुए उधर आने के लिए उसे देखकर सभी स्त्रियां लज्जित होकर अपने वस्त्र पहने लगी शीघ्रता के कारण देवयानी ने देते राज की कन्या शर्मिष्ठा के वस्त्रों को पहन लिया उसके इस कृत्य कर्म को देखकर शर्मिष्ठा बोली तूने मेरे वस्त्र को पहनकर मेरा अपमान किया तब देवरानी आने लगी यह सर्मिष्ठ मेरे पिता शुक्राचार्य कृपा से तेरे बाप राज्य प्राप्त हुआ है तुम मुझे क्यों समझती है जबकि तूने मुझ से निम्न है मैं ब्राह्मण पुत्री हूं तू मेरे बराबरी किसी भी बात ही नहीं कर सकती इस प्रकार उन दोनों के मध्य विवाद उत्पन्न हो गया तब सर्मिष्ठा अत्यंत क्रोधित हुए और देवयानी को कुएं में ढकेल कर अपनी सखियों सा मिथिला उठाई उसी समय शिकार हेतु वन में राजा अतीत उस उर्जा निकले प्यार से वे अत्यंत व्याकुल हो रहे थे उनकी दृष्टिकोण दिखाई दी प्रशिक्षण व कुएं पर गए कुएं में देवयानी वस्त्रहीन अवस्था में पड़ी थी राजा व्यतीत ने हाथ बढ़ाकर देव बाहर निकाला तब वह बोली यह आर्यपुत्र अपने हाथ बढ़ाकर मुझे पुणे से बाहर निकाला आपने मेरा हाथ पकड़ा है इसलिए आप मेरे स्वामी हुए माय आप को पति के रूप में स्वीकार करती हूं पर आ जाइए आप इतने देवरानी के वचनों को स्वीकार किया और महाल वापस लौट आए उधर विलाप करती हुई देवरानी अपने पिता शुक्राचार्य के पास पहुंची और सर्मिष्ठा के व्यवहार का सारा वृत्तांत कह सुनाया पुत्री का प्रोग्राम सुनकर शुक्राचार्य जी अत्यंत क्रोधित होकर विश्वास के पास गए विश्वास को सारा प्रदान किया हुआ तब वह शुक्राचार्य के श्राप से भयभीत होकर विनय पूर्वक उसके चरणों में गिरकर करने लगे हे गुरुदेव आप सर आप नाते मैं आपके चरणों का सेवक हूं आप जो आदेश दे मुझे सिर्फ धार है तब शुक्राचार्य बोले हे देवराज मुझे तुमसे प्रसंता नहीं है मैं तेरी पुत्री द्वारा किए गए व्यवहार से सुबोध हूं मेरी कनिया देवयानी को यदि तुम पसंद कर सको तो मैं यहां ठहर सकता हूं तब वर्षा अपने देवरानी शिखा एक गुरु कन्या जो तुम मांगना चाहती हो मुझे मांग लो देते राज और इस वर्ष के वचन को सुनकर वह कहने लगी तुम्हारी पुत्री मेरी दासी हो सर्मिष्ठा बुद्धि मती कन्या थी परिवार पर आए संकट को टालने के लिए निगरानी की बात मान ली और दासी बनकर देवयानी की सेवा करने लगी प्रांतर शुक्राचार्य ने देवयानी का विवाह राजा ही अतीत से करा दिया तत्पश्चात राजा यह तिथि से बोले हे राजन् 20 वर्ष की पुत्री सर्मिष्ठा कभी आप की सेज पर ना जाएं यदि अपने स्वीकार किया और देवयानी को लेकर राजभवन लौट गए हे राजा परीक्षित कुछ समय बाद देवयानी पुत्रवती हुई सर्मिष्ठा सदैव उदासीन भाव से उसकी सेवा करती समय व्यतीत होने के साथ रितु काल का आगमन हुआ 1 दिन सर्मिष्ठा राज वाटिका में बैठी थी उसी समय राजा ही अतीत वहां जा पहुंचे और शर्मिष्ठा के निकले सौंदर्य पर मुग्ध हो गए तत्पश्चात सहवास किया जिससे उसके गर्व से द्रव्य अनु एवं पूर्व नामक तीन पुत्रों की उत्पत्ति हुई और देवयानी सेयदु तथा दुर्वास उत्पन्न हुए कुछ दिन बाद देवयानी ने बालकों को देखकर पूछा कि तुम किस के बालक हो और तुम्हारी माता कौन है बालकों ने अपने माता का नाम मत लाया और आज आई अतीत को पीता बतलाया यह सुनकर वह अत्यंत क्रोधित हुए और देवयानी वहां से निकलकर अपने पिता शुक्राचार्य के पास कहीं और ही अतीत के कृत्यों को बताया पुत्री के दुख होने से उन्हें राजा अतीत को शराब दिया यह राजा यदि तू विस्तृत एवं मंदबुद्धि है मेरी आज्ञा को भूल कर पर स्त्री संवर्ग की इसलिए तुझे शीघ्र बुढ़ापा आ जाए यह सुनकर राजा यदि द्वितीय करने लगे यह ब्रह्मा देव आपकी कन्या से विषय परेशान हो करके अभी मैं तृप्त नहीं हुआ इस शराब से आपकी पुत्री का भी अहित होगा तब शुक्राचार्य जी बोले यदि कोई प्रसंता से अपना युवाओं जवानी तुझे प्रदान कर दे और बदले में तुम्हारी वृद्धावस्था ले लिए तो पुनः युवा हो जाओगे शुक्राचार्य जी बोले हे राजा परीक्षित शुक्राचार्य के हिसाब से वृद्ध हुआ हो चुके राज आयातित अग्नि पुत्र यह दूध को बुलाकर बोले यह दूध विषय भोगों से मेरी तृप्त नहीं हुई है तुम अपनी युवावस्था मुझे दे दो पिता के वचनों को सुनकर यह तो बोले हैं पिता महाराज मुझे युवावस्था भोगने की अभिलाषा है अतः आपका कथन मुझे आशीर्वाद है अतः उन्होंने दूरभाष द्रव्यमान को बुलाकर का किंतु उन सभी ने वही जवाब दिया अंत में राजा ही अतीत अपने छोटे पुत्र को बुलाकर उससे युवावस्था की मांग की पूर्व आस ने सहर्ष पिता के वचनों को स्वीकार किया और बोला आदरणीय पिताश्री आपकी आज्ञा का पालन करना मेरा परम कर्तव्य है जो पुत्र पिता की आज्ञा की अवहेलना करता है वह नारा में होता है तब राजा यदि आपने वृद्धावस्था पूर्वा को देकर उसका तरुण अवस्था लेली

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Shrimad Bhagwat Katha Purana Nava Skandha Chapter 18 Beginning

King Nahush's lineage

Shri Sukhdev ji said, oh King Parikshit should not be a king, six sons were born from his wife, because of the curse of the sage, after receiving the snake vagina, Naru started spending his time in Uruvan, after that his son or son on the throne. After having settled in the past, Brij Parvat married the demon's daughter Sarmishtha and made Devyani, the daughter of the demon Guru Shukracharya, his wife, after hearing this story, King Parikshit said, how did this great wise Mahatma, the shortcomings of Shukracharya, the Devayani king got the past, then Shri Shukra ji said O king, it is a matter of earlier times that the demon king, 20 years old daughter, along with her companions, went to the lake to take a bath in the lake, accompanied by her beloved Rashid Devyani, she took off all her things and started bathing in the lake. Seeing him, all the women were ashamed and started wearing their clothes, due to the haste, Devyani put on the clothes of Sharmishtha, the daughter of Dete Raj, seeing her deed, Sharmishtha said that you insulted me by wearing my clothes, then Devrani came. It seems that by the grace of my father Shukracharya, your father has got the kingdom, why do you understand me when you are inferior to me, I am a Brahmin daughter, you cannot do anything equal to me, thus a dispute arose between them. Sarmistha became very angry and pushed Devyani into the well and raised Mithila like her friends, at the same time, the king in the forest for hunting, was getting very disturbed by the love that came out of that energy, his attitude was visible in the training and went to the well Devyani in the well When the king was lying, he raised his hand and took out the god, then he said that this Aryaputra took me out of Pune by raising his hand, you have held my hand, so you are my master, I accept you as my husband, but come, you are such a god. Accepted the words and returned to the palace, there the Devrani, lamenting, reached her father Shukracharya and narrated the whole story of Sarmishtha's behavior, listening to the daughter's program, Shukracharya ji became very angry and went to Vishwas and provided all the faith. Then he was afraid of Shukracharya's curse and started humbly falling at his feet, O Gurudev, as you sir, I am the servant of your feet, whatever order you give, I have only edge, then Shukracharya said, O Devraj, I do not like you, I am your daughter. I am understandable by the behavior done by my daughter Devyani, if you can like me, then I can stay here then Varsha, your Devrani Shikha, a guru girl who you want to ask, ask me for Raj and listening to this year's word, she started saying Your daughter should be my maidservant, she was a girl with strong intelligence, to avoid the crisis on the family, she accepted the matter of monitoring and became a maidservant to serve Devyani. Rajan 20 year old daughter Sarmistha should never go to your SEZ if she accepted her and returned to the Raj Bhavan with Devyani, O King Parikshit, after some time, Sarmistha became Devyani's daughter, always serving her indifferently. happened 1 day sarmistha raj vati At the same time, the king himself reached there and was infatuated by the beauty of Sharmishtha, after which they cohabited, due to which three sons named Dravya Anu and Purva were born from her pride and Devyani Seydu and Durvas were born a few days later Devyani Seeing the children, whose child are you and who is your mother, the children did not bring their mother's name and told that the past came today, they were very angry and Devyani came out from there and went to her father Shukracharya somewhere in the past. Told the actions of the daughter, gave them alcohol to the king past due to the sorrow of the daughter, this king, if you are wide and retarded, forgetting my orders, but because of the female cadre, you should get old soon, if the king starts doing the second, this Brahma Dev is your daughter. I am not satisfied yet after getting upset with the matter, your daughter will also be harmed by this alcohol, then Shukracharya ji said, if someone with pleasure gives you his youth and youth and takes your old age in return, then you will become young again Shukracharya ji said. Raja Parikshit Shukra According to Charya, the king, who has become old, imported Agni, called this milk and said, I have not been satisfied with the pleasures of this milk, you give me your youth, after listening to the words of the father, it has been said, Father, Maharaj, I have a desire to enjoy youth. So your statement is my blessing, so he called the phone mass but all of them gave the same answer, in the end, the king called his younger son and asked for puberty from him, before the hope gladly accepted the words of the father and said, respected father, your It is my supreme duty to obey the orders, the son who disobeys the father's orders, he is in the slogan, then the king, if you gave old age to Poorva, took her youthful stage.

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