श्रीमद् भागवत कथा पुराण नवा स्कंद अध्याय 15 आरंभ
जंपिंग ऋषि एवं परशुराम की कथा श्री सुखदेव जी बोले हे राजा परीक्षित राजा पुरवा द्वारा उर्वशी के गर्व से 6 पुत्र उत्पन्न हुए उसके नाम आयु इसराइल शतायु भरत जाए तथा विजय हुए आयु से जरा यू सेतराऊ से वासु मांग शतायु से श्री तेज अंतर्गत से विजय से भी हम जैसे अमित नाम के पुत्रों की उत्पत्ति हुई जन्मों में गंगा जी की अंजलि में भरकर पी लिया उसी दिन से गंगा जी का नाम जल्द ही पड़ा देहलवी के पुत्र पुरुषों के बालक पुरुष बालक बालक से हजक हजक से कुछ हुए तथा तत्पश्चात उसे 4 पुत्र उत्पन्न हुए उस शंभू तने वसु एवं उस नाम खुशबू से नदी की उत्पत्ति हुई उसने एक अत्यंत सुंदर कन्या की उत्पत्ति हुई जिसका नाम सत्यवती हुआ सत्यवती को राजा नंदी क्षेत्र भी किसी ने जाकर मांगा किंतु हर हजार गांधी उसके सम्मुख एक शर्त रखते हुए बोले हे रिसीवड यदि आप मेरी कन्या को प्राप्त करना चाहते हैं तो सर्वप्रथम एक सहस्त्र श्यामगढ़ घोड़े लाकर मुझे दीजिए ऋषि स्वीट ऋषि राजा गंदी के वचनों को सुनकर वरुण देव के पास गया और वहां से एक सहस्त्र श्याम वर्ण घोड़ेला कर राजा को दिया तथा सत्यवती को प्राप्त किया राजा गांधी के कोई पुत्र ना था अतः पुत्र प्राप्ति हेतु रावत जी से प्रार्थना करते हुए सत्यवती एवं उसकी माता बोली तभी श्री कृष्ण ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर के पुत्र उत्पत्ति के लिए यह यज्ञ किया और दो प्रकार का चारों खीर तैयार किया और उसके लिए जो चारों तैयार किया था उसे प्रदान किया किंतु सत्यवती की मां ने अपने भाग का दारू उसे खिला दिया और उसके बाप का स्वयं खा गई क्योंकि सत्यवती की माता के मन में यह दुर्वासना जागृत हो गई थी कि ऋषि स्वस्थ व्यक्ति को ऋषि ने अपनी पत्नी सत्यवती के लिए उत्तम चारों तैयार किया होगा कृषि समिति को जब इस बात का ज्ञान हुआ था बोल बोले यह सत्यवती यह बहुत बड़ा अनर्थ हुआ जो तू अपने माता को चारों खाई और तेरा भाग उसे ग्रहण किया इसके बदलाव से तेरे गर्व से दुख पुत्र उत्पन्न होगा वह यंत्र विरोधी सोमानी का प्रमाण होगा और तेरी माता के गर्भ से उत्पन्न होने वाला बालक ब्रह्म ज्ञानी होगा एवं उसका स्वभाव अत्यंत क्षमाशील होगा ऋषि के वचनों को सुनकर सत्यवती कहने लगी हे स्वामी मुझे बहुत बड़ी भूल कोई कृपा कर आप कोई ऐसा उपाय करें जिससे मेरा पुत्र धर्मात्मा हो तथा ऋषि श्रमिक जी ने मंत्र उपचार कर कुछ 650 बोले हे सत्यवती मेरे मंत्र बल के प्रभाव से आप 13 पुत्र क्रूर स्वभाव वाला ना होकर किंतु उसका पुत्र अर्थात तुम्हारे पोते का उग्र स्वभाव की छाया पड़ेगी हे राजा परीक्षित समय पूर्ण होने पर सत्यवती के गर्व से जन्मभूमि जी उत्पन्न हुए और उनसे परशुराम जी की उत्पत्ति हुई उन्हें श्री नारायण का अंश अवतार कहते हैं श्री सुखदेव जी बोले हे राजन् श्री परशुराम जी ने 88 बार पृथ्वी की 363 बना दिया तब राजा परीक्षित बोले हैं महात्मा परशुराम जी द्वारा क्षत्रियों का संहार होने का कारण क्या था राजा के वचनों को सुनकर श्री सुखदेव जी बोले हे राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन नाम का एक अत्यंत बलशाली राजा था एक समय वह आपने बहुत सीरीज ओं के साथ नर्मदा में जल विहार कर रहा था और की लो करते हुए उसे नदी के जल को रोक दिया वही नजदीक ही लंकापति रावण का डेरा लगा था जल प्रवाह रोकने से नदी का जल विपरीत दिशा में बहने लगा जिसे रहमान के डेरे तक पानी चल गया जिससे उसने अत्यंत क्रोधित होकर सहस्त्रबाहु को बुरा भला का परिणाम स्वरूप वादी क्रोधित हो गया और रावण को पकड़कर बंदी बना लिया तथा अपने साथ ले गए तब ऋषि कुल आशीष जी न आकर सहस्त्रार्जुन को बहुत समझाया तब उसने रावण को छोड़ा एक बार सहस्त्रार्जुन खेल खेलते हुए जमदग्नि ऋषि के आश्रम पर पहुंचे ऋषि नेहा तिथि के सम्मान उनका आदर सत्कार किया किंतु जब सहस्त्रबाहु अपनी सेना सहित वापस लौटने को हुए उसी समय उसकी दृष्टि कामधेनु पर पड़ी कामधेनु उससे अच्छी लगी जिससे वह बलपूर्वक अपने साथ ले जाने लगा तब जमदग्नि ने उसे कामधेनु गाय को ले जाने से मना किया जिससे वह क्रोधित हो गया और ऋषि के आश्रम को उजाड़ने का आदेश अपने सैनिकों को दे दिया जब परशुराम जी लौट कर आए तो उसे सारा वृत्तांत मालूम हुआ पिता के वचनों को सुन और आश्रम की दुर्दशा देखकर उन उनके शोध की सीमाएं आ रही थी और अपना दिव्य हर राज लेकर अकेले माहिती पूरी जा पहुंचे सहस्त्रबाहु अर्जुन से उन्होंने और युद्ध किया और अपने पर्दे से उसे सैनिकों को मार डाला तत्पश्चात उसी की सहस्त्र भुजाओं को काट कर फेंक दिया है राजन सहस्त्रबाहु की भुजाओं को काटने के पश्चात भारत से से उसके सिर को भी काट कर अलग कर दिया और कामधेनु को लेकर वापस लौट है
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Shrimad Bhagwat Katha Purana Nava Skanda Chapter 15 Beginning
The story of the jumping sage and Parashuram, Shri Sukhdev ji said, O King Parikshit, 6 sons were born from the pride of Urvashi by King Purva, in his name, the age of Israel should go to Bharat, and from the age of victory, from the age of victory, from the age of victory, from the age of victory, from the age of Vasu, from the centenary to Shri Tej. Sons named Amit were born like us and drank it after filling Ganga ji's Anjali. From that day, Ganga ji's name soon came to be known as Dehlavi's son. The river originated from that Shambhu stem Vasu and that name Khushboo, she gave birth to a very beautiful girl whose name was Satyavati. If you want to get my daughter, then first of all bring me one thousand Shyamgarh horses and give me sage Sweet Rishi, listening to the words of the king filthy, went to Varun Dev and from there gave one thousand Shyam Varna horses to the king and got Satyavati to the king. Gandhi had no son, hence the son Praying to Rawat ji, Satyavati and her mother said, after accepting their prayer, Shri Krishna performed this yajna for the birth of a son and prepared two types of kheer and provided all the four he had prepared for him. Satyavati's mother fed her her share of liquor and ate her own father's because it was aroused in the mind of Satyavati's mother that the sage would have prepared the best four for his wife Satyavati by the sage. When he came to know about this, he said, Satyavati, it was a great disaster that you ate your mother all around and accepted your share, because of this change your proud son will be born, he will be the proof of anti-machine Somani and your mother The child born from the womb of Brahma will be knowledgeable and his nature will be very forgiving, after listening to the words of the sage, Satyavati started saying, Oh lord, please do me a big mistake, please do some such remedy so that my son becomes godly and the sage Shramik ji did the mantra treatment. Do something 650 said, O Satyavati, I am Due to the influence of the power of the mantra, you 13 sons will not be cruel in nature, but the shadow of his son, that is, your grandson, will be the shadow of the fierce nature, O King Parikshit, on the completion of the time, Satyavati's proud birthplace ji was born and Parashuram ji was born from him, Shri Narayan. It is said that Shri Sukhdev ji said, O king, Shri Parshuram ji made 363 of the earth 88 times, then King Parikshit has said, what was the reason for the destruction of the Kshatriyas by Mahatma Parashuram ji, after listening to the words of the king, Shri Sukhdev ji said, O king There was a very powerful king named Sahastrabahu Arjun, at one time he was taking a water bath in the Narmada with many series and while doing that he stopped the water of the river, the same Lankapati Ravana was camped nearby to stop the flow of water. The water of the river started flowing in the opposite direction, due to which the water ran till Rahman's tent, due to which he became very angry, as a result of bad good to Sahastrabahu, the plaintiff got angry and took Ravana captive and took him with him, then Rishi Kul Ashish ji did not When he came and explained a lot to Sahastrarjun, he Once upon a time playing Sahastrarjuna game, sage Neha reached the ashram of sage Jamadagni with respect to the date, but when Sahastrabahu was about to return with his army, at the same time his eyes fell on Kamdhenu, Kamdhenu liked him so that she could forcefully accompany him. When he started taking it, Jamadagni forbade him to take Kamdhenu cow, due to which he became angry and ordered his soldiers to destroy the sage's ashram. And seeing the plight of the ashram, the limits of his research were coming and he reached Mahiti Puri alone with his divine every secret, he fought more with Sahastrabahu Arjun and killed the soldiers with his veil, after that his thousand arms were cut off and thrown. After cutting off the arms of Rajan Sahastrabahu, he also cut off his head from India and returned with Kamdhenu.
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