श्रीमद् भागवत कथा पुराण नवा स्कंध अध्याय 14

श्रीमद् भागवत कथा पुराण नवा स्कंद अध्याय 14 आरंभ

चंद्र वंश का वर्णन

श्री सुखदेव जी बोले हे राजा परीक्षित भगवान श्री नारायण के विराट स्वरूप उनकी नाभि से एक कमल उत्पन्न हुए और उस कमल पुष्प पर ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई ब्रह्मा जी के पुत्र अत्रि मुनि हुए अत्रि मुनि को ब्रह्मा जी ने अपने मित्र द्वारा उत्पन्न किया तत्पश्चात उसे चंद्रमा की उत्पत्ति हुई चंद्रमा को ब्रह्मा ज ने ब्राह्मण नक्षत्र एवं औषधियों का स्वामी बनाया तीनों लोकों पर विजय प्राप्त हेतु चंद्रमा ने राज सूर्य यज्ञ किया और देव गुरु बृहस्पति की आरती रूपवती पत्नी तारा का छल द्वारा चुरा लिया उस समय देवताओं ने बृहस्पति की सहायता की देवता और व्यक्तियों में युद्ध हो गया शुक्राचार्य ने चंद्रमा का पक्ष लिया तब ब्रह्मा जी ने नगर चंद्रमा को फटकार कर और युद्ध बंद करने के लिए था और उनके कहने पर युद्ध बंद हो गया और चंद्रमा ने तारा को लौटा दिया तारा को गर्भवती तेज बृहस्पति जी उसे डांट कर रहा है रे तू स्त्री स्त्री मेरे होते हुए तू दूसरे का गर्भ धारण करती हो इस गर्भ को इसी समय ध्यान दें बृहस्पति का कथन मानकर तारानगर विद्यार्थी आत्महत्या करने से एक अत्यंत तेजस्वी बालक उत्पन्न हुआ जिसे देखकर चंद्रमा एवं बृहस्पति दोनों मोहित हो गए और उसे लेने के लिए झगड़ने लगे तब देवगढ़ ऋषि गण तथा ब्रह्मा जी ने तारा से पूछा है तारा तूने किसके द्वारा गर्भधारण किया था तब तारा ने बृहस्पति जी का गर्व बताया ब्रह्मा जी ने वह बालक चंद्रमा को दे दिया चंद्रमा ने उसका नाम गुप्त रखा बुध की स्त्री लीला नामक अप्सरा से पूर्वा उत्पन्न हुआ एक बार उर्वशी नामक अप्सरा महाराज जी के मुख से राजा पुरवा के तेज बल और सौंदर्य के प्रशन सुनकर मोहित हो गई देवी योग्य से उर्वशी को मित्र वरुण के श्राप से मृत्यु लोक में जाना पड़ा हुआ राजा पुरवा की सुंदरता पर मोहित थी तो वह उसके पास गई राजा निवासी को देख कर स्वागत किया और बोले हे सुंदरी तुम्हारा स्वागत है तुम मेरे साथ बिहार करो तब वह बोलती है राजा मैं तुम्हारे पास तभी रह सकती हूं जब मेरी शर्त को स्वीकार करोगे राजा उसके सुंदरियों पर मुफ्त थे ही आता हूं उसकी शर्ट को स्वीकार किया तब उर्वशी करने लगी मेरे प्रथम साथ है कि मेरे यह दोनों मैंने कभी दुख ना पावे आप इनकी रक्षा कीजिए दूसरी शर्त मैं सदैव भी खा कर लूंगी तीसरी शर्त आप केवल मिथुन के समय वस्त्र ही होंगे यदि आप कभी इसके विपरीत आचरण करोगे उसे समाना चले जाऊंगी उर्वशी की शर्तों शिव कार का राजा पुरवा उसके साथ सुखोपभोग करने लगे उसके प्रेम में राजा अपना सर वस्त्र भूल गए उधर उर्वशी की वृत्ति लोग चले जाने से इंद्र को देवलोक ना लगने लगा स्वर्गवासी को लाने के लिए गंधर्व को मृत्यु लोक भेजा अंदर वह ने अंधेरी रात में जाकर उसके दोनों बेटे चुरा लिया और लेकर आकाश में उड़ गए वसीम अख्तर की आवाज सुनकर राजा पुरवा सबको जाकर बोली हे राजा कोई मेरे दोनों में डॉक्टर को चुरा ले जा रहा है राजापुर वसा उसी समय वस्त्रहीन अवस्था में संयंत्र कर रहे थे उर्वशी का सूअर सुनते ही तेरी सूट है और तलवार लेकर नंगी अवस्था में चल पड़े उसी समय देख उर्वशी कहानी लगी हे राजा ना आप मेरी शर्तों का उल्लंघन किए इसलिए अब मैं तुम्हारे पास नहीं रहोगी या काकरवा आस्क मार्ग में उड़ गई इतनी कथा सुनाने के पश्चात श्री सुखदेव जी राजा परीक्षित से कहने लगे राजन उर्वशी के चले जाने से राजा पुरवा की स्थिति पागलों के समान हो गई वह राजपाट छोड़कर इधर-उधर भटकने लगे और 1 दिन कुरुक्षेत्र में सरस्वती उर्वशी की सखी सहित देखा तब उसके वियोग में कहने लगे हैं प्रिय तेरे भी योग मेरी यह दशा हो गई है तू मुझे क्यों छोड़ कर चली जाएगी राजापुर वर्षा के वचनों को सुनकर वह की स्त्रियां किसी की मित्र नहीं होती हुए अपना स्वार्थ सिद्ध करने में दक्ष दूर होती है स्वार्थ की पूर्ति के लिए अपने भाई तथा पति को भी मार डालती है सीधे-साधे पुरुषों को झूठा विश्वास दिला कर अपने वश में कर लेती है ए राजा जब कोई पुरुष मेरे मन को भाता है तब मैं से स्नेह करती हूं इच्छा पूर्ण हो जाने पर उसे त्याग देती हूं उर्वशी के इस तरह समझाने पर भी राजा पुरवा के ज्ञान प्राप्त ना हुआ तब वह लिखे राजन जब 1 वर्ष समाप्त होगा और दूसरी वर्ष का प्रथम दिन आराम होगा उस दिन माई एक रात के लिए आकर तुम्हारे पास रहूंगी या काकरवा चली गई हो राजा पुरवा वापस राजमहल लौट आए 1 वर्ष तक कठिन प्रतीक्षा करते हुए उन्होंने किसी तरह समय व्यतीत किया जब दूसरे वर्ष का प्रथम दिन हुआ तब वचन अनुसार उर्वशी आई और हवा राजा के साथ रात्रि विश्राम कर प्रातः काल जाने लगे तब राजा विलाप करने लगे तब वह बोली हे राजा मैं तुम्हारे साथ मृत्यु लोक में नहीं रह सकती यदि तुम मुझे प्राप्त करना चाहते हो तो गद्दारों की स्थिति करो द हुए प्रसन्न होकर तुम्हें यज्ञ करने की आज्ञा प्रदान करेंगे तब यज्ञ कराना यज्ञ के प्रताप से तुम्हें गंधर्व लोक की प्राप्ति होगी उसी समय मैं तेरे साथ बिहार करूंगी तब राजा ने गंधर्व की स्तुति करना आरंभ किया गंधर्व के राजाओं की स्तुति से प्रसन्न हुए और प्रकट होकर उन्हें आग्नी प्राप्त प्रदान किया कुछ काल बाद उस पात्र को त्याग कर अपने नगर को चले आए तब त्रेतायुग आरंभ हुआ तब हुए उसी स्थान पर गए जहां आग ने रक्त पात्र को रख कर आए थे वहां पर उस पात्र के स्थान पर एक शमी वृक्ष हुआ था और वह शमी वृक्ष के एक पीपल का वृक्ष था राजा ने दोनों पारियों को रगड़ कर ऊपर की हरिया हो उर्वशी नीचे की आदमियों को पुरुष व और बीच की आदमियों को पुत्र के रूप में ध्यान किया जिससे ताज वेद अग्नि उत्पन्न हुए तत्पश्चात् भगवान श्री नारायण की स्तुति करते हुए अग्नि के प्रभाव से गंधर्व लोग को चले गए

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Shrimad Bhagwat Katha Purana Nava Skanda Chapter 14 Beginning

Description of the Lunar Dynasty

Shri Sukhdev ji said, O King Parikshit, a lotus arose from his navel, the colossal form of Lord Shri Narayan, and on that lotus flower, Brahma ji was born. Moon was born, Brahma J made the Moon the lord of Brahmin constellations and medicines, to win over the three worlds, the Moon performed the Raj Surya Yagya and stole the aarti of the god Guru Brihaspati by deceit, the wife of Tara, at that time the gods helped Jupiter. There was a war between the gods and the people, Shukracharya took the side of the moon, then Brahma ji reprimanded the city moon and had to stop the war and at his behest, the war stopped and the moon returned Tara to Tara pregnant fast Jupiter ji He is scolding her, you are a woman, you conceive another while being me Both were fascinated and started quarreling to get him, then Devgad sage Gana and Brahma ji asked Tara, by whom did you conceive Tara, then Tara told Jupiter ji's pride, Brahma ji gave that child to the Moon. Purva was born from an Apsara named Leela, the woman of Mercury. Once, an Apsara named Urvashi was fascinated by hearing the questions of King Purva's strong force and beauty from the mouth of the goddess. The lying king was fascinated by the beauty of Purva, so she went to him and welcomed the king resident and said, oh beauty, you are welcome, you do Bihar with me, then she says king, I can stay with you only when my condition is accepted. Will the king be free on his beauties, I have accepted his shirt, then Urvashi started saying to me that I should never hurt both of you, protect them, second condition I will always eat and third condition you are only Mithun's Time will be clothes if you ever behave contrary to it I will not go away Urvashi's conditions, the king of Shiva car, Purva started enjoying with her, in his love, the king forgot his head clothes, while Urvashi's instincts left Indra did not feel like Devlok, sent Gandharva to the death world to bring the deceased inside He went in the dark night and stole both his sons and took them away in the sky, listening to the voice of Wasim Akhtar, Raja Purva went to everyone and said, O king, someone is stealing the doctor in both of me, at the same time doing the plant in a clothless state. The boar of Urvashi is your suit and walks in a naked state with a sword, at the same time seeing Urvashi's story, O king, you have violated my conditions, so now I will not stay with you or Kakarwa flew in the ask road to tell so much story After this, Shri Sukhdev ji started telling King Parikshit that due to the departure of Rajan Urvashi, the condition of King Purva became like a madman, he left the palace and wandered here and there and saw Saraswati with Urvashi's friend in Kurukshetra for 1 day, then started saying in her separation. Dear you too, my condition has become like this, you are in me Why would Rajapur leave me after listening to the words of Varsha, that women are not friends of anyone, but are able to prove their selfishness away, they kill their brother and husband also for the fulfillment of selfishness, liars to simple men By giving confidence, she subdues me, a king, when a man is pleasing to my mind, then I love him when the desire is fulfilled, I abandon him, even after Urvashi's explanation in this way, the knowledge of King Purva was not received, then he Written Rajan, when the first year will end and the first day of the second year will rest When it was the first day of the second year, Urvashi came as promised, and Hawa, after resting the night with the king, started leaving in the morning, then the king started mourning, then she said, O king, I cannot live with you in the world of death if you want to receive me. So do the position of the traitors and being pleased, you will be allowed to perform the Yagya. Then you will get the Gandharva Lok by the majesty of the Yagya, at the same time I will do Bihar with you, then the king started praising the Gandharva, was pleased with the praise of the Gandharva kings and appeared and provided them with fire. After leaving the vessel and went to his city, then Tretayuga started, then he went to the same place where the fire had brought the blood vessel, there was a Shami tree in place of that vessel and that Shami tree was a Peepal tree. Tha the king rubbed both the shifts with the upper side, Urvashi meditated on the lower men as men and the middle men as sons, from which the Taj Veda Agni was born, after that Gandharva people with the effect of fire praising Lord Shree Narayan. went to

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