श्रीमद् भागवत कथा पुराण नवा स्कंद अध्याय 11 आरंभ
श्री रामचंद्र जी द्वारा सीता का परित्याग श्री सुखदेव जी बोले हे राजन् अयोध्या में भरत जी एवं परिजनों ने रामचंद्र जी सहित सीता एवं लक्ष्मण जी का स्वागत किया तत्पश्चात गुरु वशिष्ठ आदि ने उन्हें सी आसन पर बिठाया भगवान राम धर्म व प्रजा का पालन करने लगे एक दिन प्रभु श्रीराम थे उसी वक्त ने आकर बताया हे प्रभु एक धोबी अपनी स्त्री से लड़ते हुए कह रहा था कि तू रात भर मुझे पता है बिना कहां रही तब मैं तुम्हें एक क्षण भी अपने घर में नहीं रहने दूंगा मैं राम चंद्र जी नहीं हूं जो सीता के 1 वर्ष में रावण के पास रहने पर भी स्वीकार कर लिया जा चली जा और लौटकर मेरे घर मत आना गुप्तचर के मुख से ऐसी बात सुनकर श्री रामचंद्र जी ने अपने भाई लक्ष्मण को आदेश देकर बोले तुम प्रातः काल सीतापुर ले जाकर वन में छोड़ दो मैं सीता का परित्याग करता हूं क्योंकि उन्हें घर में रहने से प्रजा मेरी अपमान होगी प्रभु का वचन स्वीकार कर लक्ष्मण जी जनक नदी सीता के पास जाकर बोले हैं माता गंगा पूज्य के लिए कह रही थी मेरे साथ फोन में चल कर पूजा कर आए सीता जी प्रसन्न होकर लक्ष्मण जी के साथ जाऊंगा पूजा हेतु गई वहां भर्ती बिहार होकर लक्ष्मण जी से कहने लगे यह माता रोग लक्षण एवं आसमान के भय से भैया ने अपना परित्याग कर दिया यह सुनते ही सीता जी मूर्छित होकर गिर पड़े लक्ष्मण जी आधी रिपोर्ट है किंतु भाई का आदेश मानसरोवर कुछ ना कर सके और सीता को मूर्छित अवस्था में प्रणाम करके वापस लौट आए तब सीताजी की चेतना लौटी तब वहां कांड विलाप करने लगे निकट ही वाल्मीकि ऋषि का आश्रम था वह गंगा स्नान के लिए जा रहे थे सीता जी को देख कर रुक गए और धीरज मानते हुए बोले पुत्री तू इस तरह ब्लॉक क्यों करती है ऋषि के वचनों को सुनकर सीताजी ने सारा वृत्तांत बताया था वह बोले पुत्री तू चिंता मत कर मेरे साथ आश्रम में चलकर सुख पूर्वक रहे वाल्मीकि ऋषि के आश्रम पर सीता जी ने रूस नामक दो पुत्र हुए महान शूरवीर बालक हुए रामचंद्र जी ने अश्वमेध यज्ञ किया यज्ञ के घोड़े को उनके पुत्र लव कुश ने पकड़ा और अपने पिता से राम की सेना को परास्त कर दिया अंत में स्वयं रामचंद्र जी हेतु आए तब ऋषि के खाने पर सीता जी लव-कुश राम के हाथों सौंप कर एवं पृथ्वी में समा गई सीता जी के वियोग में राम चंद्र जी ने बहुत बुरा किया वह वापस ना आए तत्पश्चात वे अपने पुत्रों को लेकर अयोध्या वापस लौट आए श्री सुखदेव जी कहने लगे हे राजा परीक्षित भगवान राम की कथा जो प्राणी ध्यान लगाकर सुनता है उसके सारे कष्टों का निवारण हो जाता है और अंत समय में परम गति को प्राप्त करता है
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Shrimad Bhagwat Katha Purana Nava Skanda Chapter 11 Beginning
Abandonment of Sita by Shri Ramchandra ji Shri Sukhdev ji said, O king, Bharat ji and family members welcomed Sita and Lakshman ji along with Ramchandra ji, after that Guru Vashisht etc. made them sit on the seat, Lord Ram started following religion and people. The day was Lord Shri Ram, at the same time he came and told, Oh Lord, a washerman was fighting with his woman and saying that you know where you were without me all night, then I will not let you stay in my house even for a moment, I am not Ram Chandra ji who After Sita's stay with Ravana for 1 year, accept it and don't come back to my house, after hearing such a thing from the mouth of the detective, Shri Ramchandra ji ordered his brother Lakshmana and said that you take Sitapur in the morning and leave it in the forest. Two, I give up on Sita, because by staying in her house, my subjects will be insulted. Accepting the word of the Lord, Lakshman ji has gone to Janak river Sita and said, Mother Ganga was asking for worship, Sita came after walking with me on the phone and worshiped Will be pleased to go with Lakshman ji, went there for worship, Lakshman went to Bihar This mother started saying to ji, because of the symptoms and fear of the sky, the brother abandoned himself, upon hearing this, Sita ji fell unconscious, Lakshman ji is half the report, but Mansarovar could not do anything on the orders of the brother and bowed down to Sita in an unconscious state. When he returned, Sitaji's consciousness returned, then there was the ashram of Valmiki Rishi, who was going to take a bath in the Ganges, he stopped after seeing Sita ji and saying patiently, why do you block daughter like this Rishi Hearing the words of Sitaji told the whole story, she said, daughter, don't worry, walk with me in the ashram and live happily, at the ashram of sage Valmiki, Sita ji had two sons named Russia, became a great brave child, Ramchandra ji performed the Ashwamedha Yagya. The horse was caught by his son Luv Kush and defeated Rama's army from his father, in the end Ramchandra himself came for the sake of sage. Ram Chandra ji did a lot of bad in me, he did not come back, after that he returned to Ayodhya with his sons. Come Shri Sukhdev ji started saying, O King Parikshit, the creature who listens to the story of Lord Rama by meditating, all his sufferings are removed and in the end attains the ultimate speed.
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