श्रीमद् भागवत कथा पुराण आठवां स्कंध अध्याय नव आरंभ
मोहिनी का रूप धारण कर श्री नारायण द्वारा देवताओं को अमृत पान कराना श्री सुखदेव जी बोले राजा परीक्षित मोहनी के रूप सौंदर्य को देखकर देवता एवं देते आश्चर्य की चरम सीमा को छूने लगे ऐसी रूपवती स्त्री को उन सब्जी में अब तक नहीं देखा था वह अमृत तक को भूल गए और आपस में कहने लगे या परम सुंदरी इस स्थान पर कहां से आए हुए आपस में बात कर ही रहे थे मोहिनी रूप धारी श्री नारायण उसके निकट जा पहुंचे तब असुरों ने कहा फिर रूपसुंदरी तुम यहां किस प्रयोजन से आई हो ऐसा लगता है तुम्हारा इस पर अभी तक देवता किन्नर यक्ष आदि किसी ने भी नहीं किया है उनके वचनों को सुनकर मोहनी बोली हे देवताओं एवं देव क्यों मैं तो एक साधारण स्त्री हूं किंतु आप महर्षि कश्यप के पुत्र होने के कारण भाई भाई को इस तरह आपस में लड़ना उचित नहीं है तब देवता एवं देते समवेत स्वर में कहने लगे इस शुभ एंगी हम तुम्हारा स्वागत करते हैं तुम अपने सुकोमल हाथों से हमें अमृत पान कराओ तब मोहिनी अपनी मधुर स्वर से बोली बुद्धिमान लोग को सुरक्षा चारणी इस्त्री पर सदा पिच विश्वास नहीं करना चाहिए उसके इस प्रकार के नित्य को वचनों को सुनकर व्यक्तियों को और अधिक विश्वास हो गया वह बोले तुम जिस तरह हमारे बीच अमृत बांटना चाहोगे हम उसी प्रकार अमृत पान करेंगे तब मोहनी बोली है देती हो मैं उचित अनुचित कुछ भी करूं यदि आप सभी को शिव कार हो तो मैं अमृत पिला सकती हूं अन्यथा मैं तो चली मैं सुरक्षा छन स्त्री हूं मैं एक जगह स्थिर नहीं रहती तब देती हूं ने विनय पूर्वक मोहनी को रोककर उसकी बात स्वीकार की और मोहनी के आदेश अनुसार देवता अलग पंक्ति में तथा देते दान आलम पंक्ति में अमृत पहन हेतु बैठ गए मोहनी रूप धारी श्री नारायण ने अमृत कलश उठा लिया और दैत्यों की ओर देखकर अपनी मधुर मुस्कान से मदहोश करने लगे देते अमृत पीना भूल कर एक तक उनकी 20 सो मोहक छवि देखने लगे श्री हरि ने अपने माया से एक मध्य कलश प्रकट किया और बेटियों को मिलाने लगे तत्पश्चात देवताओं की पंक्ति में आ गए और माया शक्ति से मधुकलश को लुप्त कर दिया उसके हाथ में अमृत कलश आ गया जिससे देवताओं में बैठकर देवताओं के भाग्य को प्रबल करने लगे भगवान की इस माया रुपी चाल को दे देना भापे सके किंतु राहुल नाम के एक व्यक्ति ने सब कुछ देख लिया और देवता का रूप धारण कर देवताओं की पंक्ति में जा बैठा और चुपके से अमृत पीलिया अमृत उसके कंठ तक पहुंचा था कि सूर्य एवं चंद्रमा ने उसे पहचान लिया और संकेत करते हुए श्री नारायण से बोले या राहु नामक का दैत्य है यह सुनते ही भगवान श्री नारायण अपने वास्तविक रूप में आ गए और चक्र सुदर्शन से उसके सिर काट लिया किंतु अमृत के प्रभाव से वह स्वस्थ हो गया तब सूर्य और चंद्रमा ने त्रिलोकीनाथ से कहा हे प्रभु इसके और कुकड़े ना करें श्री सुखदेव जी बोले हे राजा परीक्षित तब श्री नारायण ने राहुल से कहा हे राहु तूने देवताओं के साथ बैठकर अमृत पान किया है इसलिए ग्रह बंद कर ग्रह मंडल में स्थापित हो जाना उसी दिन से सात ग्रहों के स्थान पर नवग्रह हो गए उसके कटे हुए सिर को राहु तथा धारकों के तू नामक प्राप्त हुआ वही राहु और केतु बैर भाव से कभी-कभी सूर्य एवं चंद्रमा पर आक्रमण कर देते हैं जिसे ग्रहण कहते हैं
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Shrimad Bhagwat Katha Purana Eighth Skandha Chapter New Beginning
Taking the form of Mohini and drinking nectar to the deities by Shri Narayan, Shri Sukhdev ji said, seeing the beauty of the form of King Parikshit Mohini, the gods started touching the climax of surprise and giving such a beautiful woman in those vegetables, she had not yet seen that nectar. They forgot and started saying among themselves or from where Param Sundari had come to this place and were talking among themselves. When Shri Narayan, wearing Mohini form, reached near her, the Asuras said, then Roopsundari, for what purpose it seems that you have come here. No one has done your deity, Kinnar Yaksha etc., listening to their words, Mohini said, oh Gods and Gods, why am I a simple woman, but because you are the son of Maharishi Kashyap, it is appropriate to fight with each other like this. If it is not, then the deity and giving started saying in a hushed voice, we welcome you, please make us drink nectar with your soft hands, then Mohini said with her sweet voice, intelligent people should not always believe in ironing the safety barn. Listening to the verses of the kind daily makes people more special. He said that the way you would like to distribute nectar among us, we will drink nectar in the same way, then Mohini says, I will do whatever is right and wrong, if you all have Shiva car, then I can drink nectar, otherwise I went to safety. I am a good woman, I do not remain stable in one place, then I graciously stopped Mohani and accepted her words and according to the orders of Mohani, the deities sat in a separate row and gave donations in the row, wearing nectar, Shri Narayan, wearing the form of Mohini, took the nectar urn. He lifted it up and looking at the demons, started getting intoxicated with his sweet smile, forgetting to drink the nectar, he started seeing their charming image till one day. He went and destroyed the honey urn with the power of Maya, a nectar urn came in his hand, so that sitting in the deities, he started to strengthen the fate of the deities, he could give this illusion of God to the trick, but a person named Rahul saw everything. And taking the form of a deity, sat in the line of the gods and secretly nectar jaundiced. The song had reached his throat that the Sun and the moon recognized him, and on hearing that he spoke to Shri Narayan, or there was a demon named Rahu, Lord Shri Narayan came in his original form and beheaded him with the chakra Sudarshan, but nectar. When he became healthy, Sun and Moon said to Trilokinath, Oh Lord, don't do any more garbage, Shri Sukhdev Ji said, O King Parikshit, then Shri Narayan said to Rahul, O Rahu, you have drank nectar while sitting with the gods, so the planet is closed. From that day onwards seven planets were replaced by Navagraha, his severed head got the name Rahu and the holders called Tu, the same Rahu and Ketu sometimes attack the Sun and the Moon with enmity. eclipse says
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