श्रीमद् भागवत कथा पुराण सातवां स्कंध अध्याय 9

श्रीमद् भागवत कथा पुराण सातवां स्कंध अध्याय 9 आरभ

पहलाद द्वारा भगवान नरसिंह देव की स्तुति देवर्षि नारद बोले थे धर्मराज युधिष्ठिर पहलाद में नरसिंह भगवान के चरणों में सिर रखकर स्थिति की तब उनका क्रोध शांत हुआ और पहलाद को प्रेम पूर्वक अपने चरणों में बैठा कर गोद में बैठा लिया और उनके सिर पर हाथ फेर कर बोले हे पुत्र तू भाई नहा कर और प्रसन्न मुक्त होकर अपनी अभिलाषा प्रगट कर प्रभु के वचन को सुनकर भक्त पहलाद के नेत्रों में आंसू भर आए वह भक्ति में भी हॉल होकर बोला हे दीनानाथ के भक्त कौशल्या मैं आपसे तनिक भी भयभीत नहीं हूं मुझे इस संसार के भयंकर चक्र से आए हैं आपकी कृपा के बिना ना जाने कब तक इस संसार के जाल मैं भटकता रहूंगा यह शरीर अविद्या के कारण अनेक कर्म करता हुआ अनेक योनि में भ्रमण करता है आपकी यह माया मुझे अत्यंत दुख दे रही है के पालनहार जिस तरह मुझे धार्मिक पुल के बालक पर दयालु होकर मेरी रक्षा की इसलिए मैं आपने सम्मान दूसरे का भाग्य नहीं समझता मैं देश के कुल में जन्म लेने वाला अज्ञानी बालक हूं आपकी सूती करना नहीं जानता किंतु आप अंतर्यामी हैं सब कुछ जानते हैं आप उत्पत्ति करता पालनकर्ता एवं विनाश करता है तीनों लोग आप में निहित है युग युग में धर्म की रक्षा हेतु आप अवतार धारण करते हैं और इस कलयुग में गुप्त रोग से रहते हैं इसलिए आपको प्रयोग भी कहते हैं देवता दानव आदि आपके इस भयंकर स्वरूप से डरते हैं किंतु मैं वह नहीं मानता क्योंकि आपने यह अवतार धारण कर मेरे प्राणों की रक्षा की है इस प्रकार की स्थित कर भक्त पहलाद चुप हो गए तब नरसिंह भगवान ना बोले थे भक्त पहलाद तुम्हारी भक्ति से अति प्रसन्न हो तुम मनचाहा वर मांग लो

Shrimad Bhagwat Katha Purana Seventh Skandha Chapter 9 Beginning

Devarshi Narad had spoken praising Lord Narasimha Dev by Pahlada, Dharmaraj Yudhishthira placed his head at the feet of Lord Narasimha in Pahlada, then his anger subsided and by lovingly sitting at his feet, Pahlada was seated in his lap and by turning his hand over his head. Said, son, you brother, after taking a bath and being happy and free, after listening to the word of the Lord, tears filled the eyes of the devotee Pahlada. I have come from the terrible cycle of life without your grace, without knowing how long I will keep wandering in the web of this world, this body travels in many vaginas doing many deeds due to ignorance. Protected me by being kind on the child of the religious bridge, so I respect you, do not understand the fate of others, I am an ignorant child born in the family of the country, do not know how to do your cotton, but you are the intercessor, you know everything, you create, maintain and destroy. All three people are inherent in you, in the era of the era You take incarnation to protect dharma and in this kalyug live from secret disease, therefore you are also called experiments, gods, demons, etc. are afraid of this terrible form of yours, but I do not believe that because you saved my life by taking this incarnation. Devotee Pahlada became silent after making such a situation, then Lord Narasimha did not say that Bhakta Pahlada is very pleased with your devotion, ask for any boon you want.

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